कॉरपोरेट और सरकारें लोगों पर नियंत्रण और अधिकतम मुनाफे के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बना रहे हथियार

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शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका और पश्चिमी जगत में ढेरों इस‌ तरह उपन्यास लिखे गए और फ़िल्में बनाई गईं, जिसमें परमाणु युद्ध की विभीषिका से समूची सृष्टि के‌ विनाश को दर्शाया गया था। बाद दौर में कुछ ऐसी फ़िल्में बनी, जिसमें पराग्रही जीवों के बारे में बताया गया था। किसी दूसरे ग्रह से आए हुए एलियंस से धरती के निवासियों का संघर्ष होता है।

परन्तु इस दशक में अमेरिका तथा पश्चिमी जगत में ऐसी ढेरों फ़िल्में बन रही हैं, जिनमें यह दिखाया गया है कि मशीनें;‌ विशेष रूप से कम्प्यूटर और रोबोट- जिसे इंसानों ही ने बनाया है, उसने उन्हें ही पछाड़कर दुनिया पर क़ब्ज़ा कर लिया। यही है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस; जो आज सैकड़ों साल के वैज्ञानिक खोजों का सर्वोच्च स्तर है। आज एआई को लेकर दुनिया भर में बहस छिड़ी हुई है, यह मानव जाति के लिए उपयोगी होगा या विनाशकारी।

2 मई 2023 को अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर के टाइम्स स्क्वायर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते इस्तेमाल के विरोध में एक बड़ी हड़ताल हुई थी। इस हड़ताल में मुख्य रूप से हॉलीवुड के अभिनेता, लेखक और कर्मचारी शामिल थे।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हॉलीवुड ने भी करना शुरू कर दिया है, जिसकी मदद से किसी अभिनेता, लेखक या मेकअप आर्टिस्ट के बिना भी फ़िल्म का निर्माण किया जा सकता है। नेट फ्लिक्स, अमेज़न प्राइम और वार्नर ब्रदर्स जैसे बड़े संस्थान इस तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कर रहे हैं।

आज हर क्षेत्र में एआई के तकनीकों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके कारण दुनिया भर में बहुत से लोगों की नौकरियों पर संकट आ गया है। एआई या कृत्रिम बुद्धि को सामान्य भाषा में मशीनों का दिमाग भी कहते हैं, इसके तहत मशीनों में इंसानी अनुभवों और कार्य करने की कुशलता को‌ संरक्षित किया गया है।

उनका इस्तेमाल करके मशीनें कुछ हद तक ख़ुद फैसले लेने की क्षमता हासिल कर लेती हैं, इसे मशीन लर्निंग प्रोडक्शन (एमएलसी) कहते हैं, इसका प्रयोग मनोरंजन, अर्थसाइंस और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से शुरू हो गया है।

पिछले दिनों चैट जीपीटी (जनरेटिव प्री-ट्रेड-ट्रांसफार्मर) और एसजीई (सर्च जनरेटिव एक्सपीरियंस) जैसे कृत्रिम मस्तिष्क का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। चैट जीपीटी एक एआई सॉफ्टवेयर है, जो किसी विषय पर लेख भी लिख सकता है। यह अपने उपभोक्ता के लिए पांच से दस विकल्प पेश कर देता है, जिसमें से एक विकल्प चुनकर उसमें काम किया जा सकता है।

इसी तरह एसबीआई गूगल द्वारा मीडिया संस्थानों के लिए शुरू किया गया एक टूल है, जो बेहद संक्षिप्त में न्यूज़ एजेंसियों का डाटा उपलब्ध करा देता है। इसी तरह अमेज़न कम्पनी ने अपने उपयोग के लिए एक ऐसा एआई सॉफ्टवेयर विकसित किया है, जो बहुत तेज गति से दुनिया की सैकड़ों भाषाओं में बहुत सटीक अनुवाद करता है।

यह अनुवाद वर्तमान गूगल द्वारा किए गए अनुवादों से बहुत ही उन्नत है, इस सॉफ्टवेयर के बाज़ार में आने के बाद दुनिया भर में लाखों अनुवादकों का भविष्य संकट में पड़ सकता है।

यह सत्य है कि इन तकनीकों ने इंसान के कामों को बहुत ही सरल कर दिया है। यह बहुत अच्छी बात है कि कम मेहनत एवं कम समय में लोगों को बहुत सारे विकल्प मिल जाएंगे, लेकिन संकट वही है कि ये तकनीकें दुनिया भर में कुछ गिने-चुने कॉरपोरेटों के हाथों में कैद हैं, जिसका इस्तेमाल वे ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए कर रहे हैं, फ़िर चाहे इससे किसी की ज़िंदगी तबाह हो जाए, भयानक बेरोज़गारी फैले, असमानता बढ़े, चाहे झूठी ख़बरों का प्रचलन बढ़े।

एआई तकनीक से एक और बड़ा ख़तरा उत्पन्न हो गया है कि सरकारें इसका उपयोग अपने ख़िलाफ़ हो रहे जन आंदोलनों को दबाने के लिए कर रही हैं, इसका एक उदाहरण- कुछ वर्ष पहले हांगकांग में चीन सरकार ने वहां पर अपने ख़िलाफ़ हो रहे छात्रों के आंदोलन को दबाने के लिए किया था।

इस तकनीक से आंदोलनकारी छात्र नेताओं के चेहरों को स्कैन कर लिया जाता है, उसके बाद वे कहीं रहे या जाएं, कम्प्यूटर द्वारा उनकी गतिविधियां मालूम होती रहती थीं, यही कारण है कि आंदोलनकारी छात्र अपने चेहरों को कपड़ों से ढके हुए थे, हालांकि ये चीज़ें भी उनके काम न आईं। भविष्य में इसका उपयोग दुनिया भर में आंदोलनों को दबाने के लिए किया जा सकता है।

आज सोशल मीडिया पर एआई की मदद से बने विडियोज की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसको हज़ारों लोगों के अनुभव और हुनर को चुराकर बनाया गया है। वे लोग; जिन्होंने कई साल मेहनत करके अपने हुनर को निखारा था, अब उनका हुनर एआई के माध्यम से उन्हीं की जीविका उजाड़ रहा है। यह चोरी उत्पादन से लेकर मीडिया तक हर क्षेत्र में की जा रही है, इसीलिए इस तकनीक को कुछ लोग मानव इतिहास की सबसे बड़ी चोरी कहते हैं।

न्यूयॉर्क में हॉलीवुड के अभिनेताओं, लेखकों, डिजाइनरों, मेकअप कलाकारों तथा अन्य कर्मचारियों ने जब एआई के ख़िलाफ़ अपनी हड़ताल शुरू की, तो शुरूआत में ही उसमें 11 हज़ार लोग शामिल हो गए, यह संख्या अमेरिका के लिहाज़ से बहुत बड़ी है।

बाद में जून 2023 में एसएजी (स्क्रीन एक्टर गिल्ड) और एएफटीआरए (अमेरिकी फेडरेशन ऑफ टेलीविजन एण्ड रेडियो आर्टिस्ट) के 1 लाख 60 हज़ार लोगों की भारी संख्या ने आकर इस हड़ताल का समर्थन किया।

इसके बाद डब्ल्यूजीए (राइटर गिल्ड ऑफ अमेरिका) और एएमपीटीपी (एलाइंस ऑफ मोशन पिक्चर एण्ड टेलीविजन प्रोड्यूसर) के हज़ारों लोगों ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया। हड़ताल में ‌मौज़ूद सभी संगठनों ने इस बात को स्वीकार किया, कि इस तकनीक से हज़ारों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे या तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा या फ़िर उनके वेतन में कटौती कर दी जाएगी तथा उनका स्थान एआई यानी कृत्रिम बुद्धि ले लेगी।

भारत में भी कोरोना के बाद एआई का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ना शुरू हो गया है। यहां पर नक्शे बनाने के काम में भी एआई का इस्तेमाल हो रहा है, इसमें एमएल (मशीन लर्निंग) डाटा का इस्तेमाल होता है। यहां पर अनेक कम्पनियां बहुत तेजी से एआई की ओर बढ़ रही हैं। यहां तक कि यदि इन कम्पनियों में कोई कर्मचारी एमएल का इस्तेमाल नहीं करता, तो उसके वेतन से 5 से 10% तक काट लिया जाता है।

इसमें संदेह नहीं है कि एआई सहित विज्ञान की सारी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल मानव जाति की खुशहाली और बेहतरी के किया जा सकता है, लेकिन दुर्भाग्यवश इस वैश्विक अर्थव्यवस्था में एआई जैसी तकनीक का प्रयोग मुट्ठी भर कॉरपोरेट और सरकारें लोगों को नियंत्रण में रखने तथा अधिकतम मुनाफ़ा कमाने के लिए कर रही हैं। इसका बेहतर उपयोग एक शोषणविहीन व्यवस्था में ही सम्भव है।

(स्वदेश कुमार सिन्हा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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