सीवर-सेप्टिक टैंकों में होने वाली मौतों पर झूठ बोल रही मोदी सरकार: बेजवाड़ा विल्सन

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। देश के विभिन्न शहरों में अक्सर सफाई कर्मियों के सीवर-सेप्टिक टैंक में घुसकर सफाई करने के दौरान जहरीली गैसों से दम घुटने की खबरें आती रहती हैं। सरकार इस अमानवीय प्रथा पर रोक लगाने की जगह टैंकों में हुई मौतों के बारे में झूठ बोल रही है। यानी मोदी सरकार आंकड़ों में हेर-फेर कर रही है।

केंद्रीय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने संसद में 25 जुलाई, 2023 को बताया कि पिछले पांच सालों में देश भर में 339 लोग सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए मारे गये। जबकि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में अब कोई भी इंसान मैला ढोने की कुप्रथा में नहीं लगा हुआ है।

सफाई कर्मचारी आंदोलन ने संसद में केंद्र सरकार द्वारा सीवर-सेप्टिक टैंक में हुई मौतों के बारे में दिये गये आंकड़ों पर सख्त आपत्ति जताते हुए कहा है कि ये सही संख्या नहीं है। सिर्फ 2023 में जनवरी से जुलाई तक 58 भारतीय नागरिकों की सीवर-सेप्टिक टैंक में मौतें हो चुकी हैं, जबकि सदन में बताया गया कि इस साल सिर्फ नौ लोग मारे गये।

सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाडा विल्सन कहते हैं कि “इन मौतों का ब्यौरा सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) के पास है, जिन्हें उसने सार्वजनिक रूप से साझा किया है। मंत्री ने सदन में पिछले पांच सालों में सीवर में मौतों का जो आंकड़ा पेश किया, वह बहुत कम है, तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।”

सफाई कर्मचारी आंदोलन ने रामदास अठावले के बयान पर आपत्ति उठाते हुए कहा कि यह कहना तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक है। यह बयान यह दर्शाता है कि सरकार इस वंचित और हाशिये पर खड़े लोगों की मौतों के प्रति कितनी असंवेदनशील है। देश को मैला प्रथा से मुक्त होने को तब तक घोषित नहीं किया जा सकता, जब तक देश के इतने अधिक नागरिक सीवर-सेप्टिक टैंक में मारे जा रहे हैं।

गौरतलब है कि यह जातिवादी कुप्रथा देश भर में चल रही है और 2013 के नए कानून (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehablitation 2013) की परिभाषा के अनुसार इसका खात्मा नहीं हुआ है। इसीलिए मैला ढोने वालों का नया सर्वेक्षण होना चाहिए, ताकि इसका उन्मूलन किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2014 के आदेश के मुताबिक सीवर-सेप्टिक टैंक में मरने वाले लोगों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना है। विडंबना है कि अब तक मारे गये 1315 लोगों में से केवल 266 लोगों के परिजनों को ही यह मुआवजा मिला है। यानी 80 फीसदी मारे गये लोगों के परिजनों को अभी तक देश की सर्वोच्च अदालत के अनुसार भी मुआवजे से वंचित रखा गया है।

सीवर-सेप्टिक टैंक में हो रही इन हत्याओं को रोकने के लिए सफाई कर्मचारी आंदोलन 11 मई, 2022 से एक राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहे हैं #StopKillingUs #हमें मारना बंद करो। आंदोलन से जुड़े लोग रोजाना सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करते हैं। आज इस अभियान का 443 वां दिन है। सरकार इन हत्याओं को बंद करने, देश को मैला प्रथा से पूरी तरह से मुक्त करने के बजाय, सिर्फ आंकड़ों को कम दिखाने की जुमलागिरी कर रही है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments