बिहार: जातीय नरसंहार वाले बेलछी गांव में इस बार क्या है चुनावी मुद्दा ?

Estimated read time 1 min read

“इतिहास के काले दिन को याद तो नहीं करते लेकिन सचेत जरूर रहते है। अब गांव में ऐसी कोई स्थिति नहीं है। खुलकर नहीं लेकिन थोड़ा जातीय विभेद तो देखने को मिल ही जाता है। हम लोगों को इस बात का दुख है कि हमारे गांव का इतिहास जातीय हिंसा के लिए जाना जाता है।” पटना में रह रहे बेलछी गांव के विपुल कुमार दर्द के साथ ये कहते हैं।

बेलछी गांव में हुआ नरसंहार बिहार का पहला जातीय नरसंहार था। बेलछी जातीय हिंसा का इकलौता मामला है जिसमें दलित हत्या के दोषियों को फांसी की सज़ा हुई। बेलछी हत्याकांड के बाद भी बिहार में जातीय हिंसा की कई बड़ी घटनाएं हुई लेकिन किसी मामले में दोषियों को सज़ा नहीं हुई। सब बारी-बारी से छूट गए।

चुनाव के वक्त ताजा हो जाते हैं जख्म

बेलछी गांव के राजेंद्र पासवान कहते है कि “चुनाव के वक्त इस गांव में कई मीडिया वाले पहुंच जाते हैं। तब हमें हमारा इतिहास और भी याद आने लगता है। नहीं तो अन्य गांव की तरह ही इस गांव में भी लोग सामान्य जिंदगी जी रहे हैं।”

इस पूरी घटना के गवाह 81 वर्षीय जानकी पासवान कहते हैं कि “घटना में कुर्मी जाति के लोगों ने पहले गोलियों से मारा फिर रस्से से बांधकर आग में झोंक दिया था। सिर्फ अपने जातीय वर्चस्व के लिए इस तरह की घटना को अंजाम दिया गया था।”

चुनावी मुद्दा क्या है?

बेलछी गांव राजधानी पटना से 70 किलोमीटर दूर है। पटना नालंदा सीमा पर स्थित बेलछी हरनौत विधानसभा में पड़ता है। जहां से नीतीश कुमार कई बार विधायक रहे हैं। हरनौत विधानसभा सीट बिहार के नालंदा जिले में आती है। 2020 में हरनौत में नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड से हरि नारायण सिंह ने लोक जन शक्ति पार्टी की ममता देवी को 27241 वोटों के मार्जिन से हराया था।

जातीय आधार पर खुलकर कोई किसी भी पार्टी और नेता का विरोध नहीं कर रहे हैं। गांव के रणजीत कहते हैं कि “अभी लोजपा, जदयू और भाजपा एक ही दल में आ गए हैं। गांव में अधिकांश लोग इन्हीं तीनों पार्टी के वोटर हैं। लोकसभा में सभी लोग नरेंद्र मोदी का सपोर्ट कर रहे हैं। लेकिन विधानसभा में मुद्दा अलग रहेगा। विकास वैसे कुछ खास नहीं हुआ है।”

गांव के पासवान समाज के एक व्यक्ति नाम ना बताने की शर्त पर रहते हैं कि “नीतीश कुमार सत्ता में बने रहे तो अपनी जाति के लोगों की वजह से हम दलितों का विकास नहीं होने देंगे। नीतीश कुमार की सरकार किसी भी शर्त पर बदलनी चाहिए। भाजपा को चिराग पासवान को आगे बढ़कर बिहार में नया राजनीतिक समीकरण देना चाहिए।”

बेलछी गांव के ही दूसरे किनारे पर मुसहर समुदाय के लोग चुनाव के बारे में कुछ भी कहना नहीं चाहते हैं। अधिकांश लोग यहां लालू यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार को छोड़कर दूसरे नेता के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं हैं।

क्या हुआ था बेलछी में उस दिन?

स्थानीय पत्रकार परमवीर सिंह के मुताबिक गांव के ही धानुक जाति के महावीर महतो और दलित जाति के हरिज सिंधवा की लड़ाई जातीय संघर्ष में बदल गई थी। धानुक कुर्मी जाति का उपजाति है वहीं सिंधवा दलित जाति में आते है।

नालंदा के रहने वाले हरिज सिंधवा अपने ससुराल बेलछी में आकर बस गए थे, जहां उनकी दोस्ती परमवीर महतो से हुई। इन दोनों की दोस्ती के बावजूद गांव में जातीय विभेद तो था ही। गांव के कुर्मी जाति के दबंग लोग अक्सर दलितों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे। हरिज सिंधवा जहां इस सब का विरोध करता था वही परमवीर महतो अपने जाति के साथ खड़े होते थे।

स्थिति ऐसी हो गई थी कि हरिज सिंधवा विभिन्न दलित जाति के संगठन के साथ अगड़ी जाति के गतिविधियों का विरोध करने लगे। ऐसे में लड़ाई कुर्मी बनाम हरिजन हो गई। इसी सिलसिले में कुर्मी जाति के एक व्यक्ति को जान से मार दिया गया था। जिसकी लाश लगभग एक महीने के बाद मिली, फिर जो नरसंहार हुआ, जिसने देश की राजनीति को बदल दिया था।

27 मई 1977 को 12 वर्षीय विक्षिप्त बच्चे समेत 11 लोगों की दिनदहाड़े हत्या हुई थी। मरने वालों में आठ पासवान और तीन सुनार जाति के लोग थे। इस घटना के बाद 13 अगस्त 1977 को इंदिरा गांधी हवाई जहाज से दिल्ली से पटना पहुंचीं। फिर कार, ट्रैक्टर,नाव और हाथी का सहारा लेकर बेलछी पहुंची थी। इससे इंदिरा गांधी का राजनीतिक कद बढ़ गया था, जिसका फायदा चुनाव में भी देखने को मिला था।

(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments