नरेंद्र गिरि की मौत के बाद के वायरल वीडियो से आत्महत्या की थ्योरी पर सवाल

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की आत्महत्या-हत्या के मामले में सोशल मीडिया पर वायरल 1.45 मिनट के वीडियो के सामने आने के बाद प्रयागराज पुलिस और बाघम्बरी मठ के सेवादारो,चेलों के इस दावे पर गम्भीर प्रश्नचिंह लग गया है कि महंत नरेंद्र गिरि ने 11 पेज का सुसाईड नोट लिखा है और पंखे से लटक कर आत्महत्या कर लिया है।

जो वीडियो वायरल है उसमें महंत का शव कमरे के नंगे फर्श पर पड़ा दिख रहा है और उनके गले में कोई रस्सी बंधी या लिपटी नहीं दिख रही है बल्कि गले के नीचे से उतर कर जमीन पर पड़ी है।रस्सी के तीन टुकड़े दिख रहे हैं। जमीन पर पड़ी रस्सी के टुकड़े के आलावा एक टुकड़ा मेज पर और एक टुकड़ा पंखे के चुल्ले पर बंधा लटका है जिसे पंखे के ब्लेड्स के ऊपर से काटा गया प्रतीत होता है क्योंकि चलते हुए पंखे से इसका कोई भी अंश टकरा नहीं रहा है।

अब जब कथित तौर पर बबलू सेवादार ने जब महाराज श्री को रस्सी काटकर फांसी से उतारा तो रस्सी को कहाँ से काटी? यदि ब्लेड्स के ऊपर से रस्सी काटी तो महंत के शरीर को किसने पकड़ रखा था? वरना रस्सी कटते ही महंत का शरीर जमीन पर या पलंग पर गिर जाता। दूसरा सवाल यह है कि महंत के गले से किसने और क्यों रस्सी की गांठ (यदि लगी हुई थी) को खोली। कमरे में मेज पर पड़ी कैंची से रस्सी काटना कहा जा रहा है तो पुलिस या विवेचनाधिकारी या एसटीएफ ने प्लास्टिक की रस्सी को काट कर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि इससे रस्सी कटती है या नहीं? यदि कटती है तो कैसी कटती है और कितना समय लगता है? फिर प्लास्टिक की मोटी रस्सी में कोई सिद्धहस्त ही गांठ बांध सकता है वरना गांठ खुल जाती है।

जो लोग भी महंत नरेंद्र गिरि को जानते हैं, देख चुके हैं, मिल चुके हैं उन्हें मालूम है कि महंत नरेंद्र गिरि भारी शरीर के थे और गठिया रोग से ग्रस्त थे, फिर महंत नरेंद्र गिरि ने पंखे के चूले से फांसी की रस्सी कैसे बाँधी होगी। वे चूले तक कैसे पहुंचे होंगे? उनके लिए यह आसान नहीं था कि बेड पर स्टूल रखकर चढ़ जाएं। यदि बेड पर स्टूल भी रखें तो कोई जब तक स्टूल हाथ से नहीं पकड़ेगा तब तक बिना किसी की मदद के नरेंद्र गिरि ने पंखे के चूले से फांसी का फंदा कैसे लगाया होगा, यह क्राइम के विशेषज्ञों के लिए शोध का विषय है। अब एसटीएफ़ और प्रयागराज की पुलिस ही बता सकती है कि कैसे, अकेले ही सब कुछ किया और फांसी के फंदे पर झूलकर जान दे दी?

अभी साल भर पहले ही फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के फांसी पर झूलने के बाद जितनी जाँच एजेंसियां इसकी जाँच में लगी हैं उन्होंने पूरे सीन को एक से अधिक बार रिक्रिएट किया ,पंखे से पलंग और शरीर की लम्बाई ,फांसी के फंदे से पलंग, जमीन की ऊंचाई की नाप जोख की। नरेंद्र गिरि की फांसी के बाद पुलिस ने पता नहीं किसके दबाव में या अपनी अक्षमता के कारण यह कवायद की ही नहीं और प्रथमदृष्ट्या मान लिया कि मठ के सेवादार जो कह रहे हैं वही सही है। जब इतने बड़े हाईप्रोफाइल मामले में पुलिस इतनी अक्षमता का प्रदर्शन कर रही है तो आम आदमी के साथ हुए अपराधों में तो बस खानापूरी होती है इसलिए यूपी में अदालतों में अपराधों की दोषसिद्धि दर 6 प्रतिशत से भी कम है।

कदम कदम पर विसंगतियां भरी पड़ी हैं। सूचना और एफआईआर में अंतर है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की मौत के बाद आधिकारिक सूचना दी गई कि दरवाजा तोड़कर अंदर घुसे शिष्यों ने फांसी का फंदा काट कर शव नीचे उतारा, जबकि उनके शिष्य अमर गिरि ने एफआईआर दर्ज कराई है कि धक्का देकर दरवाजा खोला गया।

सबसे अहम बात यह है कि पुलिस के आने से पहले शव क्यों उतारा गया? कमरे के अंदर संदिग्ध परिस्थिति में नरेंद्र गिरि की मौत हो गई, ऐसे में बिना पुलिस को बताए उनके शव को नीचे क्यों उतारा गया? फोन से संपर्क न होने पर उनके शिष्य परेशान थे तो ऐसे में पुलिस के पहुंचने का इंतजार क्यों नहीं किया गया?क्यों न माना जाये कि उन्हें जहर या बेहोशी की दवा पिलाकर उनकी गला घोंटकर हत्या कर दी गयी और कथित फांसी के सबूत गढ़ दिये गये?  

 अब इसे क्या कहेंगे कि सुसाइड नोट को वसीयत की तरह लिखा गया,ऐसा क्यों ? सुसाइड नोट को टुकड़ों में लिखा गया है। एक तरफ नरेंद्र गिरि ने अपनी मौत के लिए आनंद गिरि, मंदिर के पूर्व पुजारी आद्या तिवारी और उनके बेटे को जिम्मेदार बताया है। वहीं दूसरी ओर मठ की संपत्ति के लिए वसीयतनामा लिखा है। वे लिखने में हिचकते थे तो इतना बड़ा नोट कैसे लिखा? नरेंद्र गिरि से जुड़े संतों ने आरोप लगाया है कि वह अपना हस्ताक्षर करने में भी तीन मिनट का समय लगाते थे। कोई भी काम होता था तो शिष्य ही लिखते थे। आखिर में वह हस्ताक्षर कर देते थे। ऐसे में सवाल उठना स्वभाविक है कि उन्होंने कब और कहां बैठकर 12 पेज लिख डाले?

नरेन्द्र गिरि ने आत्महत्या उस कमरे में क्यों की, जो अतिथि गृह का कमरा है? नरेंद्र गिरि अपने विश्राम कक्ष में आराम करते थे। अतिथि गृह में वह तभी जाते थे जब कोई व्यक्ति बाहर से मिलने आता था। ऐसे में यह अहम सवाल है कि उन्होंने अपने एकांत कमरे को छोड़ कर बाहर बने अतिथि गृह में फांसी क्यों लगाई?

कमरे के पास का सीसीटीवी कैमरा खराब बताया जा रहा। बाघंबरी मठ परिसर की 32 सीसीटीवी कैमरे से निगरानी की जाती है। ऐसे में उनके कमरे के पास लगा सीसीटीवी खराब क्यों था? क्या इसे साजिश के तहत खराब किया गया था?ख़राब जिसने किया था, क्या उसका हत्या का उद्देश्य था?

नरेंद्र गिरि के कथित सुसाइड नोट में लिखा है कि हरिद्वार के एक व्यक्ति ने बताया कि आनंद गिरि उनकी फोटो एक महिला के साथ गलत काम करते हुए बनाकर वायरल करने जा रहा है। सवाल यह है कि उस व्यक्ति का नाम सामने क्यों नहीं आया?फिर यदि मामला फर्जी सीडी का हो तो वे एफआईआर कर सकते थे। तो क्या वे जानते थे कि सीडी में दम है, जिसके दर से उन्होंने जान दे दी। या हत्यारों ने उनकी मौत को आत्महत्या सिद्ध करने के लिए इस झूठ को कथित सुसाइड नोट में प्लांट किया, ताकि सुसाइड का मोटिव सिद्ध किया जा सके।यदि ऐसा है तो हत्या की बड़ी साजिश हो सकती है जिसमें मठ के बाहर के रसूखदार लोग भी शामिल हो सकते हैं।

यह सवाल भी उठ रहा है कि नरेंद्र गिरि की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी घटना के वक्त कहां थे? सभी के फोन के डिटेल्स और किसकी क्या लोकेशन थी? यह भी अनुत्तरित है।

 केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने महंत की मौत के मामले की सीबीआई जांच के संबंध में एक अधिसूचना जारी की है। यह कदम उत्तर प्रदेश सरकार के अनुरोध के बाद उठाया गया है। उत्तर प्रदेश के गृह विभाग ने बुधवार को कहा था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की दुखद मौत से संबंधित घटना की सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) से जांच की सिफारिश की गई है।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने मंगलवार को संत की मौत की जांच के लिए 18 सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। पुलिस ने कहा था कि एक कथित ‘सुसाइड नोट’ भी मिला है, जिसमें संत ने लिखा था कि वह मानसिक रूप से परेशान हैं और अपने एक शिष्य से नाराज हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद ने भी मंगलवार को मौत के मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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