संयुक्त किसान मोर्चा का चुनाव आयोग को खुला पत्र, निष्पक्ष मतगणना सुनिश्चित करने की मांग

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नई दिल्ली। संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने लोकसभा चुनाव के निष्पक्ष मतगणना को लेकर उठ रहे आशंका को देखते हुए चुनाव आयोग को खुला पत्र लिखा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को लिखे पत्र में मांग की है कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मतगणना सुनिश्चित करें।

संयुक्त किसान मोर्चा ने पत्र में लिखा है कि- “भारतवर्ष के किसानों की ओर से, हम आपके ध्यान में आम जनता की यह आशंका लाना चाहते हैं कि 4 जून, 2024 को होने वाली मतगणना प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ की जा सकती है, ताकि जनता के फैसले को पलटकर वर्तमान सरकार को सत्ता में बने रहने में मदद मिल सके।”

पत्र में आगे लिखा है कि “पिछले चुनावों के विपरीत, भारत के किसानों ने संयुक्त किसान मोर्चा के साथ लिखित समझौते को लागू करने में, खासकर एमएसपी और ऋण माफी के मामले में, सरकार के घोर विश्वासघात के खिलाफ़ और इसकी कॉर्पोरेट नीतियों को उजागर करने के लिए भाजपा के चुनाव अभियान का सीधा विरोध किया है। विशाल और शांतिपूर्ण विरोध ने किसानों, मजदूरों और सभी गरीब तबकों को मुख्य रूप से उनके आजीविका के ज्वलंत मुद्दों के साथ-साथ लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और संघवाद के संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा के लिए लामबंद करने में मदद की। इस प्रकार, चुनावी लड़ाई भाजपा और आम जनता के बीच सिमट गई।”

तीन कॉरपोरेट कृषि कानूनों के खिलाफ 13 महीने तक चले किसानों के विशाल संघर्ष- जिसे ट्रेड यूनियनों और अन्य वर्गों का सक्रिय समर्थन था – में 750 से अधिक किसानों की जान चली गई और मौजूदा सरकार के इशारे पर 4 किसानों और एक पत्रकार की जघन्य हत्या कर दी गई। भाजपा ने किसानों को विदेशी आतंकवादियों और खालिस्तानियों द्वारा वित्तपोषित और देशद्रोही बताकर उनके खिलाफ जहर उगला था।

चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने लगातार अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नफरत भरे भाषण देकर आदर्श आचार संहिता और भारत के संविधान का उल्लंघन किया है। उन्होंने जानबूझकर अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया, जिसका उद्देश्य हमारे महान लोगों के सामंजस्यपूर्ण सामाजिक जीवन को नष्ट करना और किसानों, मजदूरों और आम जनता को सांप्रदायिक आधार पर बांटना था और अल्पसंख्यकों को नुकसान पहुंचाना था। यह हमला धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांत पर था -उस बहुलतावाद और लोगों की एकता की नींव पर था, जिसने स्वतंत्रता के बाद पिछले 77 वर्षों से पूरे विश्व के देशों के लिए एक मॉडल के रूप में गणतंत्र के वास्तविक अस्तित्व को मजबूत किया है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने दो बार सार्वजनिक रूप से चुनाव आयोग से अनुरोध किया था कि वह दंडात्मक कार्रवाई करे और नरेंद्र मोदी समेत उन लोगों पर चुनाव लड़ने पर छह साल का प्रतिबंध लगाए, जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है। दुर्भाग्य से चुनाव आयोग ने निष्क्रियता का रास्ता अपनाया, कार्रवाई में देरी की और अंत में कानून तोड़ने वालों को ‘सलाह’ देकर इसे समाप्त कर दिया। इस प्रकार संवैधानिक जिम्मेदारी को बनाए रखने में चुनाव आयोग की विफलता ने भाजपा की विभाजनकारी विचारधारा को प्रबल होने और चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर लोगों को प्रभावित करने का मौका दिया है।

प्रधानमंत्री के साथ नरमी से पेश आने और उन्हें नियंत्रित करने में विफलता के कारण लोगों के मन में पूरी चुनाव प्रक्रिया के बारे में गंभीर संदेह पैदा हो गया है, क्योंकि यह भाजपा के सत्ता में बने रहने के प्रयासों के लिए एक पक्ष बनकर शामिल हो गया है।

यह उल्लेखनीय है कि लोगों ने, विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों और विपक्षी राजनीतिक दलों ने, इस तरह के चरम उकसावे के परिप्रेक्ष्य में भी देश भर में शांति और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाए रखने के लिए असीम धैर्य और जवाबदेही बनाए रखी है।

चुनाव आयोग ने प्रेस ब्रीफिंग करने, मतदान के आंकड़े उपलब्ध कराने में भी पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं की थी और उपलब्ध कराए गए आंकड़ों में गंभीर विसंगतियां थीं। बाद में, जब पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया गया, तो चुनाव आयोग ने निर्वाचन क्षेत्रवार मतदान के आंकड़े जारी किए। चुनाव आयोग का अतीत में ऐसा आचरण कभी नहीं रहा।

कार्यवाहक सरकार ने चुनाव आयोग की पूर्व अनुमति के बिना ही विपक्ष के चुनाव पूर्व गठबंधन को कमजोर करने के लिए दिल्ली के निर्वाचित मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर लिया था। बाद में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को अंतरिम जमानत दे दी। विपक्षी दलों के बैंक खाते निलंबित कर दिए गए। दोनों घटनाओं में चुनाव आयोग चुप रहा। पुलिस और खुफिया ब्यूरो ने भाजपा के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले पंजाब के किसान नेताओं को भी निशाना बनाया।

भारत के चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करने वाली समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाना नैतिक रूप से गलत था।

इस तरह की चूकों ने जनता के बीच निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता के प्रति अविश्वास पैदा कर दिया है और इसकी गंभीर आशंकाएं पैदा कर दी हैं कि वर्तमान सरकार मतगणना के दौरान जनता के फैसले से छेड़छाड़ करने की हरकत कर सकती है।

इस संदर्भ में, एसकेएम चुनाव आयोग से अपील करता है कि कृपया निम्नलिखित मुद्दों पर ध्यान दें :

  1. प्रक्रिया के अनुसार स्वतंत्र और पारदर्शी मतगणना सुनिश्चित करें।
  2. नियमों के अनुसार समय-समय पर वोटों का सटीक विवरण जनता के साथ साझा करें, ताकि किसी भी तरह की हेराफेरी का संदेह दूर हो सके।
  3. सभी उल्लंघनों की जाँच करें और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ सख्त और कड़ी कार्रवाई करें।
  4. कृपया भारत के किसानों की इन चिंताओं के बारे में सभी चुनाव रिटर्निंग अधिकारियों को सूचित करें।

अंत में, हम एक बार फिर यह बताना चाहते हैं कि हम नहीं चाहते कि भारत का चुनाव आयोग किसानों और देश की जनता को यह मानने का कोई कारण दे कि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में अनुचित आचरण के किसी भी तत्व द्वारा उनके लोकप्रिय जनादेश को कमजोर किया गया है।

इन आशंकाओं को सामने लाते हुए, हम यह भी कहना ज़रूरी समझते हैं कि इस चुनाव ने केंद्र सरकार की किसान-विरोधी, मज़दूर-विरोधी नीतियों में सुधार की उम्मीद जगाई है, जिससे सरकार में बदलाव संभावना बलवती हुई है।

(संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की राष्ट्रीय समन्वय समिति की ओर से जारी)

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