101 पूर्व नौकरशाहों ने अमित शाह से उत्तराखंड में बहुसंख्यक आक्रामकता के खिलाफ कार्यवाही की अपील की

Estimated read time 1 min read


(देश के 101 पूर्व नौकरशाहों ने देशभर में और खासकर उत्तराखंड में होने वाली सांप्रदायिक हिंसा पर गहरा क्षोभ जाहिर किया है। इसको उन्होंने न केवल सत्ता प्रायोजित बताया है कि बल्कि कहा है कि यह उत्तराखंड की परंपरा, संस्कृति और उसके इतिहास के खिलाफ है। कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के नाम से जाने जाने वाले इस समूह ने इस सिलसिले में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है। पेश है उनका पूरा पत्र-संपादक)

श्री अमित शाह, 

माननीय भारत के गृहमंत्री

माननीय भारत के गृहमंत्री

1- जैसा कि आप जानते होंगे हम पूर्व नौकरशाहों के कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के सदस्य हैं जो पिछले कुछ वर्षों से सार्वजनिक नीति, शासन और राजनीति में संवैधानिक मूल्यों के सतत क्षरण पर अक्सर अपने विचार जाहिर करते रहे हैं। जिस तरह से अधिकारियों ने सांप्रदायिक स्थितियों से निपटने की कोशिश की उसमें यह गिरावट और बिल्कुल स्पष्ट हो गयी। अक्सर ढेर सारी सरकारों के आचरण ने सांप्रदायिक वैमनस्य और हिंसा का रास्ता प्रशस्त किया और उसमें उनके साथ समाज के उन तत्वों की भागीदारी रही जो वैचारिक तौर पर खुद को लगातार बहुसंख्यक राजनीतिक घृणा, बहिष्करण और विभाजन पर टिके हुए हैं। ऐसे तत्वों का उभार खासकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में देखने को मिल मिल रहा है।

2-आज हम आपको उत्तराखंड राज्य में हाल ही में हुई घटनाओं के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए लिख रहे हैं, जो एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य है और लंबे समय से शांति, सद्भाव और पर्यावरणीय सक्रियता के लिए जाना जाता रहा है। कुछ साल पहले तक, इस राज्य में बहुसंख्यक आक्रामकता का रत्ती भर भी संकेत नहीं था। वास्तव में विभिन्न धर्मों और परंपराओं के आध्यात्मिक और दार्शनिक खोज के लिए एक सुरक्षित स्थान के अपने लंबे इतिहास के कारण यह विभिन्न समुदायों के सह-अस्तित्व और उनके एक-दूसरे के साथ निकट संबंधों के लिए यह सामान्य और स्वाभाविक समझा जाता था।

3-हाल के वर्षों में उत्तराखंड की राजनीतिक स्थिति में सांप्रदायिक विष घोलने का प्रयास न केवल घृणा की एक नई नर्सरी तैयार करने की संगठित योजना का हिस्सा है, बल्कि वह इस क्षेत्र के समन्वित, बहुलवादी और शांतिपूर्ण चरित्र को बदलकर इसे समुदायों के बीच की खाई को स्थाई तौर पर गहरी करने के साथ ही आक्रामक, सशस्त्र और कट्टरपंथी हिंदुत्व का एक उत्पादन केंद्र बना रहा है। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों को जबरन स्थाई तौर पर भय में रखना और उन्हें यह स्वीकार करने के लिए मजबूर करना कि वे बहुसंख्यक हिंदू समाज के अधीन हैं। ऐसा लगता है कि उत्तराखंड को एक ऐसी रणनीति का नमूना बनाया जा रहा है जिसका देश के दूसरे हिस्सों में भी प्रयोग किया जा सके। खास कर उन स्थानों पर जहां इस तरह की बहुसंख्यक आक्रामकता का प्रतिरोध किया गया है।

4-उत्तराखंड में एक खतरनाक प्रवृत्ति उभर रही है, जिसके गंभीर संकेत दिखाई दे रहे हैं:

– 10 सितंबर, 2024 को देहरादून प्रेस क्लब में एक नफरती भाषण दिया गया, जिसमें दिसंबर 2024 में एक “धर्म संसद” के आयोजन की घोषणा की गई। आपको बता दें कि दिसंबर 2021 में हरिद्वार में एक “धर्म संसद” का आयोजन किया गया था, जिसमें नरसंहार और भारतीय मुसलमानों की सामूहिक हत्या और बलात्कार की मांग करते हुए तमाम भाषण दिए गए थे। अब फिर से ऐसे ही व्यक्तियों द्वारा एक बार फिर से “धर्म संसद” की घोषणा की गई है और हिंदुओं से आह्वान किया गया है कि वे स्वयं को सशस्त्र करें और अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को “मानवता का शत्रु” मानें।

-10 सितंबर, 2024 की यह घोषणा राज्य में सुनियोजित रूप से एक श्रृंखलाबद्ध और नफरत से प्रेरित हिंसा की घटनाओं की पृष्ठभूमि में की गई है। 12 अगस्त, 2024 के बाद से चौरास (कीर्ति नगर के पास), देहरादून, श्रीनगर, बेरीनाग, उत्तरकाशी, कर्णप्रयाग, नंदनगर (चमोली), थराली (चमोली), तिलवाड़ा, गौचर (चमोली), सोनप्रयाग, हल्द्वानी और राज्य के कई अन्य स्थानों पर भड़काऊ भाषण और हिंसक हमले हुए हैं। कई स्थानों पर संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया है और अल्पसंख्यक परिवारों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है। मुस्लिम और गैर-हिंदू विक्रेताओं के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के लिए बोर्ड लगाए गए हैं। इन घटनाओं के लिए मुख्य रूप से कुछ व्यक्ति और संगठन – जिनमें 2021 की “धर्म संसद” में शामिल लोग भी हैं – जिम्मेदार हैं। (हमारी जानकारी के अनुसार, ये केवल पांच व्यक्ति और दो संगठन बजरंग दल और राष्ट्रीय सेवा संगठन शामिल हैं)।

-उनके द्वारा “महापंचायतों” के आयोजन की मांग की जा रही है, जिनका सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने और मुस्लिम निवासियों के आर्थिक बहिष्कार और निष्कासन की मांग के लिए उपयोग किया जाता है। हमें जानकारी मिली है कि उत्तरकाशी में 24 अक्टूबर, 2024 को जिन्होंने हिंसा को भड़काने का काम किया था उन लोगों ने ही 4 नवंबर, 2024 को महापंचायत के आयोजन की घोषणा की है।

-मौजूदा समय और पहले की ढेर सारी घटनाओं में, चाहे वह “लव जिहाद” के झूठे मामले हों, घृणा फैलाने वाले भाषण हों या फिर संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं हों, किसी में भी दोषियों को हिरासत में नहीं लिया गया। जहां कुछ गिरफ्तारियां हुईं भी, वहां भी अधिकतर को जमानत दे दी गई, जिसमें 2021 की घटना का मुख्य आयोजक और कुख्यात अपराधी यति नरसिंहानंद शामिल है। जमानत पर होने के बावजूद आरोपी अपनी जमानत शर्तों का खुला उल्लंघन करते हैं, और पुलिस इस पर कोई ध्यान नहीं देती। उनकी जमानत को रद्द कराने का प्रयास नहीं किया जाता है।

-27 सितंबर, 2024 की विशेष तौर पर एक परेशान कर देने वाली घटना में, देहरादून पुलिस ने एक कट्टर अपराधी को एक सांप्रदायिक हिंसा में शामिल होने के आरोप में हिरासत में लिया, नतीजे के तौर पर उसके विरोध में ट्रेनों और ढेर सारे निजी वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। हालांकि उसके समर्थकों को शहर के मुख्य चौराहे पर जाम लगाने, मुख्य बाजार में बंद का आह्वान करने, खुलेआम भड़काऊ भाषण देने और मुख्य आरोपी के “मुक्त” होने के बाद एक विजय जुलूस निकालने की अनुमति दे दी गई।

-19 सितंबर, 2024 को 18 राज्यों के 53 महिला और नागरिक समाज संगठनों ने उत्तराखंड के राज्यपाल को एक खुला पत्र लिखा, जिसमें महिलाओं की सुरक्षा को खतरे में डालने और पुलिस की पक्षपातपूर्ण भूमिका की निंदा की। उन्होंने इस बात को चिह्नित किया कि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ सदस्यों पर शारीरिक हमला किया गया है और महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से दोषी ठहराया गया है, जबकि सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोगों के मामले में, जो ऐसे हिंसा के असली अपराधी हैं, के खिलाफ पुलिस ने धीमी कार्रवाई की, उनके खिलाफ लगे मामलों को कमजोर किया और यहां तक कि पीड़ितों को अपनी शिकायतें वापस लेने के लिए दबाव भी डाला। 

5-हम इस बात की सराहना करते हैं कि कुछ जिला अधिकारियों और पुलिस अफसरों ने निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाते हुए स्वत: संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज किया और कुछ मौकों पर वो हिंसा को बड़े पैमाने पर फैलने से रोकने में भी सफल हुए हैं। लेकिन यह प्रयास असंगठित और अपर्याप्त हैं, खासकर उस स्थिति में जब साम्प्रदायिक तापमान को संगठित तरीके से बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा हो जिसमें अधिकारी तो शामिल हैं या फिर निष्क्रिय और उदासीन हैं। हम लोगों ने जून, 2023 से इस चिंता को राज्य सरकार के साथ तीन बार उठाया है, लेकिन पूरे पैटर्न में कोई बदलाव नहीं देखा है।

6-इस गंभीर परिदृश्य में, हमें डर है कि यदि इस अभियान को नहीं रोका गया और अगर प्रस्तावित “धर्म संसद” की अनुमति दी जाती है, तो यह संवेदनशील सीमाई राज्य संगठित हिंसा के एक दुष्चक्र में फंस सकता है, जिसका गंभीर असर न केवल आंतरिक शांति और सार्वजनिक व्यवस्था पर पड़ेगा बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरनाक होगा।

इसलिए हम आपसे तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि:

– उत्तरकाशी में 4 नवंबर, 2024 को प्रस्तावित महापंचायत और दिसंबर 2024 में प्रस्तावित “धर्म संसद” जैसे सांप्रदायिक रूप से भड़काने वाले कार्यक्रमों की अनुमति न दी जाए; और उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए जो ऐसे कार्यक्रमों का उपयोग नफरत फैलाने और हिंसा भड़काने के लिए कर रहे हैं। 

– उत्तराखंड पुलिस से यह पूछा जाना चाहिए कि उसने यति नरसिंहानंद और अन्य लोगों द्वारा जमानत की शर्तों के उल्लंघन के मामलों में उनकी जमानत को रद्द कराने का प्रयास क्यों नहीं किया। वास्तव में, हमारा मानना है कि सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के प्रयासों के लिए यति नरसिंहानंद को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया जाना चाहिए। 

– उत्तराखंड पुलिस से कानून, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और संवैधानिक सुचिता के अनुसार हिंसा और नफरती भाषण की सभी घटनाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए कहा जाना चाहिए।

8-हम दोहराते हैं कि, एक समूह के रूप में, हमारा किसी भी राजनीतिक दल या संगठन से कोई संबंध नहीं है और हमारा यह निवेदन केवल इस चिंता से प्रेरित है कि एक ऐसा राज्य, जो अपनी शांति, सद्भाव और नागरिक सौहार्द की परंपराओं के लिए जाना जाता है, संकीर्ण राजनीतिक और सांप्रदायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सांप्रदायिक संघर्ष और सार्वजनिक अव्यवस्था का क्षेत्र न बन जाए।

सत्यमेव जयते
आपका शुभेच्छु

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author