फोन टैपिंग के कानून और प्रक्रिया पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से विस्तृत जवाब माँगा

देश भर में विशिष्ट व्यक्तियों और नागरिकों की जासूसी केवल पेगासस से ही नहीं की जा रही है बल्कि केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली नेटवर्क और यातायात विश्लेषण, राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड के माध्यम से भी की जा रही है। यह आरोप सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में लगया गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार से कहा है कि वह भारत के नागरिकों के फोन की मॉनिटरिंग और इंटरसेप्शन के लिए अपनाए गए कानून और प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताए।

चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ ने सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर यह आदेश पारित किया है। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि इसकी सामान्य निगरानी तंत्र  सरकार नागरिकों के बारे में पर्याप्त मात्रा में जानकारी एकत्र कर रही है, जो इंटरनेट के माध्यम से इकट्ठी की जाती है।

सीपीआईएल की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि हाल ही में पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए जासूसी करने की खबर सामने आई थी। हालांकि यह याचिका किसी एक मामले को लेकर नहीं बल्कि देश के नागरिकों की कथित तौर पर जासूसी करने के मामलों को ध्यान में रखते हुए दायर की गई है। सीपीआईएल की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि वे विशेष रूप से केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली नेटवर्क और यातायात विश्लेषण, राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड से पीड़ित हैं। यह निगरानी प्रणाली सरकार को मोबाइल फोन, लैंडलाइन और इंटरनेट के माध्यम से व्यक्तियों के संचार की निगरानी करने की अनुमति देती है।

प्रशांत भूषण ने खंडपीठ को बताया कि केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली नेटवर्क संयुक्त राज्य अमेरिका में एक प्रणाली के समान है, तो राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड बैंक लेनदेन, बैंक विवरण, एयरलाइन टिकट बुकिंग आदि को कवर करता है। इसी तरह यातायात विश्लेषण सिस्टम कीवर्ड का उपयोग करके इंटरनेट के माध्यम से जाने वाली जानकारी को स्कैन करता है।

प्रशांत भूषण ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के निजता के अधिकार का अतिक्रमण है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति केएस पुट्टास्वामी के फैसले में बरकरार रखा था। प्रशांत भूषण ने यह भी तर्क दिया कि जिस तरह से टेलीफोन इंटरसेप्शन की अनुमति दी जा रही है, इसका मतलब है कि यह नियमित तरीके से किया जा रहा है। इस संबंध में उन्होंने जस्टिस  श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय गृह सचिव द्वारा हर महीने 7,500 से अधिक फोन टैपिंग की अनुमति दी जा रही है।

प्रशांत भूषण ने कहा कि एक व्यक्ति के लिए हर महीने 9,000 आवेदनों की जांच करना असंभव है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति के फोन को वैध कारणों से इंटरसेप्ट करने की आवश्यकता है या नहीं यह देखने के लिए कोई उचित सुरक्षा का उपयोग नहीं किया जा रहा है। इससे न्यायाधीशों सहित प्रत्येक नागरिक की निजता पर आक्रमण हो रहा है।उन्होंने कहा कि वास्तव में हमने पेगासस देखा है, जो केवल एक लक्षित निगरानी प्रणाली है। इसमें यह पाया गया कि न्यायाधीशों और अदालत के कर्मचारियों आदि के फोन भी टार्गेट पर थे।

जस्टिस श्रीकृष्ण की रिपोर्ट पढ़ते हुए भूषण ने कहा कि इनमें से प्रत्येक तंत्र के लिए टेलीग्राफ नियमों के तहत स्थापित अवरोधन समिति द्वारा निरीक्षण किया जाता है। समिति टेलीग्राफ अधिनियम और आईटी अधिनियम की धारा 69D के तहत पारित इंटरसेप्शन आदेशों की समीक्षा करती है। इन आदेशों के अनुसार, हाल ही में एक आरटीआई आवेदन में यह पाया गया कि केंद्र सरकार द्वारा हर महीने 7500-9000 ऐसे फोन टैपिंग करने के आदेश पारित किए जाते हैं।

प्रशांत भूषण ने खंडपीठ से एक स्वतंत्र निरीक्षण समिति गठित करने और सरकार को इस संबंध में अब तक जो कुछ भी किया है उसे रिकॉर्ड करने के लिए एक अंतरिम निर्देश पारित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि शुरू में सरकार ने एक छोटा हलफनामा दायर किया था। इसमें दावा किया गया था कि सब कुछ कानून के अनुसार किया जा रहा है। हालांकि, उन्होंने केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली नेटवर्क और यातायात विश्लेषण, राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड के बारे में कही गई बातों का जवाब नहीं दिया। उन्होंने बताया कि प्रारंभिक हलफनामे को बेहतर तरीके से बदलने के लिए वापस ले लिया गया था। हालांकि, यह मॉनिटरिंग और इंटरसेप्शन के लिए शक्ति के नियमित अभ्यास के आरोपों से भी संबंधित नहीं है।

प्रशांत भूषण ने दलील दी कि अगर किसी भी नागरिक की जासूसी करवाई जाती है, बिना नियमों का पालन किए हुए, तो वह गैरकानूनी है।प्रशांत भूषण ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार ने कहा कि देश में अगर किसी की जासूसी होती है तो वह नियम कानून का पालन करते हुए ही हो सकती है। प्रशांत भूषण ने कहा की कानून के हिसाब से होम सेक्रेट्री को फोन टैपिंग या कथित जासूसी से जुड़े मामलों में अनुमति देने का अधिकार है। एक जानकारी के मुताबिक 1 महीने में करीब 7500-9000 लोगों की जासूसी करवाई जाती है।  तो क्या 7500-9000 लोगों की जासूसी की अनुमति देते हैं गृह सचिव?

केंद्र सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह इस मामले पर कोर्ट में जवाब देने को तैयार हैं। जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि वह कोर्ट के सामने पूरी जानकारी दें कि कैसे लोगों की जासूसी होती है, उसकी क्या प्रक्रिया है, कौन अनुमति देता है?

इस बीच प्रशांत भूषण ने कहा कि मेरी मांग सिर्फ फोन टैपिंग तक ही सीमित नहीं, बल्कि सरकार इंटरनेट पर पड़ी जानकारियों की भी जासूसी करती है। कोर्ट ने कहा कि अभी हम इस पर कुछ नहीं कह रहे। पहले केंद्र सरकार का जवाब आने दीजिए तब हम देखेंगे। मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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