समाजवादी आंदोलन के कपूत के तौर पर जाने जाएंगे नीतीश कुमार

भारत के आजादी के आंदोलन एवं समाजवादी आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं की पहचान उनके त्यागमयी, ईमानदार, सादगीपूर्ण जीवन के साथ-साथ किसी भी परिस्थिति में समझौता न करने वाले, कथनी और करनी में सामंजस्य करने वाले व्यक्ति के तौर पर होती थी।

समाजवादी आंदोलन ने आचार्य नरेंद्र देव, जेपी, लोहिया, युसूफ मेहेर अली, कमला देवी चट्टोपाध्याय, साने गुरुजी, गोपाल गौड़ा, एसएम जोशी, कर्पूरी ठाकुर, मधु लिमए, मधु दंडवते, राजनारायण जैसे दिग्गज नेता दिए।

इन नेताओं ने लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, बंधुत्व के मूल्यों को जिया। इसी समाजवादी आंदोलन ने नीतीश कुमार जैसे कपूत भी पैदा किए, जिन्होंने सत्ता बचाए रखने और फिर से सत्ता पाने की चाह में बार-बार समझौते किए।

समाजवादी आंदोलन की बानगी देखिए जब 1948 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस पार्टी से अलग होने का निर्णय लिया तब आचार्य नरेंद्र देव जी के नेतृत्व में सोशलिस्टों ने उत्तर प्रदेश विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि वे कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जीत कर आए थे।

जेपी ने जब आह्वान किया तब कर्पूरी ठाकुर ने अपने साथियों के साथ बिहार विधानसभा से इस्तीफा दिए दे दिया था। इसी तरह जब इंदिरा गांधी ने संसद का कार्यकाल 1 साल बढ़ा दिया तब शरद यादव ने मधु लिमये जी के साथ इस्तीफा दे दिया था।

नीतीश कुमार दुनिया के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए मुख्यमंत्री बनने के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हैं ताकि फिर से मुख्यमंत्री बन सकें।

नीतीश कुमार ने 9वीं बार शपथ ली, जिससे पलटूराम के तौर पर उन्होंने भारतीय राजनीति में एकाधिकार जमा लिया है। परंतु पलटने वाले क्या अकेले नीतीश कुमार है? क्या नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा बार-बार नहीं पलटी है? 

भाजपा के नेताओं ने न केवल नीतीश कुमार के लिए हमेशा के लिए दरवाजे बंद होने की घोषणा की थी बल्कि उन्हें मानसिक तौर पर अस्वस्थ घोषित कर दिया था। फिर भाजपा ने सत्ता पाने के लिए पलटी मार ली। इस तरह की पलटी अन्य राज्यों में मारती रही है।

इसके बावजूद गोदी मीडिया भाजपा को राम की पार्टी, रामराज्य के लिए काम करने वाली पार्टी बतलाता रहा है यानी जो भी वाशिंग मशीन में धुल जाए अर्थात जिसको मोदी वाशिंग पाउडर से धो दिया जाए वह पवित्र हो जाता है।

सभी हैरत में है कि नीतीश कुमार को इस डील से क्या मिलेगा? वे पहले भी मुख्यमंत्री थे, आगे भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे। नीतीश कुमार के बारे में लालू यादव की संसद में की गई यह टिप्पणी गौर करने लायक है जिसमे उन्होंने कहा था नीतीश कुमार के पेट में दांत हैं। जो दिखलाई नहीं देते।

नीतीश कुमार की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। उसके कुछ उदाहरण साझा कर रहा हूं।

कुछ वर्षों पहले पटना में जब मेरी मुलाकात नीतीश कुमार से समाजवादी समागम में हुई थी, तब उन्होंने कहा था कि वे भाजपा मुक्त भारत और नशा मुक्त समाज बनाना चाहते हैं। यह बात उन्होंने उसी दिन अपने निवास पर भी दोहराई थी।

बाद में नशा मुक्त भारत आंदोलन के गठन के समय गांधी शांति प्रतिष्ठान में जब हमने कार्यक्रम किया था और उसके बाद मावलंकर हॉल में युवा जनता के पुराने साथियों की मीटिंग की थी तब उन्होंने सिर्फ यही अपील दोहराई थी। इसके साथ-साथ वे हर बार यह कहते थे कि मैं समाजवादियों को एकजुट करना चाहता हूं।

मैं एक बार बिहार भवन में सोशलिस्ट मेनिफेस्टो और मजदूरों की समस्याओं को लेकर नीतीश कुमार से मिला था, तब हरभजन सिंह सिद्धू जी ने उनसे मजदूरों के मुद्दे उठाने के लिए कहा था। उस समय जदयू की ओर से श्रमिक आंदोलन की मांगों को लेकर एक प्रेस बयान भी जारी किया था। लेकिन मुख्यमंत्री रहते हुए अमल किसी एक पर भी नहीं किया।

गत वर्षों में इन पांच सार्वजनिक मुलाकातों के अलावा मेरी मुलाकात कभी भी नीतीश कुमार के साथ नहीं हुई।

उसके बाद सभी जानते हैं कि उन्होंने पलटी मारी और वे भाजपा के साथ चले गए, चुनाव भी लड़ लिया। उस चुनाव में मैं नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव प्रचार करने बिहार गया था। कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य के साथ राजद, कांग्रेस और माले गठबंधन के लिए मैंने 20 से अधिक चुनावी सभाएं की थी।

शरद भाई की बेटी भी मधेपुरा में चुनाव लड़ रही थीं। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की सभा देखने के बाद कोई भी चुनाव जीतने का दावा कर सकता था।

मतलब बिहार में जो माहौल था, उससे लगता था कि तेजस्वी यादव सरकार बनाएंगे लेकिन सरकारी मशीनरी, अफसरों की तिकड़म और ईवीएम के दुरुपयोग से नीतीश कुमार और भाजपा ने सरकार बना ली। लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने फिर पलटी मारकर राजद के साथ सरकार बनाई।

सरकार बनाने के बाद एक बार फिर जब नीतीश कुमार अखिल भारतीय स्तर पर अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते थे तब उन्होंने अपने एक मित्र के माध्यम से मेरे पास राष्ट्रीय महामंत्री बनने का प्रस्ताव भेजा था। वे पहले भी एक बार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ जी जी परीख जी के सामने मेरे समक्ष यह प्रस्ताव रख चुके थे।

उन्होंने मेरे ही सामने जी जी परीख जी से कहा था कि मैं आपसे समाजवाद के विस्तार के लिए डॉ सुनीलम को मांगता हूं। तब जी जी ने कहा कि ‘मैं राजनीति में नहीं हूं, डॉ सुनीलम अपना निर्णय खुद करते हैं, मैं उनसे नहीं कह सकता’। बात वहीं खत्म हो गई थी।

इतना ही नहीं अंजुमन इस्लामिया हॉल में भाषण करते हुए उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि मैं बिहार में फंसा हुआ हूं। डॉ सुनीलम को समाजवादी साथियों को एकजुट करने के लिए देशभर में प्रयास करना चाहिए।

उन्होंने जी जी परीख जी, हरभजन सिंह सिद्धू जी और मेधा जी से कहा था कि मैं समाजवादियों को एकजुट करना चाहता हूं, लेकिन मुझे सफलता नहीं मिलती, आप सबको प्रयास करना चाहिए।

मैंने इन बातों का उल्लेख इसलिए किया कि अब जबकि वे राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार चला रहे थे तब उन्होंने समाजवादियों का साथ छोड़ कर संघियों के साथ सरकार बनाई। जिससे पता चलता है कि समाजवादियों की एकता की बात भी झूठ थी।

समाजवादी समागम ने गत दो वर्षों में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाजवादी आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ रहे मधु लिमये, मधु दंडवते और कर्पूरी ठाकुर का जन्मशताब्दी वर्ष मनाया है।

उन्होंने आजादी के आंदोलन के मूल्यों के अनुरूप जीवन जीने, ईमानदारी, पारदर्शिता, जवाबदेही, सादगी, कथनी और करनी के समन्वय की जो मिशाल कायम की थी। मुझे दुख है कि उस पर पलीता लगाने का काम नीतीश बाबू ने किया है।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि बिहार की जनता नीतीश कुमार द्वारा बिहार की जनता और इंडिया गठबंधन के साथ किए गए विश्वासघात का माकूल जबाब लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव में अवश्य देगी।

जदयू-भाजपा गठबंधन के लोकसभा उम्मीदवारों को वैसे ही हराएगी जैसे एक बार सभी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को हराया था।

(डॉ सुनीलम, किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं।)

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