आखिर कैसे रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने भारत सरकार को कर दिया मालामाल?

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भारतीय रिजर्व बैंक ने वर्ष 2023-24 में भारत सरकार को 2.1 लाख करोड़ रूपये लाभांश के तौर पर देने की घोषणा की है। इस खबर पर सबसे बड़ी प्रतिक्रिया मुंबई के शेयर बाज़ार में कल देखने को मिली। दलाल स्ट्रीट में शेयर के भाव में आग लग गई थी, और सेंसेक्स एक दिन में 1,197 अंक ऊपर चढ़ 75,418 अंक की नई ऊंचाई पर पहुंच चुका था। एनएसई की मार्केट पूंजी भी पहली बार 5 ट्रिलियन डॉलर की सीमा को लांध चुकी है। अकेले अडानी समूह को एक दिन में 63,282 करोड़ रूपये अपनी मार्केट कैप में इजाफे के तौर पर मिली है, और समूह का बाजार मूल्य 17.50 लाख करोड़ रूपये हो चुका है। 

अरबीआई के इस मास्टर स्ट्रोक से किन-किन को फायदा होने जा रहा है, या 4 जून को चुनाव परिणाम पर इसका क्या असर पड़ेगा इसका ठीक-ठीक अंदाजा लगा पाना तो मुश्किल है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री के द्वारा हाल ही में निवेशकों को जो भरोसा दिलाया जा रहा था, वह इस कदम से सच होता उन्हें अवश्य दिख रहा होगा। पिछले कुछ दिनों से फलौदी के सट्टा बाजार और मुंबई सट्टा बाजार से जो खबरें आ रही थीं, वह निश्चित रूप से मोदी सरकार के लिए परेशानी का सबब बनी हुई थी। लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक ने ऐन वक्त पर जो दरियादिली दिखाई है, उससे बड़े-बड़े आर्थिक विशेषज्ञ हैरान हैं।

आखिर आरबीआई इतनी बड़ी रकम भारत सरकार को कैसे दे पा रही है? इस सवाल पर तमाम तरह से आर्थिक विशेषज्ञ मनन कर रहे हैं। आरबीआई के पिछले 10 वर्षों के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो 2018-19 में वह ऐसा करिश्मा करने में कामयाब रह पाई थी, जब उसके द्वारा रिकॉर्ड 1,76,051 करोड़ का लाभांश भारत सरकार को सुपुर्द किया गया था। आरबीआई द्वारा भारत सरकार को दिए जाने वाले वार्षिक लाभांश पर एक नजर डालें तो आप इसमें कुछ अनियमितताएं देख सकते हैं। यूपीए सरकार के तीन वर्षों में हम पाएंगे कि यह रकम 15 हजार करोड़ से बढ़कर 33 हजार करोड़ रूपये तक सीमित थी। इसके बाद के वर्षों में इसमें उत्तरोत्तर तेजी देखने को मिलती है, सिवाय वर्ष 2017 के।  

RBI contribution to Govt of India
YearCrore (Rs।)
201115,009
201216,010
201333,110
201452,679
201565,896
201665,876
201730,659
201850,000
20191,76,051
202057,128
202199,122
202230,307
202387,416
20242,10,874

बता दें कि मनमोहन सिंह सरकार के अंतिम दौर में भारतीय रिजर्व बैंक के मुखिया रघुराम राजन थे, जिनका कार्यकाल नरेंद्र मोदी सरकार के शुरूआती वर्षों में भी जारी रहा। इसके बाद 2016 में रिलायंस समूह से जुड़े एक अधिकारी और अफ्रीका में पले बढ़े बैंकर उर्जित पटेल के हाथों में आरबीआई की कमान सौंपी गई। लेकिन जब तक वे अपने ऑफिस का कामकाज संभाल पाते देश में अचानक नोटबंदी घोषित कर दी गई थी। 500 और 1,000 रूपये के नोट एक दिन 8 बजे रात पीएम नरेंद्र मोदी की भारतीय टेलीविजन पर घोषणा के साथ अवैध घोषित कर दिए गये। इस बारे में आज तक विवाद बना हुआ है कि इसमें उर्जित पटेल की भूमिका थी या नहीं। लेकिन इसके बारे में हाल के वर्षों में खुलासा वित्त मंत्रालय से सेवानिवृत्त वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने अपनी किताब ‘We Also Make Policy’, में जिक्र करते हुए बताया था कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल की तुलना सांप से की थी, जो ढेर सारे धन के ऊपर बैठा हुआ है।

यह वही वर्ष है जब स्वर्गीय वित्त मंत्री अरुण जेटली, वित्त सचिव और पीएम मोदी के साथ उर्जित पटेल की बैठक हुई थी, और उस दौरान पटेल से आरबीआई से अधिकतम लाभांश जारी किये जाने के लिए राजी किया जा रहा था। कई जानकारों का मानना है कि ऐसे ही दबावों की वजह से उर्जित पटेल बीच में ही अपना कार्यकाल छोड़ इस्तीफ़ा देकर देश से बाहर चले गये। इसके बाद आरबीआई के नए गवर्नर के तौर पर शक्तिकांत दास की नियुक्ति हुई थी, जो अपना 3 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरी बार भी इस पद पर आसीन हैं। उन्हीं के पहले कार्यकाल में भारत सरकार को पहली बार 1 लाख करोड़ रूपये से अधिक का लाभांश पहली बार हासिल हुआ था। उस समय भी इस पर बहस का बाजार गर्म रहा था।  

लेकिन यहां याद रखना होगा कि तब भी आम चुनाव का वर्ष था, और इस बार 2.10 लाख करोड़ रूपये के लाभांश की घोषणा वाला वर्ष भी चुनावी है। जाहिर है, केंद्र सरकार को ऐन वक्त में इतनी बड़ी रकम से मालामाल कर आरबीआई और इसके बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर एक ऐसी मिसाल देश के सामने पेश कर रहे हैं, जो आरबीआई जैसे स्वतंत्र संस्थान और इसकी निष्पक्षता को लेकर सवालिया निशान खड़े करती है। भारत में बैंकों का बैंक कहे जाने वाले भारतीय रिजर्व बैंक की प्राथमिक भूमिका भारतीय मुद्रा को जारी करने के अलावा रूपये में आने वाले भारी उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने का है। मौद्रिक नीति के साथ आरबीआई देश के अन्य बैंकों के कामकाज पर भी गहरी निगाह रखती है, और देश में बचत या ऋण देने के मामलों पर भी नियमित रूप से बैंकों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करती रहती है। 

आरबीआई की छप्परफाड़ कमाई कैसे संभव हुई?

यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर आमतौर पर ध्यान नहीं जाता, लेकिन यह बेहद जटिल लेकिन रोचक प्रक्रिया है। भारत में सार्वजनिक एवं प्राइवेट बैंकों को अपना कामकाज चलाने के लिए आरबीआई की स्वीकृति और प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है। ये बैंक आरबीआई में एक निश्चित रकम रिजर्व के तौर पर जमा करते हैं। रेपो रेट को तय कर भी आरबीआई की आय होती है। इसके अलावा भारत सरकार भी कई बार बाजार से ऋण लेने के बजाय आरबीआई को बांड जारी कर आवश्यक कर्ज हासिल करती है। इन सबसे रिजर्व बैंक की आय में इजाफा होता है। 

लेकिन हाल के वर्षों में भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी सरकार की सिक्योरिटी और बांड्स में निवेश कर अच्छा मुनाफा कमाया है। इसके अलावा गोल्ड रिजर्व में बढ़ोत्तरी और सोने की कीमतों में भारी वृद्धि ने भी आरबीआई की स्थिति को आर्थिक तौर पर मजबूती प्रदान की है। बड़े पैमाने पर डॉलर के तौर पर विदेशी मुद्रा भंडार भी आरबीआई के लिए बड़ा वरदान साबित हुई है। 60-62 रूपये प्रति डॉलर पर हासिल अमेरिकी मुद्रा का रिजर्व आज भारत में 650 अरब डॉलर को पार कर चुका है। कई अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्रों ने विदेशी मुद्रा भंडार को आरबीआई की कमाई की मुख्य वजह गिनाया है। लेकिन एक और स्रोत है जो इन सबसे अधिक भारतीय रिजर्व बैंक को मालामाल कर रही है, जिसे शायद जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा है। 

क्या आप जानते हैं कि 2016 में नोटबंदी के दौरान भारत में नोटों की शक्ल में कुल कितने रूपये चलन में मौजूद थे? सीएनबीसी-टीवी18 ने आरबीआई के हवाले से अपने टेलीविजन शो में 2023 में बताया था कि 2016 में देश में नोटबंदी के दौरान कुल 16.6 लाख करोड़ रूपये मूल्य की मुद्रा ही चलन में थी। सीएनबीसी के मुताबिक 2023 में बढ़कर 33.8 लाख करोड़ रूपये मूल्य की हो चुकी थी। 7 वर्षों में दोगुने से अधिक कैश की उपलब्धता आखिर किसलिए? 

आखिर पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि इससे देश में काला धन और नकली नोट पर सर्जिकल स्ट्राइक होगी, और सरकार इस काले धन का खात्मा कर देश में कालाबाजारी और महंगाई पर पूर्ण नियंत्रण पाने में कामयाब रहेगी। रातों-रात 500 और 1000 रूपये के नोट किसी काम के नहीं रह गये थे और इसके स्थान पर आरबीआई ने 500 और 2000 रूपये के नए नोट बाजार में जारी किये थे। पिछले वर्ष 2000 रूपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया, क्योंकि सरकार ने पाया कि 2000 रूपये के नोट से काला धन कहीं बड़ी संख्या में देश में एकत्र हो रहा है।

लेकिन मोदी सरकार ने इन 7 वर्षों में 33.8 लाख करोड़ रूपये मूल्य के नोट आखिर क्यों जारी किये हैं? नोटबंदी के बाद तो देश में डिजिटल क्रांति रुकने का नाम नहीं ले रही है। यूपीआई आज देश में लेनदेन का सबसे बड़ा माध्यम बन चुका है। सरकार को भी इसके चलते जीएसटी कलेक्शन में रिकॉर्ड वृद्धि का फायदा हो रहा है। यूपीआई पेमेंट में भारत आज दुनिया का सबसे अग्रणी देश माना जाता है। जीएसटी के बाद तो भारतीय अर्थव्यस्था अधिकाधिक औपचारिक दायरे में आ चुकी है। फिर इतनी बड़ी संख्या में आरबीआई को नोट छापने की जरूरत क्यों पड़ी, इसका कोई ठोस उत्तर आरबीआई या भारत सरकार के पास नहीं है।

बता दें कि वर्ष 2023 तक भारतीय अर्थव्यस्था में 500 रूपये के नोटों का प्रतिशत 77.1% के साथ अपने सर्वोच्च शिखर पर पहुंच चुका था। अकेले यूपीआई के जरिये देश में हर महीने 17.6 लाख करोड़ रूपये का लेनदेन 2023 में हो रहा था। 

लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की 15 मई 2024 को जारी ताजातरीन प्रेस रिलीज को देखने के बाद तो किसी के भी होश फाख्ता हो सकते हैं। इस प्रेस रिलीज से पता चलता है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने नोट छापने की अपनी रफ्तार को अभी भी जारी रखा है। इस रिलीज के मुताबिक 10 मई 2024 तक भारतीय बाजार में 35.90 लाख करोड़ रूपये मूल्य की मुद्रा चलन में है। ये तब है जब सरकार ने 2,000 रूपये के नोट चलन से बाहर कर दिए हैं। 

नोटों की छपाई से होती अंधाधुंध कमाई 

एक अनुमान के मुताबिक 100 रूपये के नोट को छापने में आरबीआई को लागत स्वरुप 2 रूपये खर्च करने पड़ते हैं। ढुलाई और अन्य खर्चों को जोड़ कर यदि इस खर्च को 10 रूपये भी मान लें तब भी नोट जारी करते ही बैंक को 90 रूपये का लाभ स्वतः हासिल हो जाता है। इस हिसाब से लगभग 20 लाख करोड़ रूपये मूल्य के नए नोट जारी करने से आरबीआई के खजाने में करीब 18 लाख करोड़ रूपये आ जाते हैं। इसे एक मोटा अनुमान ही कहा जा सकता है, क्योंकि आधिकारिक रूप से आरबीआई को ही इसकी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। 

लेकिन सबसे बड़ा सवाल फिर यह उठता है कि 70 वर्षों में भारतीय अर्थव्यस्था को जितने नोटों की जरूरत थी, उसके दोगुने से अधिक की जरूरत पिछले 8 वर्षों में रिजर्व बैंक और भारत सरकार को क्यों पड़ गई? आज रेस्टोरेंट से लेकर रेहड़ी-पटरी तक में यूपीआई के माध्यम से 10 रूपये तक का लेनदेन संभव है तो फिर इतने बड़े पैमाने पर नकदी चलन में क्या भारी लाभांश अर्जित करने के लिए की जा रही है? क्या देश के भीतर इतनी बड़ी संख्या में नकदी को जारी कर बैंक और मोदी सरकार मुद्रास्फीति को बढ़ावा नहीं दे रही है?

इस भारी भरकम लाभांश से उम्मीद की जा रही है कि भारत सरकार अपने बजट घाटे को 5.1% की सीमा तक नियंत्रित करने में कामयाब रहने वाली है। मोदी सरकार जिस 15 लाख करोड़ रूपये के नए कर्ज से पूंजीगत व्यय की योजना बना रही थी, उसमें करीब 1 लाख करोड़ रूपये की कमी संभव है। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया के सेंट्रल बोर्ड में आरबीआई गवर्नर सहित 4 डिप्टी गवर्नर होते हैं, लेकिन फिलहाल शक्तिकान्त दास के अलावा तीन डिप्टी गवर्नर नियुक्त किये गये हैं। इसके अलावा 10 गैर-आधिकारिक डायरेक्टर्स विभिन्न क्षेत्रों से नियुक्त किये जाते हैं। 2 डायरेक्टर पद पर सरकार के अधिकारी और चार डायरेक्टरों में आरबीआई के रीजनल बोर्ड के डायरेक्टर चुने जाते हैं। 12 दिसंबर 2018 से अपना कार्यकाल शुरू करने वाले मौजूदा आरबीआई गवर्नर शक्तिकान्त दास देश के 25 वें गवर्नर हैं। फिलहाल डिप्टी गवर्नर के तौर पर चार की जगह तीन लोग, बी पी कानूनगो, महेश कुमार और एम डी पात्रा आरबीआई का कामकाज संभाल रहे हैं।

वर्ष 2022-23 में भी आरबीआई ने Seigniorage (नोटों की छपाई और धारक मूल्य के अंतर) के जरिये करीब 1.20 लाख करोड़ रूपये की कमाई की थी।  इसके अलावा डॉलर की बिक्री से भी बैंक को करीब 1 लाख करोड़ रूपये की कमाई हुई थी।इस वजह से आरबीआई को 2022-23 में कुल 2.35 लाख करोड़ रूपये की कमाई हुई थी, जो इससे पूर्व वर्ष की कमाई से 47% अधिक थी। बता दें कि रिजर्व बैंक के पास खर्च करने के लिए सालाना करीब 15,000 करोड़ रूपये की ही जरूरत होती है, जिसमें से अधिकांश हिस्सा सैलरी और पेंशन पर होता है। 

जालान कमेटी की सिफारिशों के बाद भारतीय रिजर्व बैंक के लिए सीआरबी (Contingency risk buffer) के तौर पर कुल कमाई का 5.5-6.5% हिस्सा ही रखने की आवश्यकता है। वह चाहे तो बाकी सारा लाभांश भारत सरकार को सुपुर्द कर सकती है। पहले ऐसा नहीं था, लेकिन 2016 से पहले अंधाधुंध नोटों की छपाई भी तो नहीं होती थी। देखना है आरबीआई के इस बदले रुख से क्या आपातकालीन स्थिति में भारत आर्थिक संकट से पूर्व की तरह निकल पाने में सक्षम रहता है या नहीं? फिलहाल तो शेयर बाजार की तेजी से उत्साहित निवेशकों और उद्योग जगत को यही भरोसा मिला है कि मोदी सरकार के तौर पर तीसरी बार भी देश में स्थिर और मजबूत सरकार बनने जा रही है। यह सच है या भरम, इसे समझने का न किसी के पास समय है और न ही धैर्य, क्योंकि हर कोई तेजी और मंदी में अपना मुनाफा वसूलने की फिराक में है।

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र लेखक और टिप्पणीकार हैं।)

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