डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर एक नयी परिघटना सामने आई थी, जब दुनिया के सबसे धनी अरबपति एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रम्प को चुनाव जिताने के लिए खुलेआम उनका समर्थन किया और अरबों रुपए भी ख़र्च किए।
चुनाव जीतने के बाद न वे केवल डोनाल्ड ट्रम्प के मंत्रिमंडल में शामिल हुए, बल्कि उनके लिए एक नए विभाग का भी सृजन किया गया। आमतौर से यह देखा जाता है, कि दुनिया भर के पूंजीवादी जनतंत्रों का संचालन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बड़े काॅरपोरेट घराने करते हैं, परन्तु सीधे-सीधे वे संसदीय जनतंत्र में भागीदारी नहीं करते। इससे ‘संसदीय जनतंत्र की पवित्रता और जनप्रभुता’ का भ्रम बना रहता है। इसीलिए मार्क्स ने लिखा है कि “पूंजीवादी जनतंत्र की संसद पूंजीपति वर्ग की प्रबंधकारिणी संस्था के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।”
यह नयी परिघटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका में कॉरपोरेट और सत्ता का गठजोड़ अब खुलेआम दिख रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प और एलन मस्क दोनों ही बड़े कार्पोरेट हैं, शायद वे एक बड़े कॉरपोरेट की तरह अमेरिका को चलाना चाहते हैं, लेकिन यह सम्भव नहीं था, इसलिए दोनों के अंतर्विरोध खुलकर सामने आ गए, इस कारण से अमेरिकी राजनीति का संकट गहरा गया है।
एलन मस्क और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच पिछले दो हफ्तों से जो असहमतियां चल रही थीं, वे अब खुले विरोध में बदल गई हैं। डोनाल्ड ट्रम्प के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि एलन मस्क उनके सबसे बड़े समर्थकों में से एक थे। उन्होंने सोशल मीडिया पर ट्रम्प का जबर्दस्त चुनाव प्रचार किया था और इसमें तीन सौ मिलियन डॉलर ख़र्च भी किए थे। बदले में ट्रम्प ने मस्क के लिए एक नया विभाग बनाया, जिसका उद्देश्य सरकारी संस्थानों के ख़र्च में कटौती करना था।
जल्दी यह विभाग अन्य सभी संस्थानों से शक्तिशाली हो गया, लेकिन अभी कुछ दिन पहले एलन मस्क अमेरिकी सरकार से बाहर निकल आए तथा अब ट्रम्प और मस्क मीडिया पर एक-एक पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। बात यहां तक बढ़ गई है कि एलन मस्क ट्रम्प के यौन अपराधों का कच्चा-चिट्ठा खोलने की धमकी दे रहे हैं, हालांकि इन सबके कारण एलन मस्क की कम्पनी टेस्ला के शेयर बीस प्रतिशत तक गिर गए लेकिन लगता है कि मस्क को इसकी कोई परवाह नहीं है।
अगर हम इस विवाद का गम्भीरता से विश्लेषण करें तो यह समझ में आता है कि इसका कारण व्यक्तिगत न होकर वैचारिक है। हर वैचारिक विवाद की तरह यह भी अमेरिकी समाज के गहरे अंतर्विरोधों को दर्शाता है। ट्रम्प के चुनावी अभियान का एक प्रमुख हिस्सा अमेरिकी सरकार में ‘अनावश्यक ख़र्च’ को समाप्त करना था। उनका मानना था कि सरकारी एजेंसियों ने अंतहीन धन बर्बाद किया था, यही कारण है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था ऋण में डूब रही है और इन ऋणों को जनता को चुकाना होगा, यद्यपि अमेरिका में यह कोई नया विचार नहीं है।
अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 1980 के दशक में इन शब्दों का इस्तेमाल करके बड़े पैमाने पर चुनाव जीता था, लेकिन उस समय भी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में सरकारी संस्थानों में कटौती के साथ-साथ निजीकरण भी हुआ था।
दिलचस्प बात यह है कि इन सब कार्यों का वास्तविक लक्ष्य फ्रेंकलिन रूजवेल्ट की वे नीतियां थीं, जो 1932 में सत्ता में आए थे। 1929 में महामंदी के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भयंकर मंदी का सामना करना पड़ा, जिससे गरीबी और बेरोज़गारी बढ़ी। उस समय अमेरिकी उद्योग भी कमज़ोर हो रहे थे। इन संकटों से निजात पाने के लिए रूजवेल्ट ने एक नये सामाजिक अनुबंध की घोषणा की, जिसमें सरकारी खर्चे पर कई नए सरकारी संस्थानों का निर्माण किया गया, जिससे हज़ारों सरकारी नौकरियां पैदा हुईं।
अमेरिका में पहली बार कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पैदा हुई, जिसके माध्यम से गरीबों और बेरोज़गारों को सरकारी भत्ते के साथ-साथ अन्य लाभ भी दिए गए। लोगों को राहत देने के लिए कॉरपोरेट से टैक्स भी वसूला गया, जिससे लोगों की क्रयशक्ति बढ़ी और अर्थव्यवस्था में भी तेजी आई।
अमेरिका शासक वर्ग का एक बड़ा हिस्सा हमेशा इन सुधारों के खिलाफ़ रहा है, जिसे वे ‘समाजवाद’ कहते हैं, लेकिन रोनाल्ड रीगन के युग में पहली बार उन्हें में इस प्रणाली को उखाड़ फेंकने का अवसर मिला था। वास्तव में उनकी नफ़रत का मुख्य कारण अभिजात्य वर्ग पर लगाया गया टैक्स है, जिसके द्वारा सरकारी एजेंसियां चलती हैं।
रीगन की नीति का महत्वपूर्ण पहलू यह था कि उसने केवल उन संस्थानों पर ही हमला किया, जो श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करते थे। दूसरे बड़े निगमों के बढ़े हुए करों को माफ़ किया गया, इसके लिए यह कहा गया कि इससे वे अधिक निवेश करेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। इसे ‘Trickle down Economics’ कहा गया, इसका अर्थ यह है कि अगर संभ्रांत और धनी वर्ग की दौलत बढ़ेगी, तो इसकी कुछ बूंदें छलककर ग़रीब तबके तक भी पहुंचेगीं।
एलन मस्क और ट्रम्प के बीच की लड़ाई इसी नीति के आंतरिक विरोधाभास की लड़ाई है। पिछले चालीस सालों से अमेरिका ने इस नीति का पालन किया, जिसके कारण कुलीन वर्ग अरबों डॉलर कमा चुके हैं (अमेरिका में सबसे अमीर लोग 40% संसाधनों के मालिक हैं, लेकिन इससे अमेरिकी कर्ज़ भी बढ़ गए और उद्योग भी अमेरिका से बाहर जाने लगे, विशेष रूप से चीन में।
ट्रम्प अब एक साथ चार लक्ष्यों को पूरा करना चाहते हैं। एक ओर वे कुलीन वर्ग के लिए करों को और कम करना चाहते हैं, दूसरी ओर शुल्क के माध्यम से निर्यात पर कर बढ़ाना चाहते हैं, तीसरे स्थान पर चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए अमेरिका में औद्योगीकरण में तेजी लाना चाहते हैं, चौथा लक्ष्य अमेरिकी संस्थानों और विश्वविद्यालयों के सरकारी अनुदानों में बड़ी कटौती करना चाहते हैं, जिसे वे अनावश्यक ख़र्च और वामपंथी अड्डों के रूप में देखते हैं।
वास्तव में ये सभी लक्ष्य एक-दूसरे के अंतर्विरोधी हैं। अगर कम्पनियों के टैक्स की कटौती होगी, तो वे अपना मुनाफ़ा उद्योग में निवेश करने की जगह विभिन्न द्वीप देश जैसे-पनामा में जमा करेंगी, दूसरी ओर ये शुल्क उन कम्पनियों को नुकसान पहुंचाएगा, जो अपने व्यापार के लिए चीन सहित और देशों पर निर्भर हैं।
औद्योगिक विकास के लिए ये सभी नीतियां विनाशकारी हैं, इसके साथ ही रिपब्लिकन पार्टी के भीतर से भी आवाज़ आ रही है कि ग़रीबों के लिए सब्सिडी की कटौती करना भयानक सामाजिक परिणाम सामने आ सकते हैं, विशेष रूप से सरकारी संस्थानों और विश्वविद्यालयों में धनराशि की कटौती से। भविष्य में इसके परिणाम विनाशकारी होंगे, जिससे बड़े पैमाने पर प्रतिभाओं का पलायन यूरोप की ओर होगा, जो प्रक्रिया अब कुछ हद तक शुरू भी हो गई है।
ये वे विरोधाभास हैं, जिनके कारण से दोनों के बीच अंतर्विरोध खुलकर सामने आए हैं। ट्रम्प भारी विरोध के कारण सब्सिडियों को कम करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं, जिसके कारण कारण एलन मस्क के साथ असहमति हुई। डोनाल्ड ट्रम्प ने ग़रीब नागरिकों के लिए चिकित्सा सुविधाओं को कम कर दिया है, जबकि कुलीन वर्गों को कर में राहत दी गई है तथा सैन्य बजट बढ़ाया गया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ये चीज़ें अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर एक ओर 2.5 खरब डॉलर का ऋण डाल देंगी। एलन मस्क ने कहा है कि अमेरिकी लोग कर्ज़ की गुलामी करने जा रहे हैं, साथ ही मस्क ने दावा किया है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस साल और संकट से गुजरेगी और जनता से इस ऋण की गुलामी के खिलाफ़ खड़े होने का आह्वान किया है। इसके जवाब में ट्रम्प ने मस्क को ताना दिया कि अगर हम वास्तव में पैसा बचाना चाहते हैं, तो हमें मस्क की कम्पनी टेस्ला को मिलने वाली सरकारी सब्सिडी को समाप्त कर देना चाहिए। इस कटाक्ष के पीछे अंतहीन विरोधाभास है, जिसने अमेरिकी शासक वर्ग को एक बड़े राजनीतिक संकट में फंसा दिया है।
वास्तव में अमेरिका आज एक पतनशील साम्राज्य है,जो आर्थिक और सामाजिक संकट के बाद अब एक गम्भीर राजनीतिक संकट में घिर गया है, लेकिन इन विफलताओं के बावजूद अमेरिका अभी भी दुनिया की सबसे बड़ी सैनिक ताक़त है, जिसके माध्यम से पूरी दुनिया को नष्ट करने की उसकी क्षमता अभी भी बरकरार है।
एक ढहता हुआ साम्राज्यवाद जो दुनिया को नष्ट करने की क्षमता रखता है, वह अपने साथ के देशों को भी बर्बाद कर सकता है, लेकिन यह तय है कि भारतीय शासक वर्ग अमेरिका की दशा और दिशा से कोई सबक नहीं सीखेंगे, जिसका संकट निश्चित रूप से अमेरिकी संकट के साथ जुड़ा हुआ है तथा उससे कहीं ज़्यादा बड़ा है।
(स्वदेश कुमार सिन्हा स्वतंत्र पत्रकार हैं।)