Saturday, April 27, 2024

विशेष रिपोर्ट-3: बंधुआ मजदूरों की जिंदगी पर यौन उत्पीड़न और हिंसा की मार

(पश्चिमी ओडिशा से पलायन करने वाले 5,00,000 पुरुष और महिलाएं, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कई श्रम कानूनों का खुलेआम उल्लंघन करते ईंट भट्ठों में आधुनिक गुलामी में काम करते हैं। महिलाएं खुले में स्नान करती हैं, शौच करती हैं। बच्चों का न केवल स्कूल छूट जाता है, बल्कि अक्सर उनसे मुफ़्त में काम भी करवाया जाता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा नियंत्रित नहीं किए गए भट्ठों में उड़ेले जाने वाली राख और कोयले की धूल से श्रमिकों को गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है। प्रस्तुत है चार भागों वाली इस सीरीज का तीसरा हिस्सा..)

हैदराबाद। ‘हम खुलकर बात कर सकते हैं, कोई समस्या नहीं होगी।’ ईंट भट्ठा मालिक बाहर था, गौरव भोई ने फोन पर आर्टिकल 14 को आश्वासन देते हुए कहा।

वह 15 दिसंबर 2022 का दिन था। गौरव, उसका बड़ा भाई चित्रसेन और उसका छोटा भाई औरव और बहन भाग्यवती उस जगह पर एक दिन पहले पहुंचे थे, जहां उन्हें अगले छह महीनों के लिए काम करना था। 22 वर्षीय गौरव भोई के अनुसार, भट्ठों पर अब मुंशी एकमात्र प्राधिकारी है, और “वह हमारा ओडिया साथी है,” एक रहम दिल इंसान।

डी वेंकटेश्वरलु का ईंट भट्ठा ‘वीबीआई ब्रिक्स’ हैदराबाद हवाई अड्डे से लगभग 15 किलोमीटर पूर्व में तेलंगाना के रंगारेड्डी जिले के महेश्वरम ब्लॉक के रविरियाल गांव में स्थित है। नेहरू आउटर रिंग रोड और राष्ट्रीय राजमार्ग 765 से निकलने वाली सड़कों के किनारे रविरयाल और आदिबतला में दस अन्य ईंट भट्ठे भी चल रहे हैं।

ये सड़क के किनारे बाड़ से घिरी जमीन के विशाल भूखंड हैं। लेकिन जैसे-जैसे वे अंदरूनी हिस्सों के पास पहुंचते हैं तो वे धान के हरे-भरे खेतों से होकर गुजरते हैं। यहां ईंट भट्ठों के कई समूह देखने को मिलते हैं।

गौरव भोई का आश्वासन महत्वपूर्ण है, क्योंकि भट्ठा मालिक, मुंशी और निगरानी रखने वाले आम तौर पर दिन-रात श्रमिकों पर कड़ी नजर रखते हैं। कोई भी अजनबी कार्य-स्थल में नहीं घुस सकता, न ही श्रमिकों से बात कर सकता है।

वेंकटेश्वरलु को अत्यधिक निगरानी रखने के लिए जाना जाता है।

भोई भाई-बहनों के दोस्त और पश्चिमी ओडिशा के बोलांगीर जिले के ऐनलाभाटा के साथी ग्रामीण नीरा कर ने पहले वीबीआई ब्रिक्स में काम किया है। उसने आर्टिकल 14 को बताया, “वो पूरे दिन ऑफिस के सामने बैठा रहता था। यहां तक कि रात को भी वो हैदराबाद अपने घर परिवार के पास नहीं जाता था। वो बस वहीं बैठा-बैठा इस बात पर नजर रखता कि कौन क्या कर रहा है, किससे बात कर रहा है और कहां जा रहा है। छुट्टी के दिनों में बाज़ार में अगर हम किसी स्थानीय व्यक्ति से बात करते तो उसके आदमी हमें भगा देते।”

निगरानी बंधुआ या जबरन श्रम का संकेत है, जैसा कि बन्धित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम (बीएलएसएए), 1976 के तहत परिभाषित किया गया है। और निगरानी का प्रमुख उद्देश्य ईंट भट्ठों के संचालन में कई उल्लंघनों को छिपाना है।

मौजूदा आधुनिक गुलामी के कारणों और परिणामों की नौ महीने की जांच के दौरान, आर्टिकल 14 ने तेलंगाना के रंगारेड्डी, वारंगल, पेद्दापल्ली और करीमनगर जिलों और आंध्र प्रदेश के अनाकापल्ली और विशाखापत्तनम जिलों में 15 ईंट भट्ठों का दौरा किया। लगभग हर भट्ठे पर श्रमिकों की रहने की स्थिति आवास, पानी, स्वच्छता और स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण के उनके अधिकार के स्पष्ट उल्लंघन में थी। यह सारे अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार से उत्पन्न होते हैं।

प्रदूषण के कारण श्रमिकों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा था; महिलाओं को यौन हिंसा सहित जोखिमों का सामना करना पड़ रहा था; जबकि शिक्षा के अधिकार सहित बच्चों के अधिकारों को पूरी तरह से नकार दिया गया था।

सभी भट्ठों में सरकार की असावधानी के कारण श्रमिकों को उनके अधिकारों और बुनियादी सेवाओं से वंचित करना सामान्य हो गया था। श्रम विभाग या जिला प्रशासन और पुलिस के अधिकारी- जिनके पास कार्यस्थलों में आने, या छापा मारने और उल्लंघन के लिए कार्यवाही शुरू करने का अधिकार था- वे मालिकों को पूर्व सूचना दिए बिना शायद ही कभी भट्ठों का दौरा करने आते थे। उनमें से बहुत तो प्रासंगिक कानूनी प्रावधानों से भी अनजान थे।

तेलंगाना में, विशेष रूप से पेद्दापल्ली और करीमनगर जिलों के भट्ठों से श्रमिकों को बचाए जाने के कई किस्सों के बावजूद (यहां, यहां और यहां देखिए), प्रमुख सरकारी विभागों द्वारा किसी भी ईंट भट्ठे पर छापा नहीं मारा गया- राज्य में छापे के स्थानों का निर्णय कंप्यूटरीकृत एल्गोरिदम द्वारा किया जाता है, और उसने अभी तक एक भी ईंट भट्ठे का चयन नहीं किया है।

भारत में आधुनिक गुलामी की निरंतरता पर चार भागों की इस सीरीज के तीसरे भाग में तस्करी के शिकार बने मजदूरों की काम की स्थितियों की जांच की गई है। सीरीज के भाग 1 में ग्रामीण पश्चिमी ओडिशा में संकट की भयावहता का पता लगाया गया, जिसने 47 साल पुराने कानून द्वारा इस प्रथा को समाप्त करने के बावजूद गरीबों की बढ़ती संख्या को बंधुआ मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया; और भाग 2 में तस्करों और भट्ठा मालिकों के संगठित नेटवर्क की जांच की गई। आख़िरी भाग में पीड़ितों के जीवन पर आधुनिक गुलामी के दीर्घकालिक प्रभाव पर प्रकाश डाला जाएगा।

महिलाएं: अनिश्चित जीवन, अदृश्य कार्य

बोलांगीर के खपराखोल ब्लॉक के धामनीमल गांव की रहने वाली 37 वर्षीय भजन्ति महानंद 25 वर्षों से प्रवासी श्रमिक हैं। वह पहले अपने पति के साथ जाया करती थीं और अब अपने चार बेटों और एक बेटी के साथ काम पर जाती हैं।

भट्ठों पर काम के दौरान उसका 40 वर्षीय पति जगन महानंद बाजार के दिन के अलावा कभी शराब नहीं पीता। “मालिक बहुत सख्त हैं,” वह बताती है, “पर यहां तो वो सुबह होते ही किसी न किसी दोस्त के साथ शराब पीना शुरू कर देता है।” शाम होने तक वह आमतौर पर ठेके पर या सड़क के किनारे नशे में पड़ा होता है, और भजंती यह सुनिश्चित करती है कि कोई उसे सुरक्षित घर ले आए।

दो दशकों से भी अधिक समय से उनका पूरा परिवार हर साल पलायन करता रहा है। केवल एक एकड़ कृषि भूमि होने के कारण ईंट के ये भट्ठे उनकी जीविका का प्रमुख स्रोत हैं। “लेकिन काम का असर बच्चों पर पड़ रहा है।” 19 साल का मुकेश तेलंगाना के भट्ठे पर बीमार पड़ गया। उसने कई दिनों तक कमजोरी की शिकायत की। फिर उसकी आंखें पीली हो गईं और वह उठ भी नहीं पा रहा था। काम के बोझ से थकी उसकी मां ने कहा, “सेठ ने उसे छुट्टी देने या कम मेहनत वाला काम सौंपने से इनकार कर दिया।”

“हमारे लौटने के बाद 15 वर्षीय रूपेश भी बीमार पड़ गया और डॉक्टरों ने कहा कि उसे ब्लड सर्कुलेशन में कुछ समस्या है।” मगर परिवार के पास अपने किसी भी बीमार लड़के के लिए दवाएं खरीदने के लिए पैसे नहीं थे।

बोलांगीर केभजन्ति और जगन महानंद करीब 25 सालों से ईंट भट्ठों में काम करने के लिए प्रवास कर रहे हैं।

धामनीमल गांव की ही जेएम ने गंभीर रूप से बीमार पड़ने से पहले सात से आठ साल तक भट्ठियों में काम किया। मगर फिर बाद में उसने अपने भाइयों और उनकी पत्नियों के साथ काम पर जाना बंद करने का फैसला किया। 28 साल की उम्र में अविवाहित जेएम अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ रहती है। उसने कपड़े सिलना सीखा और पड़ोसियों के लिए ब्लाउज और सलवार बनाना शुरू कर दिया। अपने द्वारा सिले गए प्रत्येक परिधान के लिए 100-200 रुपये लेती है। उसने बताया, “मैं गुलापी (उसकी किशोर भतीजी) की बदौलत नए डिजाइन भी आज़माती हूं। वह मुझे यूट्यूब पर वीडियो दिखाती है।”

रांका महानंद की लगभग तीस साल की उम्र की पत्नी भानुमती महानंद धामनीमल की रहने वाली एक और महिला है, जो अब भट्ठों पर काम करने नहीं जाती है। 10वीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बावजूद, जो इस क्षेत्र की लड़कियों के लिए एक असामान्य उपलब्धि है, उसने अपनी शादी के बाद पांच साल तक ईंट भट्ठों में लोडर के रूप में काम किया।

“वहां जीवन बहुत कठिन है,” उसने कहा, “मुझे पूरे दिन अपने सिर पर ईंटें उठानी पड़ती थीं और बीच-बीच में लकड़ी की आग पर खाना पकाना, लकड़ी काटना, घुर्सी (झोपड़ी) साफ करना, नहाना और बच्चों को खाना खिलाना पड़ता था, और अगर कोई स्कूल हो तो उन्हें स्कूल भी भेजना पड़ता था।” उसने आगे कहा कि यह रोज-रोज की भाग-दौड़ उसके लिए बहुत ज्यादा हो गई। इससे उसके स्वास्थ्य पर असर पड़ा और उसने दूसरों के साथ काम पर जाना बंद करने का फैसला किया।

कक्षा 5 के बाद स्कूल छोड़ने वाली 17 साल की भाग्यवती भोई अपने तीन भाइयों के साथ ईंटें बनाने और सुखाने का काम करती है। इसके साथ ही खाना पकाने और सफाई का काम भी संभालती है। वह पानी लाती है और उनकी छोटी झोपड़ी की देखभाल भी करती है।

सवालों का सामना करने पर मुस्कुराने वाली उस शर्मीली लड़की ने कहा कि उसे भट्ठियों में काम करना पसंद नहीं है।  उसने आर्टिकल 14 को बताया, “मुझे घर पर रहना पसंद है। उधर आराम है”। साथ ही उसने कहा कि मालिक ने उनसे आने वाले पत्रकारों से सावधान रहने को कहा है।

उसने हंसते हुए कहा, “सेठ ने मेरे भाई से कहा कि ‘वे अच्छे लोग नहीं हैं, छोटू।’ उसने कहा कि उनसे बात मत करो।”

गौरव और चित्रसेन भोई ने भाग्यवती के काम को कम समझते हुए कहा कि वह केवल उनकी मदद करने के लिए वहां है। यह भट्ठों में काम करने वाले पुरुषों के लिए आम है, जो यह भी दावा करते हैं कि मालिकों और मुंशियों द्वारा महिला श्रमिकों के साथ छेड़छाड़ और यौन दुर्व्यवहार किया जाता है।

विशाखापत्तनम में एनजीओ समता के साथ काम करने वाले ओडिशा के बोलांगीर जिले के महरापदर गांव के एक्टिविस्ट सुशांत पाणिग्रही ने कहा कि यौन हिंसा के मामलों में पीड़ित और उनके परिवार शर्म और कलंक से इतना डर जाते हैं कि वे अधिकारियों को मामले की रिपोर्ट नहीं कर पाते हैं।

“कई महिलाओं ने मुझे निजी तौर पर बताया है कि मालिकों ने महीनों तक उनका यौन शोषण और बलात्कार किया। कुछ तो गर्भवती भी हो गईं और उन्हें गर्भपात कराना पड़ा,” पाणिग्रही ने बताया। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कई उड़िया भट्ठा श्रमिकों के लिए पाणिग्रही संपर्क का पहला बिंदु है।

ओडिशा के बोलांगीर जिले के एक्टिविस्ट सुशांत पाणिग्रही।

उसने संबंधित सरकारी अधिकारियों को ईमेल, व्हाट्सएप और ट्विटर पर इन घटनाओं के बारे में सूचित किया और 2018 से 1,000 से अधिक श्रमिकों के बचाव अभियान में शामिल रहा।

हैदराबाद के रहने वाली एक्टिविस्ट, जेंडर संवेदीकरण प्रशिक्षक और COVID-19 महामारी के दौरान महिला श्रमिकों के साथ लंबी बातचीत करने वाली रिपोर्टर वर्षा भार्गवी ने कहा कि महिलाएं इस तरह की हिंसा के बारे में केवल अपने पति या परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों की अनुपस्थिति में ही खुलती हैं। उसने बताया, “नहाते समय या खुले में, अंधेरे की आड़ में शौच करते समय वे विशेष रूप से असुरक्षित होती हैं।”

भट्ठों पर बने आवास ईंट और मिट्टी का एक ढेर है

15 दिसंबर 2022 को जब आर्टिकल 14 की टीम गौरव और 27 वर्षीय चित्रसेन भोई से वीबीआई ब्रिक्स से सटी कच्ची सड़क पर मिले तो वे मुस्कुरा रहे थे।

चित्रसेन भोई ने इधर-उधर की बातें करने के बाद कहा, “हमने केवल एक दिन में अपनी घुर्सी (झोपड़ी) बनाने का काम पूरा कर लिया। आओ, आओ, देखो।”

ईंट भट्ठों पर पहुंचने पर प्रवासी श्रमिकों द्वारा किए जाने वाले कई कार्यों में से एक खुद के रहने के लिए आवास का निर्माण करना भी है, क्योंकि मालिकों द्वारा आवास का हिसाब या भुगतान नहीं किया जाता है। अन्य कार्यों में कच्चे माल को मिलाने के लिए गड्ढे तैयार करना, सूखने के लिए ईंटें बिछाने के लिए जमीन को समतल करना और साफ़ करना, और भट्ठों को जलाने के लिए लकड़ी लाना और काटना शामिल है।

छह एकड़ से अधिक भूभाग पर फैले भट्ठे की जगह पर कोई चारदीवारी या बाड़ नहीं है और वह अंधेरे में डूबा रहता है। मुंशी सीताराम बाघ ने कहा कि केवल 20 मजदूर आए हैं और आने वाले दिनों में और आने की उम्मीद है।

भोई सहित वहां मौजूद अधिकांश लोग ईंट ढालने वाले थे, जो पथरी यानी तीन–पांच श्रमिकों की इकाइयों में समूहित थे, जबकि कुछ ढुलाई श्रमिक थे। मुंशी ने कहा कि सभी लोग ओडिशा के केबीके क्षेत्र से हैं और भोई लोगों के विपरीत अधिकांश ने एकमुश्त अग्रिम राशि ली थी।

एक बंद कमरा मालिक के ऑफिस-कम-क्वार्टर के रूप में कार्य करता है। इस कार्यालय के दोनों ओर आधी-अधूरी बनी झोपड़ियों के सामने महिलाओं को रात के लिए भोजन पकाने में व्यस्त देखा जा सकता था। बच्चे इधर-उधर दौड़ रहे थे, खेल-कूद और दोस्ताना हंसी-मजाक में लगे हुए थे।

भोइयों का आवास किसी भी अन्य आवास की तरह ही था, सिवाय इसके कि वह पूरा बना था। इसकी माप लगभग 8 फीट गुणा 10 फीट थी। इसकी दीवारें बेकार/क्षतिग्रस्त ईंटों और ताजी मिट्टी से लीप कर बनाई गई थीं, जो तब तक सूखी नहीं थी। इसकी छत लकड़ी के लट्ठों और तिरपाल से बनाई गई थी। उसके शीर्ष पर ताड़ के पत्ते थे और यह इतनी नीचे लटकी हुई थी कि औसत ऊंचाई का व्यक्ति अंदर सीधे खड़ा नहीं हो सकता। सामने की दीवार में दो फुट की जगह प्रवेश द्वार के रूप में काम करती थी। वहां कोई दरवाज़ा या खिड़कियां नहीं थीं। मालिक, मुंशी और मालिक के लिए काम करने वाले स्थानीय लड़के जब चाहे इन घरों में घुस सकते थे।

झोपड़ियों से परे साइट समतल और बंजर थी, जिसमें कोयला, मिट्टी, फ्लाई ऐश, चावल की भूसी और महीन रेत के ढेर बने हुए थे। ये सभी ईंट निर्माण में काम आने वाले महत्वपूर्ण कच्चे माल हैं। हवा के हर झोंके के साथ फ्लाई ऐश, रेत, कोयले की धूल और अन्य कण उड़ते हुए ऊपर उठते और भट्ठे पर काम करने वालों के घरों, कपड़ों, रसोई, मुंह, आंखों, नाक, कान और यहां तक कि शरीर की त्वचा के छिद्रों में भी प्रवेश कर जाते।

हैदराबाद के पास रविरियाल गांव में स्थित ईंट भट्टे पर भोई भाई-बहनों के घर।

मिक्सिंग पिट के पास और साइट के किनारों पर खुले टैंक बोरवेल के साथ-साथ खाना पकाने और पीने सहित श्रमिकों की पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते। टैंकों में गंदला पानी, तैरती हुई पत्तियां और शाखाएं और कभी-कभी काई और शैवाल होते। एक बार काम शुरू होने के बाद कुछ टैंक अत्यधिक प्रदूषित हो जाते हैं, क्योंकि उनमें फावड़े और अन्य उपकरण धोए जाते हैं।

भट्ठे के अंतिम छोर पर केवल दो भारतीय शैली के शौचालय हैं। हालांकि हर साल लगभग 70-80 प्रवासी और उनके बच्चे यहां रहते हैं और काम करते हैं। जाहिर है, शौचालय जर्जर हो गए हैं और लड़कियों और महिलाओं सहित सभी कर्मचारी खुले में नहाते हैं और शौच करते हैं।

‘इस काम में आने के बाद ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी बीमारियां होने लगती हैं’

वीबीआई ब्रिक्स का 56 वर्षीय मालिक डी वेंकटेश्वरलु हल्के पेट, गंजे सिर और सफेद पड़ती हल्की दाड़ी वाला मजबूत आदमी है।

आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले का मूल निवासी, वह सशस्त्र बलों से सेवानिवृत्त है और उसे 23,000 रुपये की मासिक पेंशन मिलती है। उसके परिवार में उसकी गृहिणी पत्नी, मेडिकल में पोस्ट-ग्रेजुएट की पढ़ाई कर रही एक बेटी और चार्टर्ड अकाउंटेंसी के आखिरी साल में पढ़ाई कर रहा बेटा है। उसका निवास हैदराबाद के एक कुलीन इलाके में है, लेकिन वह अपना अधिकांश समय वीबीआई ब्रिक्स में उत्पादन सत्र के दौरान देख-रेख करते हुए बिताता है।

आर्टिकल 14 द्वारा इंटरव्यू किए गए कई अन्य मालिकों की तरह, वेंकटेश्वरलु ने अपने एक रिश्तेदार की सलाह पर इस काम को करने का फैसला किया। उसके इस रिश्तेदार का पड़ोसी गांव तुक्कुगुडा में एक ईंट भट्ठा है।

उसने मुस्कुराते हुए आर्टिकल 14 को बताया, “2014 में इस भट्ठे को शुरू करने से पहले मैंने अपने साढ़ू के साथ एक साल तक काम किया। पहले साल में ही हमने सिर्फ छह पथरी के साथ 20 लाख ईंटों का उत्पादन कर दिया।”

औसतन, प्रत्येक पथरी प्रति सीजन में 3,00,000-4,00,000 ईंटें बनाती है, लेकिन फायरिंग की प्रक्रिया के साथ-साथ बेमौसम बारिश के कारण कई ईंटें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। छह पथरियों के साथ 20 लाख ईंटों का उत्पादन प्रभावशाली था, खासकर व्यवसाय में नए लोगों के लिए।

वेंकटेश्वरलु ने दावा किया कि उसका भट्ठा फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत रजिस्टर्ड है, लेकिन उसने कोई प्रासंगिक दस्तावेज नहीं दिखाए। जैसे-जैसे उसका व्यवसाय बढ़ता गया, उसने एक सख्त मालिक के रूप में ख्याति प्राप्त की, जो गलती करने वाले कर्मचारियों को पीटने से पहले ज़रा भी नहीं सोचता है।

वीबीआई ब्रिक्स में काम कर चुके ऐनलाभाटा के ग्रामीणों ने आर्टिकल 14 को बताया, “उसको सिर्फ एक चीज से मतलब है- काम।”

“यदि आप थके हुए या अस्वस्थ होने के कारण काम में लापरवाही करते हैं, या अगर आप नशे में काम पर आते हैं, तो वह आपको नहीं बख्शता,” नीरा कर ने आर्टिकल 14 को एक वीडियो दिखाते हुए कहा। इस वीडियो को उसने 2020 में वीबीआई ब्रिक्स में काम करते समय शूट किया था।

वीडियो में वेंकट को कमजोर और मध्यम आयु के दर्द से कराहते ओडिया श्रमिक को धक्का देते और बार-बार थप्पड़ मारते हुए दिखाया गया था। एक महिला संभवतः उसकी पत्नी रो रही थी, जबकि अन्य कर्मचारी असहाय खड़े होकर देख रहे थे।

“वह श्रमिक नुआपाड़ा (जिला) से था। उसकी पथरी उस सप्ताह 20,000 ईंटें नहीं बना सकी थी, इसलिए मालिक उसे मार रहा था,” एक मजदूर ने समझाया, “जब भी कोई लक्ष्य पूरा करने में विफल रहता था तो वह ऐसा करता था।”

आर्टिकल 14 ने इंटरव्यू के दौरान वेंकटेश्वरलू से जब इस घटना के बारे में पूछा तो वह टालमटोल करने लगा।

बढ़ते घाटे के बारे में हल्ला मचाने और यह घोषणा करने से पहले कि वह व्यापार छोड़ने के लिए तैयार हैं, उसने बड़बड़ाते हुए कहा, “मैं श्रमिकों के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार करता हूं.. किसी के साथ मार-पीट अच्छा नहीं है।”

उसने बताया कि अपने व्यवसाय को चलाए रखने के लिए वह प्रति माह 1.5–2% ब्याज पर कर्ज लेता है। इन्हीं कर्जों से वह जमीन पट्टे पर लेता है, कच्चा माल खरीदता है और श्रमिकों को अग्रिम भुगतान करता है। इन कर्जों को वह ईंटों की बिक्री से प्राप्त आय से चुकाता है और “छोटा मुनाफा” कमाने में कामयाब रहता है। लेकिन पिछले सीज़न के दौरान बारिश के कारण 10 लाख ईंटें नष्ट हो गईं, बड़े अफसोस से उसने कहा, और इसलिए लोन का एक हिस्सा चुकाने के लिए उसे अपने दो ट्रक बेचने पड़े।

उसने आर्टिकल 14 को बताया, “मैंने इस साल 11 जगहों से 70 लाख रुपये का कर्ज लिया है।” उसने दावा किया कि पिछले पांच वर्षों में कच्चे माल की लागत 40 से 50% तक बढ़ गई है। “इस व्यवसाय में आने के बाद मुझे ब्लड प्रेशर और शुगर हो गया है।”

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के अन्य भट्ठा मालिकों ने कच्चे माल की बढ़ती कीमतों और घटते लाभ मार्जिन के संबंध में वेंकटेश्वरलु की बात दोहराई। हालांकि कई लोगों ने कहा कि उद्योग स्थायी रूप से बंद होने की कगार पर है, फिर भी उन्होंने भट्ठियां का संचालन जारी रखा और अपनी शानदार जीवनशैली भी बनाए रखी है।

उन्होंने कहा कि श्रमिकों को पहले की तुलना में अधिक शोषण का सामना करना पड़ता है, और इस तथ्य की पुष्टि सरदारों ने भी की।

महिला मजदूर अपनी पाली के घंटों में मजदूरी करती हैं और फिर ब्रेक के दौरान घर के काम संभालती हैं।

2000 के दशक के अंत तक भट्ठों पर काम प्रतिदिन आठ-नौ घंटे तक सीमित था। तेलंगाना में श्रमिकों की आपूर्ति करने वाले बोलांगीर के बेलपाड़ा ब्लॉक के प्रमुख सरदार जीटी ने बताया, “अब ज्यादातर जगहों पर 12–14 घंटे काम करना सामान्य बात है। पेद्दापल्ली और करीमनगर जैसे जिलों में जहां बड़े पैमाने पर मशीनीकृत ईंट भट्ठे हैं, वहां श्रमिकों से 15-16 घंटे तक भी काम कराया जाता है।”

ओडिशा का एक डंडा मार मैनेजर

मुंशी सुबह और शाम की पाली में बंटे काम के निर्धारित घंटों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके काम में श्रमिकों को सुबह-सवेरे जगाना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि वे समय पर शिफ्ट के लिए रिपोर्ट करें। मुंशी उन लोगों को मारने से गुरेज नहीं करते, जो उनके निर्देशों का पालन करने में नाकाम रहते हैं।

वीबीआई ब्रिक्स में ओडिशा के मूल निवासी सीताराम बाघ (30) ने यह मुश्किल काम संभाल रखा है।

2021 के अंत में मोल्डिंग का काम करने के लिए वीबीआई ब्रिक्स पर आने से पहले उसने और उसकी पत्नी ने 10 साल तक विशाखापत्तनम के पास ईंट भट्ठों पर काम किया था।

बाघ ने आर्टिकल 14 को बताया, “मालिक ने कुछ विवाद के कारण पिछले मुंशी को बर्खास्त कर दिया था। तो मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं यह काम कर सकता हूं।” बाघ दसवीं तक पढ़ा था और पहले एक साइट पर साप्ताहिक उत्पादन रिकॉर्ड रखने का काम कर चुका था, जो कि मुंशी की मुख्य जिम्मेदारी होती है।

वेंकटेश्वरलु को कुछ और भी चाहिए था।

“मुझे भर्ती करने से पहले उन्होंने मुझसे पूछा कि, डंडा चलाना आता है क्या?” बाघ ने बताया कि उसने कभी किसी को थप्पड़ तक नहीं मारा था। “लेकिन मैंने हां कहा।”

बाघ ने स्वीकार किया कि उन अवसरों पर जब श्रमिक आदेशों का पालन करने से इनकार कर देते थे या लक्ष्य से पीछे रह जाते थे, तब उसके पास उन्हें पीटने के अलावा कोई अन्य उपाय नहीं रह जाता था।

ओडिशा का रहने वाला मुंशी सीताराम बाघ हैदराबाद के बाहरी इलाके में स्थित कार्यस्थल पर।

हालांकि, भोईयों को कभी डंडा नहीं पड़ा और बाघ उनके साथ मित्रतापूर्ण और उदार था, मुख्यतः क्योंकि वे प्रतिबद्ध श्रमिक थे। वह और वेंकटेश्वरलु दोनों उन्हें “हमारे सर्वश्रेष्ठ श्रमिक” कहते हैं, जो हमेशा लक्ष्य पूरा करते हैं।

इस सब के बीच बच्चों की शिक्षा कहां खो गई किसी को नहीं पता लगा

बोलांगीर के गुंड्रुपाली गांव की रहने वाली 40 वर्षीय नीला गिधली ने बचपन से ही ईंट भट्ठों में काम किया है। चंद्र गिधली से शादी करने और तीन बच्चों के होने के बाद भी उसने यही काम जारी रखा।

“भट्ठों पर कम से कम हम वयस्कों को भुगतान तो मिलता है, लेकिन बच्चों को तो मुफ़्त में काम करवाया जाता है,” उसने आर्टिकल 14 को बताया।

गिधली ने आगे कहा, “मालिक हमारे झोपड़ियों में घुस आते हैं और उन्हें पकड़ लेते हैं। उनसे कार्य क्षेत्र को साफ करवाते हैं, या ईंट के टूटे हुए टुकड़े उठवाते हैं, या धूप में सूखने वाली ईंटों को पलटने के लिए कहते हैं।”

दिसंबर 2022 में आर्टिकल 14 की वीबीआई ब्रिक्स की पहली यात्रा के दौरान, सफेद धोती और बनियान में एक मध्यम आयु का व्यक्ति थोड़ा डरा-डरा सा हमारे पास आया, उसे इस बात का डर था कि अजनबियों से बात करने के लिए उसे फटकार पड़ सकती है।

गौरव भोई ने बताया कि वह नुआपाड़ा जिले से है और यहां अपने बेटे, बहू और तीन पोते-पोतियों (पांच, छह और आठ साल) के साथ रहता है।

बच्चे परिवार के साथ आए थे, क्योंकि घर पर उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। उस बूढ़े ने पूछा, “यहां उनका स्कूल छूट जाता है। क्या आप कृपया कुछ कर सकते हैं?” महिलाओं के यौन शोषण के मुद्दे के विपरीत, श्रमिक बच्चों की शिक्षा के बारे में मुखर थे।

आर्टिकल 14 ने जिन प्रवासी परिवारों से बात की, उनमें से अधिकांश ने अपने बच्चों को अपने गांवों के सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने का निश्चय किया था। लगभग सभी को आशा थी कि अगली पीढ़ी को कोई दूसरा काम मिलेगा।

हालांकि, जब बच्चे वयस्क प्रवासियों के साथ ईंट भट्ठों पर जाते हैं तो उनका एक सेमेस्टर छूट जाता है, क्योंकि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में शिक्षा का माध्यम तेलुगु है, जो एक अपरिचित भाषा है।

सिविल सोसाइटी के समूहों के हस्तक्षेप के बाद 2017 में तेलंगाना सरकार ने ईंट भट्ठों में ‘कार्यस्थल स्कूल’ शुरू करने के लिए पेरिस-आधारित गैर-लाभकारी एड एट एक्शन के साथ साझेदारी की। बच्चों को पढ़ाने के लिए ओडिशा से शिक्षकों को लाया गया और बच्चों को यहीं रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखने में सक्षम बनाने के लिए सीज़नल छात्रावास शुरू किए गए।

तेलंगाना सोशल इम्पैक्ट ग्रुप की निदेशक अर्चना सुरेश ने बताया कि वर्तमान में तेलंगाना में ईंट भट्ठों पर स्थित कार्यस्थल स्कूल लगभग 6,500-7,000 बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। तेलंगाना सोशल इम्पैक्ट ग्रुप उद्योग मंत्री केटी रामाराव के नेतृत्व वाला एक एसोसिएशन है, जो व्यवसायों को सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करता है।

यह स्कूल रंगारेड्डी, यदाद्री भुवनगिरि और मेडचल जिलों तक ही सीमित हैं। अधिकांश स्कूल ईंट भट्ठों के परिसर के अंदर स्थित एक कमरे की इमारत हैं, जबकि कभी-कभी उन्हें स्थानीय सरकारी स्कूलों के अंदर एक कमरे में भी रखा जाता है।

तेलंगाना सरकार ने ईंट भट्ठों में ‘कार्यस्थल स्कूल’ शुरू किए हैं।

वीबीआई ब्रिक्स और 10 अन्य पड़ोसी भट्ठियों में काम करने वाले श्रमिकों के बच्चों को एक ही कमरे में रखा गया है। हालांकि इससे बूढ़े व्यक्ति की चिंताओं का समाधान होता तो दिखा, लेकिन बच्चों को मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता संदिग्ध है।

6 फरवरी 2023 को जब आर्टिकल 14 ने स्कूल का दौरा किया तो आवंटित कमरा खचाखच भरा हुआ था, जिसमें 140 में से 85 छात्र उपस्थित थे।

स्कूल में पढ़ाने के लिए नियुक्त दो उड़िया शिक्षकों में से एक संजय राणा ने बताया, “यहां जगह की बड़ी समस्या है।” वह बाज़ार का दिन था (भट्ठा मजदूरों के लिए आवश्यक वस्तुओं की साप्ताहिक आपूर्ति खरीदने के लिए छुट्टी का दिन) और कुछ बच्चे बाहर थे। उसने आगे बताया कि जब अधिक बच्चे आते हैं तो उन्हें गलियारे में बैठाया जाता है।

इस दौरान बजी घंटी की आवाज़ सुनकर छात्र खुशी से झूम उठे तो उसने अपने बचाव में कहा, “वे जरा-जरा-सी बात पर हंगामा खड़ा कर देते हैं और ज्यादातर समय उन्हें संभालने में ही चला जाता है।” वे अपने बैग से प्लेटें और गिलास ले आए और मध्याह्न भोजन के लिए तैयार होकर कतार में इकट्ठा होने के लिए दौड़ पड़े।

श्रमिकों के अधिकारों और कानून का उल्लंघन

बीएलएसएए ने बंधुआ मजदूर प्रणाली को जबरन श्रम की प्रणाली के रूप में परिभाषित किया है, जिसके तहत एक देनदार खुद को निर्दिष्ट अवधि के लिए लेनदार की सेवा में रखता है, चाहे वह अग्रिम राशि के लिए हो, या दायित्व, विरासत या किसी अन्य कारण से हो। इसने बंधुआ मजदूर प्रणाली के अन्य निशानदेहों को भी निर्दिष्ट किया- देनदारों को रोजगार की स्वतंत्रता, आवागमन की स्वतंत्रता और बाजार मूल्य पर संपत्ति या श्रम के उत्पाद को बेचने की स्वतंत्रता नहीं होती है।

1976 में पारित बीएलएसएए ने देश में सभी प्रकार की बंधुआ मजदूरी को समाप्त कर दिया और अपराधियों के लिए सख्त सजा अनिवार्य कर दी। वीबीआई ब्रिक्स और अन्य सभी ईंट भट्ठों पर जिनमें आर्टिकल 14 द्वारा दौरा किया, वहाँ इसका और विभिन्न कानूनों का खुलेआम उल्लंघन किया जाता है।

फ़ैक्टरी अधिनियम, 1948 के तहत- जिसके अधीन ईंट भट्ठों को रजिस्टर किया गया है- मालिकों को श्रमिकों के लिए शिशुगृह, विश्राम कक्ष, पीने का पानी और अन्य सुविधाएं देना आवश्यक है। वीबीआई ब्रिक्स या किसी अन्य रजिस्टर्ड या अन-रजिस्टर्ड भट्टे पर ऐसी कोई सुविधा मौजूद नहीं थी।

ईंट भट्ठों में रहने की अनुपयुक्त परिस्थितियां संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त श्रमिकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन करती हैं। अनुच्छेद 21 में ‘जीवन’ का अर्थ केवल भौतिक अस्तित्व नहीं है, बल्कि इसमें सम्मान के साथ जीने का अधिकार, आवास, पानी और स्वच्छता और स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण, और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐतिहासिक फैसलों में इस पर जोर दिया है।

बोलांगीर से सांसद (राज्यसभा) निरंजन बिशी ने बताया कि आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और अन्य राज्यों के ईंट भट्ठों में अंतर-राज्य श्रमिक प्रवासन के साथ-साथ कपड़ा कारखानों और अन्य उद्योगों में नौकरियों के लिए गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में युवाओं का बड़े पैमाने पर प्रवासन हो रहा है। ऐसा बुआई और कटाई की अवधि को छोड़कर अकुशल श्रमिकों के लिए स्थिर रोजगार की कमी के कारण है।

बिशी ने कहा, “मनरेगा के तहत केवल माटी काम उपलब्ध है और केंद्र को श्रमिकों के वेतन के लिए धन वितरित करने में पांच-छह महीने लगते हैं। इन कारणों से श्रमिकों का पलायन होता है।”

फ्लाई ऐश, रेत और कोयले की धूल: स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहे हैं

शोधकर्ताओं ने 2020 में पाया कि ईंट भट्ठा श्रमिक उच्च रुग्णता और श्वसन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, मनोसामाजिक, त्वचा-संबंधित और अन्य विकारों से पीड़ित हैं, जो काम के माहौल में खतरों, उच्च परिवेश के तापमान, बार-बार भारी समान उठाने और बिना किसी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण के खतरनाक कच्चे माल के साथ लंबे समय तक काम करने के कारण होते हैं।

ईंटों की ढलाई के लिए मिट्टी तैयार करने के लिए मिट्टी के साथ श्रमिकों द्वारा मिलाए जाने वाले फ्लाई ऐश में ज्ञात कार्सिनोजेन्स के साथ अम्लीय, विषाक्त और रेडियोधर्मी पदार्थ होते थे। जब सांस के जरिए या निगलने से फ्लाई ऐश शरीर में चला जाता है तो वह तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकता है और संज्ञानात्मक दोष, विकासात्मक देरी और व्यवहार संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है। इसके अलावा फेफड़ों की बीमारी, गुर्दे की बीमारी और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारी के विकास की संभावना भी बढ़ जाती है।

बीमारी और संक्रमण की चपेट में मजदूर।

भट्ठों में ईंट बनाने के लिए जिस महीन रेत का उपयोग किया जाता है, उसमें सिलिका भी होता है, जो सिलिकोसिस, फेफड़े के कैंसर, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और किडनी रोग सहित कई बीमारियों का कारण बनता है। श्वसन योग्य क्रिस्टलीय सिलिका के संपर्क में आने से ऑटोइम्यून विकार और हृदय संबंधी हानि भी हो सकती है।

इसी तरह भट्ठियों को जलाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कोयले से निकलने वाली धूल के सांस लेने से न्यूमोकोनियोसिस हो सकता है, जो संभावित रूप से दुर्बल करने वाली फेफड़ों में होने वाली बीमारी है।

2016 में जब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उद्योगों को उनके प्रदूषण भार के आधार पर वर्गीकृत किया तो ईंट भट्ठों को नारंगी श्रेणी में रखा गया, जो दूसरी सबसे अधिक प्रदूषणकारी श्रेणी थी, जिसे उत्सर्जन, अपशिष्ट प्रवाह, अपशिष्ट पदार्थ, उत्सर्जित प्रदूषकों आदि के अनुसार अलग किया गया है। अगले वर्ष सीपीसीबी ने उन सभी भट्ठियों को बंद करने का आदेश दिया जिनके पास राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मंजूरी नहीं थी।

इन कदमों का आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बहुत कम प्रभाव पड़ा, जहां भट्ठियां 2010 में अविभाजित आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों पर वापस आ गईं, जिसमें मालिकों को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मंजूरी लेने से छूट दी गई थी और यदि उनके पास स्थानीय निकाय से अनापत्ति प्रमाण पत्र हों तो उन्हें नई भट्ठियां स्थापित करने की अनुमति दी गई थी।

आसानी से व्यवसाय करने के समझौते दंड से मुक्ति भी देते हैं

तेलंगाना में कई सरकारी अधिकारियों, गैर-लाभकारी प्रतिनिधियों, पत्रकारों और एक्टिविस्ट ने आर्टिकल 14 को बताया कि ईंट भट्ठा श्रमिकों की दुर्दशा के पीछे लंबे समय से चलती आ रही सरकारी असावधानी और भ्रष्टाचार है।

पश्चिमी ओडिशा की तरह सरकारी अधिकारियों की बीएलएसएए और अन्य संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूकता या समझ का निम्न स्तर, गंतव्य राज्यों में भी कानून लागू करने में एक बड़ी बाधा थी। नौ महीने की जांच के दौरान, आर्टिकल 14 ने ओडिशा और तेलंगाना में श्रम विभाग, जिला प्रशासन और पुलिस के कई अधिकारियों से मुलाकात की, जो नहीं जानते थे कि एकमुश्त अग्रिम भुगतान बीएलएसएए के तहत बंधुआ मजदूरी है। अधिकांश लोग तस्करी को यौन कार्य से जोड़ते हैं और इस बात से अनभिज्ञ हैं कि जबरन श्रम के लिए व्यक्तियों को संभालना, आश्रय देना और परिवहन करना भी तस्करी विरोधी कानून के तहत अपराध है।

महेश भागवत, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी), तेलंगाना, एक दुर्लभ अपवाद हैं।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, तेलंगाना, महेश भागवत।

हैदराबाद क्षेत्र के तीन कमिश्नरियों में से एक रचाकोंडा के पुलिस आयुक्त के रूप में अपने 2017–22 के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र में कई ईंट भट्ठों पर छापा मारा और 900 से अधिक बंधुआ मजदूरों को बचाया।

भागवत ने आर्टिकल 14 को बताया, “बीएलएसएए के कार्यान्वयन में पुलिस की कोई खास भूमिका नहीं है। हम राजस्व विभाग की मंजूरी के बिना एफआईआर में बीएलएसएए की धाराएं भी लागू नहीं कर सकते।”

मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई के लिए 2017 में अमेरिकी विदेश विभाग से पुरस्कार प्राप्त करने वाले भागवत ने कहा कि श्रम विभाग, जो प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है, उसमें कर्मचारियों की भारी कमी है।

कई अन्य लोगों ने श्रम विभाग में कर्मचारियों की कमी पर भागवत के विचारों की पुष्टि की।

छापा मारने वाले श्रम विभाग के साथ काम करने वाली वर्षा भार्गवी ने कहा, “2019 में तेलंगाना में फ़ैक्टरी अधिनियम के तहत 19,000 से अधिक फ़ैक्टरियां रजिस्टर्ड थीं, लेकिन यह जांचने के लिए केवल 22 श्रम निरीक्षक थे कि क्या वे 33 जिलों में कानून का अनुपालन कर रहे हैं। यह प्रति जिले एक इंस्पेक्टर से भी कम था।”

वर्षा भार्गवी 2017 से 2019 तक बाल श्रम उन्मूलन के लिए राज्य संसाधन केंद्र के साथ राज्य समन्वयक थीं।

इलके अतिरिक्त, बंधुआ मजदूरी पर प्रतिबंध लागू करने में दूसरी बड़ी बाधा भ्रष्टाचार है।

एक सहायक श्रम अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “स्थानीय विधायक और माफिया, जिनकी ईंट भट्ठों के संचालन में बड़ी हिस्सेदारी है, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, श्रम विभाग और जिला कलेक्टरेट के अधिकारियों को रिश्वत देते हैं।”

2017 में तेलंगाना सरकार ने श्रम कानूनों के उल्लंघन के लिए प्रतिष्ठानों का निरीक्षण करने के लिए नई योजना शुरू की। एक्टिविस्टों ने बताया कि इस योजना से ईंट भट्ठा मजदूरों की दुर्दशा और बढ़ गई।

जबकि अधिकारी पहले फ़ैक्टरी अधिनियम जैसे विशिष्ट कानूनों के कार्यान्वयन की जांच करने के लिए निरीक्षण करने के लिए स्वतंत्र थे, अप्रैल 2017 में तेलंगाना के श्रम विभाग द्वारा जारी आदेश में 13 विभिन्न कानूनों के लिए एकल संयुक्त निरीक्षण अनिवार्य कर दिया। इसने श्रमिकों की संख्या के आधार पर उद्योगों को निम्न, मध्यम या उच्च जोखिम समूहों में वर्गीकृत किया और जोखिम मूल्यांकन के आधार पर निरीक्षण की कम्प्यूटरीकृत प्रणाली शुरू की।

तेलंगाना में सहायक श्रम आयुक्त ने नाम न छापने की शर्त पर आर्टिकल 14 को बताया, “हम हर महीने कम से कम तीन से चार निरीक्षण करते थे और इनमें से अधिकांश ईंट भट्ठों पर होते थे। लेकिन व्यापार करने में आसानी के मानदंडों की शुरुआत के बाद कम्प्यूटरीकृत अल्गोरिद्म ने निरीक्षण के लिए एक भी भट्ठों का चयन नहीं किया है।”

‘हम ज़्यादा समय तक कड़ी मेहनत कर सकते हैं’

वीबीआई ब्रिक्स में न तो श्रमिकों और न ही मालिक या मुंशी को कानूनों, कानूनी प्रावधानों या उनके कमजोर पड़ने की चिंता है।

वेंकटेश्वरलू का ध्यान पूरी तरह से लक्ष्यों पर केंद्रित रहा और उसने कहा कि उसे 2023 सीज़न के दौरान कम से कम 40 लाख ईंटों का उत्पादन करने की उम्मीद है। इसे संभव बनाने के लिए वह श्रमिकों पर निर्भर है।

उन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए श्रमिकों की अपनी प्रेरणाएं भी हैं। यदि वे लक्ष्य पूरा नहीं कर पाए तो उन्हें ईंट बनाने के सीज़न के बाद भी मालिक की सेवा में रहना होगा।

हालांकि, भोइयों को ऐसा कोई डर नहीं था। एक तो उन्होंने कोई अग्रिम राशि नहीं ली थी और दूसरा, वे शर्तों से अधिक ईंटें बनाने के प्रति आश्वस्त थे।

गौरव भोई ने आर्टिकल 14 को बताया, “पथरी में हम सभी युवा हैं। यह एक बड़ा फायदा है। हम बूढ़ों की तुलना में अधिक समय तक और अधिक कठिन काम कर सकते हैं। हमें उम्मीद है कि इस सीज़न में हम चित्रसेन की शादी कराने के लिए पर्याप्त कमाई कर लेंगे।”

(अरित्रा भट्टाचार्य कोलकाता स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। सौरभ कुमार मुंबई स्थित एक शोधकर्ता, मल्टीमीडिया पत्रकार और वृत्तचित्र फिल्म निर्माता हैं।)

* भोईयों को संभावित प्रतिशोध से बचाने के लिए नाम छुपाया गया है।

यह चार भाग वाली श्रृंखला का तीसरा भाग है। आप पहला, दूसरा और चौथा भाग यहां, यहां और यहां पढ़ सकते हैं।

(अंग्रेजी में मूल रिपोर्ट यहां पढ़ें, अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद: अनुवाद संवाद )          

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