करनाल: सोशल मीडिया की खबरों पर लगे बैन को हाईकोर्ट ने हटाया, अगली सुनवाई 14 अगस्त को

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर संचालित न्यूज़ चैनल्स पर प्रतिबंध के जिला प्रशासन के आदेश पर हाई कोर्ट ने केस की सुनवाई की अगली तारीख 14 अगस्त तक रोक लगा दी है।

गौरतलब है कि करनाल के डिप्टी कमिश्नर ने 10 जुलाई को आदेश जारी कर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चल रहे न्यूज़ चैनल्स पर 15 दिनों का प्रतिबंध लगा दिया था। हरियाणा में पाँच अन्य जिलों सोनीपत, कैथल, चरखी दादरी, नारनौल और भिवानी के डीसी भी वॉट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक, टेलीग्राम, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, पब्लिक ऐप और लिंकडेन पर आधारित सभी सोशल मीडिया समाचार प्लेटफॉर्म को बैन कर चुके हैं। आईपीसी की धारा 188, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और महामारी रोग अधिनियम, 1957 के तहत लगाए गए इस बैन का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ जेल की सज़ा का भी प्रावधान है। 

सोमवार को हरियाणा और पंजाब उच्च न्यायालय ने प्रशासन के आदेश को आर्टिकल 19 का उल्लंघन मानते हुए इस पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी। करनाल के एक पत्रकार अनिल लाम्बा ने प्रशासन के आदेश के खिलाफ पिटीशन दायर की थी। करनाल में एडवोकेट वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने इस बारे में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के न्यूज़ चैनल्स पर बैन का आदेश डिक्टेटरशिप की तरफ़ बढ़ते क़दम की तरह था। उन्होंने बताया कि न्यायालय में यूनियन ऑफ इंडिया और स्टेट ऑफ हरियाणा ने इस बैन को हटाने के लिए दायर की गई पिटीशन का जबरदस्त तरीके से विरोध किया।

हमारा सबसे बड़ा तर्क था कि बैन से आर्टिकल 19 का उल्लंघन हुआ है। दोनों पक्षों के बीच बहस की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने आज के अपने फैसले से आर्टिकल 19 की सुप्रीमेसी को बरक़रार रखा। इस केस की अगली सुनवाई की तारीख 14 अगस्त तक प्रशासन के आदेश पर रोक लगा दी है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुदीप अहलूवालिया ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सभी तरह की खबरें चला सकते हैं लेकिन कोरोना की खबर केंद्र या प्रदेश सरकार की ऑफिशियल वेबसाइट से लेकर चलाएं। उच्च न्यायालय ने इस तरह जनरल न्यूज़ से पूरी तरह से बैन हटा दिया है। 

एडवोकेट राठौड़ के मुताबिक, हाईकोर्ट ने कहा कि बैन का आदेश ज़ारी करते हुए प्रशासन का ऑब्जेक्टिव पेनडेमिक को फैलने से रोकना है। लेकिन, अगर यह चिंता थी तो आदेश सभी ख़बरों पर रोक के बजाय सिर्फ़ पैनडेमिक से सम्बंधित होता। उच्च न्यायालय ने माना कि प्रशासन का ऑर्डर पूरी तरह अतार्किक है और आर्टिकल 19 का वॉयलेशन है।

एडवोकेट राठौड़ ने कहा कि यह फैसला करनाल के आम आदमी की जीत है जो न्यूज़ के एक महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म से 8 दिनों से वंचित था। 

एडवोकेट वीरेंद्र राठौड़ कांग्रेस के नेता भी हैं। उन्होंने करनाल प्रशासन द्वारा सोशल मीडिया के पत्रकारों को ज़ारी किए गए नोटिसों को भी आधारहीन बताया। उन्होंने कहा कि जिस आदेश को उच्च न्यायालय ने वैध नहीं माना, उसके उल्लंघन के नाम पर कोई नोटिस स्वतः ही अनैतिक हो जाता है। डेमोक्रेसी को प्रोटेक्ट करना सभी का फ़र्ज़ बनता है। सरकार के दबाव में इन नोटिसों के आधार पर कार्रवाई की कोई भी कोशिश हाईकोर्ट की मानहानि ही होगी।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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