हेल्थ वर्कर।

कोविड-19 टेस्ट व अनिवार्य 14 दिन के क्वारंटाइन को खत्म कर स्वास्थ्यकर्मियों के जीवन से खेल रही है सरकार

नई दिल्ली। WHO की गाइडलाइंस के मुताबिक डॉक्टरों को कोविड-19 टेस्ट के लिए खुद के नाक का स्वैब लेने की अनुमति है, जबकि नर्सों को कोविड-19 टेस्ट कराने के लिए डॉक्टर के हस्ताक्षर चाहिए होते हैं। 

लेकिन दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की नर्सिंग सुपरिटेंडेंट डॉ. रेखा राय ने अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. बलविंदर सिंह को अस्पताल में काम करने वाली 114 नर्सों के 14 दिन की कोरोना वार्ड में ड्यूटी के बाद टेस्ट कराने के लिए लिखा तो मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. सिंह ने कह दिया कि नर्सों का टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है और सभी नर्सें अपने स्तर से ही खुद को क्वारंटाइन कर लें।

ऐसे ही एक मामले में राम मनोहर लोहिया अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों को 18 मई को एक आदेश देकर तुरंत वह होटल छोड़ने को कह दिया गया। जहां वे अनिवार्य क्वारंटाइन में रह रही थीं। और सिर्फ़ इतना ही नहीं नर्सों को धमकी भी दी गई कि यदि उन्होंने होटल नहीं छोड़ा तो होटल के कमरे का किराया उनके वेतन से काट लिया जाएगा। इतना ही नहीं अस्पताल ने नर्सों को न सिर्फ कोविड-19 टेस्टिंग से इनकार कर दिया बल्कि उन्हें घर जाने के लिए किसी वाहन की भी व्यवस्था तक नहीं की गयी। जबकि होटल में कई ऐसी नर्सें भी हैं जो अपने अस्पताल से कम से कम 10 किलोमीटर दूर और घर से करीब 20 किलोमीटर दूर हैं। 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 15 मई को चुपके से एक आदेश जारी किया जिसके तहत कोरोना ड्यूटी कर रहे सभी स्वास्थ्यकर्मियों का अनिवार्य क्वारंटाइन और कोविड-19 टेस्टिंग को खत्म कर दिया गया। इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल और सफदरजंग अस्पतालों में काम करने वाले हेल्थ वर्कर को ये सुविधाएं देने से इनकार कर दिया गया। आरएमएल अस्पताल के मेडिकल वर्कर को 14 दिन पूरे होने से पहले ही क्वारंटाइन सुविधा छोड़कर घर जाने को कह दिया गया।

स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि सरकार एक नोडल अफसर को नियुक्त करेगी जो हेल्थ केयर वर्कर में संक्रमण के मामलों को देखेगा। यह साफ हो चुका है कि थर्मल स्क्रीनिंग से कोरोना के संक्रमण का पता नहीं लगाया जा सकता, लेकिन मंत्रालय ने कह दिया है कि हेल्थ वर्कर की सिर्फ थर्मल स्क्रीनिंग ही की जाएगी। मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा है कि सभी हेल्थ केयर वर्कर को कोरोना संक्रमण के संपर्क में आने की सूचना नोडल अफसर को देनी होगी और फिर वह अफसर तय करेगा कि यह कितना गंभीर है या नहीं। अगर मामला गंभीर लगा तभी हेल्थ केयर वर्कर को क्वारंटाइन किया जाएगा या आईसीएमआर के नियमों के मुताबिक उसका टेस्ट होगा। अगर नोडल अफसर ने इसे ‘लो रिस्क’ केस माना तो हेल्थ केयर वर्कर को काम जारी रखना होगा।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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