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खतरनाक है सच जैसा लगने वाला झूठ

मोदी के प्रचार-तंत्र ने आम लोगों के बीच झूठ को विश्वसनीय सच बना दिया है कि विपक्ष भी उस झूठ तक नहीं पहुंच पा रहा है।

पिछले साल यानी 2018 का दिसंबर का महीना। मैं बाजार के चौराहे पर खड़ा था। मेरे बगल में खड़े थे मजदूर से दिखने वाले दो लोग, जो शायद गांव से आए थे। एक के हाथ में कागज में लिपटी हुई कोई वस्तु थी। एक ने दूसरे से पूछा, ‘क्या है हाथ में?’ दूसरे ने जवाब दिया, ‘मच्छरदानी है, सब गरीब लोगों को मिल रही है।’ फिर शुरू हुई उनकी ज्ञान की पाठशाला।

मच्छरदानी वाले ने  बोलना शुरू किया, ‘जानते हो, सोनिया गांधी देश का सब पैसा लेकर विदेश में रख आई थी, जिसे मोदी जी जा-जा कर लाते हैं और हम गरीब सबको मच्छरदानी, कंबल, चावल, गैस वगैरह देते हैं।’ पास खड़ा मजदूर उसके हां में हां मिला रहा था।

इस तरह का स्तरहीन दुष्प्रचार आखिर कौन फैला रहा है? कोई तो है जो इन आम गरीब, आदिवासी-दलित मजदूर लोगों के बीच ऐसा भ्रामक दुष्प्रचार कर रहा है। कितना खतरनाक है सच जैसा लगने वाला यह झूठ! हम ऐसे झूठ का परिणाम भी 2019 के आम चुनाव में देख चुके हैं। इन दुष्प्रचारों पर विपक्ष अपंग क्यों है? क्यों नहीं ऐसे झूठ का पर्दाफाश कर पाता है विपक्ष? ऐसे कितने ही अनुत्तरित सवाल हैं, जिसका जवाब तलाशना जरूरी है।

एक दिन एक पत्रकार मित्र के यहां बैठा था। कभी वे एक बड़े अखबार के सीनियर रिपोर्टर हुआ करते थे। उम्र और अपने कुछ खास अंदाज के कारण अभी बेरोजगार हैं। मीडिया के पुराने साथियों एवं संपादकों पर चर्चा चली तो उन्होंने बड़ा ही एक चौंकाने वाला खुलासा किया। वैसे उस खुलासे को उन्होंने मुझे बड़े ही हल्के ढंग से बताया। शायद उन्हें उसकी गंभीरता का अंदाजा नहीं रहा हो। उन्होंने जो बताया उसके अनुसार रांची से प्रकाशित एक दैनिक अखबार के संपादक तथा अपने जमाने के घाघ समझे जाने वाले झारखंड के एक वरिष्ठ पत्रकार ने उन्हें एक दिन फोन कर उनकी खैरियत खबर ली। औपचारिक बातचीत के बाद उन्होंने इनसे पूछा, ‘आजकल क्या हो रहा है?’

अपनी बेरोजगारी की बात बताते ही उधर से कहा गया, ‘एक आफर है, करोगे?’

करना क्या होगा और क्या मिलेगा? के बारे में पूछने पर बताया गया कि, ‘जिले का प्रभार मिलेगा और बदले में 12 हजार रुपये मासिक मानदेय मिलेगा। जिले के हर प्रखंड में एक-एक रिपोर्टर बहाल करना होगा, जिन्हें पांच हजार रुपये मासिक मानदेय मिलेगा। प्रखंड के हर पंचायत में भी एक-एक रिपोर्टर बहाल करना होगा। उन्हें दो हजार रुपये मासिक मानदेय मिलेगा। हर रोज गांवों से ऐसे लोगों का वीडियो बनाना होगा जो सरकार की योजनाओं का लाभ लेकर काफी खुशहाल हैं। खबर प्रायोजित भी करना होगा। कुछ लालच देकर या कुछ पैसे देकर योजनाओं के लाभ की खुशहाली को रिकॉर्ड करना होगा। हर रोज 8-10 वीडियो भेजना होगा।’

मेरे इस पत्रकार मित्र के अनुसार उन्होंने यह आफर ठुकरा दिया। मगर सवाल उठता है कि कितने लोग इस आफर को ठुकराएंगे? कोई न कोई तो इस जाल में फंसेगा ही। जाहिर है कि ये खबरें भाजपा आईटी सेल के पास जाएंगी और सोशल मीडिया पर फ्लैश की जाएंगी।

सत्ता के लिए कितना खतरनाक खेल खेला जा रहा है और इस खेल में मीडिया का सहारा लिया जा रहा है, ताकि जनता में कोई सवाल की गुंजाईश न रहे। जाहिर है इस खतरनाक खेल का मकसद सत्ता के बहाने अपने मनोकूल नियम बनाकर स्थापित लोकतंत्र को समाप्त कर देना है। देश आज जिस तरह की आर्थिक मंदी के एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है, उससे निपटने के बजाय सत्ता में बने रहने की कुत्सित रणनीति का सहारा लिया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) द्वारा भुखमरी से जूझ रहे 117 देशों की रिपोर्ट जारी की गई। इसमें भारत 102वें नंबर पर रहा, जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान (94वें), बांग्लादेश (88वें), नेपाल (73वें) और श्रीलंका (66वें) भारत से बेहतर स्थित में पाए गए। जीएचआई की 2014 में जारी रिपोर्ट में भारत 76 देशों की लिस्ट में 55वें और 2017 में 119 में से 100 वें नंबर पर रहा था। वहीं  2018 में भारत 119 देशों की सूची में 103 नंबर पर था। बता दें कि यह पीयर-रिव्यूड वार्षिक रिपोर्ट है, जिसे आयरलैंड की कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की वेल्थुंगरहिल्फे ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया। इस रिपोर्ट में बेलारूस, बोस्निया एंड हरजेगोविना और बुल्गारिया क्रमशः पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं। वहीं, आखिर में सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक 117वें और यमन 116वें स्थान पर हैं।

जिस पाकिस्तान को हमारे गोदी मीडिया के रणबांकुरे रोज ब रोज नेस्तानाबूद करते रहते हैं, पाकिस्तान को रोज एक कटोरा देकर भीख मंगवाते रहते हैं, वही पाकिस्तान इस वैश्विक भूख सूचकांक में हमसे छह सीढ़ी नीचे रहकर हमें मुंह चिढ़ा रहा है। दूसरी ओर हमारा शासक, जनता को असली सच्चाई से बरगलाने के लिए झूठ की फसल तैयार करने में अपनी सारी उर्जा लगा रखा है, जो देश काल के लिए काफी खतरनाक है। बावजूद विपक्ष कोई ऐसा हथियार तैयार नहीं कर पा रहा है, जिससे मोदी और उसके गिरोह द्वारा फैलाए जा रहे झूठ को काटा जा सके।

कारण यह है कि मोदी और उसके गिरोह द्वारा बड़ी चालाकी से विपक्ष को कई अन्य राजनीतिक मुद्दों में उलझा दिया जाता है, जिससे आम जनता को कुछ लेना देना नहीं है। जैसे भाजपा के किसी मंत्री, किसी सांसद द्वारा विवादित बयान, मॉब लिंचिंग, कश्मीर, पाकिस्तान, पीओके वगैरह वगैरह।


विशद कुमार

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