कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी: समाजवादी आंदोलन में उतार-चढ़ाव के 90 वर्ष

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आज ही के दिन 90 वर्ष पूर्व कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई थी। इन 90 वर्षों में समाजवादियों ने समाज और राष्ट्र निर्माण में क्या योगदान किया, इसका लेखा-जोखा समाजवादियों द्वारा किया जाना चाहिए। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन 17 मई 1934 को अंजुमन इस्लामिया हाल में आचार्य नरेंद्रदेव, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, यूसुफ मेहर अली, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, फरीदुल हक अंसारी सहित 100 नेताओं-कार्यकर्ताओ द्वारा किया गया। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की नींव नासिक जेल में पड़ी थी। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस के भीतर एजेंडा सेट करने की भूमिका निभाई। 1942 के आंदोलन में अग्रणीय भूमिका निभाकर देश और दुनिया के सबसे बड़े जन आंदोलन का भूमिगत रहकर नेतृत्व किया।

समाजवादियों के योगदान में उषा मेहता, डॉ. लोहिया एवं साथियों की एक झलक हाल ही में रिलीज हुई ‘ऐ वतन, मेरे वतन’ फिल्म में देखी जा सकती है। आजादी के आंदोलन में समाजवादियों ने गांधी जी के साथ मिलकर कार्य किया। यही कारण है कि मार्क्सवादी विचार के साथ शुरू हुई पार्टी पर गांधी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह की नीति का प्रभाव लगातार बढ़ता चला गया। आजादी के आंदोलन में समाजवादियों ने कभी कम्युनिस्टों के साथ, कभी कम्युनिस्टों से अलग रहकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाए। 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हो या छात्र युवा संगठन, सभी में समाजवादियों और वामपंथियों ने मिलकर काम किया। यह सर्वविदित है कि 1942 के आंदोलन में कम्युनिस्टों की भूमिका अलग थी। समाजवादियों का आंदोलन 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त होने तक ही नहीं रुका।

डॉ. लोहिया, एसएम जोशी, मधु लिमये, मधु दंडवते आदि के नेतृत्व में गोवा मुक्ति के लिए संघर्ष जारी रहा। समाजवादियों की भूमिका केवल देश की सीमाओं तक सीमित नही रही। उन्होंने नेपाल में राजशाही खत्म होने तक संघर्ष जारी रखा। कांग्रेस के भीतर गांधी जी एवं जवाहरलाल नेहरू सहित तमाम नेता चाहते थे कि समाजवादी कांग्रेस के भीतर रहकर कार्य करें। (आचार्य नरेंद्रदेव, जेपी, डॉ. लोहिया को संगठन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने को भी तैयार थे) लेकिन कांग्रेस के भीतर दक्षिणपंथियों को यह मंजूर नहीं था।

यह भी महत्वपूर्ण प्रश्न था कि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद विपक्ष की जगह को क्या कट्टर सांप्रदायिकतावादी या अतिवादी वामपंथी ताकतों के लिए छोड़ दिया जाए? समाजवादियों ने देश में लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने, धर्मनिरपेक्ष और समतावादी राजनीति को जनता के बीच पहुंचाने के लिए पृथक सोशलिस्ट पार्टी का गठन 1948 में कानपुर में किया। 

समाजवादियों ने 1952 का आम चुनाव दमदारी से लड़ा लेकिन देश की जनता ने आजादी के आंदोलन में समाजवादियों के शानदार योगदान को अलग से देखने की बजाय कांग्रेस पार्टी को ही प्रतिनिधि मानकर देश की सत्ता सौंप दी। समाजवादियों को केवल 10% वोट मिले। केरल में समाजवादियों की पहली सरकार बनी लेकिन सरकार द्वारा किए गए गोली चालन पर डॉ. राम मनोहर लोहिया द्वारा प्रश्न खड़ा किए जाने के बाद पार्टी में बिखराव हो गया।

यदि तत्कालीन प्रजा सोशलिस्ट पार्टी द्वारा निहत्थी जनता पर सरकारों द्वारा गोली चालन को गंभीरता से लेकर गोली चालन पर कानूनी रोक का कोई प्रावधान कर दिया होता तो शायद गोली चालन का जो सिलसिला आज तक जारी है उस पर रोक लग सकती थी। लेकिन डॉ. लोहिया के सवालों के जवाब देने की बजाय उन्हें पार्टी से अलग कर दिया गया। इसके बाद कई बार टूटने और एक साथ आने का सिलसिला जारी रहा। डॉ. लोहिया ने जब गैर कांग्रेसवाद की रणनीति बनाई तब पहली बार 1967 में नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बनी। कई राज्य सरकारों में समाजवादियों ने भी शिरकत की तथा सरकारों का नेतृत्व भी किया।

डॉ. राममनोहर लोहिया की 57 वर्ष की अल्पआयु में मौत हो जाने और जेपी के समाजवादी आंदोलन में सक्रिय रहने की बजाय सर्वोदय में सक्रिय हो जाने के चलते समाजवादी आंदोलन का नेतृत्व आचार्य नरेंद्र देव, डॉ. लोहिया, जेपी, यूसुफ मेहर अली, कमला देवी चट्टोपाध्याय के बाद की पीढ़ी में संभाला। इस पीढ़ी का नेतृत्व मधु लिमये, मधु दंडवते, सुरेंद्र मोहन, जॉर्ज फर्नांडिस, राजनारायण, कर्पूरी ठाकुर, जनेश्वर मिश्र, मृणाल गोरे, रवि राय, गोपाल गौड़ा, जे एच पटेल, पुरूषोत्तम कौशिक, लाडली मोहन निगम, यमुना प्रसाद शास्त्री, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार, शरद यादव, रघु ठाकुर, राजकुमार जैन, बृजभूषण तिवारी, मोहनसिंह आदि ने किया।

1974 की प्रभावशाली हड़ताल हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोप दी। संपूर्ण विपक्ष के लाखों नेताओं-कार्यकर्ताओ को जेल में डाल दिया गया, जिसके खिलाफ समाजवादियों ने भूमिगत आंदोलन चलाया। देश की जनता द्वारा तानाशाही के खिलाफ गुजरात से शुरू किया गया छात्र आंदोलन बिहार में छात्रों का जन आंदोलन बन गया। जिसका नेतृत्व छात्रों के आग्रह पर लोकनायक जयप्रकाश ने किया। तानाशाही समाप्त हुई। जेपी की पहल पर जनता पार्टी बनी, जिसने देश में लोकतंत्र को बहाल किया।

जनता पार्टी की सरकार ने सभी क्षेत्रों में बुनियादी परिवर्तन के प्रयास किए लेकिन देश के पूंजीपतियों ने सरकार गिरा दी। 1977 में जिस सोशलिस्ट पार्टी का विलय लोक दल, जनसंघ, कांग्रेस (ओ ) के साथ मिलकर जनता पार्टी के गठन के लिए हुआ था वह सोशलिस्ट पार्टी फिर कभी नहीं बन सकी। लोक दल, लोकदल (क), दमकिपा और बाद में जनता दल, जनता दल सेक्युलर, जनता दल यू , राष्ट्रीय जनता दल आदि पार्टियां समाजवादियों द्वारा बनाई गईं। 1992 में मुलायम सिंह यादव, जनेश्वर मिश्र, कपिलदेव सिंह एवं अन्य समाजवादियों द्वारा समाजवादी पार्टी का गठन किया गया।

इस बीच जनता दल ने एक बार राष्ट्रीय मोर्चे की वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई, जिसमें समाजवादी प्रभावशाली भूमिका में थे। यह सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी। एच डी देवेगौड़ा, आई के गुजराल और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। एक समय ऐसा आया जब अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन के लिए सरकार बनी लेकिन वे संसद में बहुमत साबित नही कर पाए। बाद में 13 महीने सरकार चली। भाजपा ने फिर पांच वर्ष सरकार चलाई। शाइनिंग इंडिया का नारा कागजी साबित हुआ।

2004 में यूपीए की सरकार बनी। यूपीए की सरकार में समाजवादी पार्टी शामिल नही हुई अन्य अनेक समाजवादियों के धड़ों ने यूपीए सरकार में शिरकत की। इस बीच समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाई। राष्ट्रीय जनता दल की सरकार भी बिहार में 10 वर्षों तक रही, नीतीश कुमार कभी राजद के साथ, कभी बीजेपी के साथ सरकार बनाते रहे।

90 वर्षों में समाजवादियों ने डॉ लोहिया के ‘चौखंबा राज’, ‘पिछड़ा पावे सौ में साठ’ जैसे सिद्धांतों को मूर्त रूप देने में सफलता हासिल की। मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की गई। कर्नाटक से बिहार तक महिलाओं को आरक्षण दिया गया। वर्तमान समय में सांप्रदायिकता और कारपोरेट पूंजीवाद देश पर हावी है जिसका मुकाबला करने के लिए समाजवादी इंडिया गठबंधन में शामिल होकर मोदी सरकार और संघ परिवार से मुकाबला कर रहे हैं। आज भी उत्तर प्रदेश और बिहार में विपक्ष में ही सही सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका में समाजवादी ही है। जिसका नेतृत्व उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव कर रहे हैं।

भारतीय राजनीति में 1967 से शुरू हुआ गैर कांग्रेसवाद का दौर अब चक्र पूरा कर गैर भाजपावाद तक पहुंच चुका है। नरेंद्र मोदी एवं संघ परिवार की तानाशाही एवं सांप्रदायिक कट्टरता के साथ साथ देश के संसाधनों को अडानी-अंबानी एवं अन्य कॉरपोरेट को सौंपने, देश का संविधान बदलने की नीति के खिलाफ देश की प्रगतिशील, जनवादी लोकतांत्रिक एवं समाजवादी ताकतें एकजुट हुई हैं,जिनका लक्ष्य एक बार फिर 1977 की तरह देश में लोकतंत्र की बहाली करना है। देश के किसान आंदोलन ने मजदूर आंदोलन के साथ मिलकर परिवर्तन का रास्ता प्रशस्त किया है।

4 जून को यदि सत्ता परिवर्तन होता है तो फिर एक बार समाजवादी महत्वपूर्ण भूमिका में होंगे। इस बार जाति जनगणना के माध्यम से सामाजिक न्याय के मुद्दे को मूर्तरूप दिया जाएगा। जल, जंगल, जमीन पर जनता के अधिकार को बहाल किया जाएगा। किसानों को एमएसपी देकर तथा कर्जा मुक्ति कर, मजदूरों के श्रम कानून को बहाल किया जाएगा।

हाल ही में 100 वर्ष के हुए डॉ जीजी परीख जैसे वरिष्ठ समाजवादी एकजुटता की पहल करते रहे हैं। एचएमएस, राष्ट्र सेवा दल, पीयूसी एल, एनएपीएम के नेतृत्व को इस दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए। चुनावी राजनीति करने वाले अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव जैसे युवा नेतृत्व को एकजुटता के लिए आगे आना चाहिए। सोशलिस्ट पार्टी इंडिया, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी, लोहिया विचार वेदी, समाजवादी समागम एवं देश भर में सक्रिय समाजवादी संगठन और व्यक्ति जब तक इस लक्ष्य को अपना लक्ष्य नहीं मानेंगे, तब तक यह बड़ा काम नहीं हो पाएगा।

हिंद मजदूर सभा देश का सबसे बड़ा समाजवादियों का जेपी द्वारा स्थापित किया गया श्रमिक संगठन है तथा राष्ट्र सेवा दल साने गुरुजी, एस एम जोशी, एन जी गोरे जैसे समाजवादियों द्वारा स्थापित छात्रों और युवाओं के बीच काम करने वाला सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है। जनता वीकली 1946 से लगातार प्रकाशित की जा रही है। देश भर में हजारों समाजवादियों की संस्थाएं, विद्यालय एवं महाविद्यालय है। अगले 1 वर्ष में सभी इस दिशा में मिलकर कार्य करें तो ठोस नतीजे निकाले जा सकते हैं। 90 समाजवादियों के विचार केंद्र स्थापित करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ना चाहिए।

समाजवादियों का अगला लक्ष्य गांधीवादियों, वामपंथियों, अंबेडकरवादियों एवं जन संगठनों के साथ जमीनी और वैचारिक एकजुटता का निर्माण करना होना चाहिए। समाजवादी आंदोलन के उतार-चढ़ाव को जानना, समझना, उसका गहराई से अध्ययन करना, संगठनात्मक कमियों को दूर करना, राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी विचार की सोशलिस्ट पार्टी खड़ी करना समाजवादियों का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। जेल, वोट, फावड़ा तीनों दिशाओं में समग्रता से कार्य करना इसके लिए आवश्यक होगा।

(डॉ. सुनीलम पूर्व विधायक और किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं

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