इमरजेंसी में संघ-बीजेपी की भूमिका थी संदिग्ध

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फिर से स्पीकर चुने जाने के बाद ओम बिड़ला ने कहा -(प्रधानमंत्री ने उनके बयान का समर्थन किया)- कि इमरजेंसी लागू होने वाले दिन 25 जून को ब्लैक डे के रूप में मनाया जाना चाहिए। दोनों शासन और संविधान के मोर्चे पर हुई सरकार की हिमालयी नाकामी से लोगों का ध्यान हटाने के लिए सदन का इस्तेमाल कर रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से मोदी और उनके बीजेपी-आरएसएस के मित्र अगली पीढ़ी को एक ऐसे काल की जानकारी दे रहे हैं जिसमें खुद उनकी भूमिका बेहद संदिग्ध थी। 

मैं (लालू) उस स्टीयरिंग कमेटी का संयोजक था जिसे महात्मा गांधी के बाद महानतम लोक नेता जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने इंदिरा गांधी द्वारा लगायी गयी इमरजेंसी की ज्यादतियों के खिलाफ आंदोलन के लिए गठित किया था। मैं मीसा के तहत 15 महीने जेल में था। मैं और मेरे सहयोगी उन बहुत सारे मंत्रियों से परिचित नहीं हैं जो आज इमरजेंसी के बारे में बोल रहे हैं। हमने मोदी, जेपी नड्डा और पीएम के कुछ मंत्रियों के बारे में नहीं सुना था जो लोग आज स्वतंत्रता के मूल्य पर हमें भाषण दे रहे हैं।

उस समय के प्रधानमंत्री ने इमरजेंसी घोषित करने के लिए संवैधानिक प्रावधानों का सहारा लिया था। इंदिरा गांधी ने हम में से बहुत सारों को जेल में डाला लेकिन उन्होंने कभी हम लोगों को गाली नहीं दी। न ही वह और न ही उनके मंत्रियों ने कभी हमें राष्ट्रद्रोही करार दिया। उन्होंने संविधान के निर्माता बाबा साहेब की स्मृति को अपवित्र करने के लिए कभी गुंडों को छूट नहीं दी। वह कभी भी उन लोगों के साथ खड़ी नहीं हुई जो लिंच भीड़ का जाति और धर्म के नाम पर मुसलमानों और दलितों की हत्या करने के लिए समर्थन करते हैं। बीफ रखने के शक में पशु व्यापारियों को दंडित और उनकी हत्या नहीं की जाती थी।

महात्मा गांधी के हत्यारों की इमरजेंसी के दौरान 1975 में पूजा नहीं होती थी। युवा अपने जीवन साथी को चुनने के लिए स्वतंत्र थे। काल्पनिक लव जेहाद के नाम पर उनको परेशान नहीं किया जाता था।

मोदी 2024 के चुनाव प्रचार के दौरान वोट जिहाद की बात कर रहे थे और मछली तथा मटन प्रकरण के जरिये उन्होंने धार्मिक भावनाओं को भड़काने का काम किया। यह उनके पहले के बयानों के बिल्कुल अनुरूप था। इंदिरा गांधी ने कभी नहीं कहा कि भगवान गणेश ने प्लास्टिक सर्जरी के जरिये हाथी का सूंड़ हासिल किया। उन्होंने भारत को न्यूक्लियर शक्ति बनाया। पीएम के रूप में उनके शासन के दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान को परास्त किया और फिर 1971 में बांग्लादेश के निर्माण का रास्ता साफ हुआ। मौजूदा पीएम उपलब्धियों को दिखाते ज्यादा हैं लेकिन उसमें सच्चाई बहुत कम होती है।

18 वीं लोकसभा को अपने पहले दिन शैक्षणिक संस्थाओं में बदहाली, परीक्षा पेपर लीक, बढ़ती बेरोजगारी, जाति जनगणना, हाशिये के लोगों के रिजर्वेशन, अभूतपूर्व महंगाई, संविधान पर खतरा, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, मणिपुर में हिंसा, बीजेपी के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जांच एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल, लोकतांत्रिक संस्थाओं पर कब्जा, मीडिया पर कब्जा, पत्रकारों, लेखकों और कार्यकर्ताओं को जेल में डालने आदि मुद्दों पर बात करनी चाहिए थी।

ज्वलंत मुद्दों पर संसद को बहस करने देने की जगह बीजेपी सदन को इमरजेंसी के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने के लिए इस्तेमाल कर रही है। संघ परिवार की सत्तावादी प्रवृत्ति पर राज करने के लिए इंडिया गठबंधन के बैनर के तहत पूरे विपक्ष के पास एक वैध जनादेश है- जिसे वह इस्तेमाल करेगा-।

पीएम इस समय जेडीयू और टीडीपी की बैसाखियों के सहयोग से सत्ता में हैं। लेकिन वह ऐसा अभिनय कर रहे हैं जैसे कुछ भी नहीं बदला है। यह एक मूर्ख का स्वर्ग है।

इंडिया बैनर के तहत जीते राहुल गांधी, अखिलेश यादव, सुप्रिया सुले और ढेर सारे सांसद बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। लोग इंडिया गठबंधन के साथ हैं। चुनाव नतीजों ने दिखाया है कि मोदी ने लोगों का विश्वास खो दिया है। इंडिया गठबंधन के सांसदों को लोगों के मुद्दों को सदन में उठाते रहना चाहिए।

मोदी, बिड़ला, नड्डा और उनके जैसे लोग झूठ फैलाने की कोशिश कर रहे हैं और खुद को इमरजेंसी के खिलाफ लड़ाई के हीरो के तौर पर पेश कर रहे हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि इमरजेंसी हमारे लोकतंत्र के लिए हमेशा एक धब्बा बनी रहेगी। और निश्चित तौर पर इमरजेंसी के खिलाफ ढेर सारे बहादुर नेताओं ने लड़ाइयां लड़ी थीं। इनमें चंद्र शेखऱ (पूर्व प्रधानमंत्री), जार्ज फर्नांडिस, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, कर्पूरी ठाकुर, रामानंद तिवारी, राज नरायन और बिहार में मेरे मित्र- नीतीश कुमार (बिहार सीएम), राम विलास पासवान, शिवानंद तिवारी, अब्दुल बारी सिद्दीकी और अनगिनत दूसरे लोग शामिल हैं। 

वास्तव में जेपी ने संघ परिवार के नेताओं के दोहरेपन को कभी पसंद नहीं किया। उन्होंने जनता पार्टी जो उनके समानता, समाजवाद और न्याय के दर्शन पर आधारित थी, में शामिल होने के लिए उनके नेताओं को संघ से अलग होने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने आंदोलन को समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए इस्तेमाल किया और फिर उसके जरिये सांप्रदायिकता के अपने अभियान को जारी रखा।

वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी याद करते हैं कि कैसे मीसा के तहत गिरफ्तार हुए तब के आरएसएस चीफ बालासाहेब देवरस ने इमरजेंसी के दौरान जनता का विश्वास हासिल करने के लिए सरकार द्वारा लाए गए 20 सूत्रीय कार्यक्रम को अपना समर्थन देने के लिए इंदिरा गांधी को पत्र लिखा। उन्होंने दूसरे आरएसएस कार्यकर्ताओं को भी ऐसा करने के लिए कहा। 

हां, स्वतंत्रता की लड़ाई के साथ कोई संविधान में काट-छांट न कर सके और विपक्ष को हाशिए पर धकेलने के लिए इसका बेजा इस्तेमाल न कर सके आइये इसकी शपथ लेते हैं। 1975 कभी नहीं हो सकता है और कभी होना भी नहीं चाहिए। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 2024 में कौन सत्ता में है और किसने विपक्ष को सम्मान देने से इंकार किया। 

(इंडियन एक्सप्रेस से साभार लिया गया यह लेख आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव और नलिन वर्मा ने लिखा है।)

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