राहुल गांधी और सोनिया गांधी।

कांग्रेस अब भाजपा की ही भाषा में देगी उसके हमलों का जवाब!

कांग्रेस फिलवक्त राजस्थान में सरकार गिराने और बचाने के बहाने खुलकर सामने आ गयी है और राजस्थान कांड में जिस तरह कांग्रेस ने विद्रोही कांग्रेस नेता सचिन पायलट और भाजपा की छीछालेदर की है उससे कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और विपक्ष के अन्य मुख्यमंत्रियों मसलन पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी को संदेश दिया है कि सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स से डरकर मोदी सरकार से मुकाबला नहीं किया जा सकता बल्कि राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरह फ्रंट फुट पर खेलकर भाजपा को औकात में रखा जा सकता है। यही नहीं यूपी में अजय कुमार लल्लू और गुजरात में हार्दिक पटेल को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंपकर कांग्रेस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस सड़क से संसद तक जन समस्याओं पर सीना तान कर संघर्ष करेगी।

राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत ने भाजपा का विजय रथ फ़िलहाल रोक दिया है क्योंकि राजस्थान की मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल पिछले छह साल में देश में घटने वाली 11वीं ऐसी घटना है, जिसमें भाजपा ने बिना चुनाव जीते राज्य में सत्ता हथियाने की कोशिश की है। इसके पहले महाराष्ट्र में अजित पवार को लेकर सरकार बनाने की कोशिश, बहुमत न मिलने के बावजूद जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर हरियाणा में भाजपा सरकार, कर्नाटक में दलबदल कराकर येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा सरकार, मेघालय, मणिपुर, गोवा, बिहार, झारखंड (2014), अरुणाचल प्रदेश (2014) और मार्च 2020 में मध्यप्रदेश में भाजपा यह खेल खेल चुकी है।

राजस्थान में जिस तरह मुख्यमंत्री गहलोत ने सचिन पायलट के सम्भावित विद्रोह और भाजपा की सरकार गिराने की मुहिम से निपटने की पहले से ही रणनीति तैयार कर रखी थी उसे देखते हुए राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि मध्यप्रदेश में व्यापम जैसे घोटाले और हनी ट्रैप कांड को कांग्रेसी मुख्यमंत्री कमल नाथ ने ठीक से हैंडिल किया होता तो भाजपा को सरकार गिराने और सिंधिया एंड कम्पनी का दलबदल कराने की हिम्मत ही नहीं पड़ती क्योंकि व्यापम के तार जहाँ शिवराज सिंह चौहान से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ बड़े नामों तक जुड़ रहे थे वहीं सेक्स कांड में भी भाजपा के कुछ बड़े नेताओं और नौकरशाहों के नाम आ रहे थे।

राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत को हटाने के प्रयास की राजनीतिक लड़ाई अब कानूनी रूप ले चुकी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का दंगल अब विधायकों की खरीद-फरोख्त में जांच तक पहुंच गया है। इस मामले में कुछ ऑडियो सामने आए हैं, जिनमें दावा किया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और बागी विधायक भंवरलाल के बीच बात हो रही है जो पैसों की लेनदेन पर चर्चा कर रहे हैं। इसी पर एक्शन लेते हुए अब एफआईआर  दर्ज की गई है, जिसमें राजद्रोह का आरोप है। अभी तक मोदी सरकार और प्रदेश की भाजपा सरकारें बात-बात पर राजद्रोह का मुकदमा विरोधियों और एक्टिविस्टों पर लाद रही थीं लेकिन पहली बार राजस्थान सरकार ने इसका इस्तेमाल किया है।

दरअसल, विधायकों की खरीद फरोख्त को लेकर कुछ ऑडियो सामने आए हैं ।

कांग्रेस की ओर से इस मामले में मोदी सरकार में मंत्री और राजस्थान से बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह शेखावत पर आरोप लगाया गया। इस मामले में कांग्रेस ने इस मामले में सेक्शन 124ए (राजद्रोह) और 120बी (साजिश रचने) में दो मामले दर्ज कराये हैं। ऑडियो क्लिप के सत्यता की जांच की जा रही है, ये एफआईआर तीन लोगों पर दर्ज की गई है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा और भाजपा नेता संजय जैन के खिलाफ स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने केस दर्ज किया है। जैन को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। कांग्रेस के मुख्य सचेतक महेश जोशी की शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी।

शेखावत ने सफाई में कहा कि ऑडियो टेप में मेरी आवाज नहीं है। मैं किसी भी जांच के लिए तैयार हूं। वहीं, राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि प्रदेश की राजनीति में जो हो रहा है, उसे शर्मनाक ही कहा जाएगा। मुख्यमंत्री का ऑफिस फेक ऑडियो के जरिए नेताओं की छवि खराब करने की कोशिश कर रहा है। केंद्रीय मंत्री को भी इस मामले में घसीटा जा रहा है। कांग्रेस के विधायक भंवरलाल और पूर्व मंत्री विश्वेंद्र सिंह को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित किया जा चुका है। इन लोगों को कारण बताओ नोटिस भी दिया गया है।

जो ऑडियो वायरल हुए वे विधायकों की खरीद-फरोख्त से जुड़ी बातचीत के बताए जा रहे हैं। इनमें एक व्यक्ति खुद को संजय जैन और दूसरा खुद को गजेंद्र सिंह बता रहा है। वहीं, बातचीत में भंवरलाल शर्मा नाम का भी जिक्र है। ऑडियो में एक व्यक्ति कह रहा है कि जल्द ही 30 की संख्या पूरी हो जाएगी। फिर राजस्थानी में वह विजयी भव: की बात भी कह रहा है। एक व्यक्ति बातचीत के दौरान कह रहा है कि ‘हमारे साथी दिल्ली में बैठे हैं…वे पैसा ले चुके हैं। पहली किस्त पहुंच चुकी है।’ बातचीत के दौरान खुद को गजेंद्र सिंह बताने वाला व्यक्ति सरकार को घुटने पर टिकाने की बात कर रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, विधानसभा चुनावों से ठीक पहले तक राजस्थान में कांग्रेस के सबसे बड़े फेस सचिन पायलट ही थे। पायलट ने भी खुद को पूरी तरह से झोंक रखा था, लेकिन धीरे-धीरे चुनाव प्रचार ने जोर पकड़ा तो राजस्थान कांग्रेस के कुछ पुराने नेताओं ने राष्ट्रीय नेतृत्व को फीड बैक दिया कि अशोक गहलोत को राज्य में वापस लौटना चाहिए। गहलोत बतौर कांग्रेस महासचिव दिल्ली में डटे हुए थे। इससे पहले उन्होंनें गुजरात में राहुल गांधी के पूरे कैंपेन को लीड किया था। हर मंच पर वो राहुल के साथ नजर आए थे।

बारी राजस्थान की आई, राहुल गांधी के राजस्थान कैंपेन की रणनीति तैयार होने लगी। अशोक गहलोत एक बार फिर मुख्य भूमिका में आ गए। गृह राज्य होने की वजह से उनकी दिलचस्पी भी कुछ ज्यादा ही थी। इस दौरान गहलोत के कुछ पुराने साथियों ने राहुल से उन्हें खुलकर मैदान में उतारने की अपील कर दी। तर्क दिया कि यदि गहलोत नहीं उतरे तो वसुंधरा राजे के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का जो फायदा मिल सकता है, वो हाथ से फिसल जाएगा।

विधानसभा चुनाव में बात टिकट बंटवारे की आई तो कांग्रेस हाईकमान ने इसमें गहलोत को अहमियत दी। कहा गया कि गहलोत का अनुभव प्रत्याशी चयन में काम आएगा। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सचिन पायलट की बातों को भी अहमियत मिली, लेकिन गहलोत को जहां भी मौका मिला टांग अड़ाने से नहीं चूके। सचिन के खिलाफ एक ही चीज गई वो रही, उनके युवा समर्थकों का जगह-जगह टिकट नहीं मिलने को लेकर किए गए बवाल। जिस सचिन पायलट के नेतृत्व में 2018 में कांग्रेस को राज्य की सत्ता मिली थी, उस पायलट को अब अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से हटाया जा चुका है।

राजस्थान कांग्रेस में इस बगावत की स्क्रिप्ट 2018 के विधानसभा चुनाव में ही लिखी जा चुकी थी। तब चुनाव कैंपेन शुरू होने से ऐन वक्त तक तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट और कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत एक-दूसरे के साथ मंच साझा करने से भी बचते थे। यह बात राहुल गांधी भी बखूबी जानते थे, उन्होंने दोनों के बीच मनमुटाव को दूर कराने की कोशिश भी की थी। राहुल गांधी जयपुर में प्रचार करने पहुंचे थे।

यहां उन्होंने 13 किमी लंबा रोड शो किया, लेकिन पूरे रास्ते में अशोक गहलोत हर जगह पोस्टर से गायब मिले। नारे भी सिर्फ सचिन पायलट के लग रहे थे। यह देखकर राहुल गांधी हैरान रह गए। उन्हें पता चल गया कि पायलट-गहलोत साथ नहीं रहेंगे तो चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा। रोड-शो के बाद राहुल रामलीला मैदान में जनसभा को संबोधित करने पहुंचे। यहां मंच पर उन्होंने सबसे पहले खड़े होकर जनता के सामने दोनों को हाथ और गले मिलवाया। दोनों मुस्कुराते हुए गले भी लगे थे। तब राहुल की कोशिश सफल हो गई थी, पार्टी चुनाव भी जीत गई, सरकार भी बन गई। लेकिन दोनों के बीच का मनमुटाव नहीं खत्म हुआ।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का लेख।)

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