पत्रकारों को धमकाने के लिए ना हो ताकत का इस्तेमाल: ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट की नसीहत

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उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्य को अपनी ताकत का इस्तेमाल किसी राजनीतिक विचारधारा या पत्रकारों को धमकाने के लिए नहीं करना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक वर्ग को अपनी बात रखते वक्त आत्ममंथन करना चाहिए कि वो क्या कह रहे हैं। आज के ट्विटर युग में उन्हें और भी ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए। जस्टिस एस के कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने एक न्यूज वेब पोर्टल के खिलाफ पश्चिम बंगाल में दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। यह मामला पश्चिम बंगाल में छपे एक आर्टिकल से जुड़ा हुआ है।

पीठ ने कहा कि देश विभिन्नताओं वाला देश है और यह अपने आप में महान है। इस देश में अलग-अलग मान्यताएं और मत हैं। राजनीतिक मत भी अलग-अलग हैं। यह हमारे लोकतंत्र की पहचान है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य फोर्स का इस्तेमाल कभी भी राजनीतिक या जर्नलिस्ट के ओपिनियन को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसका मतलब यह भी नहीं है कि इन्हें कुछ भी बोलने का अवसर मिल गया है जिससे कि समाज में परेशानी पैदा हो।

पीठ ने साथ ही कहा कि हम यह भी जोड़ना चाहते हैं कि पत्रकारों की भी जिम्मेदारी है कि वह किसी मामले को कैसे रिपोर्ट करें खासकर तब जबकि यह टि्वटर का दौर है, ऐसे में उन्हें ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिेए। सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने बताया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इंग्लिश भाषा के एक न्यूज पोर्टल के एडिटर के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने का फैसला किया है। साथ ही यू ट्यूबर के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने का फैसला हुआ है।

पीठ ने कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि राजनीतिक वर्ग में एक दूसरे के प्रति नीचा दिखाने वाले बयान हो रहे हैं और उस पर आत्ममंथन की जरूरत है। हमारे देश में विविधता है और वह गर्व का विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले की सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल में दर्ज इस केस की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। 26 जून 2020 को टॉप कोर्ट ने तीन एफआईआर की कार्रवाई पर रोक लगाई थी।

पीठ ने कहा कि यह देश अपनी विभिन्नता पर गर्व करता है, यहां अलग-अलग विचारधारा और सोच हो सकती है जिसमें राजनीतिक विचारधारा भी शामिल है। यह लोकतंत्र का एक अहम तत्व है।’राज्य की ताकतों का इस्तेमाल कभी भी राजनीतिक विचारों या पत्रकारों को डराने के लिए नहीं करना चाहिए जो सार्वजनिक डोमेन में है, उसका परिणाम पत्रकारों को भुगतना पड़ता है। अदालत ने यह भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि एक पत्रकार किसी मामले में किस तरह रिपोर्ट करते हैं इसे लेकर वो अपनी जिम्मेदारियों से भागें।

 पीठ के समक्ष में पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे मौजूद थे। उन्होंने पीठ को बताया कि राज्य सरकार ने तय किया है कि वो ओपइंडिया डाट काम  की संपादक नुपुर जे शर्मा, यूट्यूबर अजीत भारती और अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर को वापस लेगी। सुनवाई के दौरान अदालत ने यह साफ किया कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि उन्हें कुछ ऐसा बोलने का अवसर मिल गया जिससे समाज में समस्या खड़ी हो जाए।

उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले पश्चिम बंगाल में दर्ज एक नई प्राथमिकी पर आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 26 जून को पश्चिम बंगाल में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज तीन प्राथमिकी में आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। अपने आवेदन में, शर्मा और अन्य ने कहा था कि वे पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लगातार पीछा किये जाने और उत्पीड़न के कारण उच्चतम न्यायालय का रुख करने के लिए विवश हैं, जिन्होंने मीडिया रिपोर्टों को रोकने के अपने प्रयास में उनके खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज कीं।

इसमें कहा गया था कि प्राथमिकी मई 2020 के टेलीनीपारा सांप्रदायिक दंगों के बारे में ओपइंडिया डॉट कॉम में प्रकाशित मीडिया रिपोर्टों से संबंधित है और उसी समय प्राथमिकी के रूप में दर्ज की गई थी, जो रिट याचिका का विषय है। शर्मा और समाचार पोर्टल के संस्थापक और सीईओ और इसके हिंदी भाषा प्रकाशनों के संपादक सहित अन्य की मुख्य याचिका में दावा किया गया था कि पश्चिम बंगाल सरकार और उसकी ”सत्तावादी कोलकाता पुलिस” पत्रकारों को डराने के लिए एफआईआर और ”पुलिस शक्तियों” का दुरुपयोग कर रही है।

याचिकाकर्ताओं ने अदालत के सामने कहा था कि पुलिस द्वारा कानून का दुरुपयोग किया गया है और यह प्राथमिकी प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के लिए दर्ज की गई है। याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी कहा गया था कि पश्चिम बंगाल सरकार की आलोचना करने वाली समाचार रिपोर्टों की वजह से यह कार्रवाई की गई है।

इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) और 505 (सार्वजनिक शरारत के लिए प्रेरित करने वाले बयान) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि समाचार रिपोर्टों को अन्य मीडिया संगठनों द्वारा समसामयिक रूप से प्रसारित किया गया था, लेकिन ऑपइंडिया के संपादकों को चुनिंदा रूप से पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा टारगेट किया गया।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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