मद्रास हाईकोर्ट में शिक्षा को समवर्ती सूची में डालने को चुनौती, केंद्र को नोटिस

मद्रास हाईकोर्ट ने शिक्षा को राज्य सूची से संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। मद्रास हाईकोर्ट ने पूछा है कि क्या “शिक्षा” को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करना संघीय ढांचे के साथ छेड़छाड़ करना नहीं है?

अराम सेय्या विरुम्बु ट्रस्ट बनाम भारत संघ मामले में सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने 42वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली एक याचिका पर मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया, क्योंकि उसने शिक्षा के विषय को संविधान की राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया था।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एनआर एलंगो ने तर्क दिया कि राज्य सूची (सूची II) से शिक्षा को हटाना और इस विषय को समवर्ती सूची (सूची III) में स्थानांतरित करना संघवाद के खिलाफ है, जो कि भारत के संविधान की संरचना का बुनियादी हिस्सा है। यह अच्छी तरह से तय है कि संशोधन बुनियादी ढांचे के विपरीत नहीं किये जा सकते हैं और संघवाद संविधान की मूल संरचना है।

इस पर चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी ने संघवाद और अर्ध-संघवाद के बीच अंतर स्पष्ट करने को कहते हुए कहा कि भारत प्रकृति में अधिक अर्ध-संघीय है। हम नहीं जानते कि संघवाद बुनियादी ढांचे का (हिस्सा) है या नहीं। हम पूरी तरह से संघीय नहीं हैं। पूर्ण संघवाद का मतलब यह भी है कि राज्यों को अलग होने का अधिकार है। इस पर एलंगो ने जवाब दिया कि एसआर बोम्मई मामले में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दिया है कि संघवाद मूल संरचना का हिस्सा है। इस पर चीफ जस्टिस ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि हाँ, बोम्मई मामले में ऐसा कहा गया है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि चूंकि संविधान सभा ने भी संसद को संशोधन करने की शक्तियां दी हैं, इसलिए विचार करने योग्य मुद्दा यह है कि क्या शिक्षा को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने से संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा।

चीफ जस्टिस ने कहा की यह मुद्दा है। क्या शिक्षा जैसी प्रविष्टि के साथ छेड़छाड़ करना और इसे एक सूची से दूसरी सूची में ले जाना संघवाद के बुनियादी ढांचे के साथ छेड़छाड़ करना होगा? क्योंकि विविधता है, संघवाद है। दूसरे के लिए, क्या यह बुनियादी ढांचे के साथ छेड़छाड़ की तरह होगा? ऐसा नहीं हो सकता है। वैसे भी हम केंद्र से जवाब मांगेंगे ।

तमिलनाडु को नीट से छूट देने के लिए हाल ही में राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयक के एक निहित संदर्भ में, चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से कहा कि चुनौती कुछ प्रासंगिकता मानती है कि इसी तरह के मुद्दों को विधानसभा में उठाया गया है।

खंडपीठ ने इस बात पर विचार करने की आवश्यकता पर भी चिंता जताई कि शिक्षा को राज्य या समवर्ती सूची में होना चाहिए या नहीं, इस पर बहस करते हुए शैक्षिक संसाधनों को पूरे देश में समान रूप से वितरित किया जाना चाहिए।

चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई भी आपकी भावनाओं का सम्मान कर सकता है, लेकिन कृपया याद रखें, हमारे पास इस देश के विशाल हिस्से हैं। वह अभी भी अविकसित हैं। यदि आप अखिल भारतीय स्तर पर निर्णय लेते हैं तो बहुत से स्थानों पर शैक्षणिक संस्थान नहीं हैं। कुछ जगहों पर छात्रों की आकांक्षाएं जहां मेडिकल कॉलेज नहीं हैं, वे क्यों अधूरे रहे? शैक्षिक संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए। अब भी, दुर्भाग्य से, हम पूर्वोत्तर के नागरिकों को भारतीय नहीं मानते हैं, जो एक त्रासदी है। उनके लुक के कारण उन्हें नेपाली कहा जाता है। वे आपके और मेरे जैसे ही भारतीय हैं। अधिकांश पूर्वोत्तर क्षेत्रों में शैक्षिक सुविधाएं नहीं हैं। इसलिए हमें उन सभी पर विचार करना होगा।

केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल आर शंकरनारायणन द्वारा और राज्य सरकार के लिए सरकारी वकील पी मुथुकुमार द्वारा नोटिस स्वीकार किया गया। एएसजी शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि जब किसी विषय को राज्य सूची से स्थानांतरित करने की बात आती है तो संशोधन के लिए एक विशेष प्रक्रिया होती है। उन्होंने कहा कि इस तरह के बदलाव से पहले आधे से अधिक राज्यों को इसकी पुष्टि करनी होगी। यह देखते हुए कि 1975-76 के आस पास हुई घटनाओं पर पढ़ना चाहिए, जब संशोधन पेश किया गया था। एएसजी ने केंद्र के काउंटर को दाखिल करने के लिए छह सप्ताह का समय भी मांगा।

खंडपीठ ने सभी प्रतिवादियों को जवाब देने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया है। खंडपीठ में जस्टिस पीडी ऑडिकेसवालु भी शामिल थे, ने मामले को दस सप्ताह में आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया, साथ ही राज्य को एक पक्ष के रूप में भी शामिल किया।

याचिका अराम सेया विरुम्बु ट्रस्ट ने अपने प्रतिनिधि डॉ. एझिलन नागनाथन के माध्यम से दायर की थी, जो वर्तमान में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पार्टी के विधायक हैं। याचिकाकर्ता ने संविधान (42वें संशोधन) 1976 की धारा 57 की वैधता को चुनौती दी, जिसने संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 11 को हटा दिया और शिक्षा के विषय को प्रभावी रूप से सूची III (समवर्ती में स्थानांतरित कर दिया)।याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि यह संघीय ढांचे का उल्लंघन है और इस प्रकार असंवैधानिक है।

गौरतलब है कि सन् 1976से पूर्व शिक्षा पूर्ण रूप से राज्यों का उत्तरदायित्व था। संविधान द्वारा 1976 में किए गए 42वें संशोधन से शिक्षा को समवर्ती सूची में डाला गया, उस के दूरगामी परिणाम हुए। आधारभूत, वित्तीय एवं प्रशासनिक उपायों को राज्यों एवं केंद्र सरकार के बीच नई जिम्मेदारियों को बांटने की आवश्यकता हुई। जहां एक ओर शिक्षा के क्षेत्र में राज्यों की भूमिका एवं उनके उत्तरदायित्व में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ, वहीं केंद्र सरकार ने शिक्षा के राष्ट्रीय एवं एकीकृत स्वरूप को सुदृढ़ करने का गुरूतर भार भी स्वीकारा। इसके अंतर्गत सभी स्तरों पर शिक्षकों की योग्यता एवं स्तर को बनाए रखने एवं देश की शैक्षिक जरूरतों का आकलन एवं रखरखाव शामिल है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। आप आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments