एक अमानवीय कृत्य में, वन विभाग के एक अधिकारी ने गुरुवार को भद्राद्री-कोठागुडेम जिले के मुलकापल्ली मंडल के साकिवलसा गांव के पास घने जंगलों में खाना पकाने के लिये लकड़ी बीनने आई चार आदिवासी महिलाओं की पिटाई की, और उनमें से दो की साड़ियाँ भी उतार दीं।
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक आदिवासी महिलाएं जंगल में लकड़ियां बीनने गई थीं, तभी वन अनुभाग अधिकारी एन महेश ने उन्हें रोका और जलाऊ लकड़ी “चोरी” करने का आरोप लगाते हुए उन पर चीखा चिल्लाया।
आदिवासी महिलाओं ने वन अधिकारी से कहा कि वह लोग जमीन पर गिरी हुई टहनियों को बीन रही हैं और वे कोई पेड़ नहीं काट रही हैं या जंगल से जलाऊ लकड़ी नहीं चुरा रही हैं। आदिवासी महिलाओं की इस कथित “अवज्ञा” से वन अधिकारी को क्रोध से लाल हो गया और उसने उन्हें डंडे से पीटा, जैसे ही वे भागने लगीं, दो महिलाओं की साड़ियाँ खींच लीं। इसके बाद वह मौके से चले गए।
अपने साथ हुये इस अमानवीय कृत्य से आहत व दुखी महिलायें अपने गांव लौट गईं और गांव के बुजुर्गों को अपने साथ हुए अपमान से अवगत कराया। उनमें से एक तो पास के एक गांव रचनागुडेम के सरपंच कुरासला गणपति के पास गयी, और वन विभाग के अधिकारी द्वारा किए गए जघन्य कृत्य का बयान किया।
चूंकि गुरुवार को पहले ही देर हो चुकी थी, अतः सरपंच ने शुक्रवार को मुलकपल्ली का दौरा किया और इस मुद्दे पर अन्य लोगों के साथ चर्चा करने के बाद फैसला किया कि महिलाओं को शनिवार को मुलकपल्ली पुलिस में शिक़ायत दर्ज़ कराना चाहिए।
चार महिलाएं उन 40 से 50 परिवारों में शामिल थीं, जो क़रीब 20 साल पहले छत्तीसगढ़ से मुलकापल्ली चले गए थे। वे दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करके अपना जीवन यापन करती हैं और वे अक्सर जंगल में जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने जाती हैं।
संपर्क करने पर, वन विभाग अधिकारी एन महेश ने आदिवासी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार या पिटाई से इनकार करते हुये कहा है-“मैंने उन्हें नहीं मारा पीटा। न ही मैंने उनके कपड़े उतारने की कोशिश की। यह एक सफेद झूठ है।” हालांकि उसने यह स्वीकार किया है कि उसने उन्हें जगह छोड़ने के लिए कहा था।
इस बीच भाकपा (माले) न्यू डेमोक्रेसी प्रदेश के संयुक्त सचिव पोटू रंगा राव ने वन अधिकारी के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने पूछा है कि क्या वन क्षेत्र से जलाऊ लकड़ी लाना महिलाओं के लिए अपराध है। उन्होंने कहा कि वन कर्मचारियों द्वारा निर्दोष आदिवासियों के उत्पीड़न का कोई अंत नहीं लगता है। उन्होंने मांग की कि’अधिकारी को तत्काल निलंबित किया जाना चाहिए।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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