सौ से ज्यादा सामाजिक संगठनों और व्यक्तियों ने पत्र जारी कर किसानों पर हो रहे दमनात्मक कार्रवाई की निंदा की

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नई दिल्ली। देश भर के 100 से ज्यादा सामाजिक आंदोलनों से जुड़े संगठनों और व्यक्तियों ने पंजाब-हरियाणा सीमा पर निहत्थे किसानों पर राज्य बलों और हरियाणा सरकार द्वारा की जा रही हिंसा और क्रूरता की निंदा की है। इन संगठनों और व्यक्तियों की ओर से जारी एक साझा विज्ञप्ति में कहा गया है कि किसानों पर हमले उनके जीवन, अभिव्यक्ति, संघ और आंदोलन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं। यह खाद्य सुरक्षा और राज्यों के अधिकारों पर भी हमला है।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि केंद्र और हरियाणा की भाजपा सरकारों ने किसानों के प्रति लगातार हिंसक, दमनकारी और शत्रुतापूर्ण रवैया दिखाया है। हालांकि 14 फरवरी के बाद किसानों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए जिस स्तर की सरकार ने तत्परता की है और उसके लिए जिस हिंसा का सहारा लिया है उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलेगी। युवक की मौत के सवाल पर उनका कहना था कि पंजाब के एक युवा किसान शुभकरण सिंह की गैर न्यायिक हत्या और पैलेट्स का उपयोग अल्पसंख्यकों, वंचितों और गरीबों पर घातक हिंसा के बढ़ते उपयोग को दर्शाता है।

जबकि यह एक आपराधिक गैरसंवैधानिक कृत्य भी है। उन्होंने कहा कि जिस पैलेट गन का इस्तेमाल जानवरों पर भी करने की अनुमति नहीं है उसका इस्तेमाल आंदोलनकारियों को तितर-वितर करने के किया जा रहा है। उन्होंने इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाने की मांग की है। उनका कहना है कि इस घटना ने नागरिक समाज के विभिन्न वर्गों में चिंता और आक्रोश पैदा कर दिया है।

संगठनों ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि किसान भिन्न-भिन्न जाति, क्षेत्र और धार्मिक पृष्ठभूमि से आते हैं, मीडिया में इस आंदोलन को जातीय और धार्मिक रूप दिया जा रहा है। गलत तरीके से इंटरनेट शटडाउन और आंदोलन पर रिपोर्टिंग करने वाले सोशल मीडिया खातों पर प्रतिबंध के माध्यम से किसान आंदोलन से जुड़ी जानकारियों को व्यापक स्तर पर पहुंचने से रोका जा रहा है। सोशल मीडिया पर सिखों के खिलाफ घृणा और नफरत भरे संदेश और धमकियां बार-बार सामने आ रही हैं। लेकिन अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

संगठनों ने कहा कि कृषि संकट और किसानों से किए गए वादों से ध्यान हटाने और आम नागरिकों पर सरकार द्वारा अवैध और घातक हिंसा के इस्तेमाल को उचित ठहराने के लिए भाजपा द्वारा लगातार आंदोलन को जातीय और धार्मिक पहचान देने की कोशिश जारी है। 

आखिर में उन्होंने कहा है कि आंदोलनों के साथ गैर संवैधानिक तरीकों से पेश आने वाली ताकतों को सत्ता से बाहर करना ही अब एकमात्र विकल्प रह गया है। लिहाजा मौजूदा सत्ता को वोट के जरिये अपदस्थ करने की उन्होंने जनता से अपील की है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक अधिकारों पर हो रहे हमलों के प्रतिकार के लिए इससे बेहतर विकल्प और कुछ नहीं हो सकता है।

हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख संगठनों में महाराष्ट्र से जुड़े फोरम अगेंस्ट आप्रेशन ऑफ वीमेन, पश्चिम बंगाल से जुड़े फेमिनिस्ट इन रेजिस्टेंस, महाराष्ट्र के ही डॉ भरत पटनकर श्रमिक मुक्ति दल, नई दिल्ली से जुड़े भगत सिंह अंबेडकर स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन, उत्तर प्रदेश के कारवां-ए-मुहब्बत आदि प्रमुख नाम शामिल हैं।

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