किसानों के सामने झुकी पंजाब सरकार, समझौते से गायब रहे मुख्यमंत्री

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किसानों के आगे आम आदमी पार्टी की अगुवाई वाली भगवंत मान सरकार आखिर झुक ही गई। बेशक आंशिक तौर पर। लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य और ‘आप’ विधायक पीछे रहे। अफसरशाही को लोंगोवाल में मोर्चा लगाए बैठे किसानों से बातचीत के लिए आगे किया गया। उत्तर भारत के 16 किसान संगठनों ने अनियमित काल के लिए धरना-प्रदर्शन और राज्य सरकार के खिलाफ दिल्ली की तर्ज पर व्यापक ‘पक्का मोर्चा’ लगाने की घोषणा की थी। राज्य सरकार इसके नतीजे से डर गई और समझौते की राह अख्तियार की। संयुक्त किसान संगठन और पुलिस-प्रशासन के बीच बंद कमरा मीटिंग हुई। किसानों ने ऐलान किया कि सरकार ने कमोबेश उनकी फौरी मांगे मान ली हैं। अलबत्ता मोर्चा तब तक जारी रहेगा, जब तक मांगों को अमली जामा नहीं पहनाया जाता।

21 अगस्त को संगरूर जिले के लोगोंवाल में चंडीगढ़ की ओर कूच करते किसानों और पुलिस के दरमियान हिंसक मुठभेड़ हुई थी। इसमें एक किसान प्रीतम सिंह की मौत हो गई और बीसियों जख्मी हो गए। एक पुलिस अधिकारी भी चोटिल हुआ। पुलिस ने 50 से ज्यादा किसानों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी। सैकड़ों किसानों की धरपकड़ हुई और कई किसान नेताओं को उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया। पंजाब में एक किस्म से ‘इमरजेंसी’ जैसा माहौल बन गया। कम से कम किसानों के लिए तो ऐसा ही है।

6000 पुलिसकर्मियों और अर्धसैनिक बलों की तैनाती से किसानों को चंडीगढ़ जाने से रोका गया। किसानों और पुलिस के बीच तीखा संघर्ष भी हुआ। किसान चंडीगढ़ की सीमा से आगे नहीं बढ़ पाए तो उन्होंने अपना रुख मुख्यमंत्री भगवंत मान के इलाके में पड़ने वाले लोगोंवाल की ओर मोड़ दिया। वहां ऐलान किया गया कि, जब तक किसानों की मांगे नहीं मानी जातीं, तब तक लोंगोवाल सहित पंजाब के 15 स्थानों पर खिलाफत में और इंसाफ के लिए ‘पक्का मोर्चा’ लगाया जाएगा। 24 घंटों में ही भगवंत मान सरकार हश्र समझ गई और कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को आगे किया गया।

भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष जसविंदर सिंह सोमा ने बताया कि, “पंजाब पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच किसानों की बैठक हुई और उसमें तय हुआ कि 21 अगस्त को पुलिस मुठभेड़ के दौरान मारे गए किसान प्रीतम सिंह के परिवार को 10 लख रुपए नगद मुआवजा और परिवार का सारा कर्ज माफ किया जाएगा। परिवार के एक सदस्य को योग्यतानुसार नौकरी दी जाएगी।”

सोमा ने कहा कि घायलों को दो-दो लाख रुपए मुआवजे के तौर पर दिए जाएंगे। आंदोलन के दौरान जिन किसानों के वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं, उनकी मरम्मत सरकार करवा कर देगी। कुछ दिन पहले सरकार ने विभिन्न स्थानों पर 200 के करीब किसानों और खेत-मजदूरों की गिरफ्तारियां की थीं। 21 अगस्त को 50 से ज्यादा किसानों को हिरासत में लेकर संगीन धाराओं के तहत उनपर मुकदमा दर्ज किया गया था। तमाम मामले वापिस लेने का आश्वासन पुलिस ने दिया है। जसविंदर सिंह ने कहा कि किसान मजदूर संगठनों के साथ-साथ विभिन्न चैनलों से किसान समर्थक पत्रकारों के बंद किए गए सोशल मीडिया पेजों को भी तुरंत बहाल किया जाएगा।

संयुक्त किसान मोर्चा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने बताया कि 22 अगस्त को चंडीगढ़ में भगवंत मान सरकार के खिलाफ धरना दिया जाना था। उसे लेकर एक केंद्रीय मंत्री से किसान संगठनों की बातचीत हुई थी। आला अधिकारियों ने भरोसा दिया है कि वे पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित से लिखित तौर पर किसान नेताओं की मुलाकात तय करेंगे और केंद्रीय मंत्री से मुलाकात को लेकर पंजाब सरकार केंद्र सरकार को पत्र लिखेगी। उन्होंने साफ किया कि जब तक पंजाब के राज्यपाल या केंद्रीय मंत्री के साथ किसान संगठनों की बैठक का लिखित पत्र उन्हें नहीं मिल जाता, तब तक सूबे में पंद्रह जगह पर चल रहे पक्के मोर्चे लगातार जारी रहेंगे।

बैठक में सरकार की ओर से आईजी (इंटेलिजेंस) जसकरण सिंह, आईजी (पटियाला रेंज) मुखविंदर सिंह छीना, आईजी (बार्डर रेंज) नरेंद्र भार्गव और संगरूर के एसएसपी सुरेंद्र लांबा) शामिल थे। आईजी स्तर के एक अधिकारी ने भी इन तमाम बातों की पुष्टि की। बैठक में संयुक्त मोर्चा हरियाणा के नेता सुरेश कैंथ भी शामिल थे। दरअसल, आंदोलनरत किसानों ने कहा था कि उनके साथ देने के लिए हरियाणा और राजस्थान से भी किसान पंजाब आएंगे।

अहम सवाल है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान या उनका कोई प्रतिनिधि मंत्री अथवा विधायक किसानों से सीधे क्यों नहीं मिलना चाहता? आला अधिकारियों के जरिए बातचीत करके सरकार क्या साबित करना चाहती है? किसान नेता मनजीत सिंह के अनुसार, “शायद इसकी एक वजह यह हो कि समझौते के तहत हुई शर्तों में से किसी से मुकरना पड़े तो ठीकरा ब्यूरोक्रेसी पर फूटे!

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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