ग्राउंड रिपोर्ट: बस्तर को रायपुर से जोड़ने वाला हाईवे बदहाल, यात्री परेशान

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बस्तर। एक शहर को दूसरे शहर से जोड़ने के लिए पूरे देश में हाईवे का निर्माण लगातार चल रहा है। इस बारे में केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने कहा कि “पहले एक दिन में मात्र दो किलोमीटर ही हाईवे बनता था लेकिन हमने एक दिन में लगभग 33 किलोमीटर का हाईवे बनाकर कीर्तिमान स्थापित किया है”।

लेकिन इस कीर्तिमान से बस्तर वासियों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। दरअसल बस्तर वासियों को राजधानी रायपुर से जोड़ना वाला एक मात्र मार्ग एनएच 30 जर्जर हालात में है। बस्तर का द्वार कहा जाने वाला केशकाल घाट गड्ढों और धूल से पटा पड़ा है। इसी घाटी के रास्ते से लोग बस्तर से राजधानी और राजधानी से दक्षिण के राज्यों के लिए आते-जाते हैं। लगभग 10 साल पहले बनी इस सड़क के नवीनीकरण को लेकर जनता ने अब बोलना ही छोड़ दिया है।

सड़क पर पैच लगाने का काम शुरू

इस सड़क का हाल देखने के लिए ‘जनचौक’ की टीम केशकाल घाटी पहुंची। फिलहाल जनता की लगातार बढ़ती मांग और ट्रैफिक के हालात को देखते हुए इसमें पैच लगाने का काम शुरू किया गया है जिसे 30 नवंबर तक खत्म होना है।

लगभग पांच किलोमीटर लंबे इस घाटी मार्ग में 12 खतरनाक मोड़ हैं। जहां से दिनभर में लगभग 300 गाड़ियां पार होती हैं। इनमें भारी मालवाहक गाड़ियां भी शामिल हैं।

जिस वक्त मैं वहां पहुंची सड़क पर पैच लगाने का काम जोरों से चल रहा था। मजदूरों के साथ इंजीनियर भी काम में लगे हुए थे। कोई सड़क से धूल हटा रहा था तो कई मशीन से निकल रही गिट्टी को बिछाने का काम कर रहा था, एक गाड़ी पैच को सेट कर रही थी।

अस्पताल और कॉलेज जाने वाले परेशान

नवंबर में पहले चरण के मतदान के बाद शुरू हुए इस काम में फिलहाल कई जगह पर गड्ढों की मरम्मत कर दी गई है। कई जगह पर मरम्मत होना अभी भी बाकी है। पहले चरण के चुनाव से पहले जब मैं इस रास्ते से गई थी तो सड़क की स्थिति इतनी भयावह थी कि बस पूरे रास्ते डगमगा रही थी। कभी-कभी यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए यह थोड़ी डराने वाली स्थिति भी होती है।

सड़क की ऐसी जर्जर स्थिति के बारे में हमने केशकाल के पूर्व विधायक कृष्ण कुमार ध्रुव से बातचीत की। लगभग 100 साल से भी ज्यादा पुराने इस सड़क मार्ग पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि “यह एक बड़ी समस्या है। यह रोड बस्तर वासियों के लिए लाइफलाइन है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। साल 2016 में घाटी के भार को काम करने के लिए बाईपास रोड मंजूर हुई थी। लेकिन अभी तक कोई निर्माण नहीं हुआ है”।

आम जनता की बात करते हुए वह कहते हैं कि “केशकाल में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है। अगर कोई ज्यादा बीमार पड़ जाता है तो उसे कांकेर लेकर जाना पड़ता है। दूसरा यहां के ज्यादातर बच्चे कॉलेज के लिए कांकेर जाते हैं। सड़क की ऐसी स्थिति होने के कारण दोनों पर ही बहुत प्रभाव पड़ रहा है”।

कृष्ण कुमार ध्रुव का कहना है कि बस्तर में खनिज का भंडार है। ऐसे में यहां से एनएनडीसी समेत अन्य छोटी कंपनियों की गाड़ियां ओवर लोड होकर चलती हैं। जिसका बुरा असर सड़क पर पड़ रहा है। लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इसका नुकसान आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।

ओवरलोड गाड़ियां परेशानी का सबब

केशकाल घाटी में दिनभर गाड़ियों का आवागमन चलता रहता है। यहीं से होकर मालवाहक गाड़ियां बस्तर की कंपनियों के तरफ आती-जाती हैं। जगदलपुर और दंतेवाडा में स्थित एनएमडीसी की तरफ आने जाने वाले भारी मालवाहक वाहन इसी रास्ते से आते जाते हैं। इसके साथ ही नारायणपुर में लौह-अयस्क कंपनियों की गाड़ियां भी इसी रास्ते का इस्तेमाल करती हैं।

कई बार गाड़ियां खराब हो जाने के कारण घाटी में लंबा जाम भी लग जाता है। यहां तक की अत्यधिक माल और गड्ढों के कारण बड़े वाहन अनियंत्रित हो जाकर पलट जाते हैं। जिसके कारण मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।

हाल ही में 16 नवंबर को घाटी पर साढ़े छह घंटे तक लंबा जाम लगा रहा। साल में कई बार ऐसी स्थिति होती है जब लोगों को सड़क की खराब स्थिति के कारण ट्रैफिक से दो चार होना पड़ता है। खासकर बारिश के दिनों में यह स्थिति और भी भयावह हो जाती है। फिलहाल 50 लाख की लागत से सड़क पर पैच लगाया जा रहा है।

भारी वाहनों के लिए रूट डायवर्ट

फिलहाल सड़क के खस्ते हाल के बीच भारी मालवाहक वाहनों का घाटी से आना जाना रोक दिया गया है। केशकाल से रायपुर की तरफ जाने के लिए रास्ता डायवर्ट कर दिया गया है। यह रास्ता जगदलपुर से रायपुर जाते वक्त केशकाल घाटी से आधा किलोमीटर पीछे है। जहां पुलिस बैठकर गाड़ियों को विश्रामपुरी वाले रास्ते से जाने का आदेश दे रही है। छत्तीसगढ़ पुलिस के बैरिकेट के साथ एक पोस्टर लगाकर भारी वाहनों को डायवर्ट करने का आदेश दिया गया है।

जब तक घाटी में पैच लगाने का काम चल रहा है। तब तक गाड़ियां डायवर्टेट रास्ते से जाएंगी। घाटी में लगातार चल रहे काम के बीच हमने सब इंजीनियर (उप अभियंता) राकेश से बात की। उन्होंने बताया कि फिलहाल की स्थिति को देखते हुए घाटी में तत्काल पैच का कार्य किया जा रहा है। हमने नवीनीकरण के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि फिलहाल आचार संहिता लगी है। इसके हटने के बाद ही आगे का कार्य किया जाएगा।

इसके बारे में हमने राष्ट्रीय राजमार्ग विभाग के कार्यपालन अभियंता आर.के.गुरु से बात की। पिछले लंबे समय से सड़क न बनने के कारण के बारे में तो उन्होंने कुछ नहीं कहा। लेकिन यह बताया कि फिलहाल सड़क के नवीनीकरण के लिए निविदा प्रक्रिया में है। आचार संहिता खत्म होते ही टेंडर की प्रक्रिया शुरू होगी। जिसके बाद आगे का काम किया जाएगा।

सात साल में नहीं बना बाईपास

घाटी के भार को कम करने के लिए बाईपास रोड की प्रकिया शुरू की गई थी। इसे फरवरी 2016 में शुरू होकर अगस्त 2019 में खत्म होना था। लेकिन लगभग सात साल बाद भी इसमें सिर्फ कच्ची सड़क ही नजर आ रही है।

घाटी को कवर करने के बाद मैं इसी रोड पर गई। यह रास्ता घाटी से लगभग एक किलोमीटर पीछे है। जो गांव के रास्ते से होकर कांकेर की तरफ निकलेगा। 120 करोड़ की लागत से यहां 11.8 किलोमीटर लंबी सड़क बननी थी। जिसका फिलहाल 10 प्रतिशत भी काम नहीं हुआ है।

ठेकेदारों की लापरवाही

पात्रिका अखबार में छपी खबर के अनुसार केशकाल बाईपास सड़क का निर्माण मूल ठेकेदार ‘मेसर्स वालेचा कंस्ट्रक्शन (मुंबई) द्वारा किया जाना था। जिसमें कांकेर से बेड़मा तक के अनुबंध का 30 प्रतिशत मुंबई वाली कंपनी के पास था जबकि बाकी का 70 प्रतिशत काम ‘श्रीराम ईपीसी’ (हैदराबाद) को सबलेट कर दिया था। जिसमें मूल ठेकेदार के हिस्से का 30 प्रतिशत कार्य बाईपास सड़क निर्माण में सम्मिलित था। ठेकेदार की निष्क्रियता के कारण काम प्रभावित हुआ।

धूल से लदे पेड़-पौधे

केशकाल घाटी देश की सुंदर घाटियों में शुमार है। जिसका प्राकृतिक दृश्य देखने लायक है। लोग घुमावदार रोड और ऊंची पहाड़ियों को देखने के लिए यहां आते हैं। इसके 12 मोड़ पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

साल 2013 में बने इस हाईवे पर पिछले दस साल से सिर्फ मरम्मत के सहारे ही काम चल रहा है। भारी वाहनों को बीच उड़ती धूल यहां के पेड़-पौधों को भी नुकसान पहुंचा रही है। सड़क के किनारे के पेड़ पूरी तरह से धूल से भरे हुए हैं।

केशकाल के वरिष्ठ पत्रकार कृष्णदत्त उपाध्याय का कहना है कि यह घाटी बस्तर जिले की जीवन रेखा है। यहां सड़क निर्माण साल 1916 में हुआ। समय की मांग के बीच इस सड़क को चौड़ा भी किया गया।

वह कहते हैं कि घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य देखते बनता है। यह घाटी पर्यटक स्थल के रूप में जानी जाती है। यहां का सौंदर्य लोगों को बहुत ही आकर्षित करता है। लेकिन घाटी की बदहाल स्थिति और उड़ती धूल के कारण यहां के पेड-पौधों को सांस लेना मुश्किल हो गया है। जिसके कारण इस घाटी का सौंदर्य खत्म होता जा रहा है।

इसके साथ ही उनका कहना है कि यह राष्ट्रीय राजमार्ग आधिकारियों के लिए दुधारू गाय की तरह है। जिसके लिए बजट तो अच्छा आता है। लेकिन काम उस तरह से नहीं हो पता है। अगर बारिश के दिनों में जैसे ही छोटे-छोटे गड्ढों का बनना शुरू होता है वैसे ही काम शुरू कर दिया जाए तो यह घाव नासूर नहीं बनेगा और जनता को परेशानी नहीं होगी।

(बस्तर से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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