बेरोजगारी की महाविपदा वैसे तो पूंजीवाद की देन है और उसके नवउदारवादी दौर के संकट ने पूरी दुनिया में स्थिति को और भयावह बना दिया है, लेकिन भारत में तो हालात विस्फोटक मुकाम पर पहुंच गए हैं। ऊपर से सरकार द्वारा जानबूझ कर भर्ती रोककर खाली रखे गए करोड़ों सरकारी नौकरियों के पद, जो नियुक्तियां हो भी रही हैं उनमें चरम भ्रष्टाचार, systemic failure, सत्ता के उच्चतर स्तरों से संरक्षित पेपर लीक माफिया का बोलबाला, 7 साल में 70 पेपर लीक होना, पैसा बचाने के लिए अग्निवीर जैसी सनक भरी योजना- यह सब मिलकर जैसे युवाओं के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं और उनके सब्र का प्याला भरता जा रहा है।
थामस पिकेटी और उनकी World Inequality Lab की रिपोर्ट ने जो चेतावनी भारत में भयानक आर्थिक असमानता को लेकर दी है, वह बेरोजगारी विशेषकर युवा शिक्षित बेरोजगारी को लेकर और अधिक सटीक तथा प्रासंगिक है, “यह अभी स्पष्ट नहीं है कि किसी बड़ी सामाजिक राजनीतिक उथल-पुथल बिना भारत मे इस स्तर की असमानता आखिर कब तक कायम रह पाएगी।”
यह सचमुच देखने की बात होगी कि रोजगार का विस्फोटक सवाल कब बड़े संगठित जनांदोलन का मुद्दा बनता है और शासकों के लिए राजनीतिक संकट खड़ा करता है। सभी स्टेकहोल्डर्स को कोशिश करनी चाहिए की यह किसी सामाजिक अराजकता की ओर बढ़ने की बजाय राजनीतिक मुद्दा बने और संगठित आंदोलन का स्वरूप ग्रहण करे तथा समाधान हेतु शासकों को नीतिगत बदलाव के लिए बाध्य कर दे।
इस संदर्भ में AI का सवाल वैसे तो पूरी दुनियां में बहस का हॉट टॉपिक बना हुआ है, लेकिन भारत के लिए इसका विशेष महत्व है। प्रो प्रभात पटनायक ने इस पर विचार किया है, “हाल ही में AI के इस्तेमाल से पैदा हो रही अपनी बेरोजगारी के विरुद्ध हड़ताल पर जाकर हॉलीवुड के लेखकों ने जो बुनियादी मुद्दा उठाया था, उस विशेष प्रकरण के समाधान के बाद भले थोड़ा पृष्ठभूमि में चला गया, लेकिन वह है एक बुनियादी सवाल। “
प्रो पटनायक आगे कहते हैं,” AI के बारे में यह तर्क कि इससे रोजगार छिनेगा, पहली नजर में 19वीं सदी के आरंभ के उन टेक्सटाइल मजदूरों ( Luddites ) जैसा लग सकता है जिन्होंने मशीनों को तोड़ डाला था क्योंकि उनका विश्वास था कि मशीनें बेरोजगारी पैदा करती हैं।
उनका ऐसा सोचना गलत नहीं था, लेकिन वे यह देख पाने में असमर्थ थे कि इस परिघटना के पीछे मूल कारण पूंजीवाद है। समाजवादी व्यवस्था में यही मशीने मजदूरों के काम के घंटे कम करने और उनके आराम के लिए इस्तेमाल हो सकती थीं, उन्हें बेरोजगार बनाने की जगह।
एक सामाजिक परिघटना का कारण उन्होंने मशीनों को समझ लिया और यह मान लिया कि यह टेक्नोलोजी में अनिवार्यतः अंतर्निहित है। लेकिन इस परिघटना को पहचानने में उन्होंने गलती नहीं किया, भले ही इसके स्रोत को समझने में उनसे गलती हुई हो। बल्कि जो अर्थशास्त्री मशीनरी को रोजगार के लिए फायदेमंद मानते थे वे सैद्धांतिक रूप से गलत साबित हुए।”
“दरअसल कीन्स ने यह सोचा था कि सरकारी खर्च बढ़ाकर मांग पैदा की जा सकती है, जैसे प्राक पूंजीवादी दौर में होता था और इसके माध्यम से पूंजीवादी केंद्रों में डोमेस्टिक रोजगार को प्रोत्साहन मिलेगा। लेकिन जैसा कि मौजूदा लंबे खिंचते संकट से स्पष्ट है नवउदारवादी नीतियों के दौर में वह सूत्र काम नहीं कर रहा है। इन परिस्थितियों में, पूंजीवादी हिस्से में बड़े पैमाने पर AI का इस्तेमाल भारी बेरोजगारी को जन्म देगा, पूंजीवादी केंद्रों में भी और परिधि के देशों में भी।
यह इसका मुखर विरोध करने वाले लेखकों और वॉइस आर्टिस्ट्स का ही मामला नहीं हैं जिन्हें बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि आम मजदूरों के सामने भी विकट संकट है। यह बेहद जरूरी है की समुचित मांगें उठाते हुए मजदूर आंदोलन खड़ा हो ताकि भीषण बेरोजगारी की इन भयावह संभावनाओं को फलीभूत होने से रोका जा सके।”
जाहिर है भारत के लिए, जहां बेरोजगारी पहले से ही खतरे के निशान को पार कर रही है, वहां AI के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के नतीजे प्रलयंकारी होंगे।
बहरहाल जहां तक वैश्विक पूंजी से गहरे रिश्तों में बंधे भारत के बड़े पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की बात है, वे अपने मुनाफे के लिए हर हाल में AI का बढ़-चढ़ कर इस्तेमाल करना चाहेंगे। उन्हें बेरोजगार युवाओं की लेश मात्र भी न चिंता है, न परवाह। सत्ता संरक्षण में परवान चढ़ती भारत की आवारा पूंजी और crony पूंजीपतियों के लिए पूंजीवाद के सबसे बदनुमा अवगुण सबसे बढ़-चढ़ कर लागू होते हैं।
Karl marx ने अपनी कालजयी रचना कैपिटल में एक अर्थशास्त्री को उद्धृत किया है, “अगर पूंजी को 100%लाभ मिले तो वह सारे मानव मूल्यों को रौंद सकती है। 300% लाभ मिले तो दुनिया में कोई ऐसा अपराध नहीं जिसमें उसे हिचक हो, और कोई ऐसा खतरा नहीं जिसे उठाने में इसे गुरेज हो…..अगर उथल-पुथल और संकट से लाभ मिलने वाला हो, तो वह उन्हें प्रोत्साहित करेगा।”
लेनिन ने लिखा, “एक पूंजीपति मुनाफे के लिए वह रस्सी बेचने को भी तैयार हो जाएगा जो उसे फांसी देने के लिए इस्तेमाल होने जा रही है।”
जाहिर है मोदी सरकार से उम्मीद करना कि वह पूंजीपतियों को इस संदर्भ में नियंत्रित करेगी, बेमानी है। आज विपक्ष तथा छात्र युवा आंदोलन के सामने यह चुनौती है की मोदी सरकार को AI के इस्तेमाल को लेकर स्पष्ट नीति बनाने के लिए बाध्य किया जाय, न सिर्फ सरकारी क्षेत्र के लिए, बल्कि निजी क्षेत्र के लिए भी।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)