शिंजो आबे।

घटती लोकप्रियता व भ्रष्टाचार के आरोप के बीच खराब स्वास्थ्य का हवाला दे शिंजो आबे ने दिया इस्तीफा

कल जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने निजी स्वास्थ्य को सरकार के कामकाज में बाधा न बनने देने का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस मौके पर उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन न कर पाने के लिए लोगों से माफी भी मांगी। हाल के  दिनों में कोरोना वायरस को ठीक से नहीं संभालने पर उनकी लोकप्रियता में भी करीब 30 प्रतिशत की कमी आई है। उनकी पार्टी इन दिनों कई घोटालों से जूझ रही है। 

पिछले सप्ताह शिंजो आबे की अस्पताल में कई तरह की जांच हुई है। आबे चाहते हैं कि उनकी लगातार खराब होती सेहत के कारण सरकार के कामकाज में किसी तरह की बाधा नहीं आए। बता दें कि स्वास्थ्य कारणों से 12 सितंबर 2007 को भी आबे ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। 

ख़बर है कि शिंजो आबे के बाद मौजूदा वित्त मंत्री तारो आसो कार्यवाहक प्रधानमंत्री बन सकते हैं।

कौन हैं शिंजो आबे

शिंजो आबे एक प्रमुख राजनीतिक परिवार से आते हैं। सितंबर 2006 में राष्ट्रीय संसद के एक विशेष सत्र के द्वारा चुने गए, 52 वर्ष की आयु में जापान के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने। 2012 के आम चुनाव में उन्होंने अपनी पार्टी को भारी बहुमत से जीत दिलवाई, वह 1948 में शेगेरू योशिदा के बाद से कार्यालय में वापस जाने वाले पहले पूर्व प्रधानमंत्री बने। वह 2014 के आम चुनाव में, गठबंधन साथी कोमिटो के साथ अपने दो-तिहाई बहुमत को बरकरार रखते हुए फिर से निर्वाचित हुए, और फिर 2017 के आम चुनाव में भी दो-तिहाई बहुमत को बरकरार रखा और वापस निर्वाचित हुए।

आबे एक रूढ़िवादी हैं दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचारधारा से ताल्लुक़ रखते हैं। वह संशोधनवादी निप्पौन कैगी के सदस्य हैं और जापानी इतिहास पर संशोधनवादी विचार रखते हैं, जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कंफर्ट महिलाओं की भर्ती में सरकारी जबरदस्ती की भूमिका से इनकार करना शामिल है। उन्हें उत्तर कोरिया के संबंध में एक कट्टरपंथी समर्थक माना जाता है, और जापान के सैन्य बलों को मजबूत बनाए रखने की अनुमति देने के लिए शांतिवादी संविधान के अनुच्छेद 9 को संशोधित करने की वकालत करते हैं। आबे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी सरकार की आर्थिक नीतियों के लिए जाना जाता है, जिसे Abenomics कहा जाता है। इसमें मौद्रिक सहजता, राजकोषीय प्रोत्साहन और संरचनात्मक सुधारों को वह आगे बढ़ाते हैं।

शिंजो के इस्तीफे पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘मेरे प्यारे दोस्त आपके स्वास्थ्य के बारे में सुनकर दुख हुआ। हाल के सालों में आपके नेतृत्व में भारत-जापान की साझेदारी पहले से कहीं ज्यादा गहरी और मजबूत हुई है। मैं आपके जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करता हूं।’’

आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने कहा- “ प्रधानमंत्री आबे निष्ठावान और ज्ञानी व्यक्ति हैं। वह हमारे क्षेत्र और दुनिया भर में वरिष्ठ राजनेता रहे हैं, वो मुक्त व्यापार के एक मजबूत प्रवर्तक और जापान के लिए एक उत्कृष्ट अंतरराष्ट्रीय राजनयिक हैं। उन्होंने अपने नेतृत्व को पहले क्रम के अनुभवी राजनेता के रूप में लाते हुए क्षेत्र की समृद्धि और स्थिरता की वकालत की है। प्रधानमंत्री शिजों आबे एक क्षेत्रीय नेता के रूप में अभूतपूर्व योगदान दे रहे हैं, खासकर जब हम COVID-19 के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों का जवाब तलाशते हैं।”

ताईवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन (Tsai Ing-Wen) ने कहा- “प्रधानमंत्री शिंजो आबे हमेशा ताईवान के अनुकूल थे, चाहे नीति पर हों या ताईवान के लोगों के अधिकार और हित हों – वह बेहद सकारात्मक थे। हम ताईवान के प्रति उनकी दोस्ताना भावनाओं को महत्व देते हैं और आशा करते हैं कि वह स्वस्थ रहें।”

फेडरेशन ऑफ कोरियन इंडस्ट्रीज के उपाध्यक्ष Kwong Tae-Shin ने कहा – “राष्ट्रपति Moon Jae-in और शिंजो आबे के बीच व्यक्तिगत संबंध अच्छे नहीं थे। जिसने प्रतिकूल द्विपक्षीय संबंधों में योगदान दिया। जब कोई नया नेता जापान में पदभार ग्रहण करता है, तो वह द्विपक्षीय संबंधों में सुधार को गति दे सकता है। दोनों देश स्वीकार करते हैं कि अनावश्यक कूटनीतिक और व्यापार संघर्ष एक-दूसरे की उस समय मदद नहीं करेंगे जब कोविड -19 आगे वैश्विक स्तर पर व्यापार और व्यावसायिक गतिविधियों में कठिनाई उत्पन्न करते हैं। ”

जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री इन जापान के सीइओ मार्कस शुर्मन कहते हैं- “वह बहुपक्षवाद और मुक्त व्यापार के लिए प्रमुख प्रवर्तकों में से एक थे और जापान को विश्व मंच पर वापस लाने के लिए बहुत कुछ किया। जापान ने विश्व परिदृश्य में अपना खोया स्थान पुनः प्राप्त किया और दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर मान्यता प्राप्त की।

“हमारे पास एफटीए है” और उन्होंने कई कठिन समस्याओं का सामना किया है। चीन के साथ संबंधों के बारे में, रूस के साथ संबंधों के बारे में भी और ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद से अमेरिका के साथ भी कठिन संबंधों के बारे में सोचकर देखिए।

मार्कस आगे कहते हैं- “मैं यह नहीं कहना चाहता कि वह असफल रहे, लेकिन दक्षिण कोरिया के साथ संबंध अच्छे नहीं हो सके। इस समस्या पर उनके उत्तराधिकारी को काम करना पड़ेगा। वह ओलंपिक को टोक्यो लाने में सफल रहे। मुझे लगता है कि यह भी एक बड़ी उपलब्धि है जिसे हमें नहीं भूलना चाहिए।” 

देश में 30 प्रतिशत तक घट गई थी शिंजो की लोकप्रियता: सर्वे

जापान की क्योदो न्यूज़ एजेंसी के सर्वे के मुताबिक, देश में शिंजो आबे की लोकप्रियता पहले के मुकाबले कम हुई है। रविवार को सार्वजनिक हुए इस सर्वे में कहा गया है कि देश में 58.4% लोग कोरोना महामारी से निपटने के सरकार के तरीके से नाखुश हैं। मौजूदा कैबिनेट की अप्रूवल रेटिंग 36% है, जो कि शिंजो के 2012 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से सबसे कम है। 

कोविड-19 महामारी के प्रकोप से जनता और अर्थव्यवस्था को बचाने में नाकाम साबित हुए

पिछले कुछ समय से आबे लगातार आलोचनाओं से घिरे हुए थे। कोरोना वायरस महामारी से निपटने के तरीके को लेकर उन पर सवाल उठ रहे हैं। यहां अब तक 62 हजार से ज्यादा संक्रमित मिले हैं और 1200 मौतें हुई हैं, लेकिन लोग सरकार की ओर से दोबारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले मास्क बांटने जैसी योजनाओं के पक्ष में नहीं हैं।

कोरोना वायरस संकट के कारण पूरी दुनिया की तरह जापान की अर्थव्यवस्था भी संघर्ष कर रही है और यह ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर है।

  1. जापान में कोविड-19 की पहली वेव के दौरान लैब टेस्टिंग नहीं बढ़ाई गई। डॉक्टर्स की अपील के बावजूद स्वास्थ्य केंद्रों ने पीसीआर टेस्ट नहीं किए। इससे कम्युनिटी ट्रांसमिशन रोका जा सकता था। अनडाइग्नोज्ड केस तेजी से बढ़े। डॉक्युमेंटेंशेन मैनुअली किया गया, इससे गलतियां हुईं।
  2. टोक्यो ओलंपिक आगे बढ़ाने का फैसला अचानक ले लिया गया। इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई, इसमें देरी क्यों लगी, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। जिससे लोगों का भरोसा घटा।
  3.  सरकार और महामारी विशेषज्ञ समिति के बीच तालमेल की भी कमी रही। समिति ने संक्रमण की शुरुआत में ही सामाजिक संपर्क 80% घटाने की सिफारिश की थी। इसे और बढ़ाना चाहिए था। पर सरकार ने इसे घटाकर 70% और बाद में 60% तक कर दिया। इसलिए लोगों ने भी गंभीरता नहीं रखी।
  4.  सरकार ने जून में एक्सपर्ट्स समिति भंग कर दी। इस दौरान मामले बढ़ने लगे थे। जुलाई में स्थिति और खराब हो गई। वहीं घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अभियान शुरू कर दिया। अभी देश में 55667 मरीज हैं, वहीं 1099 मौतें हो चुकी हैं।

राष्ट्रवादी नीतियों के चलते चीन, अमेरिका और रूस से संबंध खराब हुए

कट्टरपंथी राष्ट्रवादी शिंजो आबे अन्य दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों की ही तरह जापानी सेना को मजबूत करने में लगे हुए थे। जाहिर है इसके लिए वो रक्षा बजट में इजाफा भी कर रहे थे। इससे चीन के साथ उनके रिश्ते खराब होते गए। इसके अलावा रूस और दक्षिण कोरिया से भी जापान के रिश्ते खराब हुए। दक्षिण कोरिया में लगातार तनाव भी शिंजो आबे के चलते ही रहा। शिंजो आबे खुले तौर पर उत्तरी कोरिया का समर्थन करते आ रहे थे।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।) 

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