चुशुल घाटी में मौजूद मेजर शैतान सिंह के शहीद स्थल को सरकार ने क्यों ध्वस्त किया?

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नई दिल्ली। चीन के भारतीय सीमा में घुसपैठ का एक और सबूत मिल गया है। और यह सबूत किसी निजी संस्था या फिर मीडिया की तरफ से नहीं आया है बल्कि सरकार ने ही इसको सामने लाने का काम किया है। दरअसल लद्दाख में चीनी सीमा के वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थित 1962 की लड़ाई के शहीद शैतान सिंह के शहीद स्थल को भारत सरकार ने ढहा दिया है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वह स्थान भारत-चीन सीमा पर बनाए गए नये बफर जोन के दायरे में आता था। इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि सीमा पर नया बफर जोन भारतीय जमीन में बन रहा है। और इस काम के लिए चीन ने भारत सरकार को मजबूर किया है।

आइये मेजर शैतान सिंह की कहानी को और विस्तार से समझते हैं। 1962 के युद्ध में शैतान सिंह के नेतृत्व में कुमाऊं रेजीमेंट के 120 जवान चुशुल घाटी में तैनात थे और वह चीनी हमले का सामना कर रहे थे। इस पूरी लड़ाई के दौरान शैतान सिंह की बटालियन ने चीनी सेना के सात हमलों को नाकाम कर दिया। और इस कड़ी में भारत के 120 सैनिक मारे गए जबकि उन्होंने चीन के 1000 से ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।

भारतीय सैनिकों ने यह काम बेहद ही विपरीत परिस्थितियों में किया। क्योंकि न तो उनके पास अच्छे हथियार थे और न ही मौसम उनका साथ दे रहा था। और वहां का तापमान -30 डिग्री सेल्सियस से भी कम था। और पूरा इलाका बर्फ से ढंका हुआ था। जबकि सामने चीनी तोपों और उसके पैदल सैनिकों की ओर से भयंकर गोलाबारी हो रही थी। 113 सैनिकों के साथ मेजर शैतान सिंह ने बहुत ही बहादुरी से इन हमलों का सामना किया। इसका ही नतीजा था कि चुशुल घाटी चीनी सैनिकों के कब्जे में नहीं गयी। चीनी सैनिकों से लड़ते हुए रेजांग ला इलाके में 114 सैनिक शहीद हो गए। और चुशुल पर कब्जा करने में नाकाम रहने के बाद चीन युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

उसके बाद जब भारतीय सैनिकों का जत्था वहां पहुंचा तो मेजर शैतान सिंह का दाहिना हाथ गोलियों से भरे पेट को मजबूती के साथ पकड़े हुए था। मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया। उसके बाद उनकी याद में उसी स्थान पर एक स्मृति स्थल भी बनाया गया जहां वह गिरे थे और उन्होंने आखिरी सांस ली थी। लेकिन अब 61 साल बाद इस स्मृति स्थल को गिरा दिया गया है। क्योंकि इस स्थान पर एक बफर जोन बन गया है जो वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास है।

दिलचस्प बात यह है कि यह सब कुछ दोनों देशों के बीच हुई उच्च स्तरीय सैनिक वार्ताओं के बाद किया गया है। गौरतलब है कि गलवान में जून 2020 में हुई लड़ाई के बाद पूरे इलाके में नया विवाद खड़ा हो गया था। और इस झगड़े में भारत के 20 से ज्यादा सैनिक मार दिए गए थे। शुरुआत में भले ही चीजें बिल्कुल स्पष्ट नहीं दिख रही थीं। लेकिन 2022 में रेजांग ला इलाके से भारत का नियंत्रण खत्म हो गया।और यह सब कुछ भारत और चीनी सेना के बीच हुई बातचीत के बाद हुआ। जिसमें यह फैसला लिया गया कि उस जमीन पर बफर जोन बना दिया जाएगा। इसका मतलब है कि वह नो मेंस लैंड है। जिसमें न तो भारत के सैनिक जाएंगे और न ही चीन के सैनिक।

फैसले के मुताबिक बफर जोन में मौजूद दोनों पक्षों को अपने सभी ढांचों को या तो ध्वस्त करना होगा या फिर उन्हें दूसरी जगह विस्थापित करना होगा। नतीजे के तौर पर भारत को शैतान सिंह के इस यादगार स्थल को वहां से हटाना पड़ा है। और इस बीच चुशुल घाटी में एक नया और उससे भी बड़ा शहीद स्थल बना दिया गया है। जिसमें उन सभी सैनिकों के नाम लिखे गए हैं जो वहां शहीद हुए थे। यह स्थल भारतीय सीमा के तीन किमी भीतर है। दिलचस्प बात यह है कि 18 नवंबर, 2021 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसका उद्घाटन भी कर दिया।

सरकार ने पहले इस बात को सिरे से खारिज कर दिया था और कहा था कि भारत के एक इंच पर भी चीन का कब्जा नहीं हुआ है। लेकिन स्मृति स्थल का ध्वस्त किया जाना सरकार के इस दावे की पोल खोल देता है। और सच्चाई क्या है उसको सामने ला देता है। और भारत अपनी पुरानी स्थिति से पीछे लौट गया है और देश के एक हिस्से पर चीन का कब्जा हो गया है। यह घटना इस पर मुहर लगा देती है।

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