यूपी में सपा के हौसले बुलंद, भाजपा को दलबदल ने लगाया पलीता

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्ताधारी भाजपा को कड़ी चुनौती देती नजर आ रही है क्योंकि राजनीतिक भगदड़ का ठिकाना सपा बन गयी है जिससे चुनाव पूर्व मनोवैज्ञानिक बढ़त सपा को मिल गयी है। दूसरी और यूपी में बेहतर प्रदर्शन के साथ सरकार बनाने की कोशिश में जुटी भाजपा की साख का तीन मंत्रियों और 11 विधायकों के दलबदल ने पलीता लगा दिया है। भाजपा में पहले 150 विधायकों के टिकट काटने कि हवा फैली, फिर 100 के टिकट काटने की बात कही गयी और इसी बीच जब दलबदल हो गया तो मामला 45 विधायकों के टिकट काटने पर आकर लटक गया। पहली लिस्ट में भाजपा ने 83 सिटिंग विधायकों में से 63 विधायकों को फिर से टिकट दिया है और वहीं 20 विधायकों का टिकट काट दिया है।

विपक्ष की ओर से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव 2022 में कुर्सी पाने के लिए जातिगत समीकरण में फिट बैठने वाले कई छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुके हैं और तीनों मंत्री एवं 11 विधायकों को भाजपा से इस्तीफ़ा देने के बाद सपा में शामिल भी कर चुके हैं। इसके अलावा अपने चाचा शिवपाल को भी अपने पाले में ले आए हैं। शिवपाल ने भी उन्हें अपना नेता मान लिया है। उधर पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी के साथ गठबंधन पहले से ही चला आ रहा है। उनके साथ वह संयुक्त रैली भी कर चुके हैं। सपा को सत्ता में लाने के लिए उनकी पार्टी के हर छोटे बड़े नेता मैदान में डटे हैं। वहीं अखिलेश यादव के विजय रथ यात्रा में बहुत बड़ी संख्या में उमड़ी भीड़ ने विधानसभा चुनाव का राजनीतिक रुझान दीवार पर लिख दिया है जिसे केवल ईवीएम की हेराफेरी से ही बदला जा सकता है।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 में सपा, भाजपा के साथ ही कांग्रेस और बसपा का राजनीतिक भविष्य तय होने जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी के सामने सत्ता में दोबारा काबिज होने की चुनौती है। वहीं, विपक्ष भी कुर्सी हथियाने लिए बेचैन है। चुनाव में सभी दल अपने हिसाब से मेहनत करने में लगे हैं। फिलहाल रैलियों पर प्रतिबन्ध लगने के पहले आयोजित रैलियों में उमड़ी भीड़ को लोकप्रियता और जनाधार का पैमाना माना जाय तो पहले स्थान पर सपा, दूसरे पर कांग्रेस रही तथा भाजपा हाशिये पर रही। बसपा की ओर से बहन मायावती ने एक भी रैली नहीं की। 

विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा का खेल दिल्ली दरबार और लखनऊ दरबार के बीच चल रही खींचतान से बिगड़ गया। हालांकि भाजपा ने प्रदेश में प्रभारियों की नियुक्ति के साथ ही अन्य मोर्चे पर भी किलाबंदी की कवायद की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरी यूपी को मथा। वह अपने संसदीय क्षेत्र काशी में कई बार आये। प्रधानमंत्री ने कई योजनाओं की सौगात भी दी। प्रदेश में लगातार योजनाओं का शिलान्यास हुआ। प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, परिवहन मंत्री नितिन गडकारी और स्मृति ईरानी भी मैदान में उतरीं पर सभी की सभाएं बहुत ही फीकी रहीं। भाजपा ने 403 विधानसभाओं में रथ यात्रा निकाल कर अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया।

समाजवादी विजय रथ यात्रा में अखिलेश भी पीछे नहीं रहे। 12 अक्टूबर, 21 को कानपुर से की शुरुआत के बाद अखिलेश रैलियों पर रोक लगने के पहले अब तक कई चरण में यात्रा पूरी कर चुके थे। इसमें कानपुर, कानपुर देहात, जालौन व हमीरपुर जिले में यात्रा निकली थी। इसके बाद यात्रा बुंदेलखंड में बांदा से महोबा, ललितपुर व झांसी में निकाली गई, वहीं कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में भी अखिलेश ने हुंकार भरा। साथ ही जौनपुर में समाजवादी रथ घूम चुका है। इसके अलावा वह अपने गढ़ मैनपुरी से एटा तक की यात्रा कर चुके हैं। यह वोटों में कितना तब्दील होगा यह तो आने वाला समय तय करेगा।

बहुजन समाज पार्टी के सामने मिशन 2022 जीतना बड़ी चुनौती है। जातीय नेताओं के अभाव में जूझ रही पार्टी की बागडोर मायावती ने इन दिनों सतीश चन्द्र मिश्रा के कंधों पर डाल दी है। उन्हें चुनावी किलेबंदी का जिम्मा दिया गया है। अब उनका पूरा परिवार पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए मेहनत कर रहा है। प्रबुद्ध सम्मेलन के जारिए उन्होंने प्रचार का आगाज किया था। इन दिनों वह सुरक्षित सीटों में सेंधमारी के प्रयास में जुटे हैं। उन्हें कितनी सफलता मिलेगी यह तो भविष्य बताएगा।

कांग्रेस भी सत्ता में आने के लिए होड़ में लगी है। सरकार बनाने का लगातार दावा भी कर रही है। प्रियंका गांधी महिलाओं के लिए कुछ अलग योजनाओं की घोषणा कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने में लगी थीं। हालांकि, वह कितनी कामयाब होंगी यह तो वक्त तय करेगा। आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी के विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें झटकने के लिए हांथ-पांव मार रहे हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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