इसी माह 10 सितंबर 2024 के दिन खबर थी कि केन्या की अदालत ने अडानी समूह के साथ देश के मुख्य हवाई अड्डे के आधुनिकीकरण एवं विस्तार के लिए 30 वर्ष तक के लिए लीज के प्रस्तावित डील पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है।
इसके लिए अदालत में केन्या की दो संस्थाओं, बार एसोसिएशन, लॉ सोसाइटी ऑफ केन्या (एलएसके) और केन्या मानवाधिकार आयोग (केएचआरसी) ने संयुक्त रूप से अर्जी दायर की थी।
उनकी ओर से अदालत में याचिका कहा गया कि केन्या स्वतंत्र रूप से राजधानी नैरोबी के हवाई अड्डे के आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक 1.85 बिलियन डॉलर जुटा सकता है। इस डील के तहत अगले 30 वर्ष तक इस एअरपोर्ट को बीओटी के आधार पर अडानी समूह का स्वामित्व हो जायेगा।
इस डील के बारे में जानकारी मिलते ही केन्या, विशेषकर राजधानी नैरोबी में हड़कंप मच गया। जोमो केन्याटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (जेकेएआई) को पूर्वी अफ्रीका का सबसे बड़ा विमानन केंद्र माना जाता है, जहां पर काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों के बीच अफवाह फ़ैल गई कि उनकी नौकरी खतरे में हैं।
पीपीपी मॉडल पर अडानी समूह और केन्या सरकार के बीच हुए इस करार को देश के करदाताओं पर एक अनावश्यक बोझ के तौर पर देखा जा रहा है।
खबरें तो यहां तक हैं कि अडानी समूह की तो ये बस शुरुआत है, उसका इरादा केन्या के सभी 9 एअरपोर्ट के अधिग्रहण का है। इसके अलावा पॉवर सेक्टर में भी अडानी समूह की घुसपैठ की खबर से उस देश के लोग आशंकित हैं।
ये खबर जितनी प्रमुखता से पश्चिमी देशों के मीडिया समूह में छाई हुई थी, भारत में वैसा कुछ भी खास देखने को नहीं मिला। जेकेएआई एअरपोर्ट के सैकड़ों कर्मचारियों और एयर स्टाफ के हड़ताल पर चले जाने के कारण अफरातफरी का आलम भी दुनिया में चर्चा में रहा।
फिलहाल उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार न्यायिक आयोग का गठन हो चुका है, और इस मामले की जांच शुरू हो गई है।
इस विवाद के केंद्र में केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो बुरी तरह से घिर चुके हैं। पिछले वर्ष 5 दिसंबर, 2023 की द प्रिंट की रिपोर्ट पर निगाह डालें तो, राष्ट्रपति रुटो भारत की अपनी राजकीय यात्रा पर पधारे थे। हालांकि इसके लिए उन्हें भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आमंत्रण भेजा था।
लेकिन राष्ट्रपति रुटो ने अपनी इस यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हैदराबाद हाउस में मुलाक़ात के अलावा अपने बयान में पीएम मोदी की भूरी-भूरी प्रशंसा की थी, और कई मायनों में उनके साथ अपनी साम्यता का वर्णन किया था।
बता दें कि पीएम मोदी के पिछले दस वर्षों के दौरान विदेशी दौरों को लेकर हाल ही में एक अंग्रेजी न्यूज़पोर्टल स्क्रॉल ने इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में तथ्यों के साथ बताया गया है कि इसके 3 महीने बाद ही अडानी समूह ने नैरोबी एअरपोर्ट के विस्तार एवं आधुनिकीकरण का प्रस्ताव पेश कर दिया था।
और जून में केन्याई सरकार ने राष्ट्रीय उड्डयन नीति एवं एअरपोर्ट इन्वेस्टमेंट प्लान में आवश्यक बदलाव कर दिए, और इस प्रकार अडानी समूह के लिए पूर्वी अफ्रीका में निवेश और पांव जमाने का मौका मिल गया।
लेकिन, जहां यह मुद्दा भारत में कोई खास चर्चा का विषय नहीं बन पाया, क्योंकि अडानी समूह हिंडनबर्ग रिपोर्ट से लेकर बांग्लादेश को बिजली की आपूर्ति, श्रीलंका में पोर्ट और पॉवर सेक्टर में निवेश को लेकर सुर्ख़ियों में बना हुआ है।
वहीं देश के भीतर भी राजस्थान और महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर पॉवर सेक्टर में सरकारी निविदाओं में अपने मुताबिक नियम और शर्तों की वजह से चर्चा के केंद्र में है।
मुख्य विपक्षी दल, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने पहले जम्मू-कश्मीर और अब हरियाणा राज्य विधानसभा चुनाव में वैसे भी अपने चुनावी भाषणों में हर समस्या की जड़ में मोदी-अडानी के संबंधों को जोड़कर देश में बढ़ती असमानता के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है।
लेकिन केन्या, जो कि 1964 में गणतांत्रिक देश बना, आर्थिक दृष्टि से अफ्रीका महाद्वीप का तीसरा प्रमुख देश है। आबादी के लिहाज से 5 करोड़ के आसपास का यह देश, अफ्रीका के अन्य देशों की तुलना में बेहतर है और इसकी जीडीपी विकास दर भी अच्छी है।
लेकिन 80 के दशक से अभी तक विश्व बैंक और आईएमएफ की कर्ज की शर्तों के तहत यह आज के दिन कर्ज चुकाने के मामले में संकट में घिरा हुआ है। दूसरी ओर, 2030 तक आर्थिक, सामाजिक क्षेत्र में कायाकल्प के नारे के साथ मौजूदा सरकार पूरे जोशोखरोश के साथ दुनियाभर से निवेश के लिए आतुर है।
जिसमें भारत से अडानी समूह और एयरटेल भारती ने अपनी रूचि दिखाई है। हाल ही में एलन मस्क के स्टारलिंक के साथ भी केन्या का समझौता होने की संभावना है।
अभी तक पश्चिमी देश और खुद भारत में यह आम धारणा बनी हुई थी कि अफ्रीकी महाद्वीप में चीन सरकार की निवेश नीति इस महाद्वीप के लिए नई तबाही का बायस बनने जा रही है।
लेकिन आज हालत यह है कि केन्या सहित अफ्रीकी महाद्वीप में आम लोग सोशल मीडिया में आरोप लगा रहे हैं कि पहले तो भारत के गुप्ता बन्धु ने दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति जुमा को अपने साम्राज्य के विस्तार के मद्देनजर आर्थिक भ्रष्टाचार के तहत बर्बाद कर दिया, अब दुनिया में दिग्गज कारोबारी अडानी ने केन्याई राष्ट्रपति विलियम रुटो को आईने में उतारकर देश के संसाधनों पर कब्जे की ठान रखी है।
सीनेटर, ओनयोनका का आरोप है कि, “अडानी समूह के साथ समस्या यह है कि यह सिर्फ जेकेआईए को ही अपने निशाने पर नहीं लिए हुए है, बल्कि असल में हमारे सभी नौ हवाई अड्डों के पूरे बुनियादी ढांचे को निशाना बना रहा है।”
सीनेटर ओयोन्का ने आगे बताया कि अडानी देश की भूतापीय ऊर्जा पर भी कब्ज़ा करने की कोशिश करेगा क्योंकि केन्या के इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड (KETRACO) का नियंत्रण भी ख़त्म करने के लिए सौदे चल रहे हैं।
उनके मुताबिक, इस विवादास्पद सौदे की गहन जांच के लिए एक विशेष आयोग का गठन किया जाना चाहिए, जिसने देश भर में हंगामा खड़ा कर दिया है। इस सौदे ने सरकार को पूरी तरह से संदेह के घेरे में डाल दिया है।
बता दें कि यह मामला ओयोन्का द्वारा सीनेट समिति की सुनवाई में नए सबूत पेश करने के एक दिन बाद आया है, जिसने अडानी विवाद पर प्रकाश डालने के लिए ट्रेजरी कैबिनेट सचिव (सीएस) जॉन मबादी को तलब किया था।
पिछले कुछ दिनों से केन्या में सोशल मीडिया पर ‘रुटो ही अडानी है’ जैसे हैशटैग जमकर चल रहे हैं। राष्ट्रपति रुटो को अपदस्थ करने की मांग जोर पकड़ रही है।
दो दिन पहले केन्याई डिजिटल न्यूज़ बुलेटिन, सिटीजन डिजिटल ने एक बड़ा खुलासा करते हुए राष्ट्रपति रुटो और अडानी समूह के बीच अमेरिकी कनेक्शन को स्थापित करने का प्रयास किया है।
इस खबर के मुताबिक, कुछ सप्ताह से राष्ट्रपति विलियम रुटो के पुत्र और वकील निक रुटो के एक लॉ फर्म, Dentons, Hamilton Harrison & Mathews के साथ जुड़ाव का मामला विवादों के केंद्र में बना हुआ है। ये वही लॉ फर्म है, जो JKIA एअरपोर्ट मामले में अडानी एअरपोर्ट होल्डिंग्स का केस संभाल रही है।
अब इसमें एक नाम और जुड़ रहा है, जो पिछले तीन दशक से राष्ट्रपति रुटो के घनिष्ठ मित्र हैं। इनका नाम है आदिल अरशद ख्वाज़ा, जो सफारीकॉम बोर्ड के अध्यक्ष होने के साथ-साथ इस लॉ फर्म में मैनेजिंग पार्टनर की भूमिका में भी हैं।
ख्वाज़ा ने निक रुटो के लॉ फर्म में काम करने के संबंध में लग रहे आरोपों को खारिज़ करते हुए सफाई दी है कि निक को अपनी योग्यता के बल पर फर्म में नौकरी हासिल हुई है।
अभी हाल तक भारत को औपनिवेशिक शासन से सत्य और अहिंसा के बल पर आज़ादी हासिल करने वाले सबसे बड़े लोकतंत्र के तौर पर दुनियाभर में जाना जाता था, जिसने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर गरीब और उत्पीड़ित देशों की रहनुमाई की थी।
लेकिन आज देश दो किस्म के नागरिकों के निर्माण के तौर पर देखा जा रहा है। एक वो जो आज भी विकास की दौड़ में पिछड़े और प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, शिक्षा के लिहाज से दुनिया के सबसे पिछड़े मुल्कों के नागरिकों के समकक्ष हैं।
तो वहीं दूसरी ओर चंद मुट्ठीभर क्रोनी पूंजीपति न सिर्फ देश की संपदा पर तेजी से कब्जा करते जा रहे हैं, बल्कि तीसरी दुनिया के देशों के भ्रष्ट राष्ट्राध्यक्षों को औने-पौने दामों में अपना गुलाम बनाने की होड़ में पश्चिमी देशों के भी कान काट रहे हैं।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
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