वाराणसी। बनारस के चौकाघाट स्थित जिला जेल में एक गंभीर प्रकरण सामने आया है, जिसने न्याय व्यवस्था और महिला सशक्तिकरण पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया ने जेल अधीक्षक उमेश सिंह पर उत्पीड़न, भ्रष्टाचार और जान से मारने की धमकी देने के गंभीर आरोप लगाए हैं।
डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबोधित 17 सूत्रीय पत्र और एक वीडियो संदेश के माध्यम से अपनी व्यथा व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि पिछले डेढ़ वर्षों से अधीक्षक उमेश सिंह उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं। उनके अनुसार, अधीक्षक ने उन्हें अपने घर बुलाने का प्रयास किया और इनकार करने पर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। मीना कन्नौजिया का कहना है कि अधीक्षक उनके पहनावे पर अभद्र टिप्पणी करते हैं और अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हैं। सबसे गंभीर आरोप यह है कि उन्होंने मीना और उनके परिवार को जान से मारने की धमकी दी है।

डिप्टी जेलर ने चार महीने पहले भी उच्च अधिकारियों से शिकायत की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अपनी शिकायत में उन्होंने जेल में भ्रष्टाचार, नशीले पदार्थों की बिक्री और बंदियों से अवैध वसूली जैसे गंभीर मुद्दों को उठाया था। मीना कन्नौजिया का आरोप है कि अधीक्षक उमेश सिंह का जेल में इतना प्रभाव है कि उनके खिलाफ आवाज उठाने से अधिकारी भी हिचकते हैं।
शिकायतकर्ता का तबादला, आरोपी पर कार्रवाई नहीं
मामला सार्वजनिक होने के बाद डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया का तबादला प्रयागराज के नैनी जेल में कर दिया गया, जबकि आरोपी जेल अधीक्षक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस फैसले की चौतरफा आलोचना हो रही है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली सरकार ने शिकायतकर्ता महिला अधिकारी का ही तबादला कर दिया, जो निंदनीय है।

अजय राय ने सोशल मीडिया पर लिखा, “महिला सशक्तिकरण की झूठी बातें करने वाली डबल इंजन सरकार का असली चेहरा देखिए। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया ने जिला कारागार अधीक्षक उमेश सिंह पर उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए, लेकिन सरकार ने अधीक्षक पर कार्रवाई करने के बजाय शिकायतकर्ता महिला डिप्टी जेलर का ट्रांसफर कर दिया। शर्म करो सरकार! नारी को न्याय दो!”
उन्होंने आगे कहा कि डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया वंचित समुदाय से आती हैं, लेकिन उनके आरोपों की निष्पक्ष जांच करने के बजाय उन्हें ही सजा दे दी गई। यह घटना जेल प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करती है। उन्होंने मांग की कि मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि महिला अधिकारियों का मनोबल बना रहे।
जातिसूचक शब्दों और धमकियों का आरोप
नेहा शाह ने आरोप लगाया कि जेल अधीक्षक ने उनकी मां के खिलाफ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया, जिससे उनका आत्मसम्मान आहत हुआ। उन्होंने बताया कि अधीक्षक महोदय बार-बार ताना मारते हैं कि “तुम काम नहीं करती हो, घर पर ही रहती हो,” और फिर धमकी भरे लहजे में कहते हैं कि “मैं तुम्हारे खिलाफ कुछ ऐसा लिखूंगा कि मुख्यालय वाले तुम्हारा खून पी जाएंगे।”

नेहा शाह का यह भी कहना है कि उनकी मां लगातार इस मानसिक उत्पीड़न से गुजर रही हैं, लेकिन किसी को अपनी तकलीफ खुलकर नहीं बता पा रही हैं। वे अपने आत्मसम्मान और नौकरी को लेकर चिंतित हैं। शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया है कि न केवल मीना कन्नौजिया बल्कि अन्य कर्मचारियों को भी प्रताड़ित किया जाता है। हालांकि, वे डर के कारण खुलकर शिकायत नहीं कर पाते। लेकिन मीना कन्नौजिया इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं और उनका मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है।
नेहा शाह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वे इस मामले में संज्ञान लें और वाराणसी जिला जेल अधीक्षक उमेश सिंह के खिलाफ उचित कार्रवाई करें। उन्होंने आग्रह किया कि उनकी मां को इस मानसिक उत्पीड़न से बचाने के लिए तत्काल प्रभाव से कदम उठाया जाए ताकि वह अपने कार्यस्थल पर बिना किसी दबाव और भय के अपनी ड्यूटी कर सकें।
पीड़िता की बेटी ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और अगर जेल अधीक्षक दोषी पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई की जाए। इसके अलावा, जेल प्रशासन में इस तरह के भेदभाव और उत्पीड़न को रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।

फिलहाल, इस मामले पर जेल प्रशासन या उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन 16 मार्च 2025 को अचानक उनका तबादला जरूर कर दिया गया। तबादला आदेश बनारस पहुंचते ही आनन-फानन में उनको रिलीव कर दिया गया। नैनी कारागार में ज्वाइन करने जा रही डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया ने जनचौक से बातचीत में बनारस जिला जेल के अधीक्षक उमेश सिंह पर खुलेआम सनसनीखेज आरोप लगाए।
कठिन है मीना की जिंदगी
डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया के तीन बच्चे हैं, जिनमें दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी सगुन प्राइवेट नौकरी करती है, जबकि दूसरी बेटी नेहा शाह और बेटा आदित्य उनके साथ रहते हैं। मीना कहती हैं, “मेरे पति की स्थिति ऐसी नहीं है कि वो घर संभाल सकें। मैं अकेले नौकरी कर रही हूं। आगे-पीछे मेरा कोई नहीं है। नौकरी छोड़ दूं तो बच्चों का पालन-पोषण कौन करेगा? यही मेरी सबसे बड़ी चिंता है। मेरा मायका लखनऊ के कपूरथला में और ससुराल बिहार के मुजफ्फरपुर के एक गांव में है। दोनों ही जगहों से मुझे कोई सहायता नहीं मिल सकती। यही कारण है कि मेरी परिस्थितियां और कठिन हो जाती हैं।”

मीना कन्नौजिया ने आरोप लगाया कि जेल अधीक्षक उमेश सिंह की गंदी करतूतें सिर्फ उनके साथ ही नहीं, बल्कि अन्य महिला कर्मचारियों के साथ भी हुई हैं। उन्होंने कहा, “मेरी आंखों के सामने ही उमेश सिंह ने डिप्टी जेलर रतनप्रिया के साथ दुर्व्यवहार किया था। लेकिन कार्रवाई के बजाय उनका तबादला मैनपुरी कर दिया गया। इसी तरह, डिप्टी जेलर अनीता सहाय के साथ भी यही हुआ और उनका स्थानांतरण आजमगढ़ कर दिया गया।”
मीना का कहना है कि उमेश सिंह ने गाजीपुर में तैनात एक महिला चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के साथ भी दुर्व्यवहार किया था। हालांकि, जेल अधिकारियों ने इस मामले को दबा दिया और पीड़िता को मजबूरी में समझौते पर दस्तखत करने पड़े। मीना का कहना है कि बनारस जिला जेल में अधीक्षक उमेश सिंह की मनमानी चरम पर है, और वे किसी भी कीमत पर उनके अन्याय के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगी।
महिलाओं की गरिमा रक्षा कानून: कितना कारगर?
बनारस में महिला मामलों की प्रमुखता से पैरवी करने वाले जाने-माने अधिवक्ता संजीव वर्मा कहते हैं, “जेल अधीक्षक के खिलाफ शिकायतों की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वो किसी न्यायदर्शी अफसर को भेजकर सभी शिकायतों की बिंदुवार जांच कराए। महिलाओं के सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिए “कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013″ लागू किया गया था। इस कानून का उद्देश्य कार्यस्थल को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना, यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकना और यदि कोई घटना घटती है तो पीड़िता को न्याय दिलाना है।”

“यह अधिनियम विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों को आधार बनाकर बनाया गया था। इसके तहत हर उस संस्था पर यह कानून लागू होता है, जहां दस या उससे अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। यह संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करता है। अधिनियम के अनुसार, कार्यस्थल पर आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC) का गठन अनिवार्य है, ताकि महिलाओं को न्याय के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े और संस्थान के भीतर ही उनकी शिकायतों का समाधान हो सके।”
अधिवक्ता संजीव कहते हैं, व्यावहारिक स्तर पर देखें तो कामकाजी महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर आज भी कई तरह की चुनौतियां हैं। सबसे पहले, कई निजी और सरकारी संगठनों में अब भी इस कानून की पूरी तरह से जानकारी नहीं है। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं में आंतरिक शिकायत समिति का गठन नहीं होता, जिससे महिलाओं को शिकायत दर्ज कराने में कठिनाई होती है। दूसरी बड़ी समस्या यह है कि यौन उत्पीड़न को पूरी तरह से आपराधिक कृत्य नहीं माना गया है। यह केवल एक नागरिक अपराध माना जाता है, यानी इसमें सख्त दंड का प्रावधान नहीं है। जब तक पीड़िता खुद यौन उत्पीड़न को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 या अन्य संबंधित धाराओं के तहत अपराध की श्रेणी में लाने के लिए पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराती, तब तक मामला केवल आंतरिक समिति के दायरे तक सीमित रहता है। इसके चलते कई बार आरोपी को सजा से बचने का मौका मिल जाता है।”
“इसके अलावा, शिकायत करने वाली महिलाओं पर सामाजिक और मानसिक दबाव भी पड़ता है। कई बार पीड़िता पर ही आरोप लगाया जाता है कि उसने अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए झूठा आरोप लगाया है, जिससे कई महिलाएँ शिकायत दर्ज कराने से कतराती हैं। विशेष रूप से असंगठित क्षेत्रों जैसे घरेलू कामगार, फैक्ट्री श्रमिक, निर्माण कार्य में लगी महिलाएं इस कानून का लाभ नहीं उठा पातीं, क्योंकि उनके कार्यस्थलों में शिकायत समिति का कोई प्रावधान नहीं होता। कानून की प्रभावशीलता को देखते हुए, यह कहना गलत नहीं होगा कि कानूनी प्रावधान मौजूद होने के बावजूद इसका क्रियान्वयन कमजोर है। महिलाओं की गरिमा की रक्षा के लिए इस अधिनियम को अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है।”
अधिवक्ता संजीव वर्मा यह भी कहते हैं, “कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा की रक्षा के लिए यह कानून एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसकी सफलता इसके प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। जब तक कानून का सख्ती से पालन नहीं किया जाएगा और समाज में जागरूकता नहीं बढ़ेगी, तब तक यह पूरी तरह से कारगर नहीं हो पाएगा। महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए सिर्फ कानून बनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे प्रभावी रूप से लागू करना भी उतना ही जरूरी है।”
यूपी के जेलों की स्थिति
भारत की जेलों में लिंग और धर्म के आधार पर असमानता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत हालिया आंकड़े बताते हैं कि देश की जेलों में 95.84% पुरुष कैदी हैं, जबकि महिलाओं की संख्या केवल 4.15% और ट्रांसजेंडर कैदियों की संख्या 0.01% है। यह आँकड़ा न केवल भारतीय जेल प्रणाली की संरचना को दर्शाता है, बल्कि लिंग आधारित अपराध न्याय प्रणाली की बारीकियों को समझने की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य स्तर पर उत्तर प्रदेश की जेलों की स्थिति गंभीर है। यहां सबसे अधिक पुरुष कैदी हैं। यह संख्या देश के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे अधिक है, जो न केवल बढ़ते अपराध दर को इंगित करता है बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी और जेल सुधारों की जरूरत को भी दर्शाता है। वहीं, लक्षद्वीप में सबसे कम हैं।
धार्मिक आधार पर देखा जाए तो भारतीय जेलों में बंद कुल दोषियों में 73.8% हिंदू, 17.1% मुस्लिम, 4.2% सिख और 3.3% ईसाई हैं। विचाराधीन कैदियों के मामले में भी हिंदू 65.3% और मुस्लिम 19.3% की संख्या के साथ प्रमुख हैं। उत्तर प्रदेश की जेलों में कुल 20,063 हिंदू दोषी हैं। बंदियों की संख्या पर गौर करें तो 50.3% हिंदू, 35.2% मुस्लिम, 9.8% ईसाई और 0.4% सिख जेलों में बंद हैं।
विचाराधीन कैदियों की संख्या की बात करें तो उत्तर प्रदेश एक बार फिर शीर्ष पर है। इस स्थिति को देखते हुए स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश की जेलों में मुकदमे की प्रक्रिया अत्यधिक लंबी है, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग वर्षों तक बिना दोष सिद्ध हुए जेलों में पड़े रहते हैं। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में हिंदू कैदियों की संख्या अधिक है, जबकि मुस्लिम कैदी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में मौजूद हैं। पंजाब में सिख कैदी अपेक्षाकृत अधिक हैं, जबकि तमिलनाडु में ईसाई कैदियों की संख्या अन्य राज्यों की तुलना में अधिक देखी गई है।
उत्तर प्रदेश की जेलों में विचाराधीन कैदियों की अत्यधिक संख्या यह दर्शाती है कि वहां की न्यायिक प्रक्रिया धीमी है। उत्तर प्रदेश जैसी जगहों पर, जहां जेलों में अत्यधिक भीड़ है, सुधारात्मक उपायों को प्राथमिकता देने की जरूरत है, ताकि न्याय प्रणाली अधिक समावेशी और प्रभावी बन सके।
सत्ता का संरक्षण: आखिर क्यों?
अचूक रणनीति के संपादक विनय मौर्य कहते हैं, “उत्तर प्रदेश की जेलों की बदहाल स्थिति किसी से छिपी नहीं है, लेकिन जब कोई अधिकारी अपनी कुर्सी का इस्तेमाल न सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए बल्कि महिलाओं के शोषण के लिए भी करने लगे, तो यह न केवल एक गंभीर अपराध है, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र पर एक बदनुमा दाग भी है। वाराणसी जेल अधीक्षक उमेश सिंह मात्र एक भ्रष्टाचारी नहीं, बल्कि एक चरित्रहीन व्यक्ति है, जिसकी करतूतें घिनौनेपन की सारी हदें पार कर चुकी हैं।”
“जिला जेल के अधीक्षक उमेश सिंह के बारे में महिला जेलकर्मियों की शिकायतें नई नहीं हैं। यह व्यक्ति महिला कर्मचारियों से अभद्र संवाद करता है, उनके अंगों को छूने की कोशिश करता है और उन्हें अपने कमरे में बुलाने की आदत बना चुका है। क्या यह किसी जेल अधीक्षक का आचरण होना चाहिए? पूर्व में वाराणसी में पदस्थ एक महिला डिप्टी जेलर ने शासन को पत्र लिखकर इस अधिकारी की गंदी हरकतों की जानकारी दी थी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से कार्रवाई होने के बजाय उनका ही तबादला कर दिया गया। यह किस व्यवस्था का संकेत है? क्या सत्ता में बैठे लोग इस तरह के व्यभिचारी अधिकारियों को संरक्षण दे रहे हैं?”
वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य बनारस के अखबारों में जेल अधीक्षक के खिलाफ छपी खबरों की कतरन दिखाते हुए कहते हैं, “बनारस जिला जेल में तैनात महिला अधिकारी, मीना कनौजिया ने इस व्यक्ति के चरित्रहीन होने की बात सार्वजनिक रूप से कही है। क्या यह महज संयोग है कि हर महिला अधिकारी, जो इसके संपर्क में आती है, वह इसकी गंदी हरकतों की गवाह बनती है? या फिर यह सच में एक ठरकी व्यक्ति है, जिसे अपने पद और सत्ता के संरक्षण का घमंड है? उमेश सिंह की घिनौनी हरकतें केवल महिलाओं तक सीमित नहीं हैं। जेल में काम करने वाले डॉक्टरों के अनुसार, यह व्यक्ति कैदियों के इलाज के लिए बने अस्पताल से हर महीने तीन लाख रुपये की उगाही चाहता था। जब डॉक्टर ने यह भ्रष्टाचार करने से इनकार किया, तो उसने हाथ खड़े कर दिए कि वह इस तानाशाही के आगे कुछ नहीं कर सकता।”
“सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने संगीन आरोपों के बावजूद उमेश सिंह पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती? वह खुलेआम सत्ता से अपने संबंधों का हवाला देकर जेलकर्मियों को डराता है। क्या इस व्यक्ति की पकड़ वाकई इतनी मजबूत है कि इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती? अब तक ऐसे आरोपों में डीजी जेल तक को हटाया जा चुका है, लेकिन यह व्यक्ति अपने पद पर डटा हुआ है। यह स्पष्ट संकेत है कि कहीं न कहीं सत्ता के ऊपरी गलियारों से इसे संरक्षण मिल रहा है।”
वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक विनय मौर्य यह भी कहते हैं, “यह समझ से परे है कि योगी सरकार को इस भ्रष्टाचारी और व्यभिचारी अधिकारी से आखिर क्या फायदा मिल रहा है? क्या यह सरकार की छवि सुधार रहा है या उसे और गिरा रहा है? अगर मुख्यमंत्री वास्तव में ईमानदार शासन की बात करते हैं, तो उन्हें इस व्यक्ति पर तुरंत सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। वरना यह साफ हो जाएगा कि सत्ता की छत्रछाया में ऐसे घिनौने लोगों को पनाह दी जा रही है।”
“यह मामला महिला सुरक्षा, कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव और प्रशासनिक तानाशाही से जुड़ा हुआ है, जिस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, जेल के कर्मचारियों से छुट्टी देने तक के लिए पैसे ऐंठना इस अधीक्षक के भ्रष्टाचार का एक और चेहरा है। यह अधिकारी हर जगह पैसा बटोरने में लगा है, मानो जेल अधीक्षक नहीं, किसी माफिया गिरोह का सरगना हो। उत्तर प्रदेश की जनता, विशेषकर वाराणसी की जनता, यह जानना चाहती है कि आखिर कब तक ऐसे भ्रष्टाचारी और व्यभिचारी अधिकारी सत्ता के संरक्षण में पलते रहेंगे? क्या प्रशासनिक तंत्र इतना कमजोर हो गया है कि वह अपने ही अधिकारियों की गंदगी को साफ नहीं कर सकता? “
वरिष्ठ पत्रकार मौर्य कहते हैं, “यह मामला सिर्फ एक महिला अधिकारी के उत्पीड़न तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जेल प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का एक भयावह उदाहरण है। डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। यदि उनके आरोप सत्य पाए जाते हैं, तो जेल अधीक्षक उमेश सिंह के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली सरकार के लिए यह मामला एक बड़ी परीक्षा है। यदि सरकार वास्तव में महिलाओं को न्याय दिलाने और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के प्रति प्रतिबद्ध है, तो उसे इस मामले में तत्काल कार्रवाई करनी होगी। अन्यथा, यह घटना भविष्य में महिला अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए एक खतरनाक संदेश साबित हो सकती है कि यदि वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगी, तो उनका ही उत्पीड़न होगा।”
उत्पीड़न के आरोपों पर एक नजर
1. जबरन सरकारी बंगले पर बुलाने का दबाव : डिप्टी जेलर मीना कनौजिया ने आरोप लगाया कि वाराणसी जिला जेल अधीक्षक उमेश सिंह ने कई बार उन्हें अपने सरकारी बंगले पर बुलाने की कोशिश की। जब उन्होंने मना कर दिया, तो उत्पीड़न का सिलसिला शुरू हो गया।
2. ऑफिस में अश्लील बातें और अभद्र भाषा का प्रयोग : मीना कनौजिया के मुताबिक, उमेश सिंह ऑफिस में अक्सर अश्लील और आपत्तिजनक बातें करते थे। उनकी भाषा और शब्दों का चयन महिलाओं को असहज करने वाला होता था।
3. जातिगत भेदभाव और अपमानजनक टिप्पणियां : मीना ने आरोप लगाया कि उमेश सिंह जातिगत भेदभाव करते हैं और विशेष रूप से ब्राह्मणों के प्रति नकारात्मक रवैया रखते हैं। उनका मानना है कि ठाकुर होने के नाते सिर्फ वही जेल में शासन कर सकते हैं।
4. पहनावे पर अनावश्यक टिप्पणी : मीना कनौजिया के अनुसार, उमेश सिंह उनके कपड़ों पर लगातार टिप्पणी करते थे। विशेष रूप से, जब वह जेल परिसर में सदरी पहनती थीं, तो उन पर कटाक्ष किए जाते थे, जैसे-“तुम्हें चुनाव लड़ना है क्या?”
5. धमकियां और राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल : मीना के मुताबिक, उमेश सिंह खुलेआम कहते हैं कि “योगी जी मेरे भाई हैं, मैं चुनाव लड़ूंगा और जेल मंत्री भी बनूंगा। जो मेरे खिलाफ जाएगा, उसे खत्म कर दूंगा।” उनका रवैया तानाशाही भरा है और वे खुद को कानून से ऊपर मानते हैं।
6. झूठे आरोप लगाकर मानसिक उत्पीड़न : मीना का दावा है कि जेल में होने वाली किसी भी घटना का दोष उन पर मढ़ दिया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर कैदियों ने खाना लेने से इनकार कर दिया, तो उन्हें इसका जिम्मेदार ठहराया गया।
7. हत्या की आशंका : मीना कनौजिया ने आशंका जताई कि उमेश सिंह उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। उनका कहना है, “जो भी उनके खिलाफ जाता है, वह उसे बर्बाद कर देते हैं। मैं ड्यूटी कर रही हूं और मुझे पता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं। मेरी जान को खतरा है।”
8-ट्रांसफर पर सवाल : जब मीना कनौजिया ने उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई, तो कार्रवाई उमेश सिंह पर होने की बजाय उनका खुद का ट्रांसफर कर दिया गया। उन्होंने उमेश सिंह को “क्रिमिनल माइंड” बताया और कहा कि जेल में अधिकारी उनसे डरते हैं, यहां तक कि उच्च अधिकारी भी उनके खिलाफ बोलने से कतराते हैं।
डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया की शिकायतों पर बनारस के जेल अधीक्षक उमेश सिंह से बातचीत करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने इस बाबत कुछ भी बोलने से साफ इनकार कर दिया। उनका कोई पक्ष आता है तो उसे भी इस रिपोर्ट के साथ अपडेट कर दिया जाएगा।
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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