संघ के साथ वर्चस्व की लड़ाई में ब्रांड मोदी पर भारी पड़े योगी

रविवार 6 जून को सत्ता के गलियारों में एक खबर फैली कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सुप्रीमो मोहन भागवत ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के भोजन का निमन्त्रण स्वीकार नहीं किया है और शाम तक यह खबर सामने आ गयी कि उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। इसके अलावा वहां मंत्रिमंडल का विस्तार अभी नहीं होगा। तो क्या माना जाये कि योगी को लेकर चल रहे विवाद से संघ संचालक नाराज हैं? क्या संघ योगी के पक्ष में है? क्या इस सियासी संग्राम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भारी पड़े हैं? वैसे यूपी का चुनाव तो फरवरी मार्च 2022 में है लेकिन इस सियासी घमासान से भाजपा को भारी राजनीतिक नुकसान होना तय है, क्योंकि भाजपा के आन्तरिक कलह, नेताओं के परस्पर अविश्वास और आपसी टांग खिचौव्वल सब कुछ सार्वजानिक हो गया है। दरअसल यह घमासान मोदी योगी के बीच था ही नहीं बल्कि मोदी और संघ के बीच था। मोदी का खेमा चाहता था कि मोदी और योगी के विवाद में संघ खुलकर मोदी का पक्ष ले ताकि 2024 में मोदी की लीडरशिप निर्विवाद सुनिश्चित हो जाये जो दांव फ़िलहाल उल्टा पड़ता दिख रहा है।  

उत्तर प्रदेश की सियासत में पिछले एक हफ्ते से चल रहे सियासी घमासान पर विराम लगाने की कोशिशें शुरू हो गयी हैं। जिस तरह सूत्रों के हवाले से पिछले एक सप्ताह में यूपी में अरविन्द शर्मा को डिप्टी चीफ मिनिस्टर, डिप्टी चीफ मिनिस्टर केशव प्रसाद मौर्या को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और योगी को सीएम पद से हटाकर केंद्र में और कभी राजनाथ सिंह को तो कभी केशव मौर्या को यूपी का सीएम बनाये जाने की अटकलें चल रही थीं उसी तरह सूत्रों के हवाले से रविवार को देर शाम से मीडिया पर चलने लगा कि दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर रविवार को भाजपा की महत्वपूर्ण बैठक में तय हुआ कि उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। इसके अलावा वहां मंत्रिमंडल का विस्तार अभी नहीं होगा। कहा गया कि इसमें पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा राष्ट्रीय महासचिवों और राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष और अरुण सिंह के साथ मौजूद थे।

पहले बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को राजद के बाद दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा, फिर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के हाथों मिली करारी शिकस्त ने मोदी के एक के बाद एक चुनाव जीतने के करिश्मे पर गम्भीर सवाल उठा दिया। इसके पीछे कोरोना काल में अस्पताल, दवा, आक्सीजन की भारी किल्लत से हो रही मौतों ने मोदी सरकार के कुशासन की कलई खोल के रख दी है। रही सही कसर किसानों के आन्दोलन, जीडीपी में माईनस ग्रोथ, अर्थव्यवस्था के रसातलीकरण और बढ़ती महंगाई ने पूरी कर दी है। कुशासन के कारण मोदी लोकप्रियता के सबसे निचले पायदान पर चले गये हैं।

वैसे तो मोदी और योगी के बीच विवाद तो उसी समय उत्पन्न हो गया जब संघ के हस्तक्षेप से मनोज सिन्हा की जगह योगी आदित्य नाथ को उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। 4 साल पहले 2017 में दिल्ली में तय कर लिया गया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोज सिन्हा बनेंगे और उस वक्त केरल में संघ की बैठक चल रही थी। डॉ मुरली मनोहर जोशी के माध्यम से संदेशा संघ को भिजवाया किया कि मुख्यमंत्री मनोज सिन्हा होंगे तो उनकी तरफ से जवाब था जब उन्होंने तय कर लिया है, जानकारी देने की क्या जरूरत। इसके 24 घंटे के भीतर परिस्थितियां पलट गईं। योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए और मनोज सिन्हा आज की तारीख में जम्मू-कश्मीर में हैं।

दरअसल वर्तमान विवाद के सतह पर आने का बीज 16 मई को उस समय ही पड़ गया था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कोविड-19 के सन्दर्भ में बयान दिया था कि हम इस परिस्थिति का सामना कर रहे हैं क्योंकि सरकार, प्रशासन और जनता, सभी कोविड की पहली लहर के बाद लापरवाह हो गए जबकि डाक्टरों द्वारा संकेत दिए जा रहे थे। कोरोना वायरस की पहली लहर के बाद सरकार, प्रशासन और जनता के गफलत में पड़ने के कारण वर्तमान स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इस आलोचना को मोदी ने अपने ऊपर ले लिया क्योंकि पिछले सात साल में कभी भी भागवत ने सरकार को किसी लापरवाही का जिम्मेदार नहीं ठहराया था। 

इसके बाद दक्षिण भारत के कई नगरों से प्रकाशित होने वाले न्यू इंडियन एक्सप्रेस में वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला का एक लेख छपा जिसमें फिर ब्रांड मोदी पर सीधा हमला किया गया था। प्रभु चावला ने लिखा था कि प्रिय प्रधानमंत्री जी, जब चिताएं दिन रात जल रही हैं, जैसे भारत की उम्मीदें जल रही हों और लोग अस्पताल के गलियारों में सांसों के लिए तड़पते हुए मर रहे हों, तब समय है कि हम नेपोलियन बोनापार्ट के शब्द याद करें, ‘एक नेता उम्मीद का सौदागर होता है‘। सात साल बाद ब्रांड मोदी ऑक्सीजन पर है। महामारी संभालने की सरकार की क्षमता पर उठ रहे सवाल पर आपकी खामोशी से आपके प्रशंसक निराश हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के कुछ महीनों बाद ही आपके नए और व्यावहारिक तरीकों ने भयानक भूकंप के बाद राज्य को जल्द पटरी पर वापस ला दिया था।

कोविड-19 की पहली लहर के बाद दूसरे देशों की तुलना में वायरस को तेजी से रोकने पर आपकी सराहना हुई थी। स्वदेशी निर्माताओं को वैक्सीन खोजने और उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने पर आपको सराहा गया था। फिर आपने हाल ही में कहा है कि हमारे सामने अदृश्य दुश्मन है। पिछले कुछ समय में देशवासियों ने जिस दर्द को झेला है, मैं भी वही दर्द महसूस कर रहा हूं। आपकी टीम की यह दु:ख भरी भावनाएं पहले क्यों नहीं जागीं? नदियों में तैरती लाशें, अस्पताल के बाहर मरते भारतीय, ऑक्सीजन की भीख मांगते मरीज और जीवनरक्षक दवाओं की कमी के दृश्यों ने आत्माओं को झकझोर दिया है। दु:खद है कि अब चाटुकारों द्वारा गाए जा रहे सकारात्मकता के कर्कश राग की जगह नकारात्मकता की आवाजें सुकुन दे रही हैं। नेता की सफलता उसकी टीम के सदस्यों पर निर्भर होती है इसके बाद दक्षिण भारत के कई नगरों से प्रकाशित होनेवाले न्यू इन्डियन एक्सप्रेस में वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला का एक लेख छपा जिसमे फिर ब्रांड मोदी पर सीधा हमला किया गया था।

उधर मंत्रालय और आधिकारिक विभाग ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाने और आयात के ऑर्डर देने के प्रचार अभियान में लगे हैं। अगर वे नुकसान होने पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं, तो पहले क्यों नहीं दी? क्योंकि वे चापलूसी में व्यस्त थे। राष्ट्रीय परिदृश्य में आपके आने के बाद भारतीयों को गर्व की भावना मिली थी। लेकिन त्रासदी एसिड की तरह होती है, जिसमें सब कुछ घुल जाता है। ऐसे ही वक्त में नेतृत्व के साहस की परीक्षा होती है। भारत को चिंता और समाधान की जरूरत है, मुकाबले की नहीं। आपकी मंशा हमेशा अच्छी रही है। लेकिन लगता है कि चापलूसों, अविश्वसनीय जनसेवकों, मौकापरस्तों और अर्ध-शिक्षित वैज्ञानिकों ने व्यवस्था को पस्त कर दिया है। वे खुद ही विध्वंसक हैं। वे ब्रांड मोदी को नष्ट करना चाहते हैं। वे शोर मचाकर अपनी अयोग्यता छिपाना चाहते हैं, जबकि वास्तविक पेशेवरों को आप तक सच के साथ पहुंचने ही नहीं दिया जाता।

अंग्रेजी में प्रकाशित इस लेख को दैनिक भास्कर ने हिंदी में अपने अख़बार और डिजिटल संस्करण में प्रकाशित किया। इसके बाद शेखर गुप्ता ने भी द प्रिंट में उठाया। इसके बाद प्रिंट और डिजिटल मीडिया में कोरोना संकट से प्रभावी ढंग से निपटने में मोदी सरकार की अक्षमता और उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट की खबरें धड़ल्ले से चलने लगीं। सम्भवतः मोदी खेमे ने इसे अपने को किनारे लगाने के प्रयास के रूप में देखा और जवाबी कार्रवाई के तहत योगी आदित्यनाथ की सरकार पर मीडिया के माध्यम से हल्ला बोल दिया, जिसकी अगुआई दैनिक भास्कर ने की। दरअसल गुजरात छोड़कर बाकी जिन प्रदेशों में भाजपा सरकार है या भाजपा सरकार में शामिल है वहां संघ की पसंद से मुख्यमंत्री /उप मुख्यमंत्री हैं। इसमें प्रधानमन्त्री, गृहमंत्री या पार्टी अध्यक्ष का कोई हस्तक्षेप नहीं है। लेकिन बाकि सब योगी आदित्यनाथ की तरह मजबूत नहीं हैं। इसलिए योगी आदित्यनाथ को शक्ति परीक्षण के लिए टारगेट किया गया और सोचा गया की संघ को खुलकर सामने आना होगा की वह योगी के साथ है या मोदी के साथ?  

अब जहाँ तक योगी सरकार की बात है तो संघ ने योगी को सीएम भले बनवा दिया हो लेकिन दिल्ली दरबार ने उन्हें अस्थिर रखने के लिए दो डिप्टी सीएम बनवा दिए और कम से कम चार और ऐसे मंत्री हैं जो सभी सीएम पद के दावेदार हैं। इससे यूपी में दो खेमे हो गये। एक खेमा सीएम का और दूसरा संगठन मंत्री सुनील बंसल का जहाँ सीएम विरोधी डिप्टी सीएम और मंत्री दरबार करने लगे। ये दिल्ली के इशारे पर चलने लगे। सरकार के मालों के अलावा विधान परिषद सदस्यों का चुनाव हो या राज्यसभा का योगी को दिल्ली दरबार ने कभी विश्वास में नहीं लिया। योगी की कार्यप्रणाली वास्तव में स्वयं प्रधानमन्त्री या पूर्ववर्ती सीएम कल्याण सिंह से किसी भी तरह अलग नहीं है। लेकिन योगी पर किसी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है न ही किसी महिला के साथ कोई स्कैंडल है।   

दरअसल ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार जल्द ही अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करेगी। इसी के चलते लगातार दिल्ली और लखनऊ में बैठकें चल रही हैं, सूत्रों की मानें तो फिलहाल ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, विधानसभा चुनाव को लेकर विधायकों के रिपोर्ट कार्ड भी तैयार किए जा रहे हैं। इनके प्रदर्शन के आधार पर ही आगामी विधानसभी चुनाव में टिकट दिए जाएंगे। विधायकों के टिकट पर संगठन की सहमति से सीएम योगी द्वारा अंतिम मुहर लगाई जाएगी। वहीं सूत्रों की मानें तो यूपी में बीजेपी विधायकों को सीएम योगी की सहमति से ही टिकट मिलेगा। मतलब टिकटों के वितरण से लेकर कैबिनेट विस्तार तक सीधे तौर पर इन सब में सीएम का दखल होगा।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का लेख।)

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