ग्राउंड रिपोर्ट: बीकानेर के भोपालाराम गांव में खेलने का मैदान नहीं, लड़कियां खेल छोड़ने को मजबूर

Estimated read time 1 min read

बीकानेर। इस बार के एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारतीय खिलाड़ियों ने जिस तरह का प्रदर्शन किया है, उससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि अगर खिलाड़ियों को भरपूर अवसर मिले तो वह दुनिया को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सकते हैं। खिलाड़ियों की इसी क्षमता को पहचानते हुए केंद्र सरकार खेलो इंडिया जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम चला रही है। जिसका लगातार फायदा देखने को मिल रहा है। पिछले दशकों में अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भारतीय खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया है।

यही कारण है कि अब पंजाब, हरियाणा और उत्तर पूर्व के अलावा अन्य राज्यों से भी खिलाड़ी उभर कर सामने आ रहे हैं। राज्य सरकारें भी इस अवसर का लाभ उठाकर खिलाड़ियों के हितों में और उनका उत्साहवर्द्धन के लिए सरकारी नौकरी और इनामों की बौछार कर रही हैं।

लेकिन किसी भी खिलाड़ी को अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए सबसे ज़रूरी प्रैक्टिस होती है, जिसके लिए मैदान की ज़रूरत है। देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां खिलाड़ियों में प्रतिभा केवल मैदान की कमी के कारण उभर कर सामने नहीं आ पाती है।

इन्हीं में एक राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक का ढाणी भोपालाराम गांव है। ब्लॉक से करीब 9 किमी दूर यह गांव जहां बुनियादी सुविधाओं की कमियों से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर खिलाड़ियों की प्रैक्टिस के लिए एक अदद मैदान के लिए भी तरस रहा है। गांव के लड़के दूर जाकर प्रैक्टिस कर लेते हैं लेकिन लड़कियों को गांव में ही यह सुविधा नहीं मिलने के कारण खेल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

इस संबंध में गांव की एक किशोरी सुमन बताती हैं कि उसने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि उसे खेलों में दिलचस्पी थी लेकिन मैदान की सुविधा नहीं होने के कारण उसे अपने सपनों को तोड़ना पड़ा।

स्नातक की छात्रा जेठी बताती है कि ‘गांव में कहीं भी खेलने और प्रैक्टिस करने के लिए मैदान उपलब्ध नहीं होने के कारण कई प्रतिभावान लड़कियां उभर कर सामने नहीं आ सकीं। कई लड़कियों के अभिभावकों ने उनकी पढ़ाई सिर्फ इसलिए छुड़वाकर घर के कामों में लगा दिया क्योंकि वह लड़कियां खेलना चाहती थीं। स्कूल स्तर पर भी उन्होंने खेल प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन अब उन्हें प्रैक्टिस के लिए 9 किमी दूर लूणकरणसर जाना पड़ता’।

हालांकि विजयलक्ष्मी जैसी लड़की गांव में इसकी अपवाद है। जिसके माता-पिता आर्थिक तंगी के बावजूद प्रैक्टिस के लिए उसे प्रतिदिन लूणकरणसर आने जाने की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। जिसके लिए उन्हें प्रतिदिन 200 रुपये खर्च करने होते हैं। विजयलक्ष्मी सॉफ्टबॉल प्लेयर हैं और राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में जिला का प्रतिनिधित्व कर मेडल जीत चुकी हैं।

इस संबंध में गांव के 36 वर्षीय मुकेश कहते हैं कि ‘गांव में खेल के लिए मैदान नहीं होने का सबसे ज़्यादा नुकसान लड़कियों को हो रहा है। लड़कियों में लड़कों के बराबर खेलने और मेडल जीतने की क्षमता है’। वह कहते हैं कि ‘गांव वालों ने कई बार प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर इस समस्या से अवगत कराया है लेकिन आज तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला’।

उन्होंने बताया कि ‘राज्य स्तर पर प्रति वर्ष राजीव गांधी शहरी व ग्रामीण ओलंपिक का आयोजन किया जाता है। जिसके लिए ऑनलाइन पंजीकरण कराना होता है, लेकिन गांव में ई-मित्र सुविधा नहीं होने के कारण भी इस गांव के कई प्रतिभावान खिलाड़ी मेडल से वंचित रह जाते हैं’।

गांव में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय एकमात्र स्थान है जहां छात्र-छात्राओं को खेलने की सुविधा उपलब्ध है। यही कारण है कि इस स्कूल से वासुदेव, राधेकृष्ण, राकेश, लाजवंती और विजयलक्ष्मी जैसी खिलाड़ियां उभर कर सामने आई हैं, जिन्होंने जिला और राज्य स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर सिल्वर और ब्रॉन्ज़ मेडल जीता और ढाणी भोपालाराम गांव का नाम रोशन किया है।

इस संबंध में स्कूल की प्रिंसिपल पूजा पुरोहित बताती हैं कि ‘स्कूल में छोटा खेल का मैदान है, जहां न केवल छात्र-छात्राओं को प्रैक्टिस की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है बल्कि स्कूल के पीटी टीचर की देखरेख में खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारने का प्रयास किया जाता है, जिसका सुखद परिणाम भी सामने आ रहा है। उन्होंने बताया कि स्कूल में खिलाड़ी बास्केटबॉल, क्रिकेट, खोखो और सॉफ्टबॉल की प्रैक्टिस कर स्टेट लेवल तक इनाम जीत चुके हैं।

खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले खिलाड़ी एक ओर जहां मेडल जीत रहे हैं वहीं दूसरी ओर उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने और नौकरियों में आरक्षण का भी लाभ मिल रहा है। इससे खिलाडियों के उत्साह में बढ़ोतरी हो रही है। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों के कई ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया और मेडल जीता है, जिसके बाद राज्य सरकार की ओर से उन्हें सरकारी नौकरी प्रदान की गई है।

श्रीगंगानगर की रहने वाली अर्शदीप कौर साइकिल पोलो खिलाड़ी हैं और कई प्रतियोगिताओं में जिला का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वह बताती हैं कि ‘राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में स्वर्ण पदक विजेताओं को राज्य सरकार की ओर से सीधे सरकारी नौकरी प्रदान की जाती है। जिससे न केवल खिलाड़ियों का हौसला बढ़ता है बल्कि अगली पीढ़ी भी इस दिशा में आगे बढ़ कर राज्य का नाम रोशन करना चाहती है’।

बीकानेर के कबड्डी खिलाड़ी रवि सारस्वत कहते हैं कि ‘राज्य सरकार की ओर से खिलाड़ियों की हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत से इनाम रखे जाते हैं, जिनमें सरकारी नौकरी प्रमुख है। यह खिलाड़ियों को खेलों में अधिक से अधिक मेडल जीतने में कारगर साबित होगा।

बहरहाल, खिलाड़ियों के उत्साहवर्द्धन के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारों द्वारा दिया जाने वाला इनाम काफी मायने रखता है। लेकिन सबसे पहले खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए मैदान का होना ज़रूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिभा की कभी कोई कमी नहीं है। लेकिन उसे निखारने के लिए मैदान ही सबकुछ है। ऐसे में ढाणी भोपालाराम गांव के नौजवानों के लिए उनकी इस कमी को दूर करने के लिए पहल करनी ज़रूरी है। अन्यथा मैदान के अभाव में प्रतिभाएं दम तोड़ देंगी।

(लेखिका मनीषा छिम्पा वर्तमान में स्नातक की छात्रा है और वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी है।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments