हीट स्ट्रोक से होने वाली मौतों ने दिलाई ‘कोरोना काल’ की याद, जलती चिताएं और भविष्य की चिंताएं 

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वाराणसी। “साल 2020 में वैश्विक महामारी कोविड काल का वह खौफ़नाक मंजर शायद ही कोई भूल पाए। जब पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर लोगों को घरों में कैद रहने के लिए विवश कर दिया गया था। कोविड का असर भले ही अब देश से समाप्त हो गया है, लेकिन उसकी दर्दनाक, भयावह यादें आज भी जेहन में बनी हुई है। ठीक उसी तरह से 2024 का लोकसभा चुनाव हीट स्ट्रोक (लू) के मंजर को लेकर याद किया जाता रहेगा, जिसने कईयों की हंसती-खेलती जिंदगी में दखल देकर उनकी जिंदगी छीन ली है तो किसी का परिवार उजाड़ दिया है।” 

यह बताते हुए हलिया, मिर्ज़ापुर के राघवेंद्र सिंह सिहर उठते हैं। वह इसके लिए सरकारी मशीनरी को दोषी ठहराते हुए कहते हैं कि “कोरोना वायरस को देश में फैलने से रोकने के लिए उस वक्त समय रहते तैयारी कर ली गई होती तो शायद देश को कोविड काल और लॉकडाउन के असर से छुटकारा मिल सकता था, लेकिन नहीं, सरकार ने कदम उठाए तब, जब यह वैश्विक महामारी भारत को अपनी आगोश में ले चुका था। ठीक उसी प्रकार से मौसम के मिजाज और गर्मी के तीव्र प्रकोप को नजरंदाज करते हुए जनता पर लोकसभा चुनाव थोप दिया गया, जो अनायास ही आमजनों सहित कई अधिकारियों, कर्मचारियों के हीट स्ट्रोक (लू) से होने वाली मौतों का कारण बन बैठा है।”

राघवेंद्र आगे भी बताते हैं कि”लॉकडाउन का असर/कोविड का कहर और “हीट स्ट्रोक” (लू व गर्मी) से मरने वालों में बस यही फर्क समझ में आता है, वह यह है कि लॉकडाउन (कोविड काल) में होने वाली मौतों से लोग इस कदर सहमे हुए थे कि अपनों को दो गज कफ़न देने की बात तो दूर रही, हाथ लगाने और चेहरा तक देखने के लिए तरस उठे थे। ज्यादातर लाशों को तो लावारिस हालत में नदियों में बहा दिया गया था जिनकी दुर्गति शायद ही कोई भूला हो।

याद आया कोरोना की दूसरी लहर का भयावह मंज़र

उत्तर प्रदेश में पड़ रही भीषण उमस भरी गर्मी और लू के प्रकोप चलते लोगों की मौतों ने हिला रखा है। अकेले लोकसभा चुनाव के मतदान से एक दिन पूर्व 31 मई को जो रौद्र रुप देखने को मिला है वह शाय़द ही भूलने वाला होगा। पिछले दिनों के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो उत्तर प्रदेश में लू व गर्मी से मरने वालों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। तकरीबन तीन सौ लोगों की मौतें गर्मी व लू से हो चुकी है। इसका अंदाजा श्मशान घाटों पर एक के बाद एक लगातार जलती चिताओं को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इन जलती हुई चिताओं के साथ ही लोगों के माथे पर भविष्य को लेकर चिंताएं भी देखी गई हैं कि आगे क्या होगा?

लगातार गर्मी व लू से हो रही मौतों को देखने के बाद एक बार फिर लोगों को कोरोना की दूसरी लहर के भयावह मंजर याद आने लगे है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण के लिए होने वाले मतदान और मतगणना के एक दिन पहले व मतगणना के दिन मिलाकर चुनावी ड्यूटी में लगे 33 कर्मियों, लखनऊ में पीएसी जवान समेत पांच की जान गर्मी व लू के चलते जा चुकी है। राज्य में हीट स्ट्रोक से लगातार हो रही मौतों को देखते हुए राज्य सरकार ने अलर्ट भी जारी किया है। खासकर पुलिस कर्मियों के लिए भी पुलिस महानिदेशक की तरफ से भी दिशा निर्देश जारी किया गया है। स्वास्थ्य विभाग भी लगातार हीट स्ट्रोक लू को लेकर सावधान करता आ रहा है। 

दाह संस्कार की संख्या हुई दोगुनी, बढ़ती रही शवों की संख्या

गर्मी का प्रकोप बढ़ते ही श्मशाम घाटों पर दाह संस्कार की संख्या करीब दोगुनी हो गई है। लखनऊ के भैंसाकुंड पर इन दिनों रोजाना 40 से 45 और गुलाला घाट पर 35-40 दाह संस्कार हो रहे हैं। इनमें बिजली से होने वाले दाह संस्कारों की संख्या भी शामिल है। भैंसाकुंड श्मशाम घाट पर पहले रोजाना 15 से 20 अंत्येष्टियां हुआ करती थीं। अब यह संख्या बढ़कर 40 से 45 तक पहुंच गई है। सेवादार गिरिजा शंकर व्यास बाबा के मुताबिक हीट स्ट्रोक ने मरने वालों की संख्या बढ़ी है, घाट पर शवदाह के लिए आने वाली लाशों में अधिकांश मौसम की मार से मरने वाले लोग ही रहे हैं। ठाकुरगंज स्थित गुलाला घाट में अचानक शवों की संख्या बढ़ी है। सेवादार वीरेंद्र पांडे ने बताया कि रोजाना 30 से 35 शव आ रहे हैं।

पहले यह संख्या 15-20 ही थी, लेकिन मौसम के उग्र मिजाज और हीट स्ट्रोक ने यह संख्या बढ़ा दी है। देखा जाए तो राज्य का शायद ही कोई ऐसा जिला रहा हो जो मौसम की मार से अछूता हो। औद्योगिक नगरी कानपुर का भी बुरा हाल रहा है। भीषण गर्मी में मौतों का आंकड़ा बढ़ता रहा है। घाटों और कब्रिस्तानों के आंकड़ों के अनुसार कानपुर में 238 शवों का अंतिम संस्कार हुआ। घाटों पर चिताएं रखने के लिए जगह कम पड़ जा रही थी। टीन शेड के नीचे जगह न मिलने पर खुली धूप में गंगा किनारे शवों को जलाया जा रहा है।

मतगणना से पूर्व ऐसे ही मंज़र देखने को मिले थे। 180 शवों का अंतिम संस्कार हुआ। भैरोघाट और भगवत दास घाट में पंडों, कर्मियों की शिफ्टों में ड्यूटी लगाई गई थी, ताकि अंतिम संस्कार में किसी भी प्रकार की असुविधा ना होने पाए। संगम नगरी प्रयागराज के झूंसी स्थित छतनाग घाट पर इन दिनों रोजाना 70 से 80 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। एक साथ इतनी चिताओं को जलाने के लिए लकड़ी तक कम पड़ जा रही है। ऐसे में आसपास के इलाकों से श्मशान घाट पर लकड़ी मंगाई जा रही है। स्थानीय पत्रकार विश्वनाथ प्रताप सिंह बताते हैं कि “झूंसी, प्रयागराज में गंगातट के किनारे कोरोना काल जैसे हालात दिखाई दे रहे हैं। कोरोना जब अपनी चरम पर था, तब यहां रोजाना 50 से 60 शवों का अंतिम संस्कार होता था, लेकिन इस वक्त हालात कोरोना काल से भी भयावह हो गए हैं। पिछले चार-पांच दिनों में यहां 200 से 250 शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है।

पूर्वांचल सहित काशी में शवदाह के लिए आने वालों की संख्या में इजाफा

भीषण गर्मी, तपिश और लू से मोक्ष नगरी वाराणसी (काशी), सहित पूर्वांचल के आजमगढ़ और मिर्जापुर मंडल के नौ जिलों में बीते शुक्रवार को 74 लोगों की मौत हो चुकी थी। इनमें 20 मतदान कर्मी और होमगार्ड के वह जवान रहे हैं जिनकी ड्यूटी चुनाव को सम्पन्न कराने के लिए लगाई गई थी। सभी सातवें चरण का चुनाव कराने के लिए पोलिंग पार्टियों के साथ जाने की तैयारी कर रहे थे कि हीट स्ट्रोक ने इन्हें मौत के मुंह में खींच लिया। अकेले मिर्जापुर में ही 8 होमगार्ड जवानों, पीठासीन अधिकारी, सीएमओ आफिस के बाबू, सफाई कर्मी सहित 22 लोगों की मौत हुई है। सोनभद्र में तीन लोगों की मौत हुई है।

विश्व विख्यात मोक्ष नगरी वाराणसी यानि काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका, हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह के लिए महाजाम की स्थिति बनी रही है। घाट से लेकर गलियों तक शव यात्रियों की भीड़ लगी हुई मिली है। वाराणसी में आसपास के जनपदों सहित पड़ोसी राज्य बिहार से भी बड़ी संख्या में लोग अंतिम दाह संस्कार के लिए आते हैं। ऐसे में वाराणसी के गंगा घाट पर लाशों के ढेर, जलती हुई चिताएं, कोरोना काल की बरबस ही याद ताजा किए जा रही हैं। वाराणसी के मनोज कुमार बताते हैं कि “पिछले दिनों से तापमान बढ़ने के बाद शवदाह के लिए आने वालों की संख्या में पांच गुना का इजाफा हुआ है। इसी प्रकार मिर्ज़ापुर के चौबेघाट, चील्ह घाट, विंध्याचल, शिवपुर स्थित राम गया घाट, चुनार गंगा घाट, कछवां बरैनी गंगा घाट पर भी दाह संस्कार करने वालों की भीड़ रही हैं। आजमगढ़ के तमसा नदी, जौनपुर के गोमती नदी, सैदपुर गाजीपुर के गंगा नदी घाट पर लाशों के होने वाले दाह संस्कार और इसके लिए लगने वाली कतारें स्थिति की भयावहता को बताने के लिए काफी रही हैं। 

जलती चिताओं के साथ माथे पर चिंताएं भी

हीट स्ट्रोक से होने वाली मौतों के बाद अचानक घाट पर अंतिम दाह संस्कार करने वालों की भीड़ बढ़ी है। इन जलती चिताओं के साथ उन लोगों के माथे पर भविष्य में क्या होगा की चिंताएं भी देखी गई हैं। मिर्ज़ापुर के हलिया थाना क्षेत्र के हलिया बाजार निवासी समाचार पत्र विक्रेता मुहैतदीन उर्फ गड्डी वर्ष 2001 से 55 वर्ष की अवस्था पार कर लेने के बाद भी अखबार वितरण कर परिवार की जीविका चलाते हुए आ रहे थे। बीते शुक्रवार दोपहर में वह क्षेत्र में साइकिल से अखबार बांट कर वापस घर जा रहे थे कि अदवा नदी में बने पुल के पास पुराने थाने के सामने अचानक उन्हें चक्कर आया और वह जमीन पर लेट गए। उधर से गुजर रहे राहगीरों आनन-फानन में उन्हें उपचार के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर गए। जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनकी मौत हीट स्ट्रोक से होना बताया गया था।

समाचार पत्र विक्रेता/हॉकर मुहैतदीन के बेटे गुलाम ख्वाजा “जनचौक” को बताते हैं कि “अब्बा की मौत लू लगने से हुई है। अब्बा की मौत ने हमें अनाथ बना दिया है।” समाचार पत्र विक्रेता/हॉकर गड्डी के पांच बेटे तथा दो बेटियां हैं। एक बेटा तथा दो बेटी विवाहित हैं। घर में पत्नी समशुन्निशा का रो-रोकर बुरा हाल हो रहा है। अखबार वितरित कर परिवार का जीवन यापन करते आए गड्डी के पास दो बीघा जमीन है। मुहैतदीन उर्फ गड्डी क़ब्र में दफन किए जा चुके हैं लेकिन उनके परिवार के माथे पर भविष्य की चिंताएं कि बची हुई बेटियों के हाथों में कैसे मेहंदी सजेगी, कौन अब्बा के अरमानों को पूरा करेगा यक्ष प्रश्न बन खड़ा हुआ है।

(वाराणसी से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

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