राजस्थान के जेएनवीयू विश्वविद्यालय में असुरक्षा और भय में जीने को मजबूर छात्राएं

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जोधपुर। एक सप्ताह पहले देश भर के अख़बारों, न्यूज़ चैनलों में एक नाबालिग लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बाद चर्चा में रहा राजस्थान का जोधपुर शहर अब ‘सामान्य स्थिति’ की तरफ़ लौट गया है। हालांकि लगभग पुलिस की छावनी में तब्दील हो चुका जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय (जेएनवीयू) का पुराना परिसर अब भी ताकीद कर रहा है कि उस घटना का ‘घटना स्थल’ यही जगह थी।

इस बीच राजस्थान पुलिस, घटना से जुड़े चारों आरोपियों को ‘तत्काल कार्रवाई’ करके गिरफ्तार कर चुकी है। आरोपियों के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े होने के आरोप के कारण देश-प्रदेश की राजधानियों में विपक्षी छात्र-संगठनों ने विरोध दर्ज करवाया है, विधानसभा में पक्ष-विपक्ष के बीच इसको लेकर बहस हो चुकी है और मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के बीच जब कुकी महिलाओं के साथ हो रही वीभत्स हिंसा के वीडियो पर प्रधानमंत्री ने 77 दिनों के बाद चुप्पी तोड़ते हुए बयान दिया तो उसमें इस घटना की ओर भी इशारा था ‘घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की हो या मणिपुर की हो, कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।’

क्या है पूरा मामला

15 जुलाई की रात एक नाबालिग युवती अपने एक मित्र के साथ अजमेर से अहमदाबाद का सोचकर घर से निकले थे, रात्रि में जोधपुर पहुंचने के बाद वे अहमदाबाद के लिए बस की खोजबीन कर रहे थे, इतने में उक्त इन तीन लोगों ने उन्हें मदद की पेशकश की और उन्हें खाना खिलाने के बाद बंधक बना लिया। उसके बाद वे उन्हें जेएनवीयू के पुराना परिसर के हॉकी मैदान में ले आए, जहां युवती के दोस्त को बांध कर नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार किया।

लोगों की आहट सुनने के बाद तीनों आरोपी वहां से नदारद हो गए, मॉर्निंग वॉक पर आने वालों ने जब इन्हें देखा तो पुलिस को सूचना दी। अगले आठ घंटों के भीतर ही पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया, पुलिस के अनुसार उनमें से दो विश्वविद्यालय के छात्र थे, जबकि एक उदयपुर में पढ़ाई कर रहा था और तीनों विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तरफ़ से दावेदारी कर रहे छात्र नेता के कार्यकर्ता थे। पुलिस की कार्यवाही, विधानसभा में हंगामा, और छात्र संगठनों के विरोध के बाद अब इस मामले को लेकर चर्चाएं थम चुकी हैं।

जेएनवीयू परिसर और छात्राओं की रोज़मर्रा की ज़िंदगी

इस पूरे प्रकरण की चर्चा से जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू सिरे से ग़ायब रहा वह विश्वविद्यालय परिसर के भीतर महिलाओं की सुरक्षा और उन्हें रोज़मर्रा होने वाली दिक़्क़तें हैं। इन दिनों प्राइवेट विश्वविद्यालयों के विज्ञापन में एक शब्द इस्तेमाल होने लगा है ‘कैम्पस लाइफ’, आख़िर टियर टू शहरों में स्थित स्टेट यूनिवर्सिटी में महिला छात्राओं की ‘कैम्पस लाइफ़’ कैसी होती है?

जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के दो परिसर हैं और एक महिला महाविद्यालय, विश्वविद्यालय से सम्बन्धित छात्रावास शहर के अलग-अलग हिस्सों में हैं, वहीं तीन महिला छात्रावास भी है। जिनमें से दो विश्वविद्यालय के नये परिसर में और एक कमला नेहरू गर्ल्स कॉलेज परिसर के भीतर है।

नया परिसर के महिला छात्रावास में रह कर पढ़ाई करने वाली एक छात्रा बताती है, “हॉस्टल के अलावा यूनिवर्सिटी कैम्पस में किसी भी जगह इत्मीनान से नहीं रहा जा सकता, और फिर जैसे-जैसे लोग कम होते जाते हैं डर और ख़तरा दोनों बढ़ता रहता है, छात्रसंघ चुनावों के समय स्थिति और अधिक ख़राब हो जाती है।”

हॉस्टल के बंद होने के समय के सवाल पर वे बताती हैं कि सारे गर्ल्स हॉस्टल पांच बजे बन्द हो जाते हैं, अगर उसके बाद किसी को बाहर जाना है तो स्पेशल परमीशन की ज़रूरत पड़ती है। इस घटना के बाद परिवार वाले चिंता में है, और मुझे भी लगने लगा है कि कैम्पस उतना सेफ्टी नहीं है। वहीं कैम्पस के बाहर रहकर पढ़ने वाली रुचि बताती है कि वह कैम्पस हमेशा अपनी एक दोस्त के साथ जाती है, अगर किसी दिन उनकी दोस्त नहीं जाती तो वे भी उस दिन यूनिवर्सिटी नहीं जाती है। यूनिवर्सिटी में अनजान आदमी से बात करने को वे हमेशा टालती है। लाइब्रेरी और डिपार्टमेंट के अलावा कैम्पस के दूसरे हिस्सों में अभी तक उनका जाना नहीं हो पाया है, साथ ही छात्र संघ चुनाव के समय वे यूनिवर्सिटी जाना बिल्कुल बन्द कर देती हैं।

इन छात्राओं से बातचीत में स्पष्ट हो जाता है कि आम दिनों में भी जेएनवीयू में पढ़ने वाली छात्राएं सुरक्षित महसूस नहीं करती, विश्वविद्यालय अपने परिसरों को महिलाओं के लिए समावेशी बनाने में असफल रहा है। सुरक्षा के इन्तज़ाम के लिए विश्वविद्यालय में न तो सिक्योरिटी गार्ड की व्यवस्था है और ना ही गेट और दीवारें सुरक्षित हैं। यूनिवर्सिटी से जुड़े छात्र नेता मोती सिंह बताते हैं कि यूनिवर्सिटी ने सीसीटीवी कैमरों के लिए 18 करोड़ रुपये का बजट पास किया था, लेकिन वह बजट कहां गया किसी को कुछ नहीं मालूम।

विश्वविद्यालयों में रैगिंग और सेक्सुअल हरेसमेंट के प्रकरणों को कम करने के लिए यूजीसी ने गाइडलाइन जारी कर रखी है, जिसके तहत हर विश्वविद्यालय को इन्टर्नल कम्प्लेन सेन्टर (ICC) की व्यवस्था करनी होती है, तहक़ीक़ात करने पर मालूम चला कि जेएनवीयू में ICC तो बनाई गई, लेकिन 2015 से 2021 तक में केवल दो छात्रों पर अनुशासनिक कार्यवाही हुई, और सेक्सुअल हरेसमेंट सम्बन्धित कोई भी प्रकरण रजिस्टर नहीं हुआ है।

छात्राओं से पूछने पर मालूम चला कि ICC को लेकर उन्हें कोई जानकारी नहीं है, ऐसे में मालूम चलता है कि विश्वविद्यालय में ICC की कोई भूमिका नहीं है, ICC जैसे मैकेनिज्म में फैल्योर का मतलब है कि महिलाओं के पास आम दिनों में होने वाली ईव-टिजींग, स्टॉकिंग और एब्यूज जैसी घटनाओं की शिकायत के लिए कोई जगह ही नहीं है। महिला सुरक्षा के इन पहलुओं पर कमजोर होने के बाद, विश्वविद्यालय के पास सुरक्षा प्रदान करने का एक ही तरीक़ा वह है छात्राओं को हॉस्टल में बन्द करके रखो या हो सके उतना पुरूष और महिला छात्रों बीच दूरी बनाए रखो।

विश्वविद्यालय की छात्र-संघ राजनीति

विश्वविद्यालय की छात्र-संघ राजनीति को पहली नज़र में देखने से ही मालूम चल जाता है कि अभी तक विश्वविद्यालय स्त्रीवाद के साथ अन्य सभी प्रगतिशील विचारों से दूरी बनाए हुए हैं। जेएनवीयू के छात्र-संघ की राजनीति मुख्य तौर पर पश्चिमी राजस्थान की दो जातियों राजपूत और जाट के बीच प्रभुत्व की लड़ाई है, इस प्रभुत्व को बचाने के लिए पूरे संभाग के नेता, उद्योगपति और समाजसेवी कहलाने वाले लोग अपना निवेश करते हैं।

जेएनवीयू में अब तक केवल एक महिला छात्र-संघ अध्यक्ष रही है, जानकार बताते है छात्र-संघ अध्यक्ष रही कांता ग्वाला भी इसलिए बन पाई क्योंकि असल प्रत्याशी उनके भाई थे, जो किसी कारणवश चुनाव नहीं लड़ सकते थे, इसलिए उन्हें चुनाव लड़ाया गया।

विश्वविद्यालय से जुड़े गर्ल्स कॉलेज की प्रेसिडेंट कोमल कंवर चारण बताती हैं कि “यूनिवर्सिटी चुनावों में बड़े तौर महिलाओं की कोई भागीदारी नहीं है, केएन गर्ल्स कॉलेज के अलावा यूनिवर्सिटी के बाक़ी दो परिसरों में अधिकतर छात्राएं वोट देने तक नहीं आती। इलेक्शन के समय बाहर के इतने लोग शामिल होते हैं कि दोनों कैम्पस की छात्राएं निष्क्रिय हो जाती हैं। और छात्रसंघ प्रत्याशी छात्राओं के मुद्दे को कभी तरजीह नहीं देते। वहीं सारे छात्र संगठन भी हमेशा लड़कों को ही प्राथमिकता देते हैं, बस एक जैसे नियम बन गया है कि लड़की तो उपाध्यक्ष या महासचिव लड़ सकती है, लेकिन अध्यक्ष पद के लिए नहीं।”

छात्र-संघ चुनावों में ऐसे प्रत्याशी को अच्छा प्रत्याशी माना जाता है जो चुनावों के लिए आर्थिक संसाधनों के साथ ही प्रभावशाली लोगों का समर्थन जुटा सके, ज़रूरत पड़ने पर लड़ाई-झगड़े और हिंसा के लिए तैयार रहे, साथ ही जिसकी ‘दबंग छवि’ हो और आवश्यक तौर पर जाट या राजपूत हो, या कि अपनी जातीय श्रेष्ठता में विश्वास रखता हो; ऐसे तत्वों से रची छात्र-राजनीति भी जेएनवीयू जैसे विश्वविद्यालय को महिलाओं के लिए समावेशी ना बन पाने का एक बड़ा कारण है।

(जोधपुर से विभांशु कल्ला की रिपोर्ट।)

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    Ghanshyam Singh

    एकदम सच रिपोर्ट, JNVU के हालात सच में यही है लेकिन ऐसी खबर राजस्थान के पत्रकारों द्वारा नहीं दिखाई देती। इसको लेकर विश्वविद्यालय और सरकार को सख्त कदम उठाने पड़ेंगे।

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