प्रतीकात्मक फ़ोटो।

फेसबुक रिव्यू टीम सिर्फ 25% कंटेंट पर काम कर रही थी, इंटरनल रिपोर्ट में खुलासा 

फेसबुक कंपनी की इंटरनल रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि अपनी इन्फ्लेमेटरी और डिविसिव कंटेंट पर काबू पाने वाली ग्लोबल टीम को कंपनी ने लगातार छोटा किया है। एक समय तो फेसबुक रिव्यू टीम सिर्फ 25% कंटेंट पर काम कर रही थी। गौरतलब है कि फेसबुक की ग्लोबल टीम भड़काऊ कमेंट और पोस्ट पर नज़र रखती है। उन्हें हटाने का काम करती है। किसी यूजर या थर्ड पार्टी द्वारा उठाई गई आपत्ति वाले कंटेंट की समीक्षा के लिए यह टीम काम कर रही थी।

फेसबुक की 6 अगस्त, 2019 की एक इंटरनल रिपोर्ट में कहा गया है कि खर्च को कम करने के लिए फेसबुक ने तीन संभावित लेवल प्रस्तावित किए थे। इसमें यूजर्स की रिपोर्ट का रिव्यू, भड़काऊ और भ्रामक पोस्ट की घटती संख्या, और कम अपील की समीक्षा करना शामिल रहे।
फेसबुक डॉक्यूमेंट के मुताबिक, फेसबुक पर पोस्ट होने वाले भड़काऊ पोस्ट और कमेंट जैसे कंटेंट की समीक्षा के मामले में फेसबुक की टीम द्वारा अपनी तरफ से सिर्फ़ 25% पर ही काम किया जा रहा था।कंपनी हेट कंटेंट के रिव्यू पर हर सप्ताह 2 मिलियन डॉलर (क़रीब 15 करोड़ रुपए) से अधिक ख़र्च कर रही थी। कंपनी ने अपने प्लान के चलते 2019 के आखिर तक हेट कंटेंट पर होने वाले कुल ख़र्च को 15% तक कम कर दिया था।

भारत में नफ़रती पोस्ट पर कोई कार्रवाई नहीं 

भारत में फेसबुक के 34 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ता हैं। उपभोक्ताओं की संख्या के लिहाज से भारत फेसबुक का सबसे बड़ा बाज़ार भी है। फेसबुक ने एक इंटरनल डॉक्यूमेंट में कहा है, “आप इसे इस तरह समझ सकते हैं कि फेसबुक की कॉस्ट कटिंग का इसके उपभोक्ता पर कोई असर पड़ने की आशंका नहीं है। सवाल यह है कि हम कैपेसिटी कम करने के तरीके पर किस तरह अमल कर सकते हैं। अब यूजर की रिपोर्ट के हिसाब से ही इस तरह के कदम उठाए हैं।”
फेसबुक ने पिछले दो साल की मल्टीपल इंटरनल रिपोर्ट्स में कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। इसमें कहा गया है कि 2019 लोकसभा चुनाव अभियान में ‘एंटी-मायनॉरिटी’ और ‘एंटी-मुस्लिम’ बयानबाजी पर रेड फ्लैग में वृद्धि देखी गई थी।
जुलाई 2020 की एक रिपोर्ट में इस बात को हाईलाइट किया गया है कि पिछले 18 महीने में इस तरह के पोस्ट में तेजी से वृद्धि हुई। इतना ही नहीं, पश्चिम बंगाल सहित आगामी विधानसभा चुनावों में इस तरह की पोस्ट के जरिए लोगों की भावनाओं को आहत करने की आशंका थी।

फेसबुक पर किसी नफ़रत फैलाने वाली पोस्ट को रेड फ्लैग दिया जाता है। इस तरह चिह्नित किए जाने का मतलब होता कि उससे खतरे की आशंका है। यूं कहें कि रेड फ्लैग के जरिए लोगों को उससे बचने का संकेत दिया जाता है। फेसबुक की लगभग इस तरह की सभी रिपोर्टों ने भारत को जोखिम वाले देशों (ARC) श्रेणी में रखा है। इसके मुताबिक भारत में सोशल मीडिया पोस्ट से सामाजिक हिंसा का जोखिम अन्य देशों से अधिक है।

यूनाइटेड स्टेट्स सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) को बताए गए डॉक्युमेंट्स में ऐसी कई बातों का जिक्र किया गया है। ये डॉक्युमेंट्स फेसबुक की पूर्व कर्मचारी और व्हिसलब्लोअर फ्रांसेस हौगेन के कानूनी सलाहकार द्वारा संशोधित रूप में अमेरिकी कांग्रेस को प्रदान किए गए हैं।

इसमें कहा गया है कि हेट स्पीच और भड़काने वाली ज्यादातर पोस्ट की थीम हिंसा के ख़तरों को बढ़ाने के आसपास केंद्रित थी। इसमें मायनॉरिटी ग्रुप को कोविड से जुड़ी गलत सूचनाओं में शामिल किया गया। वहीं, सांप्रदायिक हिंसा में मुसलमानों के शामिल होने की झूठी रिपोर्ट शामिल की गई। अमेरिकी कांग्रेस द्वारा प्राप्त संशोधित संस्करणों की समीक्षा द इंडियन एक्सप्रेस सहित वैश्विक समाचार संगठनों द्वारा की गई है।

‘भारत में सांप्रदायिक संघर्ष’ शीर्षक की एक अन्य इंटरनल फेसबुक रिपोर्ट में कहा गया कि अंग्रेजी, बंगाली और हिंदी में भड़काऊ कंटेंट कई बार पोस्ट की गईं। विशेष रूप से दिसंबर 2019 और मार्च 2020 में इन्हें पोस्ट किया गया। ये नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध से मेल खाती हैं।
डॉक्यूमेंट्स से इस बात का भी पता चलता है कि प्लेटफॉर्म पर ऐसे कंटेंट की मौजूदगी के बावजूद फेसबुक की टीम न्यूजफीड पर इसे आगे बढ़ाने के लिए एल्गोरिदम तैयार कर रही थी।

RSS और बीजेपी ने ‘लव जिहाद’ को हैशटैग किया2021 की एक अन्य फेसबुक इंटरनल रिपोर्ट के अनुसार, ‘इंडिया हार्मफुल नेटवर्क्स’ टाइटल से तृणमूल कांग्रेस से संबद्ध होने का दावा करने वाले ग्रुप ने ऐसा कंटेंट पोस्ट किया जो भड़काऊ था। दूसरी तरफ, इसी इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक, RSS और भाजपा से जुड़े ग्रुप्स के पोस्ट में ‘लव जिहाद’ को हैशटैग किया गया।
सार्वजनिक तौर पर दिखाई देने वाले इस्लामोफोबिक कंटेंट के साथ बड़ी मात्रा में हैशटैग को जोड़ा गया। जब इस बारे में बीजेपी, RSS और TMC को सवाल भेजे गए, तो उस पर कोई जवाब नहीं मिला।

असम में विधानसभा चुनाव से पहले 2021 में एक इंटरनल रिपोर्ट में दावा किया कि मौजूदा असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा को भी फेसबुक पर भड़काऊ व अफवाहों को फैलाने के लिए चिह्नित (रेड फ्लैग) किया गया था। इसमें कहा गया था कि मुस्लिम असम के लोगों पर जैविक हमले की तैयारी कर रहे हैं। जिससे उनमें लिवर, किडनी और हृदय से संबंधित रोग पैदा हों।द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा इस बारे में हेमंत बिस्वा सरमा से पूछे जाने पर कि नफ़रत से भरी पोस्ट में अपने ‘प्रशंसकों और समर्थकों’ की लिप्तता के बारे में जानते हैं? इस पर सरमा ने कहा, ‘मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।’ वहीं उनसे जब सवाल किया गया कि क्या फेसबुक ने उनके पेज पर पोस्ट किए गए कंटेंट को चिह्नित करने के संबंध में संपर्क किया था। इस पर सरमा ने कहा, ‘मुझसे किसी प्रकार का कोई संपर्क नहीं किया गया था।’

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