छत्तीसगढ़ में किसानों ने ली शपथ, कहा-काले कानूनों की वापसी तक जारी रहेगा संघर्ष

रायुपर। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति छत्तीसगढ़ के आह्वान पर पूरे प्रदेश के किसानों, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं और नागरिक-समूहों ने आज नव वर्ष के पहले दिन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को तेज करने और अडानी-अंबानी के सामानों और उनकी सेवाओं का बहिष्कार करने की शपथ ली।

छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने आज यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, राजनांदगांव जिला किसान संघ सहित किसान आंदोलन के सभी घटक संगठनों ने मिलकर 20 से ज्यादा जिलों के सैकड़ों गांवों में यह कार्यक्रम आयोजित किये। उन्होंने बताया कि इन आयोजनों में किसानों ने ग्रामीण जनता और अन्य मजदूर संगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर अपनी खेती-किसानी को बचाने और देश की अर्थव्यवस्था के कार्पोरेटीकरण को रोकने के लिए देशव्यापी किसान संघर्ष में अपने को स्वयंसेवक के रूप में समर्पित करने की और इस आंदोलन को तब तक जारी रखने की शपथ ली, जब तक कि मोदी सरकार किसान विरोधी काले कानूनों और कृषि विरोधी नीतियों को वापस लेने की ठोस घोषणा नहीं करती। इधर छत्तीसगढ़ किसान सभा का कोरबा से गया दिल्ली जत्था वापस आने के बाद रमाकांत बंजारे के नेतृत्व में राजनांदगांव जिला किसान संघ का एक जत्था दिल्ली पहुंच चुका है। इस जत्थे ने टिकरी बॉर्डर पर आज शपथ ली।

किसान आंदोलन के नेताओं आलोक शुक्ला, नंद कश्यप, आनंद मिश्रा आदि ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के मामले में राज्य सरकार का केंद्र के साथ जो टकराव हो रहा है, वह इन्हीं नीतियों की देन है और यदि ये कानून लागू होते हैं, निश्चित ही अगले साल न धान खरीदी होगी, न राशन प्रणाली बचेगी। इसलिए इन किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने के साथ ही सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बनाना किसानों और नागरिकों के हितों के संरक्षण के लिए बहुत जरूरी है।

किसान सभा नेता संजय पराते और ऋषि गुप्ता ने कहा कि शपथ आयोजनों में ग्रामीण जनता को जानकारी दी गई कि किस तरह उनकी फसलों को औने-पौने भाव पर लूटा जा रहा है और उन्हें कोई कानूनी सुरक्षा प्राप्त नहीं है। मंडियों के निजीकरण और ठेका खेती से यह लूट और बढ़ेगी। इसलिए देश का किसान आंदोलन इसका विरोध कर रहा है। वह अडानी-अंबानी को देश के खाद्यान्न भंडार और अनाज व्यापार सौंपने का विरोध कर रहा है, क्योंकि इससे देश में जमाखोरी, कालाबाज़ारी और महंगाई तेजी से बढ़ेगी। इसलिए इन तीनों काले कानूनों की वापसी और एमएसपी के लिए कानून बनाने में सीधा रिश्ता है। उन्हें बताया गया कि इस आंदोलन का फैलाव देश के सभी राज्यों में हो गया है और सभी भाषा, धर्म, जातियों के लोग इसमें शामिल हैं। इसलिए मोदी सरकार को देश के किसानों की आवाज सुनने की जरूरत है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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