ग्राउंड रिपोर्ट: स्वयं सहायता समूह से आत्मनिर्भर बनती बीकानेर के बिंझरवाड़ी गांव की महिलाएं

Estimated read time 1 min read

बीकानेर, राजस्थान। महिलाओं विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आज़ादी के बाद से ही कई प्रकार की योजनाएं संचालित की जाती रही हैं। इसमें स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की परिकल्पना ने धरातल पर महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसके माध्यम से महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनने में बहुत सहायता मिली है। यही कारण है कि देश के तमाम राज्यों में स्वयं सहायता समूह संचालित किये जा रहे हैं। जिससे जुड़कर महिलाएं आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन रही हैं और अपने परिवार और बच्चों का भविष्य संवार रही हैं। आमतौर पर इन समूहों में सदस्यों की संख्या 10 से 20 तक होती है।

मार्च 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार देश भर में करीब 118.3 लाख समूह संचालित हो रहे हैं, जिन्होंने करीब 14.2 करोड़ ग्रामीण परिवारों को सशक्त किया है। ख़ास बात यह है कि सरकार इन समूहों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान और वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है। सरकार ने समूहों से जुड़ी सभी महिलाओं की वार्षिक आय को वर्ष 2024 तक एक लाख रुपये तक करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

इसके अतिरिक्त महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के गठन और अन्य सहायता के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संसाधन भी मुहैया कराये जाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाना, स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराकर शहरों की ओर होने वाले पलायन को रोकना और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना प्रमुख लक्ष्य रहा है। जिसका धरातल पर सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहा है।

राजस्थान के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वयं सहायता समूह संचालित किये जा रहे हैं। इसमें बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक का बिंझरवाड़ी गांव भी शामिल है। जहां सफलतापूर्वक स्वयं सहायता समूह संचालित किया जा रहा है। इसमें गांव के गरीब परिवारों को जहां आर्थिक सहायता मिल रही है वहीं गांव के हर परिवार का भी विकास हो रहा है। माना जाता है कि गांव 600 साल पुराना है और सबसे पहले इस गांव में बिंजर जाति के लोग आबाद हुए थे। जिसके कारण इस गांव का नाम बिंझरवाड़ी हो गया है।

गांव के 33 वर्षीय मुनि राम का कहना है कि भले ही यह गांव अनुसूचित जाति बिंजर समुदाय के नाम से आबाद हुआ है। लेकिन गांव में अलग अलग जातियों के लोग भी आबाद हैं। इनमें 40 घर ब्राह्मण, 50 राजपूत, 200 घर मेघवाल समुदाय के हैं। जबकि बिंजर समुदाय के 400 परिवार आबाद हैं। विभिन्न समुदायों की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह का गठन कर रखा है। जिससे उन्हें आर्थिक सहायता प्राप्त होती है।

गांव की महिलाओं ने इंदिरा गांधी स्वयं सहायता समूह और लक्ष्मी बाई समूह जैसे नामों से कई समूह बनाए हैं। प्रत्येक समूह में 10 से 20 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। गांव के ही एक स्थान पर हर महीने की 10 तारीख को दोपहर 12 बजे से 2 तक समूह की सभी महिलाएं मीटिंग करती हैं। जहां न केवल समूह से जुड़े कामकाज पर चर्चा होती है और आगे की रणनीति बनाई जाती है, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है।

इसमें महिलाएं अपने पारिवारिक जीवन में आने वाली चुनौतियों को भी रखती हैं, जिस पर सभी महिलाएं मिलकर चर्चा के माध्यम से सामूहिक रूप से हल निकालने का प्रयास करती हैं। इस प्रकार यह मीटिंग न केवल काम तक सीमित होता है बल्कि आने वाली कठिनाइयों से पार पाने का भी सरल माध्यम बन जाता है। यह महिलाएं आपस में ही समूह के नियमों का सख्ती से पालन करती हैं।

यही कारण है कि जो महिला मीटिंग में देरी से पहुंचती है तो उसे 5 रुपये पेनल्टी देनी पड़ती है और जो महिला बिना कारण मीटिंग से अनुपस्थित रहती है, उसे 10 रुपये पेनल्टी के रूप में भरनी पड़ती है, साथ ही उनके न आने के कारणों को एक डायरी में नोट किया जाता है। समूह द्वारा अर्जित की गई बचत राशि को महिलाएं आवश्यकता अनुसार खर्च करती हैं। जिस महिला को पारिवारिक कारणों से पैसों की ज़रूरत होती  है, उसे इसके द्वारा काफी मदद मिलती है।

इस संबंध में समूह की एक कार्यकर्ता 45 वर्षीय कृष्णा का कहना है कि “स्वयं सहायता समूह के माध्यम से न केवल महिलाएं सशक्त हो रही हैं बल्कि उनके द्वारा गांव के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है। समूह के जरिए गांव के 400 घरों में शौचालय बनवाए गए हैं और बालिकाओं के शैक्षणिक विकास के लिए भी राशि खर्च की गई है।”

उन्होंने कहा कि “बालिकाओं के विकास के लिए और उन्हें 10वीं तथा 12वीं कक्षा की तैयारी के लिए भी आर्थिक सहायता प्रदान की गई है। ऐसे अनेक सहयोग किए गए हैं जिससे ग्रामीण गरीब परिवार को आर्थिक सहायता मिले और उनके बच्चों की शिक्षा में किसी प्रकार का रुकावट न आये। इसके अलावा महिलाओं ने इस स्वयं सहायता समूह के माध्यम से अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भी समय-समय पर आवाज़ें उठाई हैं।”

सरकार की ओर से भी स्वयं सहायता समूह को मज़बूत और सशक्त बनाने के लिए समय-समय पर आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। समूह के गठन के तीन महीना पूरा होने के बाद उसे धनराशि प्रदान की जाने लगती है। वहीं जो महिलाएं रोजगार करना चाहती हैं उन्हें बैंक से आसान किस्तों पर 50 हजार से 1 लाख 10 हजार रुपये तक का ऋण भी दिया जाता है।

राजस्थान सरकार की ओर से भी 2023-24 के बजट में महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए 5 लाख नए परिवारों को स्वयं सहायता समूह से जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है। इसके अतिरिक्त महिला निधि के माध्यम से स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को उपलब्ध कराये जाने वाले एक लाख रुपये तक के ऋण पर 8 प्रतिशत ब्याज अनुदान दिए जाने की घोषणा की गई है। सरकार की यह पहल न केवल स्वयं सहायता समूहों को मज़बूत बनाएगी बल्कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के जीवन में भी मील का पत्थर साबित होगी। (चरखा फीचर)

(राजस्थान के बीकानेर से स्नेहा की रिपोर्ट।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments