उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक पत्रकार ने मिड डे मील योजना के चल रही घपलेबाजी को बेनकाब क्या किया योगी सरकार ने उसे ही मुजरिम बना दिया। मिर्जापुर के एक स्कूल में बच्चों को मिड डे मील के दौरान रोटी के साथ नमक परोसा गया और बच्चे नमक से रोटी खाते दिखाए गए। अखबार में खबर छप गई, वीडियो-फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
जिस पत्रकार ने यह घटना कवर की उसके खिलाफ ही DM ने FIR लिखवा दी। अब एडिटर्स गिल्ड इस घटना की निंदा कर रहा है। लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि आखिरकार प्रशासन इस घटना में क्या छुपाने की कोशिश कर रहा था।
क्या है यह मिड डे मील योजना? कौन चलाता है इसे देश भर में ? कैसे ऑपरेट होती है यह योजना। दरअसल यह पूरा सच बताने की हिम्मत बड़े-बड़े मीडिया हाउस में भी नहीं है। याद कीजिए चुनाव से पहले मोदी वृंदावन में एक प्रोग्राम में गए थे जहां उन्होंने वंचित वर्ग के बच्चों को 3 अरबवीं थाली परोसी थी, क्या आपको पता है वह प्रोग्राम किस संस्था ने आयोजित किया था?
उस संस्था का नाम है अक्षयपात्र फाउंडेशन। यह संस्था मूल रूप से कर्नाटक की संस्था है जो आज 12 राज्यों के 14,702 स्कूलों के 18 लाख बच्चों को प्रतिदिन मध्यान्ह भोजन यानी मिड-डे-मील खिला रही है और सबसे कमाल की बात जान लीजिए इस संस्था के पीछे ISCON है। जी हां वही ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ वाला इस्कॉन।
इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णा कान्शस्नस (इस्कॉन) की ओर से चलाए जाने वाले एनजीओ अक्षय पात्र का मुख्यालय बेंगलुरु में है। यह सरकार के साथ मिलकर मिड डे मील योजना के लिए काम करती है।
वर्ष 2000 में अक्षय पात्र संस्था का गठन कर्नाटक के ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब बच्चों की मदद करने के लिए किया गया था और धीरे-धीरे राज्य सरकार तथा कॉरपोरेट जगत की मदद मिलने से संस्था ने अन्य बड़े राज्यों में मिड डे मील के ठेके हासिल कर लिए।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि सभी बड़े राज्यों में मिड डे मील सप्लाई करने का ठेका इसी संस्था को मिला हुआ है। उत्तर प्रदेश में अभी वृंदावन और लखनऊ में अक्षय पात्र के दो रसोईघर चल रहे हैं। जल्द ही वाराणसी, प्रयागराज, गोरखपुर, कानपुर, आगरा आदि 11 जिलों में भी इनके बड़े किचन बनाने की योजना है।
सबसे बड़ी बात यह है कि यह एनजीओ भारतीय खाद्य निगम से गेहूं और चावल और अन्य अनाज नि:शुल्क प्राप्त करता है, जबकि दाल आदि की खरीद बाजार से की जाती है।
अभी कुछ महीने पहले ही उत्तराखंड राज्य सरकार की मध्याह्न भोजन को लेकर अक्षय पात्र फाउण्डेशन के साथ डील हुई है और देहरादून में इसके लिए एक बड़ा किचन बनाया गया है। इस डील में अड़चन इसलिए आ रही थी क्योंकि मिड डे मील की व्यवस्था करने की ज्यादा दिक्कत तो पहाड़ी क्षेत्रों के स्कूलों में आती है मैदानी क्षेत्रों में तो सब काम आसानी से हो जाते हैं, इन पहाड़ी स्कूलों की जिम्मेदारी लेने को फाउंडेशन तैयार नहीं था खैर शिक्षा मंत्री के निजी प्रयासों से जैसे तैसे यह डील हुई है।
अक्षय पात्र अब ऐसी ही सेवा दिल्ली वालों की भी करना चाहता है। अक्षय पात्र फाउंडेशन के भरत दास कहते हैं कि हम दिल्ली में अपना कार्यक्रम बढ़ाना चाहते हैं और इस दिशा में दिल्ली सरकार से बात चल रही है। दिल्ली में हमने तीन अक्षय रसोई संबंधी सुविधा तैयार की है। उन्होंने बताया कि आधा एकड़ जमीन मिलने पर हम कहीं भी 25 हजार क्षमता का रसोई घर तैयार कर सकते हैं।
अक्षय पात्र फाउंडेशन से टीवी मोहनदास पई जैसे बड़े बड़े उद्योगपति जुड़े हुए हैं। अक्षय पात्र को मिड डे मील परियोजना के लिए बीबीसी के वर्ल्ड सर्विस ग्लोबल चैंपियन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
अगर आप गूगल पर मिड डे मील घोटाला या मिड डे मील गड़बड़ी लिख कर सर्च करेंगे तो आप देखेंगे कि हजारों की संख्या में देश के हर राज्य की हर जिले की खबरें भरी पड़ी हैं। लेकिन किसी प्रकरण में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है और यह न खाऊंगा न खाने दूंगा कहने वालों की सरकार है।
ऐसी एक खबर तमिलनाडु की भी है जिसमें आयकर विभाग ने एक कंपनी पर छापेमारी कर कुछ दस्तावेज जब्त किए, जिनसे सरकार मिड डे मील से जुड़े बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है पता चला कि नेताओं, नौकरशाहों व उनके परिजन को इसमें तकरीबन 2400 करोड़ रुपए की घूस दी गई। अब तमिलनाडु में विपक्षी पार्टियों की सरकार बनी हुई हैं तो छापेमारी हुई है।
अब सबसे बड़ी खबर पढ़ लीजिए जिसके लिए यह पोस्ट लिखी गयी है जुलाई 2019 में विशाखापट्टनम में सतर्कता और नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने इस्कॉन मंदिर के परिसर से सरकार की मिड-डे मील योजना के लिए रखे गए चावल के 396 बोरे और प्लास्टिक के 888 बोरे ज़ब्त किए, सतर्कता अधिकारियों को यह भी संदेह था कि इन बोरों में रखे चावल को निर्यात कर दिया गया है।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है, “…काकीनाड़ा में वी एंड ई के अधिकारियों ने पाया है कि चावल को एक निजी निर्यात कंपनी के माध्यम से अफ़्रीकी देशों को निर्यात किया जा रहा था। “बोरे के पत्र पर ‘श्री सीतारमनजनेय, काकीनाड़ा को निर्यात के लिए’ लिखा है, जिससे पता चलता है कि यह काकीनाड़ा में स्थित एक निर्यात कंपनी है। इसी नाम से एक कंपनी भी है, जो निर्यात के कारोबार में है।
समझदार पाठक समझ गए होंगे कि क्या खेल चल रहा है लेकिन किसी बड़े मीडिया हाउस ने यह खबर नहीं चलाई मिर्जापुर की छोटी मछली का शिकार सब करना चाहते हैं। विशाखापत्तनम में जो बड़ा मगरमच्छ पकड़ा गया उस पर हाथ डालने की किसी की हिम्मत नहीं है।
वैसे बात मिर्जापुर से शुरू हुई थी इसलिए एक बात और कहना है। शहरों और कस्बाई पत्रकारों को रिपोर्टिंग का इतना ही शौक है तो एक बार उन्हें अक्षय पात्र के इन बड़े-बड़े किचन का दौरा भी करना चाहिए। कितनी हाइजनिक व्यवस्था में बच्चों को परोसे जाने वाला यह फ़ूड बनाया जाता है, किस तरह के बर्तनों में भरकर उसे स्कूलों में भेजा जाता है। यकीन मानिए मिर्जापुर से बहुत बेहतर स्टोरी मिलेगी। लेकिन हो सकता है ऐसा करने पर उन पर इस बार देशद्रोह का ही मुकदमा दर्ज हो जाए।
(गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल इंदौर में रहते हैं।)
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