महिलाओं की सुरक्षा का दम भरने वाली योगी सरकार ने समाख्या बंद की, 22 महीने से कर्मियों को वेतन भी नहीं दिया

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध में पहले नंबर पर है, इसके बावजूद सरकार ने समाख्या संस्था को बंद कर दिया। यही नहीं यहां काम करने वाली महिलाओं को 22 महीन से वेतन भी नहीं मिला है। महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान और संरक्षण देने वाली इस संस्था को तत्काल प्रभाव से चलाने और इसमें कार्यरत कर्मचारियों का बकाया वेतन और अन्य देयताओं के भुगतान दिलाने के लिए वर्कर्स फ्रंट से जुड़े कर्मचारी संघ महिला समाख्या ने पहल की है। इसकी प्रदेश अध्यक्ष प्रीती श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री को ई-मेल कर के इस तरफ ध्यान दिलाया है। उन्होंने अपने पत्र की प्रतिलिपि अपर मुख्य सचिव, महिला एवं बाल कल्याण और निदेशक महिला कल्याण को भी आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजा है।

पत्र में प्रीती ने कहा कि आज समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ कि सरकार ने प्रदेश में महिला और बाल अपराध से पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने के लिए माननीय उच्च न्यायालय से निर्देश देने की प्रार्थना की है। इससे पहले सीएम ने स्वयं ट्विटर द्वारा प्रदेश में महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा के लिए नवरात्रि के अवसर पर प्रभावी विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया है। पत्र में कहा गया कि प्रदेश में महिलाओं के साथ हिंसा राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बना हुआ है और इससे सरकार की छवि भी धूमिल हो रही है। हाल ही में घटित हाथरस परिघटना हो या बलरामपुर, बुलंदशहर, हापुड़, लखीमपुर खीरी, भदोही, नोएडा में हुई महिलाओं पर हिंसा की घटनाएं आए दिन बढ़ रही हैं। हालत इतने बुरे हैं कि महिला और बालिकाओं के अपहरण की पूरे देश में घटी घटनाओं में आधी से ज्यादा घटनाएं अकेले उत्तर प्रदेश में हुई हैं।

उन्होंने कहा कि इस हिंसा के अन्य कारणों में एक बड़ा कारण यह है कि निर्भया कांड के बाद बने जस्टिस जेएस वर्मा कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर महिलाओं, बालिकाओं और बच्चों पर हो रही यौनिक, सांस्कृतिक और सामाजिक हिंसा पर रोक के लिए जिन संस्थाओं को बनाया गया था, उन्हें प्रदेश में बर्बाद कर दिया गया है। इसका जीवंत उदाहरण महिलाओं को बहुआयामी सुरक्षा, सम्मान और आत्मनिर्भर बनाने वाले कार्यक्रम महिला समाख्या को बंद करना है।

पत्र में महिला समाख्या के योगदान के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा गया है कि 31 वर्षों से 19 जनपदों में चल रही जिस संस्था को हाई कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने घरेलू हिंसा पर रोक के लिए महिला कल्याण में लिया था और जिसे अपने सौ दिन के काम में शीर्ष प्राथमिकता पर रखा था, उसे आज बिना कोई कारण बताए गैरकानूनी ढंग से बंद कर दिया। यही नहीं हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी पिछले बाइस महीनों से वेतन और अन्य देयताओं का भुगतान नहीं किया गया। पत्र में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में यदि सरकार महिला सुरक्षा और सम्मान के प्रति ईमानदार है तो उसे तत्काल महिला सुरक्षा की संस्थाओं को चालू करना चाहिए और उन्हें मजबूत करना चाहिए।

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments