लोकसभा चुनाव: पुरुलिया के कुड़मी समाज का निर्दलीय उम्मीदवार क्या बिगाड़ रहा है भाजपा का समीकरण

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पुरुलिया। पश्चिम बंगाल में दोपहर के वक्त ज्यादातर दुकानें बंद रहती हैं और लोग घरों में दोपहर का खाना खाकर सोते हैं। बड़े बाजारों की बात छोड़ दें तो सामान्यत पूरे बंगाल की यही स्थिति हैं।

मई के महीने में चिलचिलाती गर्मी के बीच लोग दोपहर पर ही घर रहते हैं। लेकिन पुरुलिया में 45 डिग्री के बीच भी कुड़मी महिलाएं अपनी प्रत्याशी को समर्थन देने आई हैं। यह निर्दलीय प्रत्याशी कुड़मी समाज का नेता है और नाम है अजीत प्रसाद महतो। जिसने राजनीतिक पार्टियों के होश उड़ा दिए हैं।

कुड़मी निर्णायक भूमिका में रहते हैं

जनचौक की टीम ने पुरुलिया लोकसभा सीट का दौरा कर यह जानने की कोशिश की है कि इस बार कुड़मी समाज का रुख क्या है। वह किस पार्टी को समर्थन दे रहा है क्योंकि कहते हैं जिसे कुड़मी वोट देदे वही सत्ता में आसीन होता है।

तपती गर्मी के बीच पुरुलिया शहर के बीच अजीत प्रसाद महतो की रैली हो रही थी। इस रैली में मुख्यत महिलाओँ को शामिल होने का आह्वान किया गया था। जिसमें लगभग पांच हजार से अधिक महिलाएं शामिल हुई थी।

हाथ में बाल्टी छाप की तख्तियां, उम्मीदवार की डम्मी, बाल्टी लिए हुए यह महिलाएं समाज पहले का नारा देते हुए अजीत प्रसाद महतो को वोट देने के अपील कर रही थी।       

बीजेपी की हिंदु वोटरों को लुभाने की कोशिश               

इससे ठीक एक दिन पहले पीएम मोदी पुरुलिया में रोड़ शो करके गए थे। जिसमें उन्होंने हिंदू वोटरो को लुभाने के लिए पुरुलिया की अयोध्या पहाड़ी जिक्र करते हुए कहा कि “यह वही अयोध्या पहाड़ी है जहां रामजी वनवास के दौरान आए थे। आज भी उनके चरणों के छाप यहां मौजूद हैं। यहां एक ऐसा पहाड़ है जहां सीताकुंड भी है। हमने 500 साल बाद रामलला को उनका आवास प्रदान किया है। लेकिन बंगाल में तो राम का नाम लेने पर भी रोक है”।

पीएम का यह भाषण सीधे तौर पर वोटरों को राममंदिर के नाम पर वोट देने की अपील थी। लेकिन दूसरे दिन इस बात की खूब चर्चा हुई कि आखिर राम भगवान पुरुलिया के अयोध्या कब आए थे?  पत्रकारों के बीच भी इसकी खूब चर्चा हुई।

लेकिन कुड़मी वोट इस बार भाजपा के किसी लोकलुभावने वायदे में नहीं आऩे वाले हैं। पीले रंग के गमछे के साथ समाज के वोट मांगते कुड़मी लोगों का कहना है कि न तो राज्य नही केंद्र सरकार ने उनका साथ दिया है।

पिछली बार भाजपा को वोट इसबार नहीं

इसी रैली में पुरुलिया के विभिन्न विधानसभा से महिलाएं आई थी। दो महिलाएं से हमने पिछले वोट के बारे में जानने की कोशिश की। दोनों महिलाएं ने एक स्वर में जवाब दिया पिछली बार भाजपा को वोट दिया था। इस बार समाज के नाम पर वोट देंगे। ताकि हम अपने अधिकार की लड़ाई जीत सकें। राजनीतिक पार्टियां हमारा वोट ले रही हैं लेकिन हमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दे रही हैं।

इस बारे में सिंद्धू कान्हू बिरसा यूनिर्वसिटी पुरुलिया के प्रोफेसर संता महतो का कहना है कि लोकसभा चुनाव में जंगलमहल के क्षेत्र में कुड़मी फेक्टर बहुत ही अहम है। जिसमें पुरुलिया, बांकुड़ा, झारग्राम और पश्चिम मेदिनीपुर की सीट शामिल है।

प्रोफेसर के अनुसार कुड़मी यहां के मूल निवासी है जिसकी साल 2011 की जनगणना के अनुसार 30 प्रतिशत आबादी है। जो किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए बहुत बड़ी निर्णायक भूमिका को निभाती हैं।

 इसका ही नतीजा है कि आजतक यहां किसी भी पार्टी ने कुड़मी उम्मीदवार को छोड़ किसी और को टिकट नहीं दिया है। इस बार भी वही हाल है । इस बार भी वही हाल है भाजपा की उम्मीद्वार- ज्योर्तिलिंग महतो, टीएमसी के शांतिराम महतो और इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की तरफ से नेपाल महतो मैदान में हैं।

निर्दलीय उम्मीदवार अजीत प्रसाद महतो भी अपनी सभाओं में इसी बात पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कुड़मी के समर्थन के बिना कोई भी पार्टी नहीं जीत सकती हैं।

 हमसे बात करते हए उन्होंने कहा कि “पिछली बार कुड़मी समुदाय की तरफ से किसी भी पार्टी का विरोध नहीं किया गया था क्योंकि हमें उम्मीद थी कि हमारी मांग मान ली जाएंगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं”।

राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारें सिर्फ फाइल का खेला खेल रही हैं। जिसके कारण ज्यादातर लोगों ने बीजेपी के समर्थन दिया था कि पीएम मोदी हमारी मांग को पूरा कर देगें। इस बार हमें किसी पार्टी पर भरोसा नहीं हैं। इसलिए मैं खुद मैदान में उतरा हूं। अपने समाज को न्याय दिलाने के लिए।

भाजपा का घटेगा वोट

पुरुलिया लोकसभा सीट में कुड़मी(महतो) की आबादी की बात की जाए तो मौजूदा वक्त में 35 प्रतिशत है। जो किसी भी पार्टी के खेल बना या बिगाड़ सकती है।

पुरुलिया के पत्रकार विवेक महतो स्वयं कुड़मी समुदाय से आते हैं। वह पिछले पांच में समाज के बीच आए बदलाव के बारे बताते हैं कि पिछली बार 70 प्रतिशत कुड़मी लोगों ने भाजपा को वोट किया था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होने वाला है।

पिछले कुछ राजनीतिक हालातों को देखे तो अजीत प्रसाद महतो के नामांकन के बाद से ही कुड़मी समुदाय का बड़ा हिस्सा उनके साथ हो लिया है। इसमें ज्यादातर वही लोग है जो जिन्होंने पिछली बार भाजपा को वोट दिया था। जिसके कारण भाजपा और टीएमसी के बीच लगभग 2 लाख के वोट का अंतर था। पूरी लोकसभा में लगभग साढ़े पांच लाख कुड़मी वोटर्स हैं।

लगभग 35 प्रतिशत की आबादी वाले कुड़मी समुदाय में से 20 प्रतिशत इस वक्त अजीत प्रसाद महतो के साथ हैं।

पहले भाजपा के पास 10 प्रतिशत कुड़मी वोट प्रतिशत था। जो घटकर अब सात प्रतिशत हो गया है। वहीं टीएमसी का भी वही हाल है। विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी के पास 10 प्रतिशत वोट था। जो अब घटकर मात्र 3 प्रतिशत हो गया है।

मैंने विवेक महतो से वोट शिफ्टिंग के कारण में पूछा तो उन्होंने बताया इसके पीछे दो कारण को बताएं पहला कुड़मी समाज लंबे समय से आदिवासी पहचान की मांग कर रहा है। जिसके लिए कई बार अजीत प्रसाद महतो के नेतृत्व में रेल रोको आंदोलन भी किया गया। लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। कुड़मी नेता होते हुए भी  पार्टी के लोग आगे नहीं आएं। इसलिए अब लोगों में इसको लेकर रोष हैं।

दूसरा बड़ा कारण विधानसभा चुनाव के बाद देखने को मिला। पुरुलिया के कई हिस्सों में टीएमसी और भाजपा के बीच झड़प हुई। जिसमें भाजपा के लोगों के साथ जब मारपीट हुई तो न तो पार्टी और नहीं पुलिस ने उनका साथ दिया।

ऐसे मौके पर जय ग्राम आदिवासी कुड़मी समाज ने लोगों का साथ दिया। जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग अजीत कुमार महतो के तरफ शिफ्ट हो गए। जिसका सीधा असर वोट पर पड़ने वाला है।

प्रत्याशी को मोदी के विकास पर भरोसा

हांलाकि जब हमने भाजपा के प्रत्याशी और मौजूदा सांसद ज्योर्तिमय सिंह महतो से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि लोग आज भी मोदी के विकास के काम से खुश हैं और इसी के नाम पर वोट करेंगे।

कुड़मी समुदाय के वोट शिफ्ट होने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि लोग जिसको समर्थन करेंगे उसे वोट भी करेंगे फिलहाल के लिए वोट शिफ्ट नहीं हो रहे हैं। जहां तक अजीत प्रसाद महतो की बात ही वह अपने मुद्दे को लेकर मैदान में हैं। हमारी उनके साथ कोई लड़ाई नहीं हैं। भाजपा की सीधी लड़ाई टीएमसी से है।

वही दूसरी ओर प्रोफेसर संता का भी यही मानना है। वह कहते हैं कि साल 2019 में जो परिणाम थे उससे 2024 के परिणाम एकदम अलग होगें।

आदिवासी कुड़मी समाज पिछले 70 सालों से अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहा है। कुछ गलतियों के कारण साल 1950 में उन्हें अनुसूचित जनजाति के दायरे से बाहर कर दिया गया है। अब लोग इन मुद्दों को लेकर जागरुक हो चुके हैं। इसीलिए आदिवासी कुड़मी समाज निर्दलीय प्रत्याशी का समर्थन कर रहा है। जिसका नतीजा है कि यह लड़ाई त्रिकोणी हो गई है। इसका फायदा किस पार्टी को मिलेगा यह चार जून को पता चलेगा।

तृणमूल के प्रति कुड़मियों की नाराजगी विधानसभा चुनाव में ही साफ दिखाई दी है। जिसके कारण पुरुलिया की नौ विधानसभा सीट में सिर्फ दो पर ही जीत हासिल कर पाई है। लोकसभा में यह नाराजगी अगर भाजपा के साथ होती है तो इसका अच्छा खासा नुकसान उसे झेलना पड़ सकता है।

फिलहाल के लिए पुरुलिया में सीधी लड़ाई टीएमसी और भाजपा के बीच है। लेकिन अजीत प्रसाद महतो की एंट्री ने सबके होश उड़ा दिए हैं।

प्रोफेसर संता का यह भी कहना है कि भाजपा ने भी पिछले पांच साल में कुड़मी समाज के लिए कुछ नहीं किया है सिवाय राम सीता और हिंदुत्व ने नाम पर उनका वोट लेने के, जबकि कुड़मी आदिवासी परंपरा के तहत प्राकृति के उपसाक हैं।

भाजपा ने टोटेमिक कुड़मियों द्वारा पालन किए जाने वाले सरना धर्म को कोड ऑफ रिलीजन में भी शामिल नहीं किया है। जबकि इसकी मांग के लिए दिल्ली में आंदोलन भी किया गया है।

पत्रकार विवेक महतो से भी जब हमने यह पूछा कि पीएम मोदी अयोध्य़ा पहाड़ी पर भगवान राम के चरणों का जिक्र करके गए हैं क्या राममंदिर आपके समाज में कोई बड़ा मुद्दा है?  

इसका जवाब देते हुए वह कहते हैं कि राममंदिर कुड़मी समाज के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं हैं। ज्यादातर लोग प्रकृति के उपसाक है वह राममंदिर के नाम पर वोट नहीं करेंगे।

सदियों तक लेफ्ट का दबदबा रहा

पुरुलिया की सीट पर लंबे समय तक लेफ्ट के फॉरवर्ड ब्लॉक का कब्जा रहा है। साल 2014 में पहली बार मोदी लहर के बीच डॉ.मृगांका महतो ने टीएमसी से यह सीट जीतकर लेफ्ट के किले को ध्वस्त किया था।

साल 2019 में समाज द्वारा किसी भी पार्टी का विरोध नहीं करने और जातियां पहचान की आस में कुड़मी लोगों ने जमकर भाजपा को वोट किया और सीट भाजपा को चली गई।

प्रोफेसर संता के अनुसार पिछले पांच साल में सांसद ज्योर्तिमय सिंह महतो जनता के बीच गए ही नहीं यहां तक स्थानीय भाजपा के नेताओं के बीच पसंद नहीं किए जा रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर अजीत प्रसाद महतो लगातार गांव में जा जाकर लोगों को अपने मुद्दों को बताने के साथ-साथ पिछले सालों में जो आंदोलन समाज के लिए किए गए हैं उनकी जानकारी देते हुए वोट मांग रहे हैं।

पुरुलिया लोकसभा सीट का जातियां समीकरण देखा जाएं तो यहां लगभग 19 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 20 प्रतिशत लगभग अनुसूचित जाति, 7.76%  मुसलमान हैं।

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