प्रशांत भूषण के खिलाफ 11 साल पुराने अवमानना मामले की सुनवाई 12 अक्टूबर को

उच्चतम न्यायालय के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ साल 2009 में अदालत की अवमानना के मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय 12 अक्तूबर को करेगा। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से राय मांगी है। पीठ ने कहा है कि अटॉर्नी जनरल इस मामले पर विचार करें, साथ ही सवाल बनाने में मदद करें।

पिछले दिनों सेवानिवृत्त हुए जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने इस मामले को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे के पास भेजते हुए कहा था कि वह इसे उचित पीठ के पास भेजें। इस मामले की सुनवाई में रिटायर्ड जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि वह सेवानिवृत्त हो रहे हैं और उनके पास समय कम है। इस मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेजा जाए या नहीं, इसका फैसला नई पीठ करेगी। जस्टिस मिश्रा ने 25 अगस्त की सुनवाई में कहा था कि नई पीठ यह देखेगी कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अदालत की अवमानना को कैसे संतुलित किया जा सकता है। यही पीठ अब यह फैसला भी करेगी कि इसे बड़ी पीठ के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं।

जस्टिस खानविलकर ने गुरुवार 10 सितंबर की सुनवाई के दौरान धवन से पूछा कि क्या कोई व्यक्ति मामले में एमिकस के रूप में उपस्थित हो रहा है? इस पर, धवन ने जवाब दिया कि जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष पिछली सुनवाई में, एजी ने मामले में पेश होने और उसमें सहायता करने की अनुमति मांगी थी। धवन ने कहा कि इस मामले में कानून के सवाल शामिल हैं, उच्चतम न्यायालय के नियमों के नियम 10 में एजी के निहितार्थ को निर्धारित किया गया है। पीठ ने इस दलील से सहमति जताई।

पीठ ने कहा कि पिछले आदेश में यह भी कहा गया था कि न्यायालय ने कानून के तीन और प्रश्नों को जोड़ने की मांग की थी, इसके अलावा दस प्रश्न धवन द्वारा पहले ही प्रस्तुत किए गए हैं। इस नोट पर, धवन ने कहा कि वह एजी को मामले का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। पीठ ने इन सबमिशनों पर ध्यान दिया और एजी को नोटिस देने का निर्देश दिया। मामलों के प्रकाश में समय की कमी के कारण पीठ ने मामले को 12 अक्टूबर से शुरू होने वाले सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।

24 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने जस्टिस मिश्रा की आसन्न सेवानिवृत्ति के मद्देनज़र सुनवाई स्थगित कर दी थी। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाली टिप्पणियों को सार्वजनिक किए जाने पर बेंच ने बड़े महत्व के कुछ सवालों को तैयार किया था। प्रशांत भूषण ने अतिरिक्त प्रश्न भी प्रस्तुत किए थे, जिस पर पीठ ने विचार करने के लिए सहमति जताई थी।

वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे द्वारा भूषण की ओर से लगाए गए आरोपों से संबंधित मामले में की गई शिकायत के आधार पर 11 साल पहले अवमानना पर स्वत: संज्ञान लिया गया था। भूषण ने कथित तौर पर कहा था कि पिछले 16 मुख्य न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे। शिकायत के अनुसार, भूषण ने साक्षात्कार में यह भी कहा कि उनके पास आरोपों के लिए कोई सबूत नहीं है।

6 नवंबर 2009 को शिकायत को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया की पीठ के समक्ष रखा गया था, जिसमें निर्देश दिया गया था कि इस मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिसमें न्यायमूर्ति कपाड़िया सदस्य नहीं होंगे। जस्टिस अल्तमस कबीर, जस्टिस साइरिक जोसफ और जस्टिस एचएल दत्तू की एक बेंच ने 19 जनवरी, 2010 को तहलका पत्रिका के प्रधान संपादक भूषण और तरुण तेजपाल को नोटिस जारी किए थे।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय में भूषण के खिलाफ अवमानना के दो मामले थे। एक में फैसला आ चुका है, जबकि दूसरा मामला नवंबर 2009 का है। प्रशांत भूषण के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चलाने से पहले कोर्ट पहले ये तय करेगा कि भूषण के शब्द ‘भ्रष्टाचारी’ कोर्ट की अवमानना माना जाएगा या नहीं। प्रशांत भूषण ने उच्चतम न्यायालय में जवाब दाखिल किया था, जिसमें कहा गया है कि जजों में भ्रष्टाचार सिर्फ आर्थिक नहीं होता। अपने पद का गलत लाभ लेना, भाई-भतीजावाद जैसी कई बातें इसके दायरे में आती हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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