ग्राउंड से चुनाव: मुफ्त बिजली की होती है चर्चा पर पानी क्यों नहीं बन पाता चुनावी मुद्दा?

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बीजापुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए सात नवंबर को मतदान हो रहा है। इस दौरान बस्तर से कई तरह की राजनीतिक खबरें देखने पढ़ने को मिल रही हैं। लेकिन आज हम दक्षिण बस्तर के बीजापुर जिला की ऐसी कॉलोनी की बात करने जा रहे हैं। जिसकी समस्या चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रही है।

बात हो रही है बीजापुर के शांतिनगर कॉलोनी की। यह इस क्षेत्र की एक बड़ी कॉलोनी है। जिसमें ज्यादातर सलवा जुडूम के पीड़ित रहते हैं। यहां रहने वाले अधिकतर लोग मध्यम और निम्न आय वाले हैं। छोटी गलियों में लोगों के छोटे-छोटे मकान हैं। जिसमें रहने वाली ज्यादातर महिलाएं अब बीजापुर में बनी गारमेन्ट फैक्ट्री में काम करती हैं।

‘जनचौक’ की टीम इस जगह में पहली भी आई थी। एक चीज जो हमें सबसे ज्यादा अचम्भा कर रही थी वह थी यहां हर घर के बाहर या किसी एक जगह पर नीले रंग के ड्रम पड़े हुए थे। दरअसल शांतिनगर के घरों में पानी नहीं आता है जिसके चलते इन ड्रमों में पानी भरकर रखा होता है।

पार्टियों के घोषणापत्र में पानी का जिक्र नहीं

पानी की इस समस्या को जानने के लिए ‘जनचौक’ की टीम शांतिनगर गई। जहां लोग कई सालों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। स्थिति ये है कि राजनीतिक पार्टियां भी पानी को मुद्दा नहीं बना रही हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही विधानसभा चुनाव के लिए अपना-अपना घोषणापत्र जारी किया है। कांग्रेस ने फ्री बिजली की बात कही है। लेकिन दोनों ही पार्टियों ने स्वच्छ पानी के लिए कोई वायदा नहीं किया है।

चुनाव के दौरान जनता अब स्वच्छ पानी की मांग कर रही है। शांतिनगर में ऐसे ही कई घर हैं जो आज भी पानी की पाइप लाइन से वंचित हैं। जहां पाइप लाइन आ गई है, वहां पानी नहीं आने की शिकायत है।

पानी नहीं होने से भारी परेशानी

शांतिनगर की जयवती हेमता और रेखा दोनों पड़ोसी हैं और सहेलियां हैं। जयवती की एक छोटी सी बच्ची है। वह बताती हैं कि ‘मेरी छोटी सी बच्ची है घर में पानी नहीं आने के कारण मुझे बहुत दिक्कत होती है। यहां तक की बच्ची को छोड़कर किसी तरह पानी भरना पड़ता है। इस दौरान बच्ची के गिरने डर लगा रहता है। लेकिन इसके अलावा मेरे पास दूसरा कोई चारा भी नहीं है।”

पानी की समस्या के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं कि “सप्ताह में दो दिन पानी आता है। इस दो दिन में ही पूरे सप्ताह का पानी जमा करके रखना पड़ता है। मेरी छोटी बच्ची है, उसके लिए पानी की ज्यादा जरूरत होती है। ऐसे में कई बार पानी खत्म हो जाता है तो मुझे बहुत परेशानी होती है। यहां पानी का दूसरा कोई स्रोत भी नहीं है।”

वो कहती हैं कि “एक नाले से पानी लेने के लिए भी दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। पति दिन में काम पर चले जाते हैं, अगर पानी की जरूरत पड़ती है तो बहुत परेशानी होती है।”

पानी की समस्या से पीड़ित स्थानीय निवासी।

गर्मी में ज्यादा दिक्कत

शांतिनगर कॉलोनी जिला मुख्यालय से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। यहां गर्मी के दिनों में पानी का संकट बढ़ जाता है। यह पूरा इलाका पहाड़ी छोर पर बसा हुआ है। यहां का कुछ हिस्सा पठारी भी है।

चुनाव के दौरान सभी पार्टियों की प्रचार गाड़ियां यहां आ तो रही हैं। लेकिन जनता की मुख्य समस्या पर किसी का कोई ध्यान नहीं है।

इसी बात पर रेखा गुस्से में कहती हैं कि “पांच साल तक कोई हमारी सुध नहीं लेता है। चुनाव के दौरान सभी लोग आते हैं। इस बात से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम गंदा पानी पी रहे हैं और कम पानी में जिंदगी बिता रहे हैं।”

रेखा का कहना है कि “महिलाओं को सबसे ज्यादा पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ता है।” वह बताती हैं कि “पुरुष काम पर चले जाते हैं ऐसे में घर में होने वाले सारे काम के लिए पानी का इंतजाम महिलाओं को करना पड़ता है। हमें सप्ताह में दो बार पानी मिलता है।”

वो कहती हैं कि “टैंकर में दो दिन पानी आता है। अभी मंगलवार को आया है अब शनिवार को आएगा। जैसे ही टैंकर आता है, सभी लोग जल्दी-जल्दी पानी भरने में लग जाते हैं। सिर्फ दस मिनट के लिए पानी आता है क्योंकि टैंकर से जिस हिसाब से पानी बाहर निकलता है। उसमें कुछ बाहर भी बह जाता है।”

रेखा के बगल में खड़ी जयवती हमें एक्शन करके बताती हैं कि वह कैसे टैंकर में पाइप लगाकर मुंह से पानी खींचती हैं। जिसके कारण कई बार पानी अंदर भी चला जाता है।

बात करते-करते मुहल्ले की और महिलाएं भी आ जाती हैं। वह कहती हैं कि “इन नीले डिब्बों में रखा पानी पीने के लिए भी है और काम करने के लिए भी।”

एक महिला कहती हैं कि “पानी नहीं होने के कारण हमें सबसे ज्यादा परेशानी होती है। पानी की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ता है।” गर्मी के दिनों को याद करते हुए वो कहती हैं कि सिर्फ दो दिन पानी आता है। ऐसे में पीने के पानी और काम करने के लिए पानी को जुटाना बहुत मुश्किल हो जाता है। पीने वाला पानी खत्म हो जाता है तो खरीदना पड़ता है। हम गरीब लोग कहां से इतना महंगा पानी खरीदकर पीएंगे।”

वह कहती हैं कि “पानी की समस्या सिर्फ गली मुहल्ले तक ही सीमित नहीं है। गर्मी के दिनों में जब हम लोग गढ़ई से पानी लेने जाते हैं तो वहां भी पानी की कमी के कारण लड़ाई होती है। गर्मी के दिनों में पानी सूख जाता है। नदीं में बालू ही बालू होता है। कहीं कहीं पर पानी होता है। ऐसे में पहले जो जा रहा है उसे पानी मिल जाता है।”

वो कहती हैं कि “गर्मी के दिनों में नगर पालिका में जाकर बार-बार बोलने पर दो से बढ़ाकर तीन बार पानी आ जाता है। पानी ढोने के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है।”

हेमवती कहती है कि “बेटी की डिलीविरी होने के बाद ही मैंने पानी भरना शुरू कर दिया था। अगर पानी नहीं भरूंगी तो इस्तेमाल कहां से करूंगी। टैंकर एक जगह आकर खड़ा हो जाता है। वहां से घर दूर होता है। ऐसी स्थिति में पानी ढोने कारण हमें अंदरूनी तौर भी परेशानी होती है।”

हेमवती।

रेखा के अनुसार “पानी बाहर पड़ा रहता है। हम लोग इसी पानी को पीते भी हैं। चार दिन के लिए पानी घर में स्टोर करके रखने की जगह नहीं होती है। पानी साफ नहीं होने के कारण हम लोग अक्सर बीमार पड़ते रहते हैं। यहां लोगों को पेट से संबंधित बीमारियों की समस्या का अक्सर सामना करना होता है। इन सबका एक ही कारण है कि साफ पानी नहीं मिल पाता है।”

बीजापुर के वरिष्ठ पत्रकार रंजन दास का पानी की समस्या पर कहना है कि “पानी का मुद्दा चुनावी मुद्दा नहीं बनने का कारण है कि यह नगर निगम के चुनाव का हिस्सा है। शांतिनगर ड्राई जोन में आता है। यहां मिनझा बांध बनाया गया है। जिससे जल जीवन मिशन के तहत लोगों के घरों तक पेय जल पहुंचाया जाना था। अब तक लोगों को घरों में पानी आ जाना चाहिए था। लेकिन अभी तक कई जगहों में पानी की पाइप लाइन भी नहीं आ पाई है। जहां पाइप लाइन बिछी हैं वहां भी पानी नहीं आने की समस्या है।”

वो कहते हैं कि “यहां के स्थानीय लोगों को पानी की किल्लत से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। खासकर गर्मी में लोग नदी की तरफ जाते हैं। लेकिन वहां भी पानी सूख जाता है। ऐसे में लोगों को कम पानी से गुजारा करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं रहता।

इस बार बीजापुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के प्रत्याशी विक्रम मंडावी, भाजपा के प्रत्याशी महेश गांगड़ा चुनावी मैदान में हैं। बीजापुर बस्तर संभाग की इकलौती सीट है जहां से निर्दलीय महिला उम्मीदवार ज्योति धुर्वा मैदान में हैं।

चुनाव के नजदीक आते ही बीजापुर के संवदेनशील इलाकों में ग्रामीण चुनाव के बहिष्कार का ऐलान कर रहे हैं। इसके साथ ही माओवादी जगह-जगह पोस्टर लगाकर वोट का बहिष्कार कर रहे हैं।

(पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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