उत्पीड़ित एवं मेहनतकश अवाम से लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने की अपील

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पटना। लोकसभा चुनाव-2024 कोई सामान्य चुनाव नहीं है। यह असाधारण परिस्थितियों में हो रहा असाधारण चुनाव है, इस चुनाव में संविधान व लोकतंत्र के ही भविष्य का फैसला होना है। भाजपा की जीत संविधान व लोकतंत्र के खत्म होने की गारंटी जैसी होगी। यह चुनाव संविधान को बचाने और लोकतंत्र की पुनर्बहाली का चुनाव है। चुनाव को आंदोलन की तरह लेना होगा।

लोकसभा चुनाव-2024 के संदर्भ में पटना के डॉ. ए.के.एन. हॉल में सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार), ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज, राष्ट्रीय अतिपिछड़ा संघर्ष मोर्चा सहित अन्य संगठनों व बुद्धिजीवियों ने साझा प्रेस कांफ्रेंस करके एक अपील जारी किया है।

प्रेस कॉफ्रेंस में कहा कि चुनाव में विपक्ष की चुनौती को खत्म कर देने की मोदी सरकार की कोशिशें-साजिशें जारी है। कांग्रेस का बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिया गया है तो चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री को जेल में डाल दिया गया है, इससे पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी जेल में बंद किया गया। मोदी सरकार चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में करने के लिए किसी हद तक जा सकती है। EVM पहले से ही सवालों के घेरे में है। मोदी सरकार ने चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्था को कठपुतली बना लिया है तो इलेक्टोरल बॉन्ड के अवैधानिक व भ्रष्ट तरीके से भाजपा ने अकूत धन इकट्ठा कर रखा है।

मोदी सरकार के खिलाफ दस वर्षों से तमाम किस्म की संघर्षरत शक्तियों को इकट्ठा होकर अधिकतम ताकत लगा देने की जरूरत है, ताकत को बिखरने से रोकना होगा। उत्पीड़ित समाज की ताकत पर खड़ी जो भी शक्तियां भाजपा का रास्ता बनाने में शामिल होंगे, इतिहास के कूड़ेदान में होंगे।

हम विभिन्न संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने तय किया है कि बिहार में गैर पार्टी शक्तियों-संगठनों व बुद्धिजीवियों को एकजुट कर भाजपा को हराने के लिए चुनाव में भी पूरी ताकत लगाएंगे। मोदी सरकार के दस वर्षों में समाज के विभिन्न हिस्सों-तबकों के संघर्ष के मुद्दों को चुनाव में मजबूती से उठाएंगे।

संविधान विरोधी ईडब्लूएस आरक्षण ने एससी, एसटी व ओबीसी आरक्षण को प्रभावहीन बना दिया है। हम ईडब्लूएस को खत्म करने के साथ ही एससी, एसटी व ओबीसी को आबादी के अनुपात में हर क्षेत्र, यथा हाई कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट, निजी क्षेत्र में आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी के पक्ष में हैं।

मोदी सरकार राष्ट्रीय परिसंपत्तियों और प्राकृतिक सीसाधनों को चंद कॉर्पोरेट घरानों के हवाले करती रही है। इस लूटी हुई संपत्ति को फिर से वापसी के सवाल को मजबूती से उठाया जाएगा। मोदी राज में आर्थिक असमानता का जबर्दस्त विकास हुआ है। आर्थिक असमानता के मामले में मुल्क अंग्रेजी राज की स्थित में पहुंच गया है। अर्थनीति की दिशा और विकास मॉडल को बदलने की जरूरत है।

मोदी सरकार ने कॉर्पोरेटों को आम आवाम की बैंकों में जमा गाढ़ी कमाई को बड़े पैमाने पर लूटने की छूट और कर्ज माफी व टैक्स रियायत दिया लेकिन किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं दी। हम कृषि में सरकारी निवेश बढ़ाने और एमएसपी की कानूनी गारंटी के पक्ष में हैं।

शिक्षा-चिकित्सा पर सरकारी खर्च बढ़ाया जाना चाहिए,निजीकरण बंद हो और हम नई शिक्षा नीति-2020 की वापसी के साथ केजी से पीजी तक निःशुल्क व एकसमान शिक्षा के पक्ष में हैं।

युवाओं की बेरोजगारी विस्फोटक स्थिति में पहुंच गयी है।बेरोजगार आबादी में 83 प्रतिशत युवा हैं।हम तमाम सरकारी रिक्तियां भरे जाने के साथ ही रोजगार को मौलिक अधिकार बनाये जाने और रोजगार नहीं मिलने की स्थिति में सम्मानजनक बेरोजगारी भत्ता की गारंटी के पक्ष में हैं। ठेका-मानदेय पर बहाली पर रोक लगाने के साथ स्थायी बहाली हो। सेना में बहाली के अग्निवीर योजना को खत्म किया जाना चाहिए।

महंगाई पर रोक लगाने के साथ जनवितरण प्रणाली के दायरे में सबको लाने और जरूरी खाद्य सामग्री की उपलब्धता की गारंटी होनी चाहिए।

मोदी सरकार ने संविधान के धर्मनिरपेक्ष बुनियाद को तोड़ते हुए सीएए थोप दिया है। हम सीएए के वापसी के पक्ष में हैं, राज्य और धर्म के अलगाव की गारंटी के पक्ष में हैं और संघीय ढ़ांचे पर हमले के खिलाफ हैं।

जातिवार जनगणना बिना ओबीसी को सामाजिक न्याय हासिल नहीं हो सकता। जातिवार जनगणना होगा तो ओबीसी के लिए सामाजिक न्याय का बंद दरवाजा खुलेगा, ओबीसी के उप वर्गीकरण और आरक्षण के बंटवारे का भी ठोस व तर्कसंगत आधार मिलेगा। मोदी सरकार ने जातिवार जनगणना का विरोध कर बता दिया है कि वह पिछड़ों-अतिपिछड़ों का दुश्मन नं-1 है, सामाजिक न्याय का घोर विरोधी है।

भाजपा ने अतिपिछड़ों को छलने का काम किया है। आखिरकार रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी। राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ा वर्ग के उप वर्गीकरण और अति पिछड़ा वर्ग के लोगों पर हो रहे अत्याचार एवं हिंसा की रोकथाम के लिए अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण कानून की तर्ज पर अति पिछड़ा अत्याचार निवारण कानून बनाए जाने की जरूरत है।

विपक्षी गठबंधन को अतिपिछड़ा व पसमांदा समाज को आबादी के अनुपात में टिकट देना चाहिए। वर्तमान लोकसभा में ओबीसी प्रतिनिधित्व केवल 22 प्रतिशत है। बिहार में जाति गणना से हासिल आंकड़ों के आधार पर आबादी के अनुपात में हक के नारे को जमीन पर उतारने की शुरुआत टिकट वितरण से ही करना चाहिए। विपक्षी दलों को पसमांदा शब्द से परहेज नहीं करना चाहिए।टिकट वितरण में पसमांदा की उपेक्षा का फायदा ओवैसी उठाएंगे।

मोदी पसमांदा मुसलमानों के लिए घड़ियाली आंसू बहाते रहे हैं। जबकि मॉब लिंचिंग और सरकारी बुल्डोजर के शिकार लोगों में 95 प्रतिशत पसमांदा समाज के ही हैं।

मोदी सरकार ने दलित मुसलमानों-ईसाइयों को एससी का दर्जा नहीं देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दो बार लिखकर दे दिया है। हम दलित मुसलमानों व ईसाइयों को एससी सूची में शामिल करने के पक्ष में हैं। हम उत्पीड़ित समाज और मेहनतकश अवाम से चुनाव में भाजपा व उसके सहयोगियों को हराने की अपील करते हैं।

पूर्व सांसद और ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अली अनवर अंसारी, प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. पीएनपी पाल, तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रॉक्टर डॉ. विलक्षण रविदास, सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) की ओर रिंकु यादव, गौतम कुमार प्रीतम, अति पिछड़ा संघर्ष मोर्चा की ओर विजय कुमार चौधरी ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया।

सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के रामानंद पासवान, विनय कुमार सिंह, सुबोध यादव, राष्ट्रीय अतिपिछड़ा संघर्ष मोर्चा की ओर प्रो. अनिल सहनी, ललन भगत, सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट अभिषेक आनंद, अवधेश लालू, सूरज यादव, राकेश कुमार, प्रतीक पटेल, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के बहुजन स्कॉलर फोरम के अमन कुमार यादव सहित कई महत्वपूर्ण लोग संवाददाता सम्मेलन में मौजूद थे।

( प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)

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