बटुकेश्वर दत्त और सावरकर का नाम एक साथ नहीं लिया जा सकता: दीपंकर

पटना। भगत सिंह के साथी महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिन पर आज पटना के भारतीय नृत्य कला मंदिर में इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों व नागरिक समुदाय के आह्वान पर दो सालों तक चलने वाले ‘आजादी के 75 साल: जन अभियान’ की शुरूआत हुई। इसके पूर्व आज सुबह में जक्कनपुर स्थित बटुकेश्वर दत्त लेन में एक सभा भी आयोजित की गई और विधानसभा मुख्य द्वार पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।

‘आजादी के 75 साल: सपने और चुनौतियां’ विषय पर आयोजित जन कन्वेंशन में मुख्य रूप से प्रख्यात इतिहासकार प्रो. ओपी जायसवाल, माले के महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य, जाने-माने कवि अरुण कमल, पटना विवि के इतिहास विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. भारती एस. कुमार, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर विद्यार्थी विकास, पसमांदा महाज के नेता व पूर्व सांसद अली अनवर आदि वक्ताओं ने अपने विचार रखे। इस मौके पर एनआईटी के पूर्व शिक्षक प्रो. संतोष कुमार शिक्षाविद् गालिब, रंजीव, इंजीनियर पीएस महाराज, डॉ. पीएनपीपाल, इप्टा के तनवीर अख्तर, माले के राज्य सचिव कुणाल, धीरेन्द्र झा, महबूब आलम, संतोष सहर, मीना तिवारी, संदीप सौरभ सहित कई लोग उपस्थित थे। मंच का संचालन कुमार परवेज ने किया। हिरावल के साथियों के अजीमुल्ला खां रचित ‘हम हैं इसके मालिक हिंदोस्ता हमारा’ गायन से जन कन्वेंशन की शुरुआत हुई।

इस मौके पर ओपी जायसवाल ने कहा कि भाजपा व संघ का आजादी के आंदोलन में विश्वासघात का इतिहास रहा है। वे संविधान के भी विरोधी हैं, क्योंकि यह धारा मानती है कि मनुस्मृति ही संविधान है। जब संविधान लागू हो रहा था और सबको वोट का अधिकार मिल रहा था, तब संघ के नेताओं ने उसका विरोध किया था। ये लोग आज इतिहास को विकृत कर रहे हैं। इसके खिलाफ एक व्यापक एकता बनाना और आजादी के 75 साल की मूल भावना को याद करना व उस संघर्ष को आगे बढ़ाना हम सबका दायित्व बनता है।

कन्वेंशन में माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बटुकेश्वर दत्त व सावरकर का नाम एक साथ नहीं लिया जा सकता। अंडमान की जेल में सावरकर का इतिहास माफी मांगने का है, जबकि बटुकेश्वर दत्त अनवरत जेल में लड़ते रहे। यह लड़ाई भाजपा के हर झूठ व इतिहास को लेकर उनके खेल के खिलाफ है। आजादी के आंदोलन के इतिहास से ऊर्जा लेकर हम आज की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन, 1942 की क्रांति, देश में चले किसान आंदोलन, आजादी आंदोलन में मुस्लिमों की भागीदारी, दलितों-पिछड़ों, महिलाओं की भागीदारी आदि पहलुओं को हम याद कर रहे हैं।

हमारे पूर्वजों ने लड़कर के अंग्रेजों को भगाया। उनके खून-पसीने से आजादी के आंदोलन के इतिहास का निर्माण हुआ है। अगर संघर्ष नहीं हुआ होता तो इतिहास नहीं बनता। यह हमारी विरासत है, इसका रखरखाव, सबक लेना, कोई गलती हुई तो नहीं दुहराना, यह हम सबको करना है। इस इतिहास को हम संभालेंगे। भाजपा व संघ सत्ता के बल पर उस इतिहास को तोड़-मरोड़ देना चाहते हैं। इसलिए हमें आजादी के मूल्यों को बचाना भी है और ऐसी ताकतों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में भी उतरना है।

अरुण कमल ने कहा कि भगत सिंह व उनके साथियों का संघर्ष, नौसैनिक विद्रोह आदि हमारे आजादी के आंदोलन के मूल्यवान पहलू हैं। आज उस आाजदी को बचाने और उन्हें याद करने की जरूरत है। आजादी की लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी। वह सांस की तरह है। हम सब मिलकर चलेंगे और एक नया समाज बनायेंगे।

विद्यार्थी विकास ने गांधी की जिंदगी बचाने वाले बत्तख मियां के कार्यों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि भाजपा-संघ के लोग गांधी को मारने वाले गोडसे की भक्ति करते हैं, हमारी विरासत बत्तख मियां की विरासत है, जिन्होंने गांधी को बचाया था। भारती एस कुमार ने कहा कि यह जन अभियान सच्चे इतिहास को लोगों के बीच ले जाने व समझने का एक बेहतर प्रयास है। मौजूदा सरकार उसे तोड़-मरोड़ रही है। इतिहास को तथ्यों पर आधारित होना चाहिए और इसके लिए हमें लड़ना होगा।

अली अनवर ने आजादी के आंदोलन में हाशिये पर पड़े लोगों के इतिहास को सामने लाने के लिए अभियान की सराहना की। उन्होंने कहा कि संघ के लोग देश की जनता को जहर पिलाने का काम कर रहे हैं। प्रज्ञा सिंह ठाकुर व कंगना रनौत जैसे लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिनके लिए आजादी एक भीख है। यह तमाम शहीदों का अपमान है।

अंत में जन कन्वेंशन से कुछेक प्रस्ताव लिए गए। प्रो. ओपी जायसवाल की अध्यक्षता में अगले दो सालों तक इस जन अभियान को संचालित करने का निर्णय लिया गया। साथ ही, पटना में बटुकेश्वर दत्त के सम्मान में पटना स्थित सचिवालय हॉल्ट रेलवे स्टेशन, मीठापुर-गर्दनीबाग रोड और गर्दनीबाग स्थित अंग्रेजों के जमाने के गेट पब्लिक लाइब्रेरी का नाम बटुकेश्वर दत्त के नाम पर किए जाने की मांग की गई। जनभागीदारी से गोरिया मठ के पास बटुकेश्वर दत्त द्वार का निर्माण करने का भी संकल्प लिया गया।

प्रस्ताव में 1857, 1942, किसान आंदोलन, आदिवासी आंदोलन आदि के अनछुए पहलुओं का दस्तावेजीकरण का निर्णय किया गया और जिलों में कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय किया गया। कन्वेंशन ने अभिनेत्री कंगना रनौत से अविलंब पद्म श्री का पुरस्कार वापस लेने की भी मांग की।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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