पीएम मोदी के भोपाल दौरे से पहले उमा भारती ने एक बार फिर उठाया महिला आरक्षण में ओबीसी कोटे का मुद्दा

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नई दिल्ली। बीजेपी के भीतर महिला आरक्षण में ओबीसी कोटे का मसला बड़ा बनता जा रहा है। बिल पारित होने के दिन और उसके बाद से एमपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती लगातार इस मुद्दे को उठा रही हैं। अब जबकि पीएम मोदी एमपी का दौरा करने जा रहे हैं तब एक बार फिर उन्होंने इस मुद्दे को उठा दिया है।

उन्होंने सोमवार को एक बयान में कहा कि वह आशा करती हैं कि हाल में संसद से पारित महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी कोटा लागू होने के मसले पर पीएम मोदी एक सकारात्मक संकेत देंगे।

इसके पहले पिछले सप्ताह भारती ने संवैधानिक संशोधन विधेयक में ओबीसी कोटा को न शामिल किए जाने पर गहरी निराशा जाहिर की थी। गौरतलब है कि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं की 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी।

उमा भारती ने एक्स पर अपनी एक पोस्ट में कहा कि “भोपाल की जमीन पर प्रधानमंत्री का स्वागत है। वह गरीबों और पिछड़ों के मसीहा हैं। मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि वह महिलाओं के लिए ओबीसी रिजर्वेशन पर सकारात्मक संकेत देंगे।”   

पिछले सप्ताह भारती ने पीटीआई से कहा था कि वह इस बात से प्रसन्न हैं कि महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया गया लेकिन इस बात को लेकर कुछ दुखी हुईं कि इसमें ओबीसी के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।

उन्होंने इस बात से भी इंकार किया कि वह राजनीति छोड़ने जा रही हैं।

सागर जिले में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “मैंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया क्योंकि बहुत ज्यादा सालों से काम कर रही थी। मैंने पांच साल के लिए ब्रेक लेने के बारे में सोचा था। लोगों ने सोचा कि मैंने राजनीति छोड़ दी है। मैं यह कहते-कहते थक गयी हूं कि मैंने राजनीति नहीं छोड़ी है।”

भारती आखिरी बार यूपी के झांसी से लोकसभा का चुनाव लड़ी थीं।

इसके पहले इसी महीने भारती ने तीन सितंबर को जेपी नड्डा द्वारा हरी झंडी दिखाकर शुरू की गयी जन आशिर्वाद यात्रा में भाग लेने के लिए न बुलाए जाने पर भी नाराजगी जाहिर की थी।

इसके साथ ही उमा भारती ने सूबे में शराब नीति को और कठोर करने के लिए अभियान चलाया था जिसके तहत उन्होंने विरोध स्वरूप शराब की कुछ दुकानों पर कथित तौर पर पत्थरबाजी की थी। इस मौके पर वह एक मंदिर में भी रूकी थीं जहां से उन्होंने शराब नीति में परिवर्तन की मांग की थी।

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