बेरोजगार युवाओं के बीच तेजी से बढ़ती राहुल गांधी की पैठ क्या उत्तर भारत में एक बड़े बदलाव का संकेत है?

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तीन चरण के बाद अब चुनावी लड़ाई रफ्तार पकड़ रही है। चौथे चरण के साथ दक्षिण और पश्चिम भारत में आम चुनाव (महाराष्ट्र को छोड़कर) करीब-करीब खत्म हो चले हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे हिंदी भाषी राज्यों की बची 80 सीटों और दिल्ली, हरियाणा की 17 सीटों पर युवा इस बार किसे वोट करेंगे, पर एनडीए और इंडिया गठबंधन का भविष्य टिका हुआ है। उत्तर प्रदेश में तीन चरण के बाद भी 54 सीटें बची हुई हैं, जिनमें से 13 सीटों पर आज मतदान जारी है। लेकिन कांग्रेस ने 10 मई को लखनऊ और रविवार, 12 मई को दिल्ली में युवाओं को वार्ता के लिए बुलाकर एक बड़ी लकीर खींचने की कोशिश की है।

लखनऊ में राष्ट्रीय संविधान सम्मेलन के माध्यम से ओबीसी और विशेषकर दलित समुदाय के युवाओं के बीच राहुल गांधी ने संदेश देने की कोशिश की है कि उनका मकसद दिल्ली की सत्ता नहीं, बल्कि 90% ओबीसी, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और गरीब सवर्ण वर्ग को उनका हक दिलाना है। इसी प्रकार कल शाम दिल्ली में आयोजित सभा में हिंदी भाषी प्रदेशों के युवाओं की शिक्षा और रोजगार की समस्याओं पर बात सुनी गई, और राहुल गांधी ने उन्हें आश्वस्त किया कि सत्ता में आने पर कांग्रेस अपनी न्याय गारंटी योजना को लागू कर उनकी अधिकांश मांगों को पूरा करने के लिए वचनबद्ध है।

लोकसभा चुनाव अपना आधा सफर पूरा कर चुका है। उत्तर प्रदेश और बिहार की फिजा में परिवर्तन की बात चल तो रही थी, लेकिन अभी भी इसमें कई गतिरोध कायम हैं। समाजवादी पार्टी ने अपना चुनाव अभियान काफी देरी से शुरू किया। पहले और दूसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का असर और राजपूतों के भाजपा विरोध और बसपा उम्मीदवारों की वजह से इंडिया गठबंधन को कुछ फायदा होता दिखा, लेकिन इस बार भी पूर्व की तुलना में भाजपा और मोदी से निराश आम मतदाता खुलकर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं कर रहा है।

भाजपा के मजबूत संगठनात्मक ढांचे और गोदी मीडिया के लंबे प्रचार अभियान के चलते आम मतदाता भाजपा से खफा होने के बावजूद कहते सुने जा सकते हैं कि कुछ भी कह लो, इस बार भी भाजपा ही बहुमत बनाने जा रही है। कई तो ऐसे भी दिखे, तो इस बार वोट तो भाजपा के खिलाफ देंगे, लेकिन विज्ञापनों, मीडिया के शोर और भाजपा के प्रचार के चलते उनमें यह बात घर कर गई है, कि धनबल और बाहुबल के दम पर इस बार भी मोदी सरकार ही बनने जा रही है।

शायद राहुल गांधी इस जड़ता को समझ रहे थे। उन्हें पता है कि उनकी और अखिलेश यादव की रैलियों को राष्ट्रीय मीडिया में नहीं दिखाया जा रहा है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के माध्यम से राहुल गांधी और लाखों भारतीयों के बीच जो भरोसे का रिश्ता बना है, उसके बाद भी करोड़ों-करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें ठीक-ठीक नहीं पता कि देश के अन्य हिस्सों में इस बार लोग किन मुद्दों पर वोट दे रहे हैं।

देश में 65% आबादी आज 35 वर्ष से कम आयु की है। 18 वर्ष में मताधिकार का अधिकार हासिल करने वाले युवाओं की आबादी इस चुनाव में सबसे बड़ा X फैक्टर होने जा रहा है। बिहार और उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में इसकी झलक देखने को मिली थी। इसके बाद राहुल गांधी के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनाव अभियान का मौका नहीं मिल पाया। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस के लिए कुछ खास नहीं था। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के पास मोदी के रथ को रोकने की चुनौती थी। लेकिन इसे इंडिया गठबंधन की खुशकिस्मती समझनी चाहिए कि भाजपा को फायदा पहुँचाने के लिए चुनाव आयोग जिस प्रकार से यूपी, बिहार, दिल्ली, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मतदान को अंतिम चरण तक ले गई है, इस बार इसका फायदा संयुक्त विपक्ष को मिलने की संभावना है।

पिछले कुछ महीनों से राहुल गांधी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है, विशेषकर युवाओं के बीच में उनकी स्वीकार्यता में उछाल आया है। रोजगार के मोर्चे पर युवा आज मोदी से पूरी तरह से नाउम्मीद हो चुके थे, ऐसे में कांग्रेस ने 30 लाख रिक्त सरकारी नौकरियों में भर्ती, सेना में अग्निवीर भर्ती को खत्म करने, करोड़ों ग्रेजुएट एवं डिप्लोमाधारियों को एक वर्ष अपरेंटिसशिप के बदले 1 लाख रूपये की गारंटी, बेरोजगारों को भत्ते की गारंटी को अपने चुनावी घोषणापत्र में डालकर एक नया भरोसा जगाया है। इसके अलावा, दलित समुदाय में बसपा को लेकर भरोसा नहीं बन पा रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती पहले ही भाजपा के सामने हथियार डाल चुकी हैं, और अब अपने भतीजे आकाश आनंद की भाजपा के खिलाफ टिप्पणी पर एक्शन लेकर उन्होंने साफ़ कर दिया है कि उनके लिए दलित समाज के हित और आत्मसम्मान की जगह अपने भविष्य को सुरक्षित रखना सबसे बड़ी प्राथमिकता है।

इसी गैप को तेजी से भरने और हताश युवाओं को अपने पक्ष में लाने के लिए राहुल गांधी की लखनऊ और दिल्ली की वार्ता एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। यूपी, बिहार, दिल्ली और हरियाणा में राहुल, प्रियंका, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के मुकाबले एनडीए के पास एकमात्र स्टार कैम्पेनर नरेंद्र मोदी ही बचते हैं। मोदी की लोकप्रियता लगातार घट रही है, जबकि इंडिया गठबंधन के नेताओं की लोकप्रियता लगातार बढ़ी है। महिलाओं में प्रियंका और केजरीवाल के प्रति आकर्षण एक अलग मुद्दा है। गरीब महिलाओं के लिए कांग्रेस की ओर से प्रतिवर्ष 1 लाख रूपये की गारंटी को घर-घर पहुंचाना कितना असरकारक हो सकता है, इसे अभी भी कांग्रेस और गठबंधन दल जज्ब नहीं कर पाए हैं। 

10 मई को लखनऊ में युवाओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने सदियों से चली आ रही वर्णाश्रम व्यस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए कहा कि, हजारों वर्षों से समाज एक तबके में पैदा होने वाले बच्चों के भविष्य का फैसला उनके पैदा होने से पहले ही तय कर दिया था। उनके पास अपने भविष्य को बदलने का कोई अधिकार नहीं था। इसकी वजह से हजारों वर्षों से देश को कितना नुकसान हुआ, इसका आकलन अभी तक हमारे समाज ने नहीं किया है।  भारत में इसे बदलने के लिए अनेक महापुरुषों ने कार्य किया। इसमें अम्बेडकर, गांधी, वासवन्ना से लेकर पेरियार शामिल हैं, जो पिछले 3,000 वर्षों से जारी है। संविधान कि प्रति को हाथ में लेते हुए राहुल ने कहा कि लेकिन सबसे सफल आंदोलन इसमें निहित है। लेकिन उन्होंने अफ़सोस जताते हुए आगे कहा कि आज भी संविधान से नेहरु, अम्बेडकर और गांधी की उम्मीदों से कम सफलता हासिल हो पाई है।

इसके साथ राहुल ने अपने भाषण में कहा कि 90% लोग ओबीसी, दलित, आदिवासी और गरीब सामान्य वर्ग से आते हैं, लेकिन मीडिया सहित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और देश की टॉप 200 कंपनियों का मैनेजमेंट संभाल रहे लोगों की लिस्ट में आपको एक भी पिछड़े दलित आदिवासी और गरीब सामान्य वर्ग का व्यक्ति देखने को नहीं मिलेगा। सेना में अग्निवीर भर्ती मामले पर बोलते हुए राहुल युवाओं का ध्यान आकर्षित कराते हुए कहते हैं कि इसमें भी सारा नुकसान एससी, एसटी, ओबीसी और गरीब जनरल कास्ट का ही हो रहा है। वे स्पष्ट करते हैं कि अग्निवीर भर्ती योजना जवानों के लिए लागू है, इसमें अफसरों की भर्ती का प्रावधान नहीं है।

सिर्फ जाति जनगणना से ही इस बात का पता चल सकता है कि इस देश में पिछड़े दलित आदिवासियों की सही संख्या कितनी है, उन्हें किन संस्थाओं में भागीदारी मिल पाई है, इससे करोड़ों लोगों की सच्चाई का पता चल पायेगा। उन्होंने आगे कहा कि अगर देश को मजबूत बनाना है तो इसे 90% आबादी को साथ लिए बगैर नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि नौकरशाही, मीडिया, स्पोर्ट्स, सौंदर्य प्रतियोगिता में 90% को यदि मोदी जी हिस्सेदार नहीं बनाते हैं तो वे भारत को कौन सा सुपर पॉवर बनाने जा रहे हैं? आप क्या सिर्फ 10% लोगों के बलपर देश को सुपर पॉवर बना सकते हैं? आखिर आप कौन सी दुनिया की बात कर रहे हो?

भाजपा कैसे संविधान को निशाने पर लिए हुए है, को युवाओं के बीच स्पष्ट करते हुए राहुल ने कहा, “मोदी जी जब सीबीआई और ईडी के जरिये राजनीति पर आक्रमण करते हैं, तो वे संविधान पर आक्रमण कर रहे होते हैं। इसी प्रकार जब वे देश के तमाम संस्थानों पर आक्रमण करते हैं, या करोड़ों दलितों, पिछड़ों और जनरल कास्ट के लिए भारतीय सेना से बिना पूछे ही अग्निवीर योजना लाते हैं, तो संविधान पर आक्रमण कर रहे होते हैं। वे मोदी जी को 21वीं सदी का राजा बताते हुए कहते हैं कि असली सत्ता उनके पास नहीं बल्कि उन्हें पीछे से दो-तीन लोग चला रहे हैं, जो उन्हें फाइनेंस कर रहे हैं। 

राहुल गांधी ने एक और बात बड़े मार्के की कही कि राजनीति में बहुत से लोग सत्ता पाने की हवस की वजह से आते हैं। अपने बारे में उन्होंने बताया कि मैं सत्ता के बीच पैदा हुआ था, लेकिन मुझे इसकी कभी चाह नहीं रही। मेरे लिए सत्ता का कोई नशा नहीं है, मैं इसका उपयोग 90% आबादी को देश के संसाधनों पर उनकी भागीदारी दिलवाने के रूप में देखता हूं। कॉर्पोरेट, न्यायपालिका और सार्वजनिक क्षेत्र में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करने की राजनीतिक स्पष्टता मेरे भीतर आ चुकी है। दो साल पहले भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लाखों देशवासियों के साथ मुलाक़ात के दौरान मुझे 4000 किमी के सफर में यह राजनीतिक स्पष्टता आई है। इसके बाद मेरे सुनने और समझने का तरीका बदल चुका है।

राहुल ने अंत में कहा, “हिंदुस्तान में जिन्होंने भी सामाजिक न्याय की लड़ाई सफलतापूर्वक लड़ी है, उन्होंने इसे प्यार मोहब्बत से जीता जीता है। मैं इस बात की गारंटी दे रहा हूँ कि नरेंद्र मोदी इस बार पीएम नहीं बनने जा रहे हैं। मैं इस बात को लिखकर दे सकता हूँ। मोदी जी की पूरी रणनीति भाई को भाई से लड़ाने की होती है, लेकिन अगर ईवीएम सहित दूसरे तरह की बेईमानी नहीं होती तो ये लोग 180 पार नहीं जा रहे हैं। इसके साथ ही राहुल गांधी ने इस बात को भी पहली बार सार्वजनिक तौर पर स्वीकारा है कि कांग्रेस को भी आने वाले समय में अपनी राजनीति को बदलना होगा। उन्होंने माना कि कांग्रेस ने भी पूर्व में गलितयां की हैं।

लखनऊ के बाद कल रविवार दिल्ली में ‘भर्ती भरोसा सम्मेलन’ में कांग्रेस ने शिक्षित बेरोजगार युवाओं से संवाद स्थापित करने के लिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर मेडुसा सहित अन्य लोगों को एक मंच पर लाकर सोशल मीडिया पर एक बज पैदा करने की कोशिश की है। विभिन्न राज्यों से आये बेरोजगार शिक्षित युवाओं और गिग वर्करों के बीच राहुल ने स्पष्ट किया कि पूरे देश में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन्होंने पाया है कि 35 वर्ष से कम आयु के जो भी लोग हैं, उनके सामने बेरोजगारी का मुद्दा सबसे गंभीर बना हुआ है, लेकिन मीडिया में इस सवाल को लेकर कोई बहस नहीं है।

लेकिन इसके पीछे की जो वजह राहुल ने युवाओं के सामने स्पष्ट की, उसे शायद ही हाल के दशकों में लेफ्ट पार्टियों के नेताओं के अलावा किसी अन्य राष्ट्रीय नेता ने मुखरित किया है। उन्होंने कहा कि, “आज भारत में औद्योगिक उत्पादन करने के बजाय देश का मोनोपोली कैपिटलिस्ट चीन से आयात कर रहा है। देश में मोनोपोली कैपिटलिस्ट चीन से माल आयात कर अपना मुनाफा कमाने में व्यस्त है। हमारे बड़े उद्योगपतियों की इसी नीति पर चलने की वजह से देश में रोजगार उपलब्ध नहीं हैं।”

इसके बाद राहुल देश की चोटी की कंपनियों का उल्लेख करते हुए कहते हैं, “देश में 200 बड़ी कंपनियों में टॉप मैनेजमेंट को करोड़ों रूपये की तनख्वाह मिल रही है। इसमें एक गरीब जनरल कास्ट, दलित, आदिवासी, पिछड़ा और किसान-मजदूर का बेटा आपको नहीं मिलेगा। देश में सिर्फ 1% लोग हैं, जो आपस में सारा बंदरबाँट कर रहे हैं। लेकिन मीडिया कभी इस बात का खुलासा नहीं होने देती।”

राहुल ने आगे कहा, “देश में सिर्फ 300 लोगों के लिए आईएएस बनने का रास्ता है। लोग कहते हैं कि मैंने मेहनत की लेकिन सफल नहीं हो सका, जो कि गलत है, क्योंकि इतनी जगह है ही नहीं। सिर्फ 1-2% मौके हैं और उसी को लेकर सारा ड्रामा चल रहा है। मोदी जी ने सेना में अग्निवीर योजना लाई है, पब्लिक सेक्टर को खत्म किया जा रहा है। सिस्टम ऐसा बना गया है कि टॉप उद्योगपति देश के भीतर कुछ भी उत्पादन नहीं कर रहे। अडानी क्या बना रहा है? कुछ नहीं। सरकारी ठेके, एअरपोर्ट सबकुछ सरकार बनाकर बाद में अडानी को सौंप रही है। यही काम इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर, बन्दरगाह के साथ हो रहा है। 20-25 लोगों को ही सारा काम दिया जा रहा है।”

अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी का हवाला देते हुए राहुल गांधी ने कहा, “अमेठी में पेट्रोलियम इंस्टिट्यूट का काम दिल्ली की एक कंपनी को मिला, लेकिन उसने सब-कॉन्ट्रैक्ट पर एक स्थानीय को करोड़ों रुपये का काम ठेके पर दे दिया। पोलिटिकल कनेक्शन के जरिये चंद लोग काम हासिल कर इस तरह से काम कर रहे हैं। ओबीसी, दलित, अल्पसंख्यकों के पास जो भी अवसर हो सकते थे, उन्हें एक-एक कर हथियाया जा रहा है। जीएसटी में गरीब किसान और अडानी समान जीएसटी दे रहे हैं। इस प्रकार इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जो भी पैसा लग रहा है, उसे ओबीसी, दलित, गरीब जनरल कास्ट से वसूलकर 20-25 लोगों की मोनोपोली को मजबूत करने के काम पर लगाया जा रहा है। आपके लिए अवसर लगातार कम होते जा रहे हैं।”

अंत में राहुल ने कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र का जिक्र करते हुए कहा, “हमने अपनी 5 गारंटियों में महिलाओं, बेरोजगार युवाओं को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर, मेड इन चाइना की जगह मेड इन इंडिया की बात कही है, जिससे कि देश में मोनोपली कैपिटलिस्ट की भूमिका को कमजोर किया जा सके।”

युवाओं में इलाहाबाद, बनारस विश्वविद्यालय सहित गुडगाँव में अमेज़न के वेयरहाउस में काम करने वाली महिला सहित विभिन्न शहरों से आये युवा बेरोजगारों के सवालों को लिया गया। दोनों सम्मेलनों का उत्तर भारतीय युवाओं पर सकारात्मक असर पड़ने की संभावना है, जिसका परिणाम आगामी चरण के चुनावों में देखने को मिल सकता है। 

बता दें कि राहुल गांधी के सोशल मीडिया अकाउंट X को करीब 2.55 करोड़ लोग फ़ॉलो करते हैं। राहुल गांधी को हाल के महीनों में बड़ी तादाद में लाइक और शेयर मिल रहा है। प्रति ट्वीट पर 25,000 से लेकर 40,000 लाइक मिल रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ पीएम नरेंद्र मोदी को 9.77 करोड़ फॉलो करते हैं, लेकिन X पर उनके पोस्ट को लाइक करने वालों की तादाद राहुल गांधी से आधी या उससे भी कम है।

इसी प्रकार यूट्यूब चैनल पर भी राहुल गांधी को अच्छी खासी लोकप्रियता मिल रही है। उनके यूट्यूब को 53.40 लाख लोगों ने सब्सक्राइब कर रखा है। लेकिन चैनल एनालिटिक्स पर गौर करें तो पिछले 28 दिनों के दौरान राहुल को 30.41 करोड़ बार देखा गया है, और इस दौरान 9.34 लाख नये सब्सक्राइबर्स उनके साथ जुड़े हैं। राहुल गांधी के वीडियोज को 32 लाख घंटों तक देखा गया है। इसकी तुलना में पीएम मोदी के यूट्यूब चैनल पर  पांच गुना अधिक सब्सक्राइबर हैं, लेकिन उनके साक्षात्कारों को छोड़ दें तो ऐसा लगता है उनके फॉलोवर्स उन्हें सोशल मीडिया पर बेहद कम संख्या में देख रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में करोड़ों लोगों के द्वारा सब्सक्राइब किया जाना, लेकिन लाइक और शेयर में इतनी बड़ी गिरावट इस बात का स्पष्ट संकेत है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिर रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या आने वाले दिनों में राहुल, प्रियंका, अखिलेश, अरविंद केजरीवाल और बिहार में तेजस्वी यादव युवाओं में अपनी बढ़ती लोकप्रियता को एक बड़ी लहर में तब्दील कर पाने और उन्हें बूथ तक लाने में सफल होने जा रहे हैं?

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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