राज्यसभा सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा की अगुवाई में एक और अकाली दल 7 जुलाई को वजूद में आ गया। प्रकाश सिंह बादल की सरपरस्ती और सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता वाला शिरोमणि अकाली दल प्रमुख माना जाता है। ढींडसा उसके संस्थापकों में से एक थे और हाशिए पर कर दिए जाने से पहले प्रकाश सिंह बादल के बाद अकाली दल के सबसे वरिष्ठ नेता माने जाते थे। वह पहले बड़े नेता थे जिन्होंने अपने घनिष्ठ साथी प्रकाश सिंह बादल के फरजंद सुखबीर सिंह बादल की कार्यशैली पर आलोचनात्मक सवाल उठाए थे। मनाने-रिझाने कि तमाम कवायद के बावजूद उन्होंने अपने तेवर ढीले नहीं किए और न सुर बदले। नतीजतन इस साल की फरवरी में पहले वह पार्टी से बाहर हुए और फिर उनके बेटे पूर्व वित्त मंत्री तथा विधानसभा में शिरोमणि अकाली दल विधायक दल के नेता परमिंदरजीत सिंह ढींडसा।
सुखदेव सिंह ढींडसा तब टकसाली अकाली दल के साथ चले गए थे लेकिन अब उन्होंने अलहदा शिरोमणि अकाली दल बना लिया है। उन्हें टकसाली अकाली दल और बादलों के शिरोमणि अकाली दल के बागी नेताओं तथा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया, बादल दल से बागी हुए दिल्ली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके, सूबे के प्रभावशाली सियासी घरानों तलवंडी और टोहड़ा के वारिसों, बादल के बेहद करीबी रहे पूर्व मंत्री सेवा सिंह सेखवां, बीबी गुलशन कौर और विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर बीर दविंदर सिंह का सक्रिय समर्थन हासिल है।
सुखदेव सिंह ढींडसा की अगुवाई में गठित नए शिरोमणि अकाली दल के मायने बादल दल के लिए बेहद नागवार हैं। गठन की घोषणा की शुरुआत में ही ढींडसा ने कह दिया कि वह अपनी पार्टी का नाम शिरोमणि अकाली दल इसलिए रखने जा रहे हैं कि यही ‘असली’ शिरोमणि अकाली दल होगा और बादलों की सरपरस्ती वाला अकाली दल ‘नकली’ है। ढींडसा ने कहा कि अब वह शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष हैं, सुखबीर सिंह बादल नहीं। अगर कोई अदालती फैसला उनके दल के खिलाफ आता है तो इसके नाम के पीछे ‘डेमोक्रेटिक’ लगा दिया जाएगा। बादल गुट के शिरोमणि अकाली दल की लीडरशिप फिलवक्त खामोश है। लेकिन प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता वाला शिरोमणि अकाली दल ही खालिस है और सुखदेव सिंह ढींडसा का इस पर दावा गैरकानूनी है। चीमा ने कहा कि अदालत में चुनौती दी जाएगी। जवाब में ‘जनचौक’ से ढींडसा ने कहा कि हर चुनौती का तार्किक जवाब दिया जाएगा।
दरअसल, नए शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींडसा अपनी मातृ पार्टी रही शिरोमणि अकाली दल की एक-एक खूबी और खामी से बखूबी वाकिफ हैं। पंथक हलकों में उनका उतना ही सम्मान है जितना प्रकाश सिंह बादल का। ढींडसा 84 साल के हैं और उम्र के सात दशक उन्होंने अकाली एवं पंथक सियासत में बिताए हैं। अकाली दल और भाजपा के बीच उन्होंने समन्वयक का काम भी किया। नए दल के ऐलान के वक्त उन्होंने कहा कि वह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और दिल्ली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनाव में बादल दल के मुकाबिल होंगे। पंथक मोर्चे पर बादल दल के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है।
दशकों से खरबों रुपए की सालाना बजट वाली एसजीपीसी और डीएसजीपीसी पर बादलों का एकमुश्त कब्जा रहा है। पंजाब में उसी अकाली दल को सर्वोपरि माना जाता है जो एसजीपीसी पर काबिज होता है। सर्वविदित है कि ढींडसा और उनके सहयोगियों सेवा सिंह सेखवां, बलवंत सिंह रामूवालिया, बीबी गुलशन कौर, तलवंडी और टोहड़ा परिवार की एसजीपीसी मतदाताओं पर गहरी पकड़ है। खुद सुखदेव सिंह ढींडसा एसजीपीसी के आम चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के रणनीतिकार बनते रहे हैं। बतौर प्रतिद्वंदी उनका शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव में उतरने का एक ही मतलब होगा–बादल दल का जबरदस्त नुकसान!
पंजाब का खित्ता मालवा सूबे की सियासत की धुरी है। मुख्यमंत्री आमतौर पर इसी इलाके से आते हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह मलवई हैं और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी। सुखदेव सिंह ढींडसा भी मालवा के हैं। मालवा के हर कोने-अंतरे को सूक्ष्म तौर पर जानते-पहचानते हैं। जिस मालवा के जरिए बादल सत्ता हासिल करते रहे, उसकी सियासी जमीन पुख्ता करने में ढींडसा परिवार का बहुत बड़ा हाथ रहा है।
अब नया शिरोमणि अकाली दल बनने के बाद मालवा तो क्या पूरे राज्य के राजनीतिक समीकरण बदलने तय हैं। इस इलाके के बहुतेरे आम शिरोमणि अकाली दल कार्यकर्ताओं और कई नेताओं ने ढींडसा दल का दामन थाम लिया है। ढींडसा के एक करीबी कहते हैं, “शिरोमणि अकाली दल के तीन विधायक एसजीपीसी के कई सदस्य हमारे साथ आने को तत्पर हैं। बादल दल में एक बड़ी बगावत का इंतजार कीजिए।” जबकि सुखदेव सिंह ढींडसा के अनुसार, “दो साल के भीतर बादल दल में प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल, हरसिमरत कौर बादल, बिक्रमजीत सिंह मजीठिया और उनकी जुंडली के अलावा कोई नहीं बचेगा। बादल परिवार ने आम अकाली कारकूनों को धोखा देकर अपने खिलाफ कर लिया है। अकाली कार्यकर्ता विकल्प चाहते थे और वह हमने दे दिया है।”
सुखदेव सिंह ढींडसा बादल पिता-पुत्र पर जमकर हमलावर हैं लेकिन भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ उनके तेवर कमोबेश ज्यादा तीखे नहीं हैं। वह भाजपा के नेतृत्व वाली दो सरकारों में केंद्रीय मंत्री रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल की सिफारिश के बगैर मोदी सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान से भी नवाजा था। बादलों की घोर नाराजगी के बावजूद केंद्र सरकार में आज भी उनकी सुनी जाती है। पंजाब में सरगोशियां हैं कि बादल शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन टूटता है तो ढींडसा दल इसकी पूर्ति करेगा।
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार भाजपा आलाकमान लगातार सुखदेव सिंह ढींडसा के संपर्क में है। सौहार्द के रिश्ते तो खैर छिपे हुए हैं ही नहीं! ढींडसा कहते रहे हैं और कह रहे हैं कि पंजाब के हितों के लिए वह किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं। कांग्रेस शिरोमणि अकाली दल के दो फाड़ होने और नया दल बनने पर पैनी निगाह रखे हुए है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि अकाली दल का विभाजन कांग्रेस के लिए खासा मुफीद है। इसलिए भी कि परंपरागत अकाली तथा सिख वोटों का ध्रुवीकरण होगा। बादलों की सत्ता से दूरी बढ़ेगी। आम आदमी पार्टी (आप) का भी ऐसा ही मानना है।
बादल घराना पहले ही गई समस्याओं और विवादों से जूझ रहा है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी कांड की आंच उस तक जा रही है। केंद्र सरकार के कई अध्यादेश (कृषि और प्रस्तावित बिजली) खुलेआम उस संघीय ढांचे के खिलाफ हैं, शिरोमणि अकाली दल जिसका पैरोकार रहा है। पंजाब में कृषि और प्रस्तावित ऊर्जा ऑर्डिनेंस का जबरदस्त विरोध हो रहा है लेकिन बादल ‘कभी इधर की बात करते हैं तो कभी उधर की!’ (इसमें एक पहलू हरसिमरत कौर बादल का केंद्रीय मंत्रिमंडल में होना भी है)। ऐसे में उसके लिए सुखदेव सिंह ढींडसा की चुनौती बहुत बड़ी समस्या है।
अकाली दल ने इसी साल अपने 100 साल का सफर पूरा किया है और यह उसकी 21वीं उल्लेखनीय टूट है। 14 दिसंबर 1920 को शिरोमणि अकाली दल की स्थापना हुई थी। सुखमुख सिंह झब्बाल पहले और बाबा खड़क सिंह दूसरे अध्यक्ष थे लेकिन पार्टी के तीसरे अध्यक्ष मास्टर तारा सिंह के नेतृत्व में अकाली दल सियासी तौर पर मजबूत हुआ। पहला बड़ा विभाजन 1984 में हुआ। एक खेमे की अगुवाई संत हरचंद सिंह लोंगोवाल ने की तो दूसरे खेमे की बाबा जोगिंदर सिंह (भिंडरांवाले के पिता) ने।
1986 में शिरोमणि अकाली दल में फिर विभाजन हुआ। एक दल की कमान सुरजीत सिंह बरनाला ने संभाली तो दूसरे की प्रकाश सिंह बादल ने। इसी तरह कभी तलवंडी ग्रुप बनता गया तो कभी सिमरनजीत सिंह मान ग्रुप। गुरचरण सिंह टोहड़ा ने भी अपना अकाली दल बनाया जो अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार की हार का सबब बना। 14 दिसंबर 2018 को शिरोमणि अकाली दल का अभिन्न हिस्सा रहे रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने अलहदा अकाली दल टकसाली बनाया और अब 7 जुलाई 2020 को सुखदेव सिंह ढींडसा ने शिरोमणि अकाली दल के नाम से ही अलग दल बना लिया है और खुद को उसका अध्यक्ष घोषित कर लिया। हरियाणा और दिल्ली में भी अलग-अलग अकाली दल हैं।
(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जालंधर में रहते हैं।)
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