Author: राजू पांडेय

  • मी लॉर्ड! क्या आपको पता है? कोरोना काल में घर से बेदखली मृत्युदंड है

    मी लॉर्ड! क्या आपको पता है? कोरोना काल में घर से बेदखली मृत्युदंड है

    दिल्ली में रेलवे की जमीन पर काबिज 48000 झुग्गियों को हटाए जाने विषयक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश अनेक कारणों से असंगत है और इसलिए इसकी पुनर्समीक्षा की जानी चाहिए। यूएन स्पेशल रेपोर्टर ऑन द राइट टू एडिक्वेट हाउसिंग (28 अप्रैल 2020) के अनुसार “इस महामारी के समय में अपने घर से बेदखल किया जाना मृत्युदंड…

  • देश के लिए खतरनाक है संवैधानिक संस्थाओं के भीतर की लोकतांत्रिक आत्माओं की मौत

    देश के लिए खतरनाक है संवैधानिक संस्थाओं के भीतर की लोकतांत्रिक आत्माओं की मौत

    पिछले कुछ दिन से बहुत चिंता पैदा करने वाले संकेत दिखाई दे रहे हैं। आर्थिक मोर्चे पर कुछ अत्यंत अप्रिय खबरें आईं। सीएसओ के अनुसार अप्रैल से जून के इस वित्त वर्ष की प्रथम तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद में 23.9 फीसदी की ऐतिहासिक गिरावट आई है। अब हम जी-20 देशों में सबसे खस्ताहाल अर्थव्यवस्था…

  • मोदी के मायावी गुब्बारे की हवा निकालने के लिए सच्चाई की एक छोटी सुई ही काफी

    मोदी के मायावी गुब्बारे की हवा निकालने के लिए सच्चाई की एक छोटी सुई ही काफी

    कांग्रेस का संकट आखिर है क्या? क्या पिछले दो लोकसभा चुनावों और लगभग इसी कालखंड में हुए अनेक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के लिए पार्टी के एक बड़े वर्ग द्वारा उत्तरदायी समझे जाने वाले सेकुलरिज्म और उदारवाद जैसे सिद्धांतों से छुटकारा पाने की तरकीब तलाशना ही कांग्रेस का संकट है? खुले ख्यालों वाले…

  • न्यायपालिका के सीबीआई-ईडी में तब्दील हो जाने का खतरा!

    न्यायपालिका के सीबीआई-ईडी में तब्दील हो जाने का खतरा!

    प्रशांत भूषण के समर्थन में कुछ अत्यंत विद्वतापूर्ण आलेख पढ़ने को मिले। इन आलेखों में विश्व के विभिन्न देशों में न्यायालय की अवमानना को लेकर प्रचलित अवधारणाओं, कानूनी प्रावधानों और इनके क्रियान्वयन की प्रक्रियाओं के गहन मंथन के बाद ससंदर्भ यह बताया गया है कि भारत का सुप्रीम कोर्ट उदार न्यायिक परंपराओं की अनदेखी कर…

  • विश्व आदिवासी दिवसः सरकार समर्थित कॉरपोरेट लूट के लिए आदिवासियों की बलि

    विश्व आदिवासी दिवसः सरकार समर्थित कॉरपोरेट लूट के लिए आदिवासियों की बलि

    आज नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है। यानी आदिवासियों का दिन। जैसा कि हर आपदा में होता है समाज का जो तबका सर्वाधिक वंचित और हाशिए पर होता है, वह आपदा से सर्वाधिक प्रभावित होता है। उसकी स्थिति पहले से भी कमजोर हो जाती है। आज हमारे देश में आदिवासी समुदाय के साथ बिल्कुल…

  • संदर्भ भारत छोड़ो आंदोलन: गोलवलकर और सावरकर का था स्वतंत्रता आंदोलन से 36 का रिश्ता

    संदर्भ भारत छोड़ो आंदोलन: गोलवलकर और सावरकर का था स्वतंत्रता आंदोलन से 36 का रिश्ता

    भारत के स्वाधीनता संग्राम की जो विशेषताएं उसे विलक्षण बनाती हैं, उनमें उसका सर्वसमावेशी स्वरूप और निर्णायक तौर पर अहिंसक प्रवृत्ति मुख्य हैं। महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन और समाज सुधार को अपरिहार्य रूप से अन्तर्सम्बन्धित कर दिया था। धार्मिक असहिष्णुता और जातीय संकीर्णता से निरंतर संघर्ष करते गांधी कट्टरपंथियों का विरोध झेलते रहे किंतु…

  • पाठ्यक्रम में बदलाव: नीति में दिखने लगी है नीयत की खोट

    पाठ्यक्रम में बदलाव: नीति में दिखने लगी है नीयत की खोट

    सीबीएसई ने कोविड-19 के बाद उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों और शिक्षण दिवसों की संख्या में आई कमी का हवाला देते हुए 9वीं से 12वीं के पाठ्यक्रम में 30 प्रतिशत की कटौती की है। विशेषकर पॉलिटिकल साइंस और इकोनॉमिक्स विषयों में अनेक महत्वपूर्ण अध्यायों अथवा इनके भागों को पूर्ण या आंशिक रूप से हटाए जाने पर बहुत…

  • हजार साल बाद हमारे राजनीतिक इतिहास की क्लास

    हजार साल बाद हमारे राजनीतिक इतिहास की क्लास

    समय आज से एक हजार साल बाद की कोई शाम। एक रोबोटिक गुरु किशोर वय के विद्यार्थियों को शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से देश के राजनीतिक इतिहास का ज्ञान करा रहे हैं और साथ ही व्यवहारिक राजनीति का ऑनलाइन प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। सभी विद्यार्थी अपने अपने मोबाइल पर तल्लीन होकर उनकी यांत्रिक और…

  • निर्धन हैं! दलित हैं! ऊपर से किसान हैं! तो नये भारत में गुना जैसे स्वागत के लिए तैयार रहिए

    निर्धन हैं! दलित हैं! ऊपर से किसान हैं! तो नये भारत में गुना जैसे स्वागत के लिए तैयार रहिए

    मध्यप्रदेश के गुना में दलित दंपति के साथ पुलिस की बर्बरता संवेदनहीन भारतीय समाज और शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली का स्थायी भाव है। प्रशासन और पुलिस के जिन उच्चाधिकारियों के तबादले हुए उन्होंने अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया में इस घटना को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया था। यह हमारे प्रशासन तंत्र की उस मानसिकता को दर्शाता…

  • सत्ता और व्यवस्था के आदिम बर्बर तरीके नहीं कर सकते लोकतंत्र को समृद्ध

    सत्ता और व्यवस्था के आदिम बर्बर तरीके नहीं कर सकते लोकतंत्र को समृद्ध

    दुर्दांत अपराधी विकास दुबे की क्रूरता और नृशंसता के किस्से किसी को भी भयभीत और चिंतित कर सकते हैं किंतु अब जब विकास दुबे एक ऐसे एनकाउंटर में मारा जा चुका है जिसकी वास्तविकता शायद कभी उजागर न हो पाएगी तब राहत, आश्वासन और हौसले के स्थान पर एक अनजाना भय और हताशा मन-मस्तिष्क पर…