नए आपराधिक कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

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एक जुलाई से तीन नए आपराधिक कानूनों को लागू किया जाना है. मगर उससे पहले ही इस पर रोक लगाने की मांग उठ गई है। तीन नए आपराधिक कानून लागू होने से तीन दिन पहले मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई है। जनहित याचिका में तीनों कानूनों के लागू करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में यह मांग की गई है कि तीनों आपराधिक कानूनों को लागू करने से पहले एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया जाए। इस कमेटी से पहले इसका विस्तृत अध्ययन कराया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में 27 जून को एक याचिका दायर कर तीन नए आपराधिक कानूनों, भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के कार्यान्वयन और संचालन पर रोक लगाने की मांग की गई, जो 1 जुलाई से लागू होने वाले हैं। याचिका में कहा गया है कि विपक्षी सांसदों के निलंबन पर संसद में कोई प्रभावी चर्चा नहीं हुई; सुप्रीम कोर्ट से नए कानूनों की व्यवहार्यता का विश्लेषण करने के लिए तुरंत एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का आग्रह किया गया है।

अंजले पटेल और छाया मिश्रा द्वारा दायर रिट याचिका में, जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता संजीव मल्होत्रा और कुंवर सिद्धार्थ कर रहे हैं, सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया गया है कि वह तीन नए कानूनों की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए तुरंत एक विशेषज्ञ समिति गठित करे, जो आपराधिक प्रक्रिया और न्याय प्रणाली में सुधार करेगा और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेगा।

याचिका में कहा गया है कि तीनों कानूनों को संसद में विस्तृत बहस या प्रभावी चर्चा के बिना पारित कर दिया गया क्योंकि विपक्ष के बड़ी संख्या में सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था। याचिका में कहा गया है, “संसद में विधेयकों का पारित होना अनियमित था क्योंकि कई सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। विधेयकों के पारित होने में लोगों की भागीदारी बहुत कम थी।”

याचिका में संसद से 146 विपक्षी सांसदों के निलंबन के बारे में छपी खबरों का विस्तृत हवाला दिया गया है । इसमें तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों द्वारा गृह मंत्री को दिए गए ज्ञापनों का हवाला दिया गया है, जिसमें नए कानूनों पर आपत्ति जताई गई है। इसने तर्क दिया कि नए कानून अस्पष्ट हैं, जमानत विरोधी हैं, पुलिस को व्यापक शक्तियां प्रदान करते हैं और यहां तक कि गिरफ्तारी के दौरान हथकड़ी फिर से लगाने जैसे कुछ बिंदुओं पर “अमानवीय” भी हैं।

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), जो आईपीसी का स्थान लेती है, ‘गिरोह’, ‘चल संगठित अपराध समूह’ आदि जैसे शब्दों को परिभाषित नहीं करती है।

याचिका में बताया गया है कि बीएनएस मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों को अभियोजन से बचाता है। हालांकि, मानसिक बीमारी की परिभाषा में मानसिक मंदता को शामिल नहीं किया गया है। इसका मतलब यह होगा कि मानसिक मंदता वाले व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है। फिर से, भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए राजद्रोह की जगह एक नया अपराध लागू किया गया है। आतंकवाद भी बीएनएस के तहत एक अपराध है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023, जो सीआरपीसी का स्थान लेती है, 15 दिनों की पुलिस हिरासत की अनुमति देती है, जिसे या तो एक बार में या चरणों में लिया जा सकता है।

याचिका में तर्क दिया गया है, “बीएनएसएस पुलिस को विस्तारित अवधि के लिए किस्तों में हिरासत मांगने का अधिकार देता है, जो शुरुआती 40 या 60 दिनों के दौरान कभी भी हो सकता है… इस प्रावधान के साथ एक गंभीर चिंता यह है कि जांच एजेंसी किस्तों में हिरासत मांगकर आरोपी को दी गई जमानत को नकारने में सक्षम होगी। जिस अवधि के दौरान पुलिस हिरासत मांगी जा सकती है, उसका विस्तार भी एक समस्या पैदा करता है क्योंकि इस तरह की शक्ति के प्रयोग के लिए कोई मानदंड या दिशानिर्देश नहीं है।”

याचिका में यह भी कहा गया कि बीएनएसएस ने धारा 144 सीआरपीसी (निषेधात्मक आदेश पारित करने की कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्ति) को बरकरार रखा है, इस प्रकार यह औपनिवेशिक विरासत से हटने में विफल रहा है।

इसमें कहा गया है, “भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता विधेयक, 2023 घोषित ‘उपनिवेशवाद-विमुक्ति’ से बहुत दूर है क्योंकि यह पुलिस को नागरिकों के अधिकारों को दबाने और औपनिवेशिक काल की तरह ‘पुलिस राज्य’ बनाने की शक्ति देता है।”

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023, जो साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेता है, ने इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में वर्गीकृत किया है। साक्ष्य अधिनियम ने उन्हें द्वितीयक साक्ष्य के रूप में वर्गीकृत किया था। इसने सेमीकंडक्टर मेमोरी या किसी संचार उपकरण (स्मार्टफोन, लैपटॉप) में संग्रहीत जानकारी को शामिल करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का और विस्तार किया है।

याचिका में कहा गया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 में ऐसे अभिलेखों की स्वीकार्यता का प्रावधान है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कोई सुरक्षा उपाय नहीं किए गए हैं कि तलाशी और जब्ती या जांच प्रक्रिया के दौरान उनके साथ छेड़छाड़ न की जाए।

दरअसल 1 जुलाई से देश में तीनों नए आपराधिक कानून लागू होने हैं। कांग्रेस भी कुछ ऐसा ही मांग करती आई है । कांग्रेस का कहना है कि तीन नए आपराधिक कानूनों का क्रियान्वयन टाला जाना चाहिए ताकि इन तीनों कानूनों की गृह मामलों से संबंधित संसद की पुनर्गठित स्थायी समिति द्वारा गहन समीक्षा की जा सके।

संसद ने पिछले साल शीतकालीन सत्र में इन विधेयकों पर चर्चा की थी और इन्हें पारित किया था। लोकसभा के कुल 37 सदस्यों और राज्यसभा के 40 सदस्यों ने इस चर्चा में भाग लिया था। पिछले साल पारित ये नए कानून ब्रिटिश काल के क्रमश: भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेंगे।

‘जीरो’ प्राथमिकी, पुलिस में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराना, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से समन और सभी जघन्य अपराधों के अपराध दृश्यों की अनिवार्य वीडियोग्राफी तीन नए आपराधिक कानूनों की प्रमुख बातें हैं, जो एक जुलाई से लागू होंगे। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 भारतीय नागरिकों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और इसका उद्देश्य सभी के लिए अधिक सुलभ, सहायक और प्रभावी न्याय प्रणाली सुनिश्चित करना है।

नए कानूनों के तहत अब कोई भी व्यक्ति पुलिस थाने जाए बिना इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम से घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज करा सकता है। इससे मामला दर्ज कराना आसान और तेज हो जाएगा तथा पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई की जा सकेगी। ‘जीरो’ प्राथमिकी से अब कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट (प्राथमिकी) दर्ज करा सकता है चाहे अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में न हुआ हो। इससे कानूनी कार्यवाही शुरू करने में होने वाली देरी खत्म होगी और अपराध की शिकायत तुरंत दर्ज की जा सकेगी। नए कानूनों के तहत पीड़ितों को प्राथमिकी की एक निशुल्क प्रति दी जाएगी जिससे कानूनी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित होगी।

नए कानून में जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि गिरफ्तारी की सूरत में व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार दिया गया है। इससे गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत सहयोग मिल सकेगा । इसके अलावा गिरफ्तारी विवरण पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा जिससे कि गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार और मित्र महत्वपूर्ण सूचना आसानी से पा सकेंगे। मामले तथा जांच को मजबूत करने के लिए फॉरेंसिक विशेषज्ञों का गंभीर अपराधों के लिए अपराध स्थल पर जाना और सबूत एकत्रित करना अनिवार्य बना दिया गया है। इसके अलावा, अपराध स्थल से सबूत एकत्रित करने की प्रक्रिया की अनिवार्य रूप से वीडियोग्राफी करायी जाएगी ताकि सबूतों में किसी प्रकार की छेड़छाड़ को रोका जा सके।

नए कानूनों में महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गयी है जिससे सूचना दर्ज किए जाने के दो महीने के भीतर जांच पूरी की जाएगी। नए कानूनों के तहत पीड़ितों को 90 दिन के भीतर अपने मामले की प्रगति पर नियमित रूप से जानकारी पाने का अधिकार होगा। नए कानूनों में महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराध के पीड़ितों को सभी अस्पतालों में निशुल्क प्राथमिक उपचार या चिकित्सीय उपचार मुहैया कराया जाएगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि पीड़ित को आवश्यक चिकित्सीय देखभाल तुरंत मिले।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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