विशेष रिपोर्ट-4: ईंट भट्ठा श्रमिकों का इलाज के अभाव में बीमारियों से हो जाता है स्थाई रिश्ता

(साइट पर काम करते समय हुई दुर्घटनाओं में ईंट भट्ठों पर बंधुआ मजदूर मर जाते हैं, या जीवन भर के लिए विकलांग हो जाते हैं। वे सांस संबंधी बीमारियों, त्वचा संक्रमण और क्रोनिक थकान का शिकार भी हो जाते हैं। इन सभी बीमारियों/विकारों का इलाज अयोग्य और बिना लाइसेंस वाले डॉक्टर द्वारा दी जाने वाली कई प्रकार की एंटीबायोटिक और अन्य दवाओं से किया जाता है। इसलिए 50 वर्ष की उम्र होते-होते अधिकांश लोग काम नहीं कर सकने की स्थिति पर पहुंच जाते हैं और कार्यस्थलों से भागने का प्रयास करने लगते हैं। फिर इन भगोड़े श्रमिकों का पता लगाया जाता है, उन्हें जबरन वापस लाया जाता है, धमकाया जाता है और उन पर हमला भी किया जाता है। आधुनिक दासता पर आधारित हमारी चार भाग वाली तहकीकात करती इस सीरीज का आख़िरी भाग पढ़िए..)

हैदराबाद। गौरव भोई ने जब सुबह हुए घटनाक्रम के बारे में सुना तो उसे अपने कानों पर यक़ीन ही नहीं हुआ।

25 फरवरी 2023 को सुबह लगभग 5:30 बजे थे। इस समय मुंशी सीताराम बाघ आमतौर पर हैदराबाद के बाहरी इलाके में स्थित वीबीआई ब्रिक्स में काम करने वाले श्रमिकों को जगाता है, जिससे वे जल्दी अपने सुबह के कामों को निपटा कर काम शुरू कर सकें।

हालांकि, अन्य दिनों के विपरीत उस दिन गौरव भोई की आंख एक शोर से खुली। उसने उठकर देखा कि उसके तीन भाई-बहन और पथरी (ईंट ढालने वाली इकाई) सदस्यों में से कोई भी कमरे में नहीं है। उलझन में वह झोपड़ी से बाहर निकला, तभी उसने बाघ को फोन पर किसी को यह कहते हुए सुना, “नवीन के माता-पिता चार और अन्य लोगों के साथ भाग गए हैं, वे कहीं नहीं मिल रहे।”

पश्चिमी ओडिशा के बोलांगीर जिले के ऐनलाभाटा गांव से आने वाला 22 वर्षीय गौरव भोई हैरान था। नवीन भट्ठे पर नियमित मजदूर नहीं था, लेकिन वह लगभग एक महीने से अपने माता-पिता और चचेरे भाई की ईंटें बनाने में मदद कर रहा था। एक दिन पहले ही उसने सभी को अलविदा कहते हुए कहा था कि वह चेन्नई जा रहा है, जहां उसे सुरक्षा गार्ड का काम मिल गया है।

अब छह लोग- नवीन की मां, पिता, चचेरा भाई, उसका 10 वर्षीय बेटा और दो अन्य मजदूर- लापता थे। और यह किसी को नहीं पता था कि वे कैसे और कहां गए?

इस घटनाक्रम से वीबीआई ब्रिक्स का मालिक डी वेंकटेश्वरलु बहुत गुस्से में था।

उसने मई 2023 में एक इंटरव्यू के दौरान आर्टिकल 14 को बताया, “मुझे तुरंत पता चल गया कि यह पूर्व नियोजित था। उस लड़के ने जाने से पहले मुझसे 10,000 रुपये यह कहकर मांगे थे कि वह जल्द ही शादी करने जा रहा है।” उसने बताया कि नवीन ने रात के अंधेरे में लगभग 1:30 बजे भट्ठे पर श्रमिकों को लेने आने के लिए एक कार का इंतज़ाम किया था।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ईंट भट्ठों से श्रमिकों के भागने के ऐसे उदाहरण दुर्लभ हैं, लेकिन अनसुने नहीं, खासकर हाल के वर्षों में। वे कार्यस्थलों पर अत्यधिक शोषणकारी परिस्थितियों से बचना चाहने के कारण ऐसा करते हैं, जैसा कि आर्टिकल 14 की आधुनिक दासता और श्रम तस्करी की नौ महीने की लंबी जांच के दौरान पाया गया।

ईंट भट्ठों में काम के घंटे प्रतिदिन 12 से 17 घंटे के बीच होते हैं, जबकि 1980 के दशक के अंत तक काम के लिए 8-10 घंटे निर्धारित थे। वर्तमान समय में बढ़ा हुआ कार्य-समय मुख्य रूप से उत्पादन प्रक्रिया के कुछ हिस्सों के मशीनीकरण के कारण है, जैसे कि ईंटों को ढालने के लिए मिट्टी तैयार करना और कच्ची ईंटों को पकाने के लिए भट्ठी में ले जाना। इससे ईंट भट्ठों में जन-श्रम की आवश्यकता भी कम हो गई है।

इतने लंबे समय तक काम करने के लिए कर्मचारी विभिन्न प्रकार के सप्लीमेंट्स पर निर्भर रहते हैं, जैसे पैरासिटामोल टेबलेट्स, पेन-किलर, अन्य लत लगाने वाली दवाएं और अब बढ़ती तादाद में इंजेक्शन। ये सभी दवाई ऑन साइट उन झोलछार डॉक्टरों द्वारा दी जाती हैं, जो भट्ठा मालिकों से वेतन लेते हैं। बुखार, दस्त या अन्य बीमारी होने पर भी यही अयोग्य डॉक्टर श्रमिकों का इलाज करते हैं।

तेलंगाना के पैदापल्ली में एक ईंट भट्ठे में एंटीबायोटिक्स और अन्य दवाएं रखी हुई हैं।

साइट पर बार-बार दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें कुछ ऐसी दुर्घटनाएं भी शामिल हैं, जिनमें श्रमिक मारे जाते हैं, या विकलांग हो जाते हैं, या जीवन भर के लिए सदमे में चले जाते हैं। श्रमिक हाई ब्लड प्रेशर और शारीरिक थकावट से पीड़ित होते हैं और 50 वर्ष की आयु तक पहुंचने के बाद जब उन्हें काम बहुत कठिन लगने लगता है तो भट्ठों में काम करना बंद कर देते हैं।

कई श्रमिक कार्यस्थलों से भागना चाहते हैं। खासकर जब तय लक्ष्य बहुत ही ज्यादा होता है, या घर में मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति होती है। लेकिन उनमें से कुछ ही इस जोखिम को उठाने की हिम्मत रखते हैं और उनमें से भी केवल मुट्ठी भर लोग- ज्यादातर नवीन जैसे युवा, जो अपने गांवों और ईंट भट्ठों से परे दुनिया के संपर्क में रहते हैं- अपनी योजना को सफल कर पाते हैं।

हालांकि, इस तरह की अधिकांश योजनाएं विफल हो जाती हैं, क्योंकि भट्ठा मालिक श्रमिकों को ट्रैक करने और उन्हें वापस लाने के लिए निगरानी की कई प्रक्रियाओं का उपयोग करते है। नवीन की यह योजना भी कोई अपवाद नहीं थी।

भारत में आधुनिक दासता पर आधारित चार-भाग की इस सीरीज के अंतिम भाग में यह रिपोर्ट श्रमिकों के स्वास्थ्य और उनकी स्वतंत्रता पर तस्करी के दीर्घकालिक प्रभाव की पड़ताल करती है। भाग 1 में ग्रामीण पश्चिमी ओडिशा में संकट की भयावहता का पता लगाया गया, जिसने 47 साल पुराने कानून द्वारा इस प्रथा को समाप्त करने के बावजूद गरीबों की बढ़ती संख्या को बंधुआ मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया; भाग 2 में तस्करों और भट्ठा मालिकों के संगठित नेटवर्क की जांच की गई; जबकि भाग 3 में भारत में आधुनिक गुलामी को बनाए रखने में कानूनों और अधिकारों के विभिन्न उल्लंघनों की जांच की गई।

मशीनीकरण और रियल एस्टेट उछाल ने बढ़ाया शोषण

उद्योग की भाषा में वीबीआई ब्रिक्स एक मध्यम आकार का भट्ठा है, जिसमें 50-100 श्रमिक काम करते हैं; छोटे भट्ठों में 50 से कम श्रमिक होते हैं, जबकि 100 से अधिक श्रमिकों वाले भट्ठों को बड़ा माना जाता है।

2022-23 में इस भट्ठे पर श्रमिकों की संख्या लगभग 80 थी। उनमें से 70% से अधिक ओडिशा के प्रवासी थे, जो साइट पर रहते थे और पीस-रेट के आधार पर काम पर लगे थे। उनमें 12 पथरी में समूहित, 42 दहलई वाले और 20 ढुलाई वाले शामिल थे। तीन ड्राइवर, तीन जलाई वाले (भट्ठियां जलाने वाले) और कुछ लोडर सहित शेष कर्मचारी सभी स्थानीय थे, जिन्हें मासिक वेतन दिया जाता था।

कुछ मालिक ढलाई और ढुलाई के लिए छत्तीसगढ़ से श्रमिक ले लेते थे, लेकिन वेंकटेश्वरलु अधिकांश अन्य मालिकों की तरह उड़िया श्रमिकों को उनके मेहनती होने के लिए पसंद करता था।

“वे विनम्र हैं और अपने काम में लगे रहते हैं, जबकि छत्तीसगढ़ी आपस में बात करते हैं और बहुत समय बर्बाद करते हैं। वे भागते भी बहुत हैं,” उसने बताया।

ढलाई और ढुलाई करने वाले श्रमिकों के लिए दैनिक काम बहुत कठिन होता है। यहां तक कि उन्हें सोने के लिए भी बहुत कम समय मिलता है। सर्दी के महीनों में सुबह 6:00 बजे से पहले और गर्मियों में सुबह 5:00 बजे या उससे पहले सीताराम बाघ उन्हें जगा देता है। उन्हें काम पर जाने से पहले तरोताजा होने, नींद की थकान दूर करने और नाश्ता करने के लिए एक घंटे का समय दिया जाता है। नाश्ते में ये लोग ज्यादातर बीती रात पकाए गए चावल को पानी में भिगोकर उसमें नमक, मिर्च और प्याज मिलाकर खाते हैं।

ढुलाई श्रमिकों को अधिकतर समय दिन भर मेहनत करवा के शाम को छोड़ दिया जाता है, जबकि ढलाई वाले दो पालियों में काम करते हैं। सुबह की पाली लगभग छह घंटे तक चलती है। उसके बाद दोपहर के खाना की छुट्टी होती है। यह छुट्टी सर्दियों में दो घंटे और गर्मियों में चार-पांच घंटे तक की होती है, जिससे दोपहर की तेज धूप और उससे होने वाली गर्मी से बचा जा सके।

पुरुष आमतौर पर दोपहर में आराम करते हैं, लेकिन महिलाएं खाना पकाने और अन्य घरेलू कामों में व्यस्त रहती हैं। दूसरी पाली पांच-छह घंटे या उससे अधिक समय तक चलती है। काम को देर रात तक जारी रखने के लिए साइट पर फ्लडलाइट की व्यवस्था की गई है।

हैदराबाद के बाहरी इलाके में स्थित ईंट भट्ठे पर महिला श्रमिक अपने बच्चे की मालिश कर रही है।

“हम सभी जवान हैं, इसलिए हमें कोई समस्या नहीं होती। लेकिन बूढ़े लोग दिन काटने के लिए संघर्ष करते हैं,” गौरव भोई ने कहा।

जिन लोगों ने 1980 और 1990 के दशक में ईंट भट्ठों में काम करना शुरू किया था, उन्होंने बताया कि तब कार्य-दिवस बहुत छोटा होता था, लगभग 8-10 घंटे, और काम भी कम कठिन होता था। आमतौर पर श्रमिक प्रतिदिन मिट्टी तैयार करने के लिए विभिन्न कच्चे माल को हाथ से मिलाने में कुछ घंटे बिताते थे और बाकी समय ईंटों को ढालते या ढोते थे। उन्होंने बताया कि उन्हें शाम को आराम करने या अन्य श्रमिकों से बात करने का कुछ समय भी मिल जाता था।

हालांकि, दो कारकों के कारण काम के घंटों और श्रमिकों के शोषण में वृद्धि हुई- नब्बे के दशक के आखिर में उत्पादन प्रक्रिया के कुछ हिस्सों का मशीनीकरण और 2013–14 में अलग राज्य के रूप में तेलंगाना की स्थापना के बाद स्थानीय रियल एस्टेट में उछाल।

कच्चे माल के मिश्रण के लिए ट्रैक्टरों का उपयोग एक बड़ा और व्यापक परिवर्तन था। इसने श्रमिकों को ईंट पाथने के लिए मिट्टी तैयार करने के काम से मुक्त कर दिया और पूरे समय के लिए ईंटों को ढालने या ढोने के काम में उनकी तैनाती को संभव बना दिया। कुछ जगहों पर, विशेष रूप से बड़े भट्ठों में कच्ची ईंटों को भट्ठी तक ले जाने के लिए क्रेन का उपयोग किया जाने लगा, जिससे ढुलाई श्रमिकों की आवश्यकता 30% तक कम हो गई। अभी भी भट्ठियों में ईंटें जमा करने के लिए कुछ ढुलाई श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

इन परिवर्तनों ने भट्ठा मालिकों को उदारीकरण के बाद के वर्षों में और फिर 2014 में तेलंगाना के निर्माण के बाद रियल एस्टेट बूम से पैसा कमाने में सक्षम बनाया।

इस अवधि के दौरान आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कई नए जिले बनाए गए और अमरावती को आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया। दोनों राज्यों ने नए उद्योग और व्यवसाय स्थापित करने के लिए नियमों और आवश्यकताओं को भी आसान बना दिया। इसने सरकारी कार्यालयों, बाजारों और मॉल, सार्वजनिक सुविधाओं और निजी आवासों के लिए निर्माण गतिविधियों की बाढ़ ला दी।

फ्लाई ऐश से बनी हल्की ईंटों का उपयोग करने वाली प्रीमियम परियोजनाओं को छोड़कर अन्य सभी परियोजनाओं में मिट्टी की ईंटों का इस्तेमाल किया गया।

भारी काम, हल्का आहार

एक बार जब वीबीआई ब्रिक्स में दिन शुरू होता है तो सिर्फ़ ज़मीन पर सांचों की खनक और भट्ठी के फर्श पर कच्ची ईंटों के ढेर की आवाज़ सुनी जा सकती है।

आमतौर पर, मुंशी बाघ सुखाने वाले क्षेत्र से भट्ठी तक ईंटें ले जाने वाले ढुलाई श्रमिकों की पंक्ति के पास खड़ा रहता है-महिलाएं अपने सिर पर 10 ईंटें ले जाती हैं, जबकि पुरुष एक समय में अपने कंधों पर बांस के खंभों पर बंधी 12 ईंटें ले जाते हैं। वह भट्ठी में रखी प्रत्येक 10/12 ईंटों के लिए श्रमिकों को टोकन देता है। आमतौर से परिवार के मुखिया से सप्ताह के अंत में इकठ्ठा हुए टोकनों को उसके एक नोटपैड और एक रजिस्टर में चढ़कर वापस ले लिया जाता है।

ज़्यादातर साइट पर रहने वाले बाघ और वेंकटेश्वरलु भी पथरियों पर कड़ी नजर रखते हैं। अगर वे आपस में बातचीत करते हैं, या कुछ मिनटों से अधिक गायब रहते हैं तो उन्हें डांटते भी हैं।

मुंशी ढलाई या ढुलाई गई ईंटों की साप्ताहिक गिनती करते हैं, और इन्हें श्रमिकों की नोटबुक में लिखते हैं।

अन्य सभी पथरियों की तरह भोई लोग भी आपसी-समन्वय से काम करते हैं। भाइयों में से एक मिलावट वाले गड्ढे से ईंटें बनाने के लिए मिट्टी ले कर आता है और ईंट के आकार के गोले तैयार करता है; दूसरा इन्हें सांचों में भरता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई अंतराल न रहे, जबकि तीसरा भाई इन सांचों को सुखाने वाले क्षेत्र में ले जाता है, वहां इन्हें खाली करता है और उन्हें वापस ले आता है। भाग्यवती घरेलू काम-काज पूरा करने के बाद तीसरे भाई का हाथ बंटाती है। वह समय-समय पर गीली ईंटों को पलटने और सूखने के बाद उन्हें साफ ढेर में जमा करने में भी उनकी मदद करती है। चित्रसेन भोई के पास एक छोटा-सा नोटपैड था, जिसमें बाघ उनका साप्ताहिक उत्पादन दर्ज करता था, जो हमेशा प्रति पथरी अपेक्षित 20,000 ईंटों के साप्ताहिक उत्पादन से और भट्ठे पर अन्य पथरियों के उत्पादन से ज़्यादा होता था।

उनकी विशिष्ट कार्यशैली से यह बता पाना आसान था कि सभी पथरी उड़िया थे। सांचों में मिट्टी भरने वाले मजदूर चौकोर, कमर तक गहरे गड्ढों के अंदर खड़े होते और ज़मीन को एक मेज की तरह इस्तेमाल करते, जबकि छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों से आए सांचे बनाने वाले लोग ज़मीन पर बैठते और ईंटों को ढालने के लिए झुककर काम करते।

वारंगल के ईंट भट्ठे पर झुककर ईंट ढालता श्रमिक।

गौरव भोई ने गड्ढे में खड़े होकर और मिट्टी को एक सांचे में भरते हुए आर्टिकल 14 को अपने ख़ास अंदाज़ में बताया, “मुझे नहीं पता क्यों, लेकिन यह हमेशा से ऐसा ही रहा है। हालांकि यह अच्छा है, क्योंकि ईंट पाथते समय आपको झुकने या अपनी पीठ को नुकसान पहुंचाने की ज़रूरत नहीं होती।” उसने इसे दिखाने के लिए सांचे को ज़मीन पर कई बार पटका।

फिर भी घंटों तक ईंटों को ढालना या लोड करना थका देने वाला काम है और लगभग सभी श्रमिकों को पीठ, कमर और जोड़ों में दर्द और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर, उनका खान-पान इस मेहनत की जरूरतों से कोसों दूर है।

सप्ताह में एक बार सीताराम या वेंकटेश्वरलु द्वारा 500 रुपये प्रति पथरी के हिसाब से साप्ताहिक भोजन भत्ता दिए जाने के बाद भाई किराने का सामान और सब्जियां खरीदने के लिए बाज़ार जाते हैं। भाग्यवती अन्य सभी महिलाओं की तरह भट्ठे पर ही रुकती है और पूरे सप्ताह खाना पकाने के लिए उपयोग होने वाली जलाऊ लकड़ी काटती रहती है। नाश्ते, दोपहर के खाने के साथ-साथ रात के खाने के लिए भी भोई चावल, बहुत सारे आलू और कुछ अन्य सब्जियों वाली करी, और कभी-कभार दाल खाते हैं। यह सब भाग्यवती द्वारा पकाया जाता है। वे शायद ही कभी अंडे या मांस खाते होंगे। दूध या अन्य डेयरी उत्पाद तो कभी नहीं खाते।

इंजेक्शन और इंट्रवेनिस ड्रिप्स से युक्त झोलाछाप डॉक्टर

वीबीआई ब्रिक्स के सभी ढलाई और ढुलाई श्रमिक दो डॉक्टरों पर निर्भर हैं, जिनके क्लीनिक 6 किमी दूर पड़ोसी गांव आदिबटला में स्थित हैं। वे किसी भी स्वास्थ्य समस्या में, भट्ठे पर दोनों डॉक्टरों के लिए रखी नोटबुक लेकर, किसी भी क्लिनिक में जा सकते हैं।

अब्दुल रहमान और शेख मुजीब नाम के यह दो डॉक्टर उन्हें फ्री में गोलियां, इंजेक्शन और इंटरविन्स ड्रिप्स देते हैं। भट्ठे से मिली नोटबुक में वे श्रमिक का नाम, तारीख और इलाज के लिए दी जाने वाली फीस दर्ज करते हैं, जिसे समय-समय पर भट्ठा मालिक द्वारा भुगतान किया जाता है। दुर्लभ मामलों में वे श्रमिकों को प्राइवेट हॉस्पिटल में भी रेफर करते हैं।

हालांकि, भोई भाई-बहन जब भी बीमार पड़ते हैं तो काम से छुट्टी लेकर 25 किमी दूर नामपल्ली के सरकारी अस्पताल जाते हैं।

पहली बार उनमें से एक व्यक्ति उनके आने के कुछ ही दिन बाद ही दिसंबर 2022 के मध्य में बीमार हुआ। चित्रसेन भोई को तेज बुखार, सर्दी और बदन दर्द होने लगा। वेंकटेश्वरलु का कहना था कि यह जलवायु और पानी के बदलने का असर है। इस अवधि के दौरान हर दिन वीबीआई ब्रिक्स के चार से पांच श्रमिक बीमार पड़ते थे।

भोइयों को दो बार और अस्पताल जाना पड़ा।

इनमें से हर मौके पर भोइयों को मालिक की अनुमति लेनी पड़ी और उनके साथ भट्ठे का एक ड्राइवर भी गया।

चित्रसेन भोई ने बताया, “यहां के डॉक्टर अच्छे नहीं हैं। इसलिए हम उनके पास नहीं जाते। हम उनसे कभी कोई गोली या इंजेक्शन भी नहीं लेते।”

उसकी आशंकाएं सही हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ईंट भट्ठा मजदूरों का इलाज करने वाले अधिकांश डॉक्टरों की तरह मुजीब और रहमान के पास भी डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए मेडिकल डिग्री या रजिस्ट्रेशन नहीं है। वे रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर (आरएमपी, जिन्हें ग्रामीण मेडिकल प्रैक्टिशनर भी कहा जाता है) और निजी मेडिकल प्रैक्टिशनर (पीएमपी) हैं, जिन्हें रजिस्टर्ड डॉक्टरों के सहायक या कंपाउंडर बनने के लिए ट्रेनिंग दी गई है।

हैदराबाद से लगभग 150 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में वारंगल के एक पीएमपी ने बताया, “हममें से अधिकांश साइंस ग्रेजुएट हैं, जिन्होंने ऑपरेशन थिएटर या लैब असिस्टेंट के रूप में काम किया है। जिन्होंने 1990 के दशक से पहले प्रैक्टिस शुरू की थी, उन्हें आरएमपी के रूप में रजिस्टर किया गया और मेरे जैसे जो बाद में शामिल हुए उन्हें पीएमपी कहा जाता है।”

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सहित देश के कई हिस्सों में आरएमपी लंबे समय से डॉक्टरों के रूप में प्रैक्टिस करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन मेडिकल कम्युनिटी में और कानून द्वारा उन्हें झोलाछाप डॉक्टरों की तरह देखा जाता है।

दूसरी ओर भट्ठा श्रमिक कई जटिल स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित रहते हैं। श्रमिकों और डॉक्टरों ने आर्टिकल 14 को बताया कि इनमें दस्त, त्वचा एलर्जी, तपेदिक, श्वसन नली में संक्रमण, गले में संक्रमण, गुर्दे की समस्याएं, मासिक धर्म में संक्रमण और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिकल समस्याएं शामिल होती हैं।

ग्रामीण चिकित्सक मोटरसाइकिल से कुछ दिनों के अंतराल पर भट्ठों का दौरा करते हैं।

रोगी की शिकायत जो भी हो, झोलाछाप डॉक्टर श्रमिकों का इलाज करते और घातक दुष्प्रभावों वाली दवाएं भी देते हैं जिनसे श्रमिकों को बिना किसी रुकावट के लंबे समय तक काम करने में मदद मिलती है। उनमें से कुछ ने नाम न छापने की शर्त पर आर्टिकल 14 से बात की और बताया कि वे कैसे काम करते हैं और कौन-सी दवाएं देते हैं।

आरएमपी और पीएमपी भट्ठा श्रमिकों को एक मानक दर चार्ज करते हैं, जो एक इंजेक्शन और कुछ गोलियों के लिए 100 से 150 रुपये से शुरू होता है। क्षेत्र में प्रत्येक आरएमपी या पीएमपी सात से दस ईंट भट्ठों को सेवाएं उपलब्ध कराता है। वह हर दिन एक बार या जब आपात स्थिति होती है तो मोटरसाइकिल पर भट्ठों का दौरा करता है। वह स्टेथोस्कोप, ब्लड प्रेशर मॉनिटर और गोलियों और इंजेक्शन से भरा एक बड़ा बैग साथ लेकर चलता है। एक आरएमपी ने आर्टिकल 14 को बताया कि उसके बैग में 1 लाख रुपये की मेडिकल दवाएं हैं।

शायद ही कभी, जैसे वीबीआई ब्रिक्स के मामले में, श्रमिक आरएमपी और पीएमपी के पास क्लिनिक जाते हैं।

वारंगल में ऐसे ही एक पीएमपी प्रसाद ने एक भट्ठे पर मरीजों की जांच करते हुए आर्टिकल 14 को बताया, “मजदूर बदन दर्द की बहुत शिकायत करते हैं और हर समय पेन-किलर की मांग करते हैं।” उसने अपने और अन्य आरएमपी द्वारा श्रमिकों को नियमित रूप से दी जाने वाली विभिन्न दवाओं की संरचना को सूचीबद्ध करके बताया।

उनमें एटोरिकॉक्सीब + पेरासिटामोल शामिल है, जो दिमाग़ में कुछ रासायनिक तत्वों के निकलने को अवरुद्ध करती है, जो दर्द और बुखार का कारण बनते हैं; एसेक्लोफेनाक + पेरासिटामोल, जो दर्द, बुखार और सूजन के लिए जिम्मेदार रासायनिक तत्वों की कार्रवाई को अवरुद्ध करता है; और डिक्लोफेनाक + पेरासिटामोल, जो माइग्रेन, मांसपेशियों में दर्द, संधिशोथ, स्पॉन्डिलाइटिस और दर्दनाक मासिक धर्म के कारण होने वाले दर्द से राहत देता है।

इन दवाओं के सूचीबद्ध दुष्प्रभावों में मतली, दस्त, पेट फूलना, चक्कर आना, भूख में कमी, लीवर एंजाइम में वृद्धि और अपच शामिल हैं।

प्रसाद ने आगे बताया, “महिलाओं के बीच उनके मासिक धर्म में देरी करने के लिए गोलियों की बहुत मांग है, ताकि वे बिना किसी समस्या के काम कर सकें।” उसने बताया कि कई युवतियां गर्भनिरोधक गोलियां या गर्भपात के लिए गोलियां भी मांगती हैं, लेकिन हमेशा अपने परिवार की जानकारी के बिना।

हाल के वर्षों में उपचार के पसंदीदा तरीके के रूप में इंजेक्शन ने गोलियों की जगह ले ली है, क्योंकि यह तुरंत असर करता है। तेलंगाना के पेद्दापल्ली और करीमनगर जिलों में काम करने वाले कुछ श्रमिकों ने आर्टिकल 14 को बताया कि उन्हें चलते-फिरते इंजेक्शन दिए गए, जब वे ईंटें लोड कर रहे थे, या उन्हें ढाल रहे थे।

हालांकि, वेंकटेश्वरलु ने दावा किया कि वीबीआई ब्रिक्स में ऐसे अमानवीय काम नहीं होते। उसने बताया, “इंजेक्शन और ड्रिप के लिए मैं हमेशा श्रमिकों को डॉक्टर के पास भेजता हूं और उनके वापस आने के बाद उन्हें कुछ घंटों तक आराम करने देता हूं।”

श्रमिकों की क्षय और मृत्यु सभी के लिए बुरी है

ईंट भट्ठों में कठिन कार्य-प्रणाली ने श्रमिकों पर भारी असर डाला है। दुर्घटनाएं अक्सर होती हैं, उनमें से कुछ घातक होती हैं, कुछ के नतीजे में आजीवन की हानि होती है।

2015–16 में शोधकर्ता जी विजय और तथागत सेनगुप्ता ने तेलंगाना के रंगारेड्डी जिले में लगे लगभग 200 ओडिया श्रमिकों का सर्वेक्षण किया, जहां वीबीआई ब्रिक्स भी स्थित है। उन्होंने पाया कि औसतन, प्रत्येक श्रमिक को एक सीज़न में 14 छोटी दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, हर सीज़न में कुछ श्रमिकों की बिजली के झटके के कारण मृत्यु हो जाती है, क्योंकि अधिकांश भट्ठों पर बिजली कनेक्शन अवैध हैं।

सेनगुप्ता और भट्ठा श्रमिकों, मालिकों और मुंशियों सहित कई अन्य लोगों ने आर्टिकल 14 को बताया कि अप्रैल और मई में मौतें आम होती हैं, जब अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है।

कई श्रमिक अचानक बेहोश हो जाते हैं, संभवतः इसलिए क्योंकि वे कुपोषित होते हैं, लेकिन गर्मी से होने वाली अत्यधिक थकावट के कारण भी। वेंकटेश्वरलु ने टिप्पणी की, “मजदूर मछली की तरह हैं। वे अचानक होश खो बैठते हैं।”

ऐसे ज़्यादातर मौकों पर आरएमपी या पीएमपी द्वारा किए गए इलाज में ग्लूकोज ड्रिप और इंजेक्शन शामिल होते हैं। केवल कुछ मजदूरों की हालत गंभीर होने पर उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल भेजा जाता है। फिर भी कुछ की जान चली जाती है। मालिक मृतकों के परिवारों को कुछ हज़ार रुपये का मुआवजा देते हैं, लेकिन मौतों के बारे में पुलिस या सरकारी अधिकारियों को जानकारी नहीं दी जाती।

दूसरी ओर, ईंट भट्ठों पर कुछ वर्षों तक काम करने वाले सभी लोगों ने आर्टिकल 14 को बताया कि कमजोरी ने उन्हें कभी नहीं छोड़ा, यहां तक ​​कि जब वे ओडिशा में अपने गांवों में लौट आए तब भी नहीं। उन्होंने अचानक अस्पष्टीकृत बीमारियों और मृत्यु की भी शिकायत की, विशेषकर वृद्ध श्रमिकों में।

2017 में प्रकाशित एक किताब में विजय और सेनगुप्ता ने बोलांगीर में कामकाजी उम्र के वयस्कों के उच्च मृत्यु दर और ईंट भट्ठों में सीज़नल काम के बीच सीधा संबंध बताया। उन्होंने कहा कि ओडिशा के सभी जिलों में बोलांगीर के लिए सबसे अधिक अपरिष्कृत मृत्यु दर के आंकड़े, “उस रुग्णता और शारीरिक कमी का परिणाम हो सकते हैं, जो इन श्रमिकों को इस जानलेवा रोजगार के दौरान भुगतने पड़ते हैं।”

भट्ठा मालिकों का दावा, यह उद्योग आख़िरी सांसे गिन रहा है

जब आर्टिकल 14 ने कार्यस्थल का दौरा किया तो वेंकटेश्वरलू शायद ही कभी मुस्कुराया, लेकिन जब उससे उसके सबसे ज़्यादा मुनाफे के बारे में पूछा गया तो उसके चेहरे पर बड़ी मुस्कुराहट छा गई।

वीबीआई ब्रिक्स के मालिक ने कहा, “तेलंगाना के गठन के बाद रियल एस्टेट बाजार में तेजी आई और हम सभी (मालिकों) ने पैसा कमाया। लेकिन 2018 में दो सप्ताह की ट्रक हड़ताल के कारण हमने बहुत ज़्यादा मुनाफा कमाया।”

जुलाई 2018 में राष्ट्रव्यापी ट्रक चालकों के आंदोलन के तहत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 6 लाख से अधिक ट्रक सड़कों से गायब हो गए। भट्ठों से ग्राहकों तक ईंटों का परिवहन प्रभावित होने और आगामी बैकलॉग के कारण ईटों की कीमतें लगभग 50% तक बढ़ गईं।

हैदराबाद में मालिकों ने सामान्य 6 रुपये की तुलना में 9 रुपये प्रति यूनिट पर ईंटें बेचीं; जबकि तेलंगाना के करीमनगर और पेद्दापल्ली जिलों में मालिकों ने ईंटों को 12–14 रुपये प्रति यूनिट पर बेचने की सूचना दी, जो सामान्य 8-9 रुपये के रेट से कहीं अधिक है।

हालांकि, COVID-19 महामारी ने मुनाफे की इस शृंखला को तोड़ दिया। ईंट भट्ठों ने लॉकडाउन के दौरान भी परिचालन जारी रखा, क्योंकि उन्हें गृह मंत्रालय द्वारा विभिन्न प्रतिबंधों से छूट दी गई थी। लेकिन निर्माण उद्योग ठप हो गया था और ईंटों की मांग बहुत कम हो गई थी। बड़े पैमाने पर बिना बिके स्टॉक रखने वाले मालिकों को दूसरे उत्पादन चक्र के लिए नए लोन लेने पड़े।

वेंकटेश्वरलु ने दावा किया, “यह व्यवसाय अब फायदेमंद नहीं रहा। लेकिन मैं अपना काम बंद नहीं कर सकता, क्योंकि मैंने 70 लाख रुपये का कर्ज़ लिया है, जिसे मैं अपनी सारी संपत्ति बेच कर भी नहीं चुका सकता। भट्ठे को चालू रखना ही मेरे पास एकमात्र विकल्प है।”

छोटे भट्ठों (50 से कम श्रमिक) के मालिकों ने आर्टिकल 14 को बताया कि लोन उनके सीज़नल निवेश का लगभग 100% है, जबकि वेंकटेश्वरलु जैसे मध्यम साइज़ के भट्ठा (50–100 श्रमिक) मालिकों के लिए 50% निवेश लोन से आता है और बाकी पिछले सीज़न में उत्पादित ईंटों की बिक्री से।

केवल बड़े भट्ठों (100 से अधिक श्रमिकों) के मालिक लोन पर कम निर्भर रहते हैं, क्योंकि वे निर्माण उद्योग से भी जुड़े होते हैं, जिससे उनका जोखिम कम हो जाता है।

अपने परिचालन के साइज़ के बावजूद, मालिकों ने बताया कि यह व्यवसाय अत्यधिक जोखिम भरा है और लोन चुकाने का एकमात्र तरीका व्यापार में बने रहना, दूसरे सीज़न के लिए नए लोन लेना और कुछ अच्छा होने की उम्मीद करना है।

पेद्दापल्ली जिले में बीबीआई ब्रिक्स के मालिक के सुरेश ने बताया, “मैंने इस साल 2.5 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है, लेकिन मुझे नहीं पता कि मुझे कोई लाभ होगा या नहीं।” उन्होंने कहा कि बहुत कुछ बाजार और मौसम पर निर्भर करता है। बीबीआई ब्रिक्स ने 2022-23 सीजन में 150 श्रमिकों को काम पर रख के 60 लाख ईंटों का उत्पादन किया था।  

पैदापल्ली में बीबीआई ब्रिक्स के मालिक के सुरेश।

उसने आगे बताया, “मुझे यह भी निश्चित रूप से नहीं पता कि मैं इस साल के उत्पादन से कितना कमाऊंगा। यह सिर्फ तभी पता चलेगा जब सभी ईंटें बिक जाएंगी लेकिन उसमें कम से कम दो-तीन साल लगेंगे।”

भट्ठा मालिकों ने यह भी बताया कि यह उद्योग जल्द ही बंद हो जाएगा, क्योंकि आधुनिक निर्माण तकनीकों के आने से मिट्टी की ईंटों की मांग गिर रही है।

तेलंगाना ईंट भट्ठा नियोक्ता कल्याण संघ के अध्यक्ष राजेंद्र रेड्डी ने बताया कि प्रीमियम ग्राहक पहले से ही हल्के वजन वाली फ्लाई ऐश ईंटों की ओर मुड़ चुके हैं। “कई बिल्डर और सरकारी परियोजनाएं भी जापानी तकनीक का उपयोग करके कंक्रीट से दीवारें बना रही हैं। परिणामस्वरूप, हमारी ईंटों की मांग में तेजी से कमी आई है और कुछ वर्षों में ईंट भट्ठे खत्म हो सकते हैं।”

भट्ठे पर तेलंगाना ईंट भट्ठा नियोक्ता कल्याण संघ के अध्यक्ष राजेंद्र रेड्डी।

नए भट्ठा संचालकों का कहना है कि मार्जिन कम हुए हैं लेकिन सुधार हो रहा है

हालांकि अधिकांश भट्ठा मालिकों ने उद्योग के आसन्न बंद होने की भविष्यवाणी की, मगर आर्टिकल 14 ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 10 से अधिक अन्य लोगों से मुलाकात की, जिन्होंने महामारी के बाद की अवधि में इस उद्योग में प्रवेश किया और बताया कि मुनाफा इतना तो है कि उन्हें व्यवसाय का विस्तार करने के लिए और अधिक लोन लेने की ज़रूरत महसूस हो रही है।

इनमें प्रत्येक व्यवसायी ने कुल मिलाकर 8 से 15 लाख रुपये तक के लोन लिए थे और बड़े शहरों के बाहरी इलाके में ऊंची कीमतों पर ज़मीन पट्टे पर ली थी।

“मुझसे पहले मेरे परिवार में किसी का भी ईंट भट्ठों से कोई लेना-देना नहीं था,” वारंगल के बाहरी इलाके में नकलपल्ली गांव में भट्ठा चलाने वाले लगभग 25 साल के मालिक ने कहा।

इस युवा मालिक के माता-पिता किसान हैं। उसने पहले अपना कॉलेज पूरा किया और फिर ऑफिस असिस्टेंट के रूप में काम किया। लेकिन महामारी के कारण वह बेरोजगार हो गया। 2021 में दोस्तों और परिचितों से प्रोत्साहन पाकर उसने अपना भट्ठा शुरू करने के लिए 10 लाख रुपये का लोन लिया और 30 श्रमिकों को रोजगार दिया।

अभी भी व्यवसाय को समझते और आपूर्ति श्रृंखला को सुचारू रूप से बनाए रखने की कोशिश करते इस मालिक ने कहा, “मैं पहले दो वर्षों में लाभ कमाने में कामयाब रहा और इस साल 50 श्रमिकों को काम पर लगाया।”

उसने और अन्य मालिकों ने बताया कि एक औसत वर्ष के दौरान, मुनाफा लगभग 20–25% के आसपास रहता है। 2018 जैसे अच्छे वर्षों में वह 50% तक भी पहुंच सकता है। इन दरों की बाद में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कई अन्य भट्ठा मालिकों द्वारा पुष्टि की गई।

“इसमें कोई शक नहीं कि 10 साल पहले प्रॉफ़िट मार्जिन इससे अधिक था। लेकिन ऐसा नहीं है कि हम अब मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं,” कोटेश्वर राव ने कहा, जो 30 साल से अधिक समय से बीकेआर ब्रिक्स चला रहा है।

वारंगल के सभी मालिकों ने कहा कि उन्हें आने वाले वर्षों में उत्पादन बढ़ाने की उम्मीद है, क्योंकि अभी भी कम लागत और मध्यम बजट वाले उपयोगकर्ताओं के बीच मिट्टी की ईंटों की मांग है।

भट्ठा मालिकों को लोन देने वाले साहूकारों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की कि मिट्टी-ईंट उद्योग फल-फूल रहा है।

आंध्र प्रदेश के अनाकापल्ली जिले के एक साहूकार ने बताया, “लगभग आठ-दस भट्ठा मालिक मेरे नियमित ग्राहक हैं और उनकी उधारी मेरे व्यवसाय का लगभग 30% हिस्सा है। अगर ईंट भट्ठों के लाभ के बारे में कोई संदेह होता तो मैं खुद किसी भी मालिक को रुपये उधार न देता।”

बेमौसम बरसात मेहनत पर फेर देती है पानी

भोई लोगों ने इन बारीकियों पर बहुत कम ध्यान दिया, क्योंकि वे सीज़न के लिए अपने लक्ष्य पर केंद्रित थे। वे कम से कम 400,000 ईंटें बनाना चाहते थे, ताकि वे प्रति 1,000 ईंटों पर 800 रुपये की दर से 3,20,000 रुपये कमा सकें।

वे पूरे सीज़न में अन्य सभी पथरियों से आगे रहे। मई के पहले सप्ताह तक अपना लक्ष्य हासिल करने और घर लौटने की उम्मीद में उन्होंने हर हफ्ते कम से कम 20,000 ईंटें बनाईं।

हालांकि, अप्रैल 2023 के तीसरे सप्ताह में भारी बारिश ने उनकी 30,000 ईंटें बर्बाद कर दीं। यह उनके कच्ची ईंटों की कड़ी देखभाल के बावजूद हुआ। उन्होंने तिरपाल शीट की दो परतों को सावधानीपूर्वक ईंटों से दबाकर बांधा था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हवा शीट को उड़ा न दे।

गौरव भोई बारिश से होने वाले नुकसान से बचने के लिए अपनी ईंटों को तिरपाल से ढक रहे है।

कुल मिलाकर अप्रैल के अंत में बेमौसम बरसात ने भट्ठे पर लगभग 600,000 ईंटों को नुकसान पहुंचाया। इनमें बारिश के कारण भट्ठियों में पकाई जा रही ईंटें भी शामिल थीं। इसने नुकसान की भरपाई करने के लिए उत्पादन सीज़न को कुछ हफ्तों तक बढ़ा दिया।

इसका दबाव पूरी तरह से ढलाई वालों पर पड़ा, जिन्हें अब प्रति सप्ताह 20,000 ईंटों के पिछले लक्ष्य से अधिक उत्पादन करना था।

फिर भी भोइयों को कोई समस्या नहीं हुई।

अन्य पथरियों के विपरीत वे शायद ही कभी देर रात तक काम करते थे। लेकिन मई के पहले सप्ताह तक उन्होंने बारिश में खराब ईंटों को छोड़कर 320,000 ईंटें पूरी कर ली थीं। भट्ठे में उनके निकटतम प्रतिस्पर्धियों ने 280,000 ईंटें बनाई थीं।

यहां तक कि उनके इस काम से मालिक भी खुश हुआ और उसने उनकी मजदूरी का एक हिस्सा उनके पिता सारंगा भोई के खाते में ट्रांसफर कर दिया। साल के आख़िर में चित्रसेन की शादी की तैयारी के लिए उस पैसे का इस्तेमाल घर में एक अतिरिक्त कमरे, एक शौचालय और एक बाथरूम बनाने के लिए किया गया।

इस बीच चित्रसेन ने उस लड़की के साथ घंटों फोन पर बात की, जिससे उसकी शादी होने वाली थी। उसने घर में एक बोरवेल कराने का भी फैसला किया, ताकि उसकी होने वाली पत्नी को नल के पानी की सुविधा मिल सके।

गौरव भोई इससे पूरी तरह सहमत था। एक बोरवेल लगवाने में कम से कम 60,000 रुपये का खर्च आता है। अब भाइयों ने इस खर्च की व्यवस्था करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है।

आजादी चाहने वालों को उसकी महंगी कीमत चुकानी पड़ती है

मज़दूर बड़े पैमाने पर ईंट भट्ठों में मौजूदा परिस्थितियों को चुपचाप सहन कर लेते थे, लेकिन पलायन की इच्छा भी मन में रखते थे, खासकर तब जब काम बहुत कठिन हो जाता, या गांव में कोई मेडिकल इमरजेंसी होती।

नवीन के माता-पिता, जो 25 फरवरी की सुबह उसकी चचेरी बहन और बहन की बेटी सहित दो अन्य ढलाई करने वालों के साथ वीबीआई ब्रिक्स से भाग गए थे, दोनों की उम्र 40 वर्ष से अधिक थी। आर्टिकल 14 को नवीन ने बाद में बताया कि वे मालिक द्वारा निर्धारित भारी उत्पादन लक्ष्यों को पूरा करना मुश्किल पा रहे थे और इसलिए उसने आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के एक दोस्त के साथ उनके भागने की योजना बनायी और उसको पूरा किया।

नवीन ने बताया कि वह अगली सुबह विजयवाड़ा के बाहरी इलाके में अपने माता-पिता और अन्य लोगों से मिले। उन लोगों ने उसके दोस्त द्वारा व्यवस्थित किए गए एक खाली अपार्टमेंट में शरण ली और उम्मीद की कि वे कुछ समय तक वहां रह पाएंगे- ओडिशा के नुआपाड़ा जिले में अपने गांव लौटने पर सरदार उन्हें अग्रिम राशि चुकाने के लिए मजबूर करता।

इस बीच वेंकटेश्वरलू ने भागते हुए श्रमिकों का पीछा करने वाले किसी भी अन्य मालिक की तरह प्रतिक्रिया दी। उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि वह भागे हुए श्रमिकों का पता लगाने और उन्हें वापस लाने के लिए रिश्तेदारों, व्यापारिक साझेदारों, भट्ठे के पास कारखानों और होटलों के मालिकों और स्थानीय पुलिस के अधिकारियों के पास पहुंचा।

जल्द ही उसे पड़ोस में बने सीमेंट प्लांट का सीसीटीवी फुटेज मिल गया, जिसमें भागने की रात लगभग 1:30 बजे एक चार पहिया वाहन भट्ठे से नेहरू रिंग रोड की ओर जाता हुआ दिखाई दिया। इस घटना के पीछे नवीन का हाथ होने का संदेह होने पर और यह सुनकर कि नवीन विजयवाड़ा में या उसके आसपास है, उसने वहां के व्यवसाय मालिकों को सूचित किया और उन्हें नवीन और श्रमिकों का पूरा विवरण दिया।

एक रेस्तरां मालिक ने सीसीटीवी फुटेज शेयर किया, जिसमें नवीन 26 फरवरी को दोपहर 1:30 बजे के आसपास खाना खरीदते हुए दिख रहा था।

वेंकटेश्वरलु और उसका बहनोई एक कार में विजयवाड़ा के लिए रवाना हुए। रात करीब 9 बजे, जब नवीन रात का खाना खरीदने के लिए फिर से होटल गया तो उन्होंने उसे पकड़ लिया और उसे उस अपार्टमेंट में ले जाने के लिए मजबूर किया, जहां श्रमिक छिपे हुए थे। फिर उनमें से नवीन को छोड़कर सभी को कार से भट्ठे पर वापस लाया गया।

वेंकटेश्वरलु ने आर्टिकल 14 की टीम के सामने स्वीकार किया कि वह विजयवाड़ा गया था। उसने यह भी बताया कि वह नवीन को भी सलाह देने के लिए वापस लाना चाहता था।

“अपार्टमेंट पहुंचने के बाद मैं उसे पकड़े हुए था, लेकिन उसकी मां ने मुझसे उसे छोड़ देने की विनती की और वादा किया कि वह भागेगा नहीं। थोड़ी देर बाद जब हम अपार्टमेंट से निकल रहे थे तो वह भाग गया,” उसने कड़वाहट के साथ आर्टिकल 14 को बताया।

कुछ हफ्ते बाद एक और पथरी वीबीआई ब्रिक्स से भाग गई।

“पास की एक फैक्ट्री में काम करने वाले उनके रिश्तेदारों ने कहा कि वे बेंगलुरु गए हैं। इसलिए मैं वहां गया और उन्हें वापस ले आया,” वेंकटेश्वरलू ने आगे बोलते हुए दावा किया कि श्रमिक खुद वापस लौटना चाहते थे और उसने उनके साथ कोई जबरदस्ती या मारपीट नहीं की।

लेकिन जिन लोगों ने उसके भट्ठे पर पहले काम किया था, उन्होंने आर्टिकल 14 को एक वीडियो दिखाया, जिसमें मालिक अधेड़ उम्र के मजदूर के साथ मारपीट कर रहा है।

एडवांस, वादा और गुलामी का एक और चक्र

मई 2023 के आखिरी सप्ताह में जब ऐसा लग रहा था कि भोई लोग जल्द ही हैदराबाद के दक्षिणी किनारे पर वीबीआई ब्रिक्स में 400,000 ईंटों का अपना तय लक्ष्य पूरा कर लेंगे तो उन्होंने इसी समय एक साहसी कदम उठाया।

गौरव और चित्रसेन भोई ने मालिक वेंकटेश्वरलू से संपर्क किया और उसे बताया कि वे ओडिशा के बोलांगीर जिले के ऐनलाभाटा गांव में अपने घर पर एक बोरवेल लगवाना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें सीज़न के लिए अपनी मज़दूरी के अलावा 60,000 रुपये की ज़रूरत है।

क्या वह उन्हें यह पैसा इस शर्त पर अग्रिम दे सकता है कि वे अगले सीज़न में उसके भट्ठे पर काम करने लौटेंगे, भाइयों ने पूछा।

भट्ठा मजदूरों के लिए सीधे मालिक के साथ सौदा करना असामान्य है। ऐसी किसी भी संभावनाओं को रोकने के लिए ही सरदार श्रमिकों को एक भट्ठे पर एक से अधिक बार नहीं भेजते।

वास्तव में, भोई लोगों ने पिछले वर्ष भी वीबीआई ब्रिक्स में काम किया था और भाइयों ने वेंकटेश्वरलु से अपने सरदार के साथ हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था, ताकि वे उसके भट्ठे पर फिर से काम कर सकें।

अब गौरव और चित्रसेन भोई इस रिश्ते को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। यह उनके पक्ष में था कि वे भट्ठे के सबसे बेहतर ईंट ढालने वाले थे और मालिक ने कुछ दिनों बाद उन्हें पैसे दे दिए।

भविष्य में किए जाने वाले काम के बदले में एकमुश्त अग्रिम भुगतान, जिसे ऋण बंधन भी कहा जाता है, इसको भारत में बीएलएसएए, 1976 द्वारा गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। हालांकि, भट्ठा मालिकों ने आर्टिकल 14 के समक्ष इस प्रथा का बचाव करते हुए कहा कि वे गरीब परिवारों की मदद कर रहे हैं, क्योंकि जिस सीजन में खेतों में काम नहीं होता तब इन लोगों के पास रोज़गार का कोई अन्य साधन भी नहीं होता।

वास्तव में भट्ठा मालिकों ने 20 से 40% तक अच्छा मुनाफा कमाया।

गौरव भोई ने अपने दोस्तों को कॉल करके बताया कि वह कब तक ऐनलाभाटा पहुंच जाएगा। वह अपने दोस्तों के साथ तफरी मारने के अलावा और कुछ नहीं करना चाहता था।

दूसरी ओर, चित्रसेन आख़िरकार अपनी होने वाली पत्नी से मिलने के लिए उत्सुक था, जिससे वह पिछले छह महीने से बात कर रहा था। उनकी शादी 2023 में दिवाली के आसपास होने वाली है और इस बीच बहुत कुछ करना बाकी है, जिसमें घर में बोरवेल लगवाना भी शामिल है।

आम तौर पर, पश्चिमी ओडिशा में गरीब जोड़े अपनी शादी के तुरंत बाद ईंट भट्ठों पर काम करने चले जाते हैं। वेंकटेश्वरलु से पहले ही ली जा चुकी अग्रिम राशि को चुकता करने के लिए क्या चित्रसेन भोई अगले सीज़न के लिए अपनी पत्नी को भी साथ ले जाएगा?

“शायद हां,” उसने कहा।

भाग्यवती भी साथ आएगी। वह आगे जोड़ती है, “मेरे भाइयों के लिए खाना कौन बनाएगा? भाभी हॉस्टल में रहती थी, उसे कुछ भी खाना बनाना नहीं आता।”

(अरित्र भट्टाचार्य कोलकाता स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। सौरभ कुमार मुंबई स्थित एक शोधकर्ता, मल्टीमीडिया पत्रकार और वृत्तचित्र फिल्म निर्माता हैं।)

* भोईयों को संभावित प्रतिशोध से बचाने के लिए नाम छुपाया गया है।

यह चार भाग वाली श्रृंखला का चौथा भाग है। आप पहला, दूसरा और तीसरा भाग यहां, यहां और यहां पढ़ सकते हैं।

(अंग्रेजी में मूल रिपोर्ट यहां पढ़ें, अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद: अनुवाद संवाद   

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