संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र के एजेंडे पर विपक्ष का अविश्वास

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नई दिल्ली। 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का पांच दिनों का विशेष सत्र शुरू होगा। 13 सितंबर बुधवार की रात सरकार ने इस विशेष सत्र के लिए एजेंडे का खुलासा कर दिया है। लेकिन सरकार ने जो एजेंडा सार्वजनिक किया है उस पर कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने भ्रम फैलाने और समूचे एजेंडे को सार्वजनिक न करने का आरोप लगाया है।

टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि “संसद के विशेष सत्र का पूरा एजेंडा अभी भी सामने नहीं आया है। सरकार की जो कार्य सूची आई है उसमें एक पंक्ति द्विअर्थी है। जिसमें कहा गया है कि यह विस्तृत कार्य सूची नहीं है। वे गंदी चालें चलेंगे, और वे आखिरी मिनट में कार्यसूची में कुछ जोड़ सकते हैं।”

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया कि “मुझे यक़ीन है कि विधायी हथगोलों को छिपाया जा रहा और हमेशा की तरह उसे अचानक आख़िर में सामने लाया जाएगा। पर्दे के पीछे कुछ और है।”

संसद के विशेष सत्र में सरकार ने जो एजेंडा सार्वजनिक किया है उसके मुताबिक आजादी के 75 साल पूरे होने पर संसद की यात्रा से लेकर संविधान सभा तक की चर्चा की जाएगी। इसके साथ इस विशेष सत्र में चार विधेयक भी पेश किए जाएंगे जिसमें मुख्य रुप से चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर एक विधेयक लाया जाएगा। जिस पर देश में माहौल काफी गर्म हो चला है। इसके अलावा डाकघर संशोधन विधेयक, प्रेस और आवधिक संशोधन विधेयक, अधिवक्ता संशोधन विधेयक आदि पर चर्चा की जाएगी।

इनमें से कुछ विधेयक जैसे डाकघर और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर विधेयक को अगस्त 23 में राज्य सभा में पेश किया गया था। 18 सितंबर को संसद के दोनों सदनों में 75 सालों के सफर में संविधान और संसद के अनुभवों, उपलब्धियों, यादों और लोकतंत्र में इनके योगदान की चर्चा की जाएगी। बाकी के चार दिनों में विधेयकों पर।

इससे पहले जब सरकार द्वारा संसद के विशेष सत्र की घोषणा की गई थी तब इसके एजेंडे को नहीं बताया गया था। ऐसे में तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि शायद यह विशेष सत्र इंडिया और भारत के नाम बदलने और वन नेशन वन इलेक्शन पर विधेयक लाने के लिए बुलाया गया हो। ऐसे भी कयास लगाए गए कि शायद संसद को भंग कर समय से पहले ही चुनाव कराने के लिए विशेष सत्र बुलाया गया हो। लेकिन इन सब पर विराम लगाते हुए सरकार ने अब उपरोक्त एजेंडे को सार्वजनिक पटल पर ला दिया है।

इन बिलों में सबसे ज्यादा चर्चा मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एवं उसके कार्यकाल को लेकर है। जिस पर विपक्ष ने भी पुरजोर विरोध करने की ठान ली है। अभी तक मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की कमेटी करती आ रही थी।

इस कमेटी से मुख्य न्यायाधीश को हटाने को लेकर यह बिल लाया जा रहा है। उनकी जगह सरकार के किसी कैबिनेट मंत्री को रखा जाना प्रस्तावित हुआ है जिससे सरकार अपने मन का चुनाव आयुक्त नियुक्त कर सकेगी।

कुछ दिन पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने का एजेंडा पूछा था। और उस पत्र में अपनी ओर से कई एजेंडा रखने का सुझाव भी दिया था। इस पत्र का जिक्र करते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया है।

जयराम रमेश ने लिखा, ”सोनिया गांधी के पीएम को चिट्ठी लिखने के बाद पड़े दबाव के कारण आख़िरकार मोदी सरकार ने 5 दिन के विशेष संसदीय सत्र के एजेंडे की घोषणा की है। इस वक़्त जो एजेंडा प्रकाशित किया गया है, उसमें कुछ नहीं है। इसके लिए नवंबर में होने वाले शीतकालीन सत्र तक रुका जा सकता था। कांग्रेस नेता ने बताया कि इंडिया गठबंधन से जुड़ी पार्टियां मुख्य चुनाव आयुक्त विधेयक का विरोध करेंगी।

(आजाद शेखर जनचौक के उप संपादक हैं)

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